इब्रानियों के नाम चिट्ठी 5:1-14
5 हरेक महायाजक इंसानों में से लिया जाता है और उसे इंसानों की खातिर परमेश्वर की सेवा में ठहराया जाता है+ ताकि वह भेंट और पापों के प्रायश्चित के लिए बलिदान चढ़ाया करे।+
2 वह उन लोगों के साथ करुणा से* पेश आने के काबिल होता है जो अनजाने में गलतियाँ करते हैं,* क्योंकि वह खुद भी अपनी कमज़ोरियों का सामना करता है।*
3 इसलिए उसे अपने पापों के लिए भी चढ़ावा चढ़ाना होता है, ठीक जैसे वह दूसरों के पापों के लिए चढ़ाता है।+
4 एक आदमी आदर का यह पद अपने आप नहीं ले लेता, मगर यह उसे तभी मिलता है जब परमेश्वर उसे ठहराता है, जैसे उसने हारून को ठहराया था।+
5 उसी तरह, मसीह ने भी खुद महायाजक का पद लेकर अपनी महिमा नहीं की,+ बल्कि परमेश्वर ने उसे यह महिमा दी जिसने उससे कहा, “तू मेरा बेटा है, आज मैं तेरा पिता बना हूँ।”+
6 उसने एक और जगह यह भी कहा, “तू मेल्कीसेदेक जैसा याजक है और तू हमेशा-हमेशा के लिए याजक रहेगा।”+
7 जब मसीह इस धरती पर ज़िंदा था, तो उसने ऊँची आवाज़ में पुकार-पुकारकर और आँसू बहा-बहाकर परमेश्वर से मिन्नतें और बिनतियाँ की थीं+ जो उसे मौत से बचा सकता था। और उसकी सुनी गयी क्योंकि वह परमेश्वर का डर मानता था।
8 परमेश्वर का बेटा होते हुए भी उसने कई दुख सहकर आज्ञा माननी सीखी।+
9 और परिपूर्ण किए जाने* के बाद,+ उसे यह ज़िम्मेदारी दी गयी कि वह उन सबको हमेशा का उद्धार दिलाए जो उसकी आज्ञा मानते हैं,+
10 क्योंकि उसे परमेश्वर ने महायाजक ठहराया ताकि वह मेल्कीसेदेक जैसा याजक हो।+
11 हमारे पास उसके बारे में कहने के लिए बहुत कुछ है मगर तुम्हें यह सब समझाना मुश्किल है, क्योंकि तुम ऊँचा सुनने लगे हो।
12 अब तक* तो तुम्हें दूसरों को सिखाने के काबिल बन जाना चाहिए था, मगर अब यह ज़रूरी हो गया है कि कोई तुम्हें परमेश्वर के पवित्र वचनों की बुनियादी बातें शुरूआत से सिखाए+ और तुम्हें फिर से दूध की ज़रूरत है न कि ठोस आहार की।
13 हर कोई जो दूध ही पीता रहता है वह सच्चाई के वचन से अनजान है, क्योंकि वह अभी तक बच्चा है।+
14 मगर ठोस आहार तो बड़ों के लिए है, जो अपनी सोचने-समझने की शक्ति* का इस्तेमाल करते-करते, सही-गलत में फर्क करने के लिए इसे प्रशिक्षित कर लेते हैं।
कई फुटनोट
^ या “नरमी से; संयम बरतते हुए।”
^ या “जो भटक गए हैं।”
^ या “उसमें भी कमज़ोरियाँ हैं।”
^ या “पूरी तरह योग्य बनने।”
^ शा., “वक्त के हिसाब से।”
^ या “पैनी समझ।”