नीतिवचन 31:1-31
31 ये ज़रूरी बातें राजा लमूएल की हैं, जो उसकी माँ ने उसे सिखायी थीं:+
2 हे मेरे बेटे, मैं तुझे क्या सिखाऊँ?हे मेरी कोख से जन्म लेनेवाले, मैं तुझे क्या बताऊँ?जिस बेटे के लिए मैंने मन्नत मानी,+ उससे मैं क्या कहूँ?
3 अपना दमखम औरतों पर बरबाद मत करना,+न उस राह जाना जिस पर चलकर कई राजा तबाह हुए हैं।+
4 हे लमूएल, दाख-मदिरा पीना राजाओं को शोभा नहीं देता,न ही शासकों का यह कहना जँचता है, “मेरा जाम कहाँ है?”+
5 क्योंकि पीने के बाद वे कायदे-कानून भूल जाते हैंऔर दीन-दुखियों को उनका हक नहीं देते।
6 जो मरनेवाला है, उसे शराब पिला,+जो दुख से बेहाल है, उसे दाख-मदिरा दे,+
7 ताकि पीकर वह अपनी गरीबी याद न करेऔर अपना दुख भूल जाए।
8 उनकी तरफ से बोल जो बोल नहीं सकते,उनके हक के लिए लड़ जो मौत की कगार पर खड़े हैं।+
9 चुप मत रहना पर सच्चा न्याय करना,दीन-दुखियों और गरीबों को उनका हक दिलाना।*+
א [आलेफ ]
10 एक अच्छी पत्नी कौन पा सकता है?+
उसका मोल मूंगों* से भी बढ़कर है।
ב [बेथ ]
11 उसका पति पूरे दिल से उस पर भरोसा करता हैऔर उसके पति को किसी चीज़ की कमी नहीं होती।
ג [गिमेल ]
12 वह कभी अपने पति का बुरा नहीं करती,बल्कि जीवन-भर उसका भला करती है।
ד [दालथ ]
13 वह मलमल का कपड़ा और ऊन ढूँढ़कर लाती हैऔर खुशी-खुशी अपने हाथों से काम करती है।+
ה [हे ]
14 सौदागरों के जहाज़ की तरह+वह दूर-दूर से खाने-पीने की चीज़ें लाती है।
ו [वाव ]
15 पौ फटने से पहले वह उठ जाती है,अपने घराने के लिए खाना तैयार करती है,अपनी नौकरानियों को भी उनके हिस्से का खाना देती है।+
ז [जैन ]
16 वह ज़मीन खरीदने की सोचती है और उसे खरीद लेती हैऔर मेहनत से* अंगूरों का बाग लगाती है।
ח [हेथ ]
17 भारी-भारी कामों के लिए वह अपनी कमर कसती है,+मेहनत करने के लिए अपने हाथों को मज़बूत करती है।
ט [टेथ ]
18 वह लेन-देन में मुनाफे का ध्यान रखती है,उसके घर का दीया रात को भी जलता रहता है।
י [योध ]
19 वह एक हाथ से तकुआ पकड़ती हैऔर दूसरे हाथ से तकली चलाती है।*+
כ [काफ ]
20 वह दीन-दुखियों की तरफ मदद का हाथ बढ़ाती हैऔर गरीबों के लिए अपनी मुट्ठी खोलती है।+
ל [लामेध ]
21 बर्फ पड़ने पर उसे अपने घरवालों की फिक्र नहीं होती,क्योंकि सब-के-सब गरम* कपड़े पहने होते हैं।
מ [मेम ]
22 वह खुद अपने हाथों से चादरें बनाती है,वह मलमल और बैंजनी ऊन के कपड़े पहनती है।
נ [नून ]
23 उसके पति को शहर के फाटक पर सब जानते हैं,+वह इलाके के मुखियाओं के साथ वहीं बैठता है।
ס [सामेख ]
24 वह मलमल के कुरते* सिलकर बेचती हैऔर व्यापारियों को थोक में कमरबंद देती है।
ע [ऐयिन ]
25 ताकत और वैभव उसका पहनावा है,वह आनेवाले कल से नहीं डरती।*
פ [पे ]
26 उसके मुँह से हमेशा बुद्धि की बातें निकलती हैं,+अपनी ज़बान से भली बातें कहना* उसका उसूल है।
צ [सादे ]
27 वह अपने घरबार का ध्यान रखती हैऔर आलस की रोटी नहीं खाती।+
ק [कोफ ]
28 उसके बच्चे खड़े होकर उसकी तारीफ करते हैं,उसका पति भी उठकर उसके गुण गाता है।
ר [रेश ]
29 अच्छी औरतें तो बहुत हैं,मगर तू उन सबसे बढ़कर है।
ש [शीन ]
30 आकर्षण झूठा हो सकता है और खूबसूरती पल-भर की,*+मगर जो औरत यहोवा का डर मानती है वह तारीफ पाएगी।+
ת [ताव ]
31 उसकी मेहनत का उसे इनाम दे*+और उसके काम शहर के फाटक पर उसकी वाह-वाही करें।+
कई फुटनोट
^ या “की पैरवी करना।”
^ या “अपनी कमाई से।” शा., “मेहनत के फल से।”
^ तकुआ और तकली ऐसी डंडियाँ होती थीं, जिनकी मदद से धागा लपेटा या बनाया जाता था।
^ शा., “दो-दो।”
^ या “अंदर पहने जानेवाले कपड़े।”
^ या “पर हँसती है।”
^ या “प्यार से सिखाना; अटल प्यार का नियम।”
^ या “खोखली।”
^ शा., “उसके हाथों के फल में से उसे दे।”