नीतिवचन 23:1-35
23 जब तू राजा के साथ खाने बैठे,तो ध्यान रख, तू किस तरह खाता है।
2 अगर तेरा मन ठूँसकर खाने को करे,तो खुद पर काबू रख।*
3 उसके लज़ीज़ खाने की लालसा मत कर,कहीं तू उससे धोखा न खा जाए।
4 पैसे के पीछे इतना मत भाग कि तू थककर चूर हो जाए,+
ज़रा रुक और समझदारी से काम ले।*
5 क्या तू ऐसी चीज़ पर आँख लगाएगा जो नहीं रहेगी?+पैसा तो पंख लगाकर उकाब की तरह आसमान में उड़ जाता है।+
6 कंजूस के यहाँ खाना मत खाना,उसके लज़ीज़ खाने की लालसा मत करना।
7 वह कहता तो है “खाओ-पीओ,” मगर दिल से नहीं कहता,*
वह दाने-दाने का हिसाब रखता है।
8 तूने उसके यहाँ जो खाया होगा उसे तू उगल देगा,जितनी भी तारीफ की होगी, सब बेकार जाएँगी।
9 मूर्ख को बुद्धि की बातें मत सुना,+वह तेरी बातों को तुच्छ समझेगा।+
10 बरसों पहले लगाए गए सीमा-चिन्ह मत खिसकाना,+न ही अनाथों* की ज़मीन हड़पना।
11 क्योंकि उन्हें बचानेवाला* बहुत ताकतवर है,वही तेरे खिलाफ उनका मुकदमा लड़ेगा।+
12 शिक्षा पर अपना मन लगाऔर सिखायी जानेवाली बातों पर कान दे।
13 अपने लड़के* को सिखाने से पीछे मत हट,+
अगर तू उसे छड़ी भी मारे तो वह मरेगा नहीं।
14 छड़ी चलाने सेतू उसे कब्र में जाने से बचा लेगा।
15 हे मेरे बेटे, अगर तू* बुद्धिमान बने,तो मेरा दिल खुशी से भर जाएगा।+
16 जब तेरे होंठ सच्ची बात बोलेंगे,तो मैं अंदर-ही-अंदर* खुशी से झूम उठूँगा।
17 तेरा दिल पापियों से ईर्ष्या न करे,+बल्कि हर वक्त यहोवा का डर माने,+
18 तब तेरा भविष्य सुनहरा होगा+और तेरी आशा नहीं मिटेगी।
19 हे मेरे बेटे, सुन और बुद्धिमान बन,अपने दिल को सही राह पर ले चल।
20 उनके जैसा मत बन जो बहुत दाख-मदिरा पीते हैं+और ठूँस-ठूँसकर गोश्त खाते हैं।+
21 क्योंकि पेटू और पियक्कड़ कंगाल हो जाएँगे,+उनकी नींद उन्हें चिथड़े पहनाएगी।
22 अपने जन्म देनेवाले पिता की सुनऔर जब तेरी माँ बूढ़ी हो जाए तो उसे तुच्छ मत जान।+
23 सच्चाई को खरीद ले,* उसे कभी मत बेचना,+बुद्धि, शिक्षा और समझ को भी खरीद ले।+
24 नेक जन के पिता को कितनी खुशी मिलती हैऔर बुद्धिमान का पिता उसके कारण कितना मगन होता है।
25 तेरे माता-पिता बेहद खुश होंगेऔर तुझे जन्म देनेवाली फूली न समाएगी।
26 हे मेरे बेटे, दिल लगाकर मेरी बातें सुनऔर मेरी राहों पर चलने में तुझे खुशी मिले।+
27 वेश्या तो गहरी खाई हैऔर बदचलन* औरत सँकरा कुआँ।+
28 वह लुटेरे की तरह घात लगाकर बैठती है,+बहुत-से आदमियों से विश्वासघात कराती है।
29 कौन हाय-हाय करता है? कौन दुखी है?
कौन लड़ता-झगड़ता और शिकायतें करता है?
किसे बेवजह चोट लगती है? किसकी आँखें लाल रहती हैं?
30 वही जो देर तक दाख-मदिरा पीता है+और ऐसी मदिरा ढूँढ़ता है* जो नशा बढ़ाती है।
31 दाख-मदिरा के लाल रंग को मत देख,जो प्याले में चमचमाती है और बड़े आराम से गले से उतरती है।
32 आखिर में वह साँप की तरह डसती हैऔर ज़हरीले साँप की तरह ज़हर उगलती है।
33 तेरी आँखें अजीबो-गरीब चीज़ें देखेंगी,तेरा मन उलटी-सीधी बातें बोलेगा।+
34 तुझे लगेगा जैसे तू बीच समुंदर में पड़ा है,जहाज़ के मस्तूल की चोटी पर सोया हुआ है।
35 तू कहेगा, “उन्होंने मुझे मारा? मुझे तो कोई दर्द नहीं हुआ।
उन्होंने मुझे पीटा? मुझे तो कुछ पता नहीं चला।
मुझे कब होश आएगा+कि मैं एक और जाम पीऊँ?”*
कई फुटनोट
^ शा., “अपने गले पर छुरी रख।”
^ या शायद, “अपनी समझ से काम लेना बंद कर।”
^ शा., “उसका मन तुझसे लगा नहीं।”
^ या “जिनके पिता की मौत हो गयी है।”
^ शा., “छुड़ानेवाला” यानी परमेश्वर।
^ या “बच्चे; जवान।”
^ शा., “तेरा दिल।”
^ शा., “मेरे गुरदे।”
^ या “को हासिल कर।”
^ शा., “परदेसी।”
^ या “ऐसी मदिरा पीने के लिए इकट्ठा होता है।”
^ या “मैं फिर इसे ढूँढ़ूँ?”