अय्यूब 35:1-16
35 फिर एलीहू ने यह कहा,
2 “क्या तुझे अपने सही होने पर इतना यकीन हैकि तू कहता है, ‘मैं परमेश्वर से भी ज़्यादा नेक हूँ।’+
3 तू कहता है, ‘मेरे निर्दोष बने रहने से तुझे* क्या फर्क पड़ता है?
पाप न करके भला मुझे क्या फायदा हुआ?’+
4 मैं तुझे इसका जवाब देता हूँ,न सिर्फ तुझे बल्कि तेरे इन साथियों+ को भी।
5 ज़रा ऊपर आसमान की तरफ देख,ऊँचे-ऊँचे बादलों पर गौर कर।+
6 अगर तू पाप करे, तो परमेश्वर का क्या बिगड़ेगा?+
अगर तेरे अपराध बढ़ जाएँ, तो उसे क्या नुकसान होगा?+
7 अगर तू अच्छे काम करे, तो उसका क्या भला होगा?तेरे कामों से उसे क्या मिलेगा?+
8 तेरी दुष्टता से सिर्फ लोगों को नुकसान पहुँचेगाऔर तेरी अच्छाई से सिर्फ इंसानों को फायदा होगा।
9 ज़ुल्म के बढ़ने पर इंसान फरियाद करता है,ताकतवरों की तानाशाही* से राहत पाने के लिए वह गिड़गिड़ाता है,+
10 मगर कोई यह नहीं पूछता, ‘मेरा महान रचनाकार+ कहाँ है?परमेश्वर कहाँ है, जो रात में गाने के लिए प्रेरित करता है?’+
11 वह धरती के जानवरों+ से ज़्यादा हमें सिखाता है+और आकाश के पंछियों से ज़्यादा हमें बुद्धिमान बनाता है।
12 लोग उससे फरियाद करते हैं,मगर वह दुष्टों की नहीं सुनता+ क्योंकि वे घमंडी हैं।+
13 वह उनकी खोखली पुकार* पर ध्यान नहीं देता,+सर्वशक्तिमान उनकी बिनती नहीं सुनता।
14 तेरी तो वह और भी नहीं सुनेगा क्योंकि तेरी शिकायत है कि वह तुझे अनदेखा कर रहा है।+
तेरा मुकदमा उसके सामने पेश कर दिया गया है,अब तू उसके फैसले का इंतज़ार कर।+
15 उसने गुस्से में आकर तुझे सज़ा नहीं दीऔर तूने बिना सोचे-समझे जो कहा, उसका हिसाब नहीं लिया।+
16 इसलिए अय्यूब बेकार में अपना मुँह खोलता हैऔर बहुत-सी बातें करता है, जिसके बारे में उसे कुछ नहीं पता।”+