अय्यूब 10:1-22
10 नफरत है मुझे अपनी ज़िंदगी से!+
अब मैं चुप नहीं रहूँगा, मन का गुबार निकाल दूँगा,अपनी सारी कड़वाहट उगल दूँगा।
2 परमेश्वर से कहूँगा, ‘मुझे दोषी मत ठहरा।
बता, क्यों मुझसे लड़ रहा है?
3 मुझे सताकर, अपने हाथ की रचना को दुतकारकर तुझे क्या मिलेगा?+दुष्ट की चालों से खुश होकर तुझे क्या मिलेगा?
4 क्या तेरी आँखें इंसानों जैसी हैं?क्या तू हम नश्वर इंसानों की तरह देखता है?
5 क्या तेरी ज़िंदगी नश्वर इंसानों जितनी है,जिसे दिनों और सालों में गिना जा सके?+
6 तू क्यों मेरे अंदर गलतियाँ ढूँढ़ रहा है?क्यों मुझमें पाप खोज रहा है?+
7 तू जानता है मैं दोषी नहीं+और कोई मुझे तेरे हाथ से नहीं बचा सकता।+
8 तूने अपने हाथों से मुझे ढाला और बनाया है,+अब तू ही मुझे खत्म कर देना चाहता है?
9 हे परमेश्वर याद कर, तूने मुझे मिट्टी से रचा है,+अब तू ही मुझे मिट्टी में मिला देना चाहता है?+
10 क्या तूने मुझे मेरी माँ के गर्भ में नहीं डालाऔर मुझे आकार नहीं दिया?*
11 तूने मुझे माँस और खाल का ओढ़ना पहनायाऔर हड्डियों और नसों से मुझे जोड़ा।+
12 यह जीवन तेरी ही देन है! तेरा प्यार मेरे लिए अटल रहा,तूने मेरा ध्यान रखा,+ मेरी जान* सलामत रखी।
13 लेकिन मन-ही-मन तूने मुझ पर मुसीबतें लाने की सोची,*
मैं जानता हूँ यह सब तूने किया है।
14 जब मैं पाप करता हूँ, तो तू सब देखता है+और मेरे गुनाह माफ नहीं करता।
15 अगर मैं दोषी हूँ, तो धिक्कार है मुझ पर!
लेकिन अगर मैं निर्दोष हूँ, तो भी सिर उठाकर नहीं चल पाऊँगा,+इतना अपमान और तकलीफें जो सही हैं मैंने!+
16 अगर मैं घमंड करूँ, तो तू शेर की तरह मुझ पर टूट पड़ेगा,+एक बार फिर दिखा देगा कि तू कितना ताकतवर है।
17 तू मेरे खिलाफ नए-नए गवाह खड़े करता है,तेरा क्रोध मुझ पर बढ़ता जा रहा है,तू मुझे दुख-पर-दुख दे रहा है।
18 क्यों तूने मुझे माँ की कोख से पैदा होने दिया?+
अच्छा होता मैं वहीं मर जाता और मुझे कोई न देख पाता।
19 तब मेरा होना, न होने के समान होता!माँ के गर्भ से मैं सीधे कब्र में जाता।’
20 क्या मेरे दिन गिनती के नहीं रह गए?+काश! परमेश्वर मुझे अकेला छोड़ दे,अपनी नज़रें मुझसे फेर ले कि मुझे थोड़ी राहत* मिले।+
21 क्योंकि बहुत जल्द मैं जानेवाला हूँ,घोर अंधकार* के उस देश में,+ जहाँ से मैं वापस नहीं आऊँगा,+
22 सूनी काली रातों का वह देशजहाँ हाथ-को-हाथ नहीं सूझता, जहाँ कोई व्यवस्था नहीं,जहाँ दिन का उजाला भी घने अँधेरे जैसा है।”
कई फुटनोट
^ शा., “क्या तूने मुझे दूध की तरह नहीं उँडेला? और पनीर की तरह नहीं बनाया?”
^ या “साँसें।”
^ शा., “और तूने ऐसी बातों को अपने मन में छिपा रखा।”
^ या “खुशी।”
^ या “अंधकार और मौत के साए।”