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सुखी परिवार का राज़

अपने साथी के साथ इज़्ज़त से पेश आना

अपने साथी के साथ इज़्ज़त से पेश आना

मनोज * कहता है: “जब अंजली उदास होती है, तो उसके आँसू थमने का नाम ही नहीं लेते। अगर मैं उससे बात करने की कोशिश करूँ तो वह चिढ़ जाती है, यहाँ तक कि मुझसे बात करना बंद कर देती है। उस वक्‍त कोई भी तरीका काम नहीं आता। मैं हार मान लेता हूँ।”

अंजली कहती है: “जब मनोज घर आए, तो मैं रो रही थी। मैंने उन्हें समझाने की कोशिश की कि मैं क्यों उदास हूँ। लेकिन उन्होंने मेरी बात बीच में ही काट दी और कहने लगे कि यह कोई बड़ी बात नहीं है और तुम्हें इसे भूल जाना चाहिए। यह सुनकर मैं और उदास हो गयी।”

क्या आप मनोज और अंजली के हालात समझ सकते हैं? दोनों ही एक-दूसरे से बात करना चाहते हैं, लेकिन अकसर हार मान लेते हैं। क्यों?

पुरुषों और स्त्रियों के बात करने का तरीका एक-दूसरे से अलग होता है और उनकी ज़रूरतें भी अलग होती हैं। स्त्री शायद अपने दिल की हर बात खुलकर बताना चाहे। लेकिन दूसरी तरफ कई पुरुष शांति बनाए रखने के लिए समस्याओं को जल्दी निपटाने और गंभीर मसलों से जितना हो सके उतना बचने की कोशिश करते हैं। ऐसे में आप पति-पत्नी क्या कर सकते हैं ताकि आपके बीच अच्छी बातचीत होती रहे? एक तरीका है, अपने जीवन-साथी के साथ इज़्ज़त से पेश आना।

जो इंसान दूसरों की इज़्ज़त करता है, वह उनका मोल जानता है और उनकी भावनाएँ समझने की कोशिश करता है। बचपन से ही आपने उन लोगों की इज़्ज़त करना सीखा होगा जो आपसे बड़े हैं या जिन्हें आपसे ज़्यादा तजुरबा है। लेकिन शादीशुदा ज़िंदगी में मुश्‍किल यह होती है कि आपको एक ऐसे इंसान की इज़्ज़त करनी है, जो लगभग आपके बराबर है, यानी आपका पति या आपकी पत्नी। संध्या की शादी को आठ साल हो चुके हैं, वह कहती है: “मैं जानती थी कि प्रणय बड़े सब्र से दूसरों की बात सुनते हैं और उन्हें समझते भी हैं। मैं चाहती थी कि वे मेरे साथ भी वैसे ही पेश आएँ।” हो सकता है कि आप अपने दोस्तों, यहाँ तक कि अजनबियों की बात सब्र से सुनते हों और उनके साथ इज़्ज़त से पेश आते हों, लेकिन क्या आप अपने जीवन-साथी के साथ भी ऐसे ही पेश आते हैं?

अगर पति-पत्नी एक-दूसरे की इज़्ज़त नहीं करते, तो घर में तनाव रहेगा और झगड़े भी होंगे। एक बुद्धिमान राजा ने कहा था: “चैन के साथ सूखा निवाला कलह वाले घर के स्वादिष्ट भोजन से उत्तम है।” (नीतिवचन 17:1, न्यू हिंदी ट्रांस्लेशन) बाइबल पतियों को सलाह देती है कि उन्हें अपनी पत्नी के साथ आदर से पेश आना चाहिए। (1 पतरस 3:7) “पत्नी” को भी “अपने पति का गहरा आदर” करना चाहिए।—इफिसियों 5:33.

आप किस तरह अपने पति या पत्नी के साथ इज़्ज़त से बात कर सकते हैं? बाइबल में दी कुछ कारगर सलाहों पर गौर कीजिए।

जब आपका साथी आपसे बात करना चाहता हो

चुनौती:

कई लोग सुनने से ज़्यादा बात करना पसंद करते हैं। क्या आप भी ऐसे हैं? बाइबल ऐसे इंसान को मूढ़ या बेवकूफ कहती है जो “बिना बात सुने उत्तर देता है।” (नीतिवचन 18:13) इसलिए कुछ कहने से पहले, दूसरे की सुनिए। क्यों? काव्या जिसकी शादी को 26 साल हो गए हैं, कहती है: “जब मेरे पति मेरी बात सुने बगैर मेरी परेशानी का हल निकालने लगते हैं, तो मुझे अच्छा नहीं लगता। मैं बस इतना चाहती हूँ कि वे मेरी बात सुनें और समझें कि मैं वाकई उदास हूँ। उन्हें न तो मुझसे सहमत होने की ज़रूरत है न ही यह समझने की ज़रूरत है कि परेशानी कैसे खड़ी हुई।”

दूसरी तरफ, कुछ पुरुष और स्त्री अपने दिल की बात कहने से हिचकिचाते हैं और अगर उनका साथी उन पर अपनी भावनाएँ ज़ाहिर करने के लिए ज़ोर डालता है तो उन्हें अच्छा नहीं लगता। लिली जिसकी शादी हाल ही में हुई है, उसने देखा कि उसके पति को अपनी भावनाएँ ज़ाहिर करने में बहुत समय लगता है। वह कहती है, “मुझे बहुत सब्र रखना पड़ता है और इंतज़ार करना पड़ता है कि वे कब अपनी बात खुलकर मुझसे कहेंगे।”

हल:

अगर आपको और आपके साथी को किसी ऐसे मामले पर बात करने की ज़रूरत है, जिस पर आप दोनों की राय एक नहीं है, तो बात करने के लिए ऐसा वक्‍त चुनिए जब आप दोनों शांत और फुरसत से हों। लेकिन तब क्या अगर आपका साथी आपसे बात करने के लिए हिचक रहा हो? याद रखिए कि “इंसान के विचार गहरे कुँए के पानी की तरह हैं, लेकिन समझवाला इंसान उसे निकाल सकता है।” (नीतिवचन 20:5, टुडेज़ इंग्लिश वर्शन) अगर आप कुँए से बाल्टी को जल्दी-जल्दी खींचेंगे तो काफी सारा पानी गिर जाएगा। उसी तरह, अगर आप अपने साथी पर दबाव डालेंगे कि वह अपने दिल की बात आपको बताए, तो शायद वह बात करना ना चाहे और तब उसके दिल की बात जानने का मौका आपके हाथ से निकल जाएगा। ऐसा न हो, इसके लिए अपने साथी से कोमलता और इज़्ज़त से सवाल पूछिए और अगर वह अपनी भावनाएँ जल्दी ज़ाहिर नहीं करता, तो सब्र से काम लीजिए।

जब आपका साथी बात करता है तो ‘सुनने में फुर्ती कीजिए, बोलने में सब्र रखिए, और क्रोध करने में धीमा होइए।’ (याकूब 1:19) जो इंसान दूसरों की बातें ध्यान से सुनता है, वह न सिर्फ दूसरों के शब्दों पर ध्यान देता है बल्कि उनके दिल की भावनाएँ भी समझने की कोशिश करता है। जब आपका साथी आपसे बात करने की कोशिश करता है तो उसकी भावनाएँ समझने की कोशिश कीजिए। आपके सुनने के तरीके से आपका साथी जान जाएगा कि आप उसकी इज़्ज़त करते हैं या नहीं।

यीशु ने हमें सिखाया कि हमें दूसरों की बातें कैसे सुननी चाहिए। उदाहरण के लिए, जब एक बीमार आदमी उसके पास मदद के लिए आया तो यीशु ने उसकी बीमारी फौरन ठीक नहीं की, बल्कि पहले उसने उस आदमी की बिनती सुनी। उसकी बिनती सुनकर यीशु को उस पर तरस आया। आखिर में यीशु ने उस आदमी को चंगा किया। (मरकुस 1:40-42) जब आपका साथी आपसे बात करता है, तो यही तरीका अपनाइए। याद रखिए कि वह चाहता है कि आप उसकी भावनाएँ समझने की कोशिश करें, उससे हमदर्दी जताएँ, न कि उसे तुरंत हल बताने लगें। इसलिए ध्यान से सुनिए, उसका दर्द महसूस कीजिए, उसके बाद ही अपने साथी की परेशानी का हल निकालने की कोशिश कीजिए। इस तरह आप अपने साथी के लिए इज़्ज़त दिखा रहे होंगे।

इसे आज़माइए: अगली बार जब आपका साथी आपसे बात करता है, तो उसकी बात काटकर खुद बोलना मत शुरू कीजिए। जब तक आपका साथी बात खत्म नहीं कर लेता और आप उसकी बात समझ नहीं लेते, तब तक सब्र रखिए। कुछ समय बाद अपने साथी से पूछिए, “क्या तुम्हें लगा कि मैं तुम्हारी बात वाकई ध्यान से सुन रहा था?”

जब आप कुछ कहना चाहते हों

चुनौती:

संध्या कहती है, “आजकल के हँसी-मज़ाक वाले धारावाहिक में दिखाया जाता है कि अपने जीवन-साथी की बुराई करना, उसकी बेइज़्ज़ती करना और उसे ताने मारना, सब आम ज़िंदगी का हिस्सा है और इसमें कुछ गलत नहीं।” कुछ लोगों की परवरिश ऐसे परिवार में हुई है जहाँ लोग एक-दूसरे के साथ इज़्ज़त से पेश नहीं आते हैं। बाद में जब उनकी शादी हो जाती है, तो वे अपने परिवार में भी उसी तरह से पेश आते हैं। आइवी जो कनाडा में रहती है, कहती है: “मेरी परवरिश ऐसे माहौल में हुई है, जहाँ एक-दूसरे पर चीखना-चिल्लाना, गाली देना आम था।”

हल:

जब आप दूसरों से अपने साथी के बारे में बात करते हैं, तो ऐसी बात कहिए “जो ज़रूरत के हिसाब से हिम्मत बँधाने के लिए अच्छी हो, ताकि उससे सुननेवालों को फायदा पहुँचे।” (इफिसियों 4:29) आप जिस तरह अपने साथी के बारे में बात करते हैं, उससे दूसरों की नज़रों में उसकी इज़्ज़त बढ़नी चाहिए।

यहाँ तक कि जब आप अपने जीवन-साथी के साथ अकेले होते हैं, तब भी ताना मारने और गाली-गलौज करने से दूर रहिए। प्राचीन इसराएल में राजा दाविद की पत्नी मीकल उससे गुस्सा हो गयी। उसने ताना मारते हुए अपने पति से कहा कि उसका व्यवहार ऐसा है “जैसा कोई निकम्मा” पुरुष। उसके ये शब्द न तो दाविद को पसंद आए, न ही परमेश्‍वर को। (2 शमूएल 6:20-23) इससे हम क्या सबक सीखते हैं? जब आप अपने साथी से बात करते हैं, तो सोच-समझकर अपने शब्दों का चुनाव कीजिए। (कुलुस्सियों 4:6) प्रणय की शादी को आठ साल हो चुके हैं, वह मानता है कि आज भी कुछ-कुछ बातों में उसकी और उसकी पत्नी की राय एक नहीं होती। उसने यह भी गौर किया है कि कभी-कभी वह जो कह देता है उससे हालात और बिगड़ जाते हैं। “मैं यह समझ चुका हूँ कि बहस ‘जीतना’ दरअसल हारना है। मैंने पाया है कि ज़्यादा खुशी तब होती है जब हम अपने रिश्‍ते को मज़बूत करने की कोशिश करते हैं और इसी में फायदा है।”

बहुत समय पहले एक बुज़ुर्ग विधवा ने अपनी बहुओं को बढ़ावा दिया कि वे ‘पति करके उनके घरों में विश्राम पाएँ।’ (रूत 1:9) जब पति और पत्नी दोनों एक-दूसरों का मान रखते हैं, तो वे अपने घर को “विश्राम” की जगह बनाते हैं।

इसे आज़माइए: अपने साथी के साथ इस उपशीर्षक में दिए सुझावों पर चर्चा कीजिए। अपने साथी से पूछिए: “जब मैं दूसरों के सामने तुम्हारे बारे में बात करता हूँ, तो तुम सम्मानित महसूस करती हो या अपमानित? अपने अंदर सुधार लाने के लिए मुझे क्या करने की ज़रूरत है?” जब आपका साथी अपनी भावनाओं के बारे में खुलकर बात करता है, तो ध्यान से उसकी सुनिए। उसके दिए सुझावों को लागू करने की कोशिश कीजिए।

स्वीकार कीजिए कि आपका साथी आपसे अलग है

चुनौती:

बाइबल कहती है कि पति-पत्नी “एक तन” हैं। (मत्ती 19:5) कुछ नए शादीशुदा जोड़े इसका गलत मतलब निकाल लेते हैं कि पति-पत्नी की राय या शख्सियत एक-जैसी होनी चाहिए। लेकिन उन्हें जल्द ही यह पता चल जाता है कि ऐसा सिर्फ सपनों में होता है। शादी के कुछ समय बाद उनकी राय आपस में न मिलने की वजह से झगड़े शुरू हो जाते हैं। संध्या कहती है: “मेरे और मेरे पति के बीच में सबसे बड़ा फर्क यह है कि वे उतनी चिंता नहीं करते जितनी मैं करती हूँ। कभी-कभी जब मैं बहुत परेशान होती हूँ, तो वे सुकून से होते हैं। और यह देखकर मुझे गुस्सा आता है क्योंकि ऐसा लगता है जैसे उन्हें उस मामले की उतनी फिक्र नहीं, जितनी मुझे है।”

हल:

आपका जीवन-साथी जैसा है, उसे उसी रूप में स्वीकार कीजिए। और अगर किसी मामले में वह आपसे अलग है, तो उस चीज़ के लिए उसकी इज़्ज़त कीजिए। इसे समझने के लिए एक उदाहरण लीजिए: आपकी आँखों और आपके कानों के काम करने का तरीका अलग-अलग है, लेकिन जब आपको सड़क पार करना होता है तो ये दोनों अंग बढ़िया तालमेल के साथ काम करते हैं। अनीता जिसकी शादी को करीब तीस साल हो चुके हैं, कहती है: “जब तक हमारे विचार परमेश्‍वर के वचन के खिलाफ नहीं होते, मेरे पति और मैं एक-दूसरे को अलग-अलग राय रखने की आज़ादी देते हैं। आखिरकार हमारी शादी हुई है, हम एक-दूसरे की नकल नहीं हैं।”

जब आपके साथी का नज़रिया या उसकी राय आपसे अलग होती है, तो सिर्फ अपने फायदे के बारे में मत सोचिए। अपने साथी की भावनाओं को समझने की कोशिश कीजिए। (फिलिप्पियों 2:4) अनीता का पति सागर मानता है: “मैं हमेशा तो अपनी पत्नी की राय से सहमत नहीं होता हूँ, लेकिन मैं खुद को याद दिलाता हूँ कि मैं अपनी राय से ज़्यादा अपनी पत्नी से प्यार करता हूँ। जब वह खुश होती है, तो मैं भी वाकई में खुश होता हूँ।”

इसे आज़माइए: लिखिए कि किस तरह आपके साथी का नज़रिया या मामलों को निपटाने का तरीका आपसे बेहतर है।—फिलिप्पियों 2:3.

अगर आप एक-दूसरे के साथ इज़्ज़त से पेश आएँगे, तो आपकी शादीशुदा ज़िंदगी खुशहाल होगी और हमेशा तक कायम रहेगी। संध्या कहती है: “एक-दूसरे की इज़्ज़त करने से शादी में सुरक्षा की भावना रहती है और हमें संतोष भी मिलता है। पति-पत्नी को वाकई एक-दूसरे की इज़्ज़त करनी चाहिए।” (w11-E 08/01)

^ नाम बदल दिए गए हैं।

खुद से पूछिए . . .

  • मेरा साथी जिस तरह मुझसे अलग है, उससे हमारे परिवार को कैसे फायदा हुआ है?

  • अगर कोई बात बाइबल सिद्धांत के खिलाफ नहीं है, तो अपने साथी की बात मान लेना क्यों अच्छा होता है?