अय्यूब 19:1-29

19  जवाब में अय्यूब ने कहा,   “तुम कब तक मेरी जान खाते रहोगे?+अपने शब्दों से मुझे कुचलते रहोगे?+   दसियों बार तुमने मेरी बेइज़्ज़ती की!*मेरे साथ बेदर्दी से पेश आकर तुम्हें ज़रा भी शर्म नहीं आयी?+   अगर मैंने गलती की है,तो मैं ही सज़ा भुगतूँगा।   अगर तुम खुद को मुझसे बड़ा दिखाने पर तुले होऔर दावा करते हो कि मुझे नीचा दिखाकर तुमने सही किया,   तो जान लो, परमेश्‍वर ने ही मेरा यह हाल किया है,उसी ने मुझे धोखे से अपने जाल में फँसाया है।   मैं चिल्लाता रहा, ‘यह सरासर ज़्यादती है!’ पर मेरी एक न सुनी गयी,+मदद के लिए पुकारता रहा, पर मुझे इंसाफ न मिला।+   मेरे रास्ते में उसने दीवार खड़ी कर दी कि मैं आगे न जा सकूँ,मेरी राहों को उसने अंधकार से भर दिया।+   मुझसे मेरी मान-मर्यादा छीन ली,मेरे सिर से ताज उतार लिया। 10  चारों तरफ से वह मुझे तोड़ता रहा कि मैं खत्म हो जाऊँ,मेरी उम्मीद को उसने पेड़ की तरह उखाड़ फेंका। 11  उसका क्रोध मेरे खिलाफ भड़क उठा है,वह मुझे अपना दुश्‍मन मान बैठा है।+ 12  उसकी फौज ने मेरे खिलाफ आकर मोरचा बाँधा है,मेरे डेरे को हर तरफ से घेर लिया है। 13  मेरे अपने भाइयों को उसने मुझसे दूर कर दिया,जान-पहचानवाले मुझसे अनजान बन गए।+ 14  मेरे करीबी साथी* मुझे छोड़कर चले गए,जिन्हें मैं अच्छी तरह जानता था, वे मुझे भूल गए।+ 15  मेरे ही घर के मेहमान+ और दासियाँ मुझे पराया समझने लगे,मैं उनके लिए बेगाना बन गया हूँ। 16  मैं अपने नौकर को आवाज़ लगाता हूँ पर वह कोई जवाब नहीं देता,तब भी नहीं जब मैं उससे दया की भीख माँगता हूँ। 17  मेरी पत्नी को मेरी साँसों से भी घिन होने लगी है,+मेरे सगे भाई मेरी दुर्गंध से दूर भागने लगे हैं। 18  छोटे-छोटे बच्चे भी मुझे दुतकारते हैं,जब मैं खड़ा होता हूँ तो मुझे चिढ़ाते हैं। 19  मेरे सभी जिगरी दोस्त मुझसे नफरत करने लगे हैं,+जिन-जिन से मैं प्यार करता था वे मेरे खिलाफ हो गए हैं।+ 20  मेरी चमड़ी हड्डियों से चिपक गयी है,+मैं मौत से बाल-बाल बचा हूँ। 21  मेरे साथियो, रहम करो मुझ पर, रहम करो!क्योंकि परमेश्‍वर का हाथ मुझ पर उठा है।+ 22  उसकी तरह तुम भी मुझे क्यों सता रहे हो?+क्यों मुझ पर वार-पे-वार कर रहे हो?*+ 23  काश! मेरे शब्द लिख दिए जाएँ,किसी किताब में इन्हें दर्ज़ कर लिया जाए। 24  काश! लोहे की कलम से इन्हें चट्टान पर लिखा जाए,सीसे से भरकर इन्हें अमर कर दिया जाए। 25  मैं अच्छी तरह जानता हूँ कि मेरा एक छुड़ानेवाला है,+जो बाद में आएगा और धरती पर खड़ा होगा। 26  मेरी चमड़ी गल गयी है,फिर भी इस हाल में मैं परमेश्‍वर को देखूँगा। 27  मैं खुद उसे देखूँगा,हाँ, अपनी आँखों से, किसी दूसरे की आँखों से नहीं।+ मगर अब मैं अंदर से पस्त हो चुका हूँ।* 28  तुम मेरे बारे में कहते हो, ‘हम कहाँ इसे सता रहे हैं?’+ जैसे सारी समस्या की जड़ मैं ही हूँ। 29  अरे कुछ तो डरो! उसकी तलवार से डरो,+जो गुनहगारों को नहीं छोड़ती। याद रखो, न्याय करनेवाला कोई है।”+

कई फुटनोट

या “मुझे फटकारा।”
या “मेरे रिश्‍तेदार।”
शा., “क्यों मेरे माँस से तृप्त नहीं हो?”
या “मेरे गुरदों ने काम करना बंद कर दिया है।”

अध्ययन नोट

तसवीर और ऑडियो-वीडियो