अय्यूब 26:1-14
26 तब अय्यूब ने कहा,
2 “क्या खूब मदद की है तूने कमज़ोरों की!
जिनकी बाँहों में ताकत नहीं, उन्हें क्या सँभाला है तूने!+
3 नासमझों को जो सलाह दी, उसकी तो दाद देनी पड़ेगी!+
क्या अक्लमंदी* दिखायी है तूने!
4 किसे समझाने की कोशिश कर रहा है तू?किससे सीखकर आया है ये बातें?
5 मरे हुए थर-थर काँपते हैं,वे समुंदर और उसके जीवों से भी निचली जगह में हैं।
6 कब्र परमेश्वर के* सामने बेपरदा है+और विनाश की जगह* उसके सामने खुली पड़ी है।
7 वह उत्तरी आकाश* को खाली जगह पर ताने हुए है,+पृथ्वी को बिना किसी सहारे के लटकाए हुए है।
8 उसने बादलों को पानी से लबालब भरा है,+इतने भारी होने पर भी वे फटते नहीं।
9 उसने बादलों को ऐसा फैलाया हैकि कोई उसकी राजगद्दी को देख न सके।+
10 उसने पानी पर सीमा-रेखा* खींची है,+उजाले और अंधकार की सरहद ठहरायी है।
11 उसकी फटकार से आसमान के खंभे हिल जाते हैं,वे डर के मारे काँपने लगते हैं।
12 वह अपनी ताकत से समुंदर में हलचल पैदा करता है,+अपनी बुद्धि से विशाल समुद्री जीव* के टुकड़े कर देता है।+
13 उसकी एक फूँक से आसमान साफ हो जाता है,वह भागते साँप को भी दबोचकर मार डालता है।
14 देख! यह सब उसके कामों के छोर को छूने जैसा है,+उसकी फुसफुसाहट सुनने जैसा है,तो फिर उसके भयानक गरजन को कौन समझ पाएगा?”+
कई फुटनोट
^ या “बुद्धि जिससे फायदा होता।”
^ शा., “उसके।”
^ शा., “उत्तर दिशा।”
^ या “क्षितिज।”
^ शा., “राहाब।”