उत्पत्ति 24:1-67
24 अब्राहम बूढ़ा हो गया था, उसकी उम्र काफी ढल चुकी थी और यहोवा ने उसे सब बातों में आशीष दी थी।+
2 एक दिन अब्राहम ने अपने सबसे पुराने सेवक से, जो उसके घराने के सब कामों की देखरेख करता था,+ यह गुज़ारिश की: “तू अपना हाथ मेरी जाँघ के नीचे रख
3 और स्वर्ग और पृथ्वी के परमेश्वर यहोवा की शपथ खा कि तू मेरे बेटे के लिए कनानियों की कोई लड़की नहीं लाएगा जिनके देश में मैं रहता हूँ।+
4 इसके बजाय, तुझे मेरे देश जाना होगा और इसहाक के लिए मेरे रिश्तेदारों+ में से एक लड़की लानी होगी।”
5 सेवक ने अब्राहम से कहा, “लेकिन अगर लड़की मेरे साथ इस देश में आने को तैयार नहीं हुई तो क्या मैं तेरे बेटे को उस देश में ले जाऊँ, जहाँ से तू आया है?”+
6 इस पर अब्राहम ने कहा, “नहीं, मेरे बेटे को वहाँ हरगिज़ मत ले जाना।+
7 स्वर्ग का परमेश्वर यहोवा, जो मुझे मेरे पिता के घर से और मेरे रिश्तेदारों के देश से यहाँ लाया है+ और जिसने मुझसे बात की और शपथ खाकर कहा,+ ‘मैं यह देश तेरे वंश+ को दूँगा,’+ वह अपने स्वर्गदूत को तेरे आगे-आगे भेजेगा+ और तू मेरे बेटे के लिए वहाँ+ से लड़की ढूँढ़ने में ज़रूर कामयाब होगा।
8 लेकिन अगर लड़की तेरे साथ आने को राज़ी न हुई, तो तू इस शपथ से छूट जाएगा। मगर तू मेरे बेटे को वहाँ हरगिज़ नहीं ले जाएगा।”
9 तब सेवक ने अपना हाथ अपने मालिक अब्राहम की जाँघ के नीचे रखा और शपथ खायी कि वह उसके कहे मुताबिक ही करेगा।+
10 फिर सेवक ने अपने मालिक के ऊँटों में से दस ऊँट और उसकी दी हुई हर तरह की बढ़िया-बढ़िया चीज़ें अपने साथ लीं और सफर के लिए रवाना हो गया। वह मेसोपोटामिया में नाहोर के शहर की तरफ चल पड़ा।
11 जब वह शहर के नज़दीक पहुँचा, तो वहाँ उसने एक कुएँ के पास ऊँटों को बिठा दिया। शाम का समय हो रहा था जब औरतें वहाँ कुएँ पर पानी भरने आया करती थीं।
12 अब्राहम के सेवक ने प्रार्थना की, “हे यहोवा, मेरे मालिक अब्राहम के परमेश्वर, आज मैं जिस काम के लिए यहाँ आया हूँ उसे सफल कर दे और इस तरह मेरे मालिक के लिए अपने अटल प्यार का सबूत दे।
13 देख, मैं यहाँ पानी के सोते के पास खड़ा हूँ और शहर की औरतें पानी भरने आ रही हैं।
14 ऐसा हो कि मैं जिस लड़की से कहूँ, ‘क्या मुझे अपने घड़े से थोड़ा पानी पिलाएगी?’ और वह मुझसे कहे, ‘ज़रूर, और मैं तेरे ऊँटों को भी पिलाऊँगी,’ वह वही लड़की हो जिसे तूने अपने सेवक इसहाक के लिए चुना है। तेरे ऐसा करने से मैं जान लूँगा कि मेरे मालिक के लिए तेरा प्यार अटल है।”
15 अब्राहम का सेवक अभी यह कह ही रहा था कि रिबका अपने कंधे पर घड़ा लिए शहर से बाहर उस जगह आयी। रिबका, बतूएल की बेटी थी+ और बतूएल, अब्राहम के भाई नाहोर+ और उसकी पत्नी मिलका+ का बेटा था।
16 रिबका एक कुँवारी लड़की थी, उसने किसी भी आदमी के साथ यौन-संबंध नहीं रखे थे। वह दिखने में बड़ी सुंदर थी। वह पानी भरने के लिए नीचे उतरकर पानी के सोते के पास गयी और अपना घड़ा भरकर ऊपर आयी।
17 तभी सेवक दौड़कर उसके पास गया और उससे कहा, “क्या मुझे पीने के लिए थोड़ा पानी मिलेगा?”
18 लड़की ने कहा, “हाँ मालिक, ज़रूर।” उसने फौरन अपने कंधे से घड़ा उतारा और उसे पानी पिलाया।
19 सेवक को पानी देने के बाद वह बोली, “मैं तेरे ऊँटों को भी पानी पिलाऊँगी। वे जितना पीएँगे, मैं भर लाऊँगी।”
20 उसने फौरन घड़े का बचा हुआ पानी हौद में डाल दिया और कुएँ से पानी लाकर हौद में भरने लगी। वह तब तक भाग-भागकर पानी लाती रही, जब तक कि सारे ऊँट पी न चुके।
21 इस दौरान अब्राहम का सेवक वहाँ खड़ा बड़ी हैरत से उस लड़की को देखता रहा और मन-ही-मन सोचता रहा कि वह जिस काम के लिए यहाँ आया है क्या उसे यहोवा ने वाकई सफल कर दिया है।
22 जब सारे ऊँट पानी पी चुके तो सेवक ने उस लड़की के लिए सोने की एक नथ और दो कंगन निकाले। नथ का वज़न आधा शेकेल* था और कंगन का दस शेकेल।*
23 उसने लड़की से पूछा, “क्या मैं जान सकता हूँ, तू किसकी बेटी है? क्या तेरे पिता के घर हमें रात-भर के लिए जगह मिलेगी?”
24 लड़की ने कहा, “मैं बतूएल की बेटी हूँ+ और मेरे दादा-दादी का नाम नाहोर और मिलका है।”+
25 उसने यह भी कहा, “हमारे यहाँ ठहरने के लिए काफी जगह है और जानवरों के लिए भरपूर चारा और पुआल भी है।”
26 तब सेवक ने मुँह के बल ज़मीन पर गिरकर यहोवा को दंडवत किया
27 और कहा, “मेरे मालिक अब्राहम के परमेश्वर यहोवा की तारीफ हो क्योंकि उसने मेरे मालिक से प्यार* करना नहीं छोड़ा और उसका विश्वासयोग्य बना रहा। यहोवा ही है जो मुझे राह दिखाता हुआ मेरे मालिक के भाइयों के घर तक लाया।”
28 तब रिबका दौड़कर अपने घर गयी और उसने अपनी माँ को और घर के बाकी लोगों को सारा हाल कह सुनाया।
29 रिबका का एक भाई था, लाबान।+ लाबान दौड़कर उस आदमी से मिलने गया।
30 वह आदमी अब भी पानी के सोते के पास अपने ऊँटों के साथ खड़ा था। लाबान इसलिए दौड़कर गया क्योंकि उसने रिबका की नथ और कंगन देखे थे और रिबका की बातें सुनी थीं कि उस आदमी ने मुझसे ये-ये कहा।
31 लाबान ने वहाँ पहुँचते ही उस आदमी से कहा, “हे यहोवा के सेवक, तुझ पर वाकई उसकी आशीष है। तू यहाँ क्यों खड़ा है? मेरे घर चल, मैंने तेरे ठहरने का सारा इंतज़ाम कर दिया है। तेरे ऊँटों के लिए भी जगह तैयार है।”
32 तब वह सेवक लाबान के घर गया। और उसने* ऊँटों को खोला और उनके आगे चारा और पुआल डाला। फिर उसने सेवक और उसके साथ आए आदमियों को पैर धोने के लिए पानी दिया।
33 इसके बाद खाना परोसा गया, मगर सेवक ने कहा, “पहले मैं बताना चाहूँगा कि मैं यहाँ क्यों आया हूँ, उसके बाद ही खाना खाऊँगा।” लाबान ने कहा, “हाँ-हाँ, ज़रूर बता।”
34 उसने कहा, “मैं अब्राहम का सेवक हूँ।+
35 यहोवा ने मेरे मालिक को बहुत आशीष दी है। उसकी बदौलत मेरा मालिक हर तरह से मालामाल है, सोना-चाँदी, दास-दासियाँ, भेड़-बकरी, गाय-बैल, ऊँट, गधे सबकुछ है उसके पास।+
36 इतना ही नहीं, मालिक की पत्नी सारा ने अपने बुढ़ापे में उसे एक बेटा दिया।+ और मालिक अपना सबकुछ अपने बेटे को दे देगा।+
37 मालिक ने मुझे शपथ दिलाकर कहा है, ‘तू मेरे बेटे के लिए कनानियों की कोई लड़की नहीं लाएगा, जिनके देश में मैं रहता हूँ।+
38 इसके बजाय, तू मेरे पिता के घराने और रिश्तेदारों के यहाँ जाएगा+ और वहाँ से मेरे बेटे के लिए लड़की लाएगा।’+
39 तब मैंने मालिक से कहा, ‘अगर वह लड़की मेरे साथ आने को तैयार न हुई तो?’+
40 मालिक ने मुझसे कहा, ‘यहोवा परमेश्वर, जिसके सामने मैं सही राह पर चलता आया हूँ,+ अपना स्वर्गदूत तेरे साथ भेजेगा+ और तुझे इस काम में ज़रूर कामयाबी देगा। तुझे मेरे बेटे के लिए मेरे पिता के घराने से, मेरे रिश्तेदारों+ के यहाँ से लड़की लानी होगी।
41 लेकिन अगर मेरे रिश्तेदार जिनके पास तू जा रहा है, तुझे अपनी लड़की न दें तो तू अपनी शपथ से छूट जाएगा।’+
42 फिर आज जब मैं पानी के सोते के पास पहुँचा तो मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, ‘हे यहोवा, मेरे मालिक अब्राहम के परमेश्वर, अगर तू चाहता है कि मैं जिस काम से यहाँ आया हूँ उसमें कामयाब होऊँ तो मेरी यह दुआ सुन ले।
43 मैं यहाँ पानी के सोते के पास खड़ा हूँ और ऐसा हो कि यहाँ पानी भरने के लिए आनेवाली जिस लड़की+ से मैं कहूँ, “क्या अपने घड़े से मुझे थोड़ा पानी पिलाएगी?”
44 और वह कहे, “ज़रूर और मैं तेरे ऊँटों के लिए भी पानी भर लाऊँगी,” वह वही लड़की हो जिसे यहोवा ने मेरे मालिक के बेटे के लिए चुना है।’+
45 मैं मन में यह कह ही रहा था कि मैंने देखा, रिबका अपने कंधे पर घड़ा लिए चली आ रही है। वह नीचे उतरकर पानी के सोते के पास गयी और पानी भरने लगी। फिर मैंने उससे कहा, ‘क्या मुझे थोड़ा पानी पिलाएगी?’+
46 उसने फौरन कंधे से घड़ा उतारा और कहा, ‘ज़रूर+ और मैं तेरे ऊँटों को भी पिलाऊँगी।’ तब रिबका ने मुझे पानी पिलाया और इसके बाद मेरे ऊँटों को भी पानी दिया।
47 फिर मैंने उससे पूछा, ‘तू किसकी बेटी है?’ उसने कहा, ‘मैं बतूएल की बेटी हूँ और मेरे दादा-दादी का नाम नाहोर और मिलका है।’ जब मैंने यह सुना तो मैंने उसे नथ और कंगन पहनाए।+
48 फिर मैंने मुँह के बल ज़मीन पर गिरकर अपने मालिक अब्राहम के परमेश्वर यहोवा को दंडवत किया और यहोवा की तारीफ की+ जिसने मुझे सही राह दिखायी और मुझे अपने मालिक के भाई के घर पहुँचाया ताकि मैं उसकी बेटी को अपने मालिक के बेटे के लिए ले जाऊँ।
49 अब फैसला तुम पर है, तुम चाहो तो अपनी बेटी देकर मेरे मालिक के लिए अपने अटल प्यार का और विश्वासयोग्य होने का सबूत दे सकते हो। अगर नहीं, तो बता दो ताकि मैं सोचूँ कि मुझे आगे क्या करना है।”*+
50 तब लाबान और बतूएल ने कहा, “यह सब यहोवा की तरफ से हुआ है। अब हम कौन होते हैं हाँ या न कहनेवाले?*
51 देख, रिबका तेरे सामने है। इसे तू ले जा सकता है ताकि यह तेरे मालिक के बेटे की पत्नी बने, ठीक जैसे यहोवा ने कहा है।”
52 यह सुनते ही अब्राहम के सेवक ने मुँह के बल ज़मीन पर गिरकर यहोवा को दंडवत किया।
53 फिर उसने सोने-चाँदी के गहने और कपड़े निकाले और रिबका को दिए। उसने रिबका के भाई और उसकी माँ को भी कई कीमती चीज़ें दीं।
54 इसके बाद सेवक और उसके साथ आए आदमियों ने खाया-पीया और उस रात वे वहीं ठहरे।
सुबह होने पर सेवक ने कहा, “अब मुझे जाने की इजाज़त दो।”
55 तब रिबका के भाई और माँ ने उससे कहा, “लड़की को हमारे साथ कुछ दिन रहने दे, कम-से-कम दस दिन। इसके बाद उसे ले जाना।”
56 मगर सेवक ने कहा, “नहीं, अब मैं और नहीं रुक सकता। यहोवा की मदद से वह काम पूरा हो गया है जिसके लिए मैं आया था। अब मुझे इजाज़त दो कि मैं अपने मालिक के पास लौट जाऊँ।”
57 तब उन्होंने कहा, “क्यों न हम लड़की को बुलाकर उसी से पूछ लें कि वह क्या चाहती है?”
58 उन्होंने रिबका को बुलाकर उससे पूछा, “क्या तू इस आदमी के साथ जाना चाहेगी?” उसने कहा, “हाँ, मैं जाऊँगी।”
59 तब उन्होंने अपनी बहन रिबका+ और उसकी धाई*+ को, साथ ही अब्राहम के सेवक और उसके आदमियों को विदा किया।
60 उन्होंने यह कहकर रिबका को आशीर्वाद दिया, “प्यारी बहना, हमारी यह दुआ लेती जाना। तेरा वंश इतना बढ़े कि तू हज़ारों-लाखों की माँ कहलाए। तेरा वंश उन लोगों के शहरों* को अपने अधिकार में कर ले, जो उससे नफरत करते हैं।”+
61 इसके बाद रिबका और उसकी दासियाँ ऊँटों पर सवार होकर उस आदमी के पीछे-पीछे निकल पड़ीं। इस तरह वह सेवक रिबका को साथ लेकर अपने रास्ते चल दिया।
62 इधर इसहाक, जो नेगेब में रहता था,+ बेर-लहै-रोई+ से आ रहा था।
63 शाम के झुटपुटे का समय था और वह मनन करता हुआ+ मैदान में टहल रहा था। जब उसने नज़रें उठायीं तो देखा कि सामने से ऊँटों का कारवाँ चला आ रहा है!
64 और जब रिबका ने इसहाक को देखा तो वह फौरन ऊँट से नीचे उतरी।
65 उसने सेवक से पूछा, “वह जो आदमी हमसे मिलने आ रहा है, कौन है?” सेवक ने कहा, “वह मेरा मालिक है।” तब रिबका ने ओढ़नी से अपना सिर ढक लिया।
66 फिर सेवक ने इसहाक को अपने सफर की पूरी कहानी सुनायी, उसे बताया कि उसने क्या-क्या किया।
67 इसके बाद इसहाक, रिबका को अपनी माँ सारा के तंबू में लाया।+ इस तरह उसने रिबका को अपनी पत्नी बनाया और उसे रिबका से प्यार हो गया+ और वह अपनी माँ की मौत के गम से उबर पाया।+
कई फुटनोट
^ या “अटल प्यार।”
^ मुमकिन है कि यह लाबान था।
^ शा., “दाएँ या बाएँ मुड़ जाऊँ।”
^ या “हम तुझसे न भला कह सकते हैं न बुरा।”
^ यानी उसकी वह धाई जो अब उसकी सेविका थी।
^ शा., “फाटक।”