उनके विश्वास की मिसाल पर चलिए | सारा
‘तू इतनी खूबसूरत है’
सारा अपने घर में खड़ी चारों ओर देख रही है। ऐसा लगता है कि मध्य-पूर्वी इलाके की इस स्त्री की खूबसूरत आँखों में उदासी छायी है। उसने और उसके पति अब्राहम ने इस घर में अरसे बिताए थे। * उन्होंने इस घर को अपने प्यार का आशियाना बनाया था।
वे ऊर शहर में रहते थे, जो काफी संपन्न था। यहाँ एक-से-बढ़कर-एक कारीगर, दस्तकार और सौदागर थे। ज़ाहिर है कि सारा और अब्राहम ने भी अपने घर को खूबसूरत चीज़ों से सजाया होगा। लेकिन सारा के लिए उसका घर बस साजो-सामान रखने की जगह नहीं था, इस घर से उसकी बहुत-सी यादें जुड़ी थीं। इसमें उसने अपने पति के साथ सालों बिताए थे, सुख-दुख में एक-दूसरे का साथ दिया था। यहाँ उन्होंने कितनी बार अपने प्यारे परमेश्वर यहोवा से प्रार्थना की थी। लाज़िमी है कि सारा को अपने घर से बहुत लगाव होगा।
मगर अब उसे यह घर छोड़कर जाना है। इस वक्त उसकी उम्र करीब 60 साल है और उसे यह भी नहीं पता कि उसे किस देश में जाना है। अब उसे खतरों और मुश्किलों से भरी ज़िंदगी जीनी होगी। उसे वापस अपने घर आने की कोई उम्मीद भी नहीं है। फिर भी वह खुशी-खुशी यह घर छोड़ने के लिए तैयार है। आखिर उसने इतना बड़ा फैसला कैसे लिया? आज हम उससे क्या सीख सकते हैं?
‘तू अपने देश को छोड़कर जा’
सारा शायद ऊर शहर में ही पली-बढ़ी थी। आज उस शहर के सिर्फ खंडहर बचे हैं। लेकिन सारा के ज़माने में इसकी रौनक देखते बनती थी। यहाँ की तंग और घुमावदार गलियों में लोगों का मेला-सा लगा रहता था। व्यापारी दूर-दूर से फरात नदी की नहरों और जलाशयों से महँगी-महँगी चीज़ें लाते, घाटों पर जहाज़ हिचकोले खाते एक-दूसरे से टकराते और बाज़ारों में चीज़ों की भरमार रहती। कल्पना कीजिए कि ऐसे ही चहल-पहलवाले शहर में सारा बड़ी हो रही है। यहाँ वह काफी लोगों को अच्छी तरह जानती है और शायद वे भी उसे अच्छी तरह पहचानते हैं, क्योंकि वह इतनी खूबसूरत जो है। यहीं उसका एक बड़ा-सा परिवार है।
बाइबल में सारा के मज़बूत विश्वास की तारीफ की गयी है। लेकिन सारा का विश्वास ऊर शहर में पूजे जानेवाले चंद्र देवता पर नहीं था, जिसके नाम की वहाँ बहुत बड़ी मीनार थी। वह सच्चे परमेश्वर यहोवा को मानती थी। पवित्र शास्त्र में यह नहीं बताया गया है कि उसने यहोवा पर कब और कैसे विश्वास करना शुरू किया। जहाँ तक उसके पिता की बात है, एक वक्त पर वह मूरतों की पूजा किया करता था। आगे चलकर सारा की अब्राहम से शादी हुई, जो उससे दस साल बड़ा था। * (उत्पत्ति 17:17) उनकी शादी का बंधन बहुत मज़बूत था। वे एक-दूसरे की इज़्ज़त करते, आपस में खुलकर बातचीत करते और मिलकर मुश्किलों का सामना करते थे। लेकिन उनका आपसी रिश्ता मज़बूत होने की सबसे बड़ी वजह यह थी कि वे दोनों परमेश्वर से प्यार करते थे। असल में अब्राहम को “उन सबका पिता” कहा गया है, जो परमेश्वर पर “विश्वास करते हैं।”—रोमियों 4:11.
सारा अपने पति से बहुत प्यार करती थी। दोनों ने मिलकर ऊर शहर में अपने रिश्तेदारों के बीच अपना घर बसाया। लेकिन कुछ समय बाद उन्हें निराशा का मुँह देखना पड़ा। बाइबल बताती है कि सारा “का कोई बच्चा नहीं था, वह बाँझ थी।” (उत्पत्ति 11:30) उस ज़माने और वहाँ की संस्कृति के बारे में सोचें, तो सारा के लिए उन सबका सामना करना बहुत मुश्किल रहा होगा। फिर भी सारा अपने परमेश्वर की और अपने पति की वफादार रही। उनका एक भतीजा था लूत, जिसके पिता की मौत हो गयी थी। उन्होंने उसे ही अपना बेटा मान लिया था। इस तरह उनकी ज़िंदगी चल रही थी। फिर अचानक उनकी ज़िंदगी में एक मोड़ आया।
अब्राहम सारा के पास आया, उसका चेहरा खुशी से दमक रहा था। उसके साथ अभी-अभी जो हुआ था, उस पर उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था। जिस परमेश्वर की वे उपासना करते थे, उसने अब्राहम से बात की थी, वह एक स्वर्गदूत के ज़रिए उसके सामने प्रकट हुआ था! ज़रा सारा के बारे में सोचिए, कैसे उसकी खूबसूरत आँखें अपने पति पर गड़ गयी होंगी और वह साँस रोके उससे पूछ रही होगी, “उसने आपसे क्या कहा? मुझे भी तो बताओ!” शायद एक पल के लिए अब्राहम सोचने लगा होगा कि क्या-क्या हुआ। फिर उसने सारा को बताया कि यहोवा ने उससे क्या कहा, “तू अपने देश और नाते-रिश्तेदारों को छोड़कर एक ऐसे देश में जा जो मैं तुझे दिखाऊँगा।” (प्रेषितों 7:2, 3) सच में वे खुशी से फूले नहीं समाए होंगे। फिर थोड़ी देर बीतने पर उन्होंने सोचा होगा कि परमेश्वर ने उन्हें कितनी बड़ी ज़िम्मेदारी दी है। उन्हें अपना अच्छा-खासा घर और आरामदायक ज़िंदगी छोड़कर तंबुओं में रहना होगा। उस वक्त अब्राहम ने ज़रूर सारा को बड़े ध्यान से देखा होगा और सोचा होगा कि क्या वह इतना बड़ा बदलाव करने में उसका साथ देगी?
हम शायद सोचें कि सारा को जो फैसला करना था, उससे हमारा क्या लेना देना। हमसे तो परमेश्वर ने कभी ऐसा करने के लिए नहीं कहा। लेकिन क्या आज हम सबको कुछ इसी तरह का फैसला नहीं करना पड़ता? हम ऐसी दुनिया में जी रहे हैं, जहाँ पैसा और ऐशो-आराम ही सब कुछ है और यह दुनिया शायद हम पर भी यह ज़ोर डाले कि हम इन चीज़ों को ज़िंदगी में सबसे ज़्यादा अहमियत दें। लेकिन बाइबल हमसे कहती है कि हम परमेश्वर की उपासना को ज़िंदगी में सबसे ज़्यादा अहमियत दें, हम खुद को खुश करने से पहले परमेश्वर को खुश करें। (मत्ती 6:33) आइए देखें कि सारा ने क्या फैसला किया। उसके बारे में पढ़ते वक्त हम सोच सकते हैं कि हम अपनी ज़िंदगी में क्या फैसला करेंगे।
वे “उस देश से निकलकर” दूसरी जगह गए
सामान बाँधते वक्त सारा इस कशमकश में होगी कि क्या ले जाऊँ और क्या नहीं। उन्हें गधों और ऊँटों पर सामान लादकर ले जाना था, इसलिए वह कोई बड़ा सामान नहीं ले जा सकती थी। वह कोई ऐसी चीज़ भी नहीं ले जा सकती थी, जिसकी अब उन्हें इतनी ज़रूरत नहीं होती। बहुत-सी चीज़ें तो बेचनी पड़ेंगी या लोगों को यूँ ही दे देनी पड़ेंगी। अब उसे यहाँ के जैसी सहूलियतें नहीं मिलेंगी। वह जब चाहे तब बाज़ार जाकर अनाज, मांस, फल, कपड़े या दूसरी ज़रूरी चीज़ें नहीं खरीद पाएगी।
लेकिन इन सबसे कहीं ज़्यादा शायद उसके लिए अपना घर छोड़ना मुश्किल होगा। अगर सारा का घर ऊर के बाकी घरों जैसा है, तो उसे बहुत-सी सहूलियतों की कुरबानी देनी होगी। खोज करनेवालों ने पाया है कि उस शहर के कई घरों में तो 12 से भी ज़्यादा कमरे थे और ताज़े पानी और नलसाज़ी की व्यवस्था थी। छोटे घरों में भी मज़बूत छतें, दीवारें और ऐसे दरवाज़े हुआ करते थे, जिन पर कुंडी लगायी जा सकती थी। भला तंबुओं में चोरों से बचने
के लिए इस तरह की सुरक्षा कहाँ मिलती? शेर, तेंदुए, भालू और भेड़िये जैसे जंगली जानवरों का भी तो डर था।नाते-रिश्तेदारों के बारे में क्या कहेंगे? परमेश्वर ने उन्हें आज्ञा दी थी कि वे “अपने देश और नाते-रिश्तेदारों को छोड़कर” जाएँ। रिश्तेदारों को छोड़ना सारा के लिए आसान नहीं होगा। वह किस-किसको अलविदा कहेगी? उसके भाई-बहन होंगे, भाँजे-भाँजियाँ होंगी, भतीजे-भतीजियाँ होंगी, चाचा-चाची, मामा-मामी कितने सारे रिश्तेदार होंगे। सारा लोगों से बहुत प्यार करती है, तो ज़ाहिर है कि उसे अपने रिश्तेदारों से बहुत लगाव होगा। वह जानती है कि वह शायद उनसे फिर कभी नहीं मिल पाएगी। फिर भी वह हिम्मत से काम लेती है और सफर की तैयारियों में जुट जाती है।
आखिर वह दिन आ गया, जब उन्हें अपना शहर छोड़कर जाना है। सारा ने अपना सामान बाँध लिया है और वह सफर के लिए पूरी तरह तैयार है। उनका पिता तिरह भी उनके साथ जा रहा है। सारा को अब अपने बुज़ुर्ग पिता की भी देखभाल करनी होगी। इस वक्त वह करीब 200 साल का है। (उत्पत्ति 11:31) यहोवा की आज्ञा मानते हुए वे ‘कसदियों के देश से निकल’ पड़ते हैं। उनके साथ लूत भी जाता है।—प्रेषितों 7:4.
अब्राहम का कारवाँ फरात नदी के किनारे-किनारे चलते हुए हारान पहुँचा। यह शहर ऊर से करीब 960 किलोमीटर दूर उत्तर-पश्चिम में है। यहाँ शायद तिरह की तबियत खराब हो गयी हो और उसके लिए आगे सफर करना मुश्किल रहा हो। अब्राहम का परिवार कुछ वक्त के लिए हारान में ही बस गया। यहीं 205 साल की उम्र में तिरह की मौत हो गयी। उसके बाद एक बार फिर यहोवा ने अब्राहम से बात की और दोबारा उसे हिदायत दी कि वह यह देश छोड़कर उस देश में जाए, जो यहोवा उसे दिखाएगा। इस बार परमेश्वर ने उससे एक वादा भी किया। उसने कहा, “मैं तुझसे एक बड़ा राष्ट्र बनाऊँगा।” (उत्पत्ति 12:2-4) लेकिन उस वक्त अब्राहम 75 साल का और सारा 65 साल की थी और उनके कोई बच्चा नहीं था। फिर अब्राहम से एक राष्ट्र कैसे आता? क्या वह दूसरी शादी कर लेता? उस समय एक-से-ज़्यादा पत्नियाँ रखने का रिवाज़ था, तो हो सकता है कि सारा के मन में इस बात का खयाल आया हो।
जो भी बात रही हो, वे हारान छोड़कर सफर पर निकल पड़े। लेकिन ध्यान दीजिए कि इस बार उनके साथ और कौन था। शास्त्र में बताया गया है कि अब्राहम के परिवार ने ‘हारान में जितने भी दास-दासियाँ और जितनी भी धन-संपत्ति हासिल की थी,’ वह सब लेकर वे वहाँ से निकल पड़े। (उत्पत्ति 12:5) अब्राहम और सारा ने इन लोगों को अपने विश्वास के बारे में ज़रूर बताया होगा। कुछ यहूदी विद्वानों के प्राचीन दस्तावेज़ों में इस आयत के बारे में कहा गया है कि यहाँ जिन दास-दासियों की बात की गयी है, उन्होंने अब्राहम का विश्वास अपनाया था यानी वे यहोवा की उपासना करने लगे थे। अगर ऐसा है, तो इसमें कोई शक नहीं कि लोगों पर सारा के अटूट विश्वास का काफी असर हुआ होगा। उसने उन्हें अपने परमेश्वर और अपनी आशा के बारे में पूरे यकीन से बताया होगा। इस बात से हम बहुत कुछ सीख सकते हैं। आज हम ऐसे वक्त में जी रहे हैं, जब बहुत कम लोगों को परमेश्वर पर विश्वास है और उन्हें अच्छे भविष्य की कोई आशा नहीं है। जब हमें पवित्र शास्त्र से कोई अच्छी बात पता चलती है, तो हम भी सारा की तरह उस बारे में लोगों को बता सकते हैं।
“नीचे मिस्र के लिए निकल पड़ा”
हारान से निकलकर जिस दिन उन्होंने फरात नदी पार की, वह शायद ईसा पूर्व 1943 में नीसान महीने की 14 तारीख थी। वे दक्षिण दिशा में उस देश के लिए आगे बढ़े, जो यहोवा ने उन्हें देने का वादा किया था। (निर्गमन 12:40, 41) सोचिए कि उनका कारवाँ उस देश में पहुँच गया है और सारा चारों ओर नज़र दौड़ाकर देख रही है। वहाँ की खूबसूरती, तरह-तरह की चीज़ें और वहाँ का सुहावना मौसम देखकर उसे कितना अच्छा लगा होगा। शेकेम नाम की जगह पर मोरे के बड़े-बड़े पेड़ों के पास यहोवा अब्राहम के सामने एक बार फिर प्रकट हुआ। इस बार यहोवा ने उससे कहा, “मैं यह देश तेरे वंश को दूँगा।” शब्द “वंश” अब्राहम के लिए कितना मायने रखता होगा! इससे उसे ज़रूर अदन बाग की याद आयी होगी, जहाँ यहोवा ने कहा था कि एक दिन एक वंश शैतान को खत्म करेगा। यहोवा ने अब्राहम से पहले ही कहा था कि जो राष्ट्र अब्राहम से निकलेगा, उससे धरती के सभी लोगों के लिए आशीष पाना मुमकिन होगा।—उत्पत्ति 3:15; 12:2, 3, 6, 7.
लेकिन उसका परिवार दुनिया की मुसीबतों से अछूता नहीं था। एक वक्त पर कनान देश में अकाल पड़ा। अब्राहम ने फैसला किया कि वह अपने परिवार को लेकर दक्षिण में मिस्र को जाएगा। लेकिन उसे एहसास हुआ कि उस इलाके में एक खतरा है। इस वजह से उसने सारा से कहा, “मुझे तुझसे एक बात कहनी है। जब हम मिस्र में कदम रखेंगे तो वहाँ के लोगों की नज़र ज़रूर तुझ पर पड़ेगी, क्योंकि तू इतनी खूबसूरत जो है। और जब वे तुझे मेरे साथ देखेंगे तो कहेंगे, ‘यह उसकी बीवी होगी।’ फिर वे मुझे मार डालेंगे और तुझे अपने पास रख लेंगे। इसलिए तुझसे मेरी एक बिनती है, तू वहाँ के लोगों से कहना कि तू मेरी बहन है। इस तरह तेरी बदौलत मेरी जान सलामत रहेगी और मुझे कोई खतरा नहीं होगा।” (उत्पत्ति 12:10-13) अब्राहम ने सारा से इस तरह की अजीब बिनती क्यों की?
अब्राहम सारा से झूठ बोलने के लिए नहीं कह रहा था और न ही वह डरपोक था, जैसा कुछ आलोचक मानते हैं। सारा असल में उसकी सौतेली बहन ही थी। अब्राहम का इस तरह एहतियात बरतना जायज़ था। क्यों? परमेश्वर चाहता था कि अब्राहम के ज़रिए एक खास वंश पैदा हो और एक राष्ट्र बने। अब्राहम और सारा के लिए परमेश्वर के इस मकसद को पूरा करने से बढ़कर और कुछ नहीं था, इसलिए अब्राहम की जान बचाना सबसे ज़रूरी था। इसके अलावा उन जगहों की खुदाई करने पर पता चला है कि उस ज़माने में यह आम बात थी कि मिस्र के ताकतवर लोग किसी की पत्नी का अपहरण करके उसके पति को मार डालते थे। इस कारण अब्राहम ने बहुत बुद्धिमानी से काम लिया और सारा ने भी उसके इस फैसले में उसका पूरा साथ दिया।
बहुत जल्द यह साबित हो गया कि अब्राहम का डर वाजिब था। फिरौन के कुछ हाकिमों का ध्यान सारा की खूबसूरती पर गया, इस उम्र में भी वह बहुत खूबसूरत थी। उन्होंने फिरौन को इस बात की खबर दी और उसने हुक्म दिया कि उस औरत को ले लिया जाए। हम शायद समझ न पाएँ कि उस वक्त अब्राहम के दिल पर क्या बीत रही होगी या सारा कैसे डर से सहम गयी होगी। पर एक बात है, महल में सारा से किसी बंदी की तरह व्यवहार नहीं किया गया, बल्कि उसे पूरा मान-सम्मान दिया गया। शायद फिरौन पहले उसे रिझाना चाहता था, अपनी दौलत से उसका दिल जीतना चाहता था और फिर उसके “भाई” अब्राहम से सौदा करके उसे अपनी पत्नी बनाना चाहता था।—उत्पत्ति 12:14-16.
सारा पर ध्यान दीजिए। कल्पना कीजिए कि वह महल की किसी खिड़की पर खड़ी या बालकनी से नज़ारा देख रही है। उसे कैसा लग रहा होगा कि अब वह फिर से मज़बूत दीवारों से बने घर में है, उसके सिर पर छत है और उसके सामने अच्छा खाना है? क्या उसने सोचा होगा कि वाह! क्या ऐशो-आराम की ज़िंदगी है! ऐसा आराम तो शायद उसे ऊर में भी नहीं मिला होगा! सोचिए कि अगर सारा अब्राहम को छोड़ फिरौन की पत्नी बन जाने के बारे में सोचती, तो शैतान कितना खुश होता। लेकिन सारा ने ऐसा कुछ नहीं किया। वह अपने पति की और परमेश्वर की वफादार रही। उसने अपने शादी के बंधन की भी इज़्ज़त की। काश! आज हर शादीशुदा व्यक्ति इस अनैतिक दुनिया में इसी तरह वफादार रहता! क्या आप भी सारा की तरह अपनों के और अपने दोस्तों के वफादार रहेंगे?
इस वफादार स्त्री को बचाने के लिए यहोवा आगे आता है। वह फिरौन और उसके घराने पर विपत्तियाँ लाता है। जब फिरौन को पता चलता है कि सारा अब्राहम की पत्नी है, तो वह उसे उसके पति के पास भेज देता है और उस पूरे घराने को मिस्र छोड़कर जाने के लिए कहता है। (उत्पत्ति 12:17-20) अब्राहम अपनी प्यारी पत्नी को वापस पाकर कितना खुश हुआ होगा! याद है, उसने अपनी पत्नी से बड़े प्यार से कहा था, ‘तू इतनी खूबसूरत है।’ लेकिन वह सारा की एक और खूबसूरती की कदर करता था, ऐसी जो उसकी बाहरी खूबसूरती से कहीं बढ़कर थी। सारा दिल से खूबसूरत थी, एक ऐसी खूबी जिसे यहोवा अनमोल समझता है। (1 पतरस 3:1-5) यह खूबी हम सब अपने अंदर बढ़ा सकते हैं। जब हम परमेश्वर के साथ अपनी दोस्ती को बाकी सभी चीज़ों से ज़्यादा अहमियत देते हैं, उसके बारे में लोगों को बताते हैं और अनैतिक कामों के लिए लुभाए जाने पर परमेश्वर के स्तरों पर चलते रहते हैं, तब हम सारा के विश्वास की मिसाल पर चल रहे होते हैं।
^ पैरा. 3 पहले उनके नाम थे अब्राम और सारै, लेकिन बाद में परमेश्वर ने उनके नाम बदल दिए। वे ज़्यादातर अपने नए नाम सारा और अब्राहम से जाने जाते हैं।—उत्पत्ति 17:5, 15.
^ पैरा. 8 सारा अब्राहम की सौतेली बहन थी। उन दोनों का पिता तिरह ही था, मगर उनकी माँएँ अलग थीं। (उत्पत्ति 20:12) हालाँकि आज ऐसी शादी सही नहीं मानी जाती, लेकिन हमें ध्यान रखना चाहिए कि उस वक्त बहुत कुछ अलग था। उस समय इंसानों की उम्र काफी लंबी होती थी और वे बहुत हट्टे-कट्टे हुआ करते थे, क्योंकि भले ही वे परिपूर्ण नहीं थे, लेकिन परिपूर्णता को खोए ज़्यादा समय भी नहीं हुआ था। इस वजह से करीबी रिश्तेदारों में शादी करने से बच्चों में बीमारियाँ या कोई दूसरी खामी होने का खतरा नहीं था। लेकिन अब्राहम के ज़माने से करीब 400 साल बाद लोगों की सेहत और उम्र पहले जैसी नहीं रही। इस वजह से परमेश्वर ने इसराएलियों को जो कानून दिया, उसमें करीबी रिश्तेदारों के साथ लैंगिक संबंध रखने की मनाही की गयी थी।—लैव्यव्यवस्था 18:6.