प्रेषितों के काम 5:1-42
5 हनन्याह नाम के एक आदमी और उसकी पत्नी सफीरा ने भी अपनी कुछ ज़मीन बेची।
2 मगर हनन्याह ने चोरी-छिपे उसकी कीमत का कुछ हिस्सा अपने पास रख लिया और यह बात उसकी पत्नी भी जानती थी। उसने रकम का सिर्फ कुछ हिस्सा ले जाकर प्रेषितों के पैरों पर रखा।+
3 तब पतरस ने कहा, “हनन्याह, क्यों शैतान ने तुझे ऐसा ढीठ बना दिया कि तू पवित्र शक्ति से झूठ बोले+ और ज़मीन की कीमत का कुछ हिस्सा चोरी से अपने पास रख ले?
4 जब तक वह तेरे पास थी, क्या वह तेरी न थी और बेचने के बाद भी क्या उसकी कीमत पर तेरा हक नहीं था? तो फिर क्यों तूने अपने दिल में ऐसा काम करने की सोची? तूने इंसानों से नहीं, परमेश्वर से झूठ बोला है।”
5 यह सुनते ही हनन्याह गिर पड़ा और मर गया। और इस बारे में सुननेवाले हर किसी पर डर छा गया।
6 फिर कुछ नौजवानों ने उठकर उसे कपड़े में लपेटा और उसे बाहर ले गए और दफना दिया।
7 करीब तीन घंटे बाद उसकी पत्नी आयी और उसे नहीं पता था कि वहाँ क्या हुआ है।
8 पतरस ने उससे कहा, “मुझे बता, क्या तुम दोनों ने अपनी ज़मीन इतने ही दाम में बेची थी?” उसने कहा, “हाँ, इतने में ही बेची थी।”
9 पतरस ने उससे कहा, “क्यों तुम दोनों ने मिलकर तय किया कि तुम यहोवा* की पवित्र शक्ति की परीक्षा लो? देख! तेरे पति को दफनानेवाले दरवाज़े पर हैं और अब वे तुझे भी उठाकर ले जाएँगे।”
10 उसी घड़ी वह उसके पैरों पर गिर पड़ी और मर गयी। जब वे नौजवान अंदर आए तो उन्होंने उसे मरा हुआ पाया और वे उसे उठाकर बाहर ले गए और उसके पति के पास उसे दफना दिया।
11 इस घटना से पूरी मंडली पर और इस बारे में सुननेवाले हर किसी पर डर छा गया।
12 प्रेषितों के हाथों लोगों के बीच और भी बहुत-से चमत्कार और आश्चर्य के काम होते रहे।+ वे सभी ‘सुलैमान के खंभोंवाले बरामदे’ में इकट्ठा हुआ करते थे।+
13 बाकियों में से किसी की हिम्मत नहीं होती थी कि वे चेलों में जा मिले। फिर भी लोग चेलों की तारीफ करते थे।
14 और-तो-और प्रभु पर विश्वास करनेवाले आदमी-औरत बड़ी तादाद में उनमें शामिल होते रहे।+
15 यहाँ तक कि वे बीमारों को बड़ी सड़कों पर लाकर चारपाइयों और बिस्तरों पर लिटा देते थे ताकि जब पतरस वहाँ से गुज़रे, तो कम-से-कम उसकी परछाईं ही उनमें से कुछ पर पड़ जाए।+
16 यरूशलेम के आस-पास के शहरों से भी भारी तादाद में लोग वहाँ आते रहे और बीमारों और दुष्ट स्वर्गदूतों के सताए हुओं को लाते रहे और वे सब-के-सब ठीक हो जाते थे।
17 मगर महायाजक और वे सभी जो उसके साथ थे यानी उस वक्त के सदूकियों के गुट के लोग, जलन से भर गए।
18 उन्होंने प्रेषितों को पकड़* लिया और जेल में डाल दिया।+
19 मगर रात को यहोवा* के स्वर्गदूत ने जेल के दरवाज़े खोल दिए+ और उन्हें बाहर लाकर उनसे कहा,
20 “जाओ और जाकर मंदिर में लोगों को जीवन* का संदेश सुनाते रहो।”
21 इसलिए वे सुबह होते ही मंदिर में गए और सिखाने लगे।
फिर जब महायाजक और उसके साथी आए, तो उन्होंने महासभा और इसराएलियों के मुखियाओं की पूरी सभा को इकट्ठा किया और जेल से प्रेषितों को लाने के लिए पहरेदार भेजे।
22 मगर वहाँ पहुँचकर पहरेदारों ने देखा कि वे जेल में नहीं हैं। इसलिए वे लौट आए और आकर यह खबर दी,
23 “हमने देखा कि जेल के दरवाज़े अच्छी तरह बंद हैं और दरवाज़ों पर पहरेदार भी तैनात हैं, मगर जेल खोलने पर हमें अंदर कोई नहीं मिला।”
24 जब मंदिर के पहरेदारों के सरदार और प्रधान याजकों ने यह सुना, तो वे बड़ी दुविधा में पड़ गए और उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि आगे क्या होगा।
25 मगर किसी ने आकर उन्हें खबर दी, “देखो! तुमने जिन आदमियों को जेल में डाला था, वे तो मंदिर में हैं और वहाँ खड़े होकर लोगों को सिखा रहे हैं।”
26 तब सरदार अपने पहरेदारों के साथ गया और उन्हें ले आया, मगर उनके साथ कोई ज़ोर-ज़बरदस्ती नहीं की क्योंकि उन्हें डर था कि कहीं लोग हमें पत्थरों से मार न डालें।+
27 वे उन्हें ले आए और लाकर महासभा के सामने खड़ा कर दिया। महायाजक ने उनसे कुछ सवाल किए
28 और कहा, “हमने तुम्हें कड़ा आदेश दिया था कि इस नाम से सिखाना बंद कर दो,+ मगर फिर भी देखो! तुमने सारे यरूशलेम को अपनी शिक्षाओं से भर दिया है और तुमने इस आदमी के खून का दोष हमारे सिर पर थोपने की ठान ली है।”+
29 तब पतरस और दूसरे प्रेषितों ने कहा, “इंसानों के बजाय परमेश्वर को अपना राजा जानकर उसकी आज्ञा मानना ही हमारा फर्ज़ है।+
30 जिस यीशु को तुमने काठ* पर लटकाकर मार डाला था, उसे हमारे पुरखों के परमेश्वर ने ज़िंदा कर दिया।+
31 परमेश्वर ने उसी को ऊँचा पद देकर खास अगुवा+ और उद्धारकर्ता ठहराया+ और अपने दायीं तरफ बिठाया+ ताकि इसराएल पश्चाताप करे और पापों की माफी पाए।+
32 हम इन सब बातों के गवाह हैं+ और पवित्र शक्ति भी गवाह है+ जो परमेश्वर ने उन लोगों को दी है, जो उसे राजा जानकर उसकी आज्ञा मानते हैं।”
33 जब उन्होंने यह सुना तो वे आग-बबूला हो उठे और वे उनका काम तमाम कर देना चाहते थे।
34 मगर महासभा में गमलीएल+ नाम का एक फरीसी खड़ा हुआ, जो कानून का शिक्षक था और लोगों में उसकी बड़ी इज़्ज़त थी। उसने इन आदमियों को कुछ देर के लिए बाहर ले जाने का हुक्म दिया।
35 फिर गमलीएल ने उनसे कहा, “इसराएल के लोगो, तुम इन आदमियों के साथ जो करना चाहते हो, उसके बारे में अच्छी तरह सोच लो।
36 कुछ वक्त पहले थियूदास यह कहते हुए उठ खड़ा हुआ था कि मैं भी कुछ हूँ। और कई आदमी, करीब 400 लोग उसके गुट में शामिल हो गए थे। मगर वह मार डाला गया और जितने उसे मानते थे वे सब तितर-बितर हो गए।
37 उसके बाद, नाम-लिखाई के दिनों में गलील का यहूदा उठ खड़ा हुआ और उसने लोगों को बहकाकर अपने पीछे कर लिया। मगर वह आदमी भी मिट गया और जो उसे मानते थे वे सब तितर-बितर हो गए।
38 इसलिए अभी के हालात को देखते हुए मैं तुमसे कहता हूँ, इन आदमियों के काम में दखल मत दो, पर इन्हें अपने हाल पर छोड़ दो। क्योंकि अगर यह योजना या यह काम इंसानों की तरफ से है तो यह मिट जाएगा,
39 लेकिन अगर यह परमेश्वर की तरफ से है, तो तुम इन्हें मिटा नहीं सकोगे।+ कहीं ऐसा न हो कि तुम परमेश्वर से लड़नेवाले ठहरो।”+
40 उन्होंने उसकी सलाह मान ली और प्रेषितों को बुलवाकर उन्हें कोड़े लगवाए*+ और हुक्म दिया कि यीशु के नाम से बोलना बंद कर दें, फिर उन्हें जाने दिया।
41 तब वे महासभा के सामने से इस बात पर बड़ी खुशी मनाते हुए अपने रास्ते चल दिए+ कि उन्हें यीशु के नाम से बेइज़्ज़त होने के लायक तो समझा गया।
42 और वे बिना नागा हर दिन मंदिर में और घर-घर जाकर सिखाते रहे+ और मसीह यीशु के बारे में खुशखबरी सुनाते रहे।+