भजन 104:1-35
104 मेरा मन यहोवा की तारीफ करे।+
हे यहोवा, मेरे परमेश्वर, तू बहुत महान है।+
तू प्रताप* और वैभव का लिबास पहने हुए है।+
2 तू रौशनी का ओढ़ना ओढ़े हुए है,+तूने आकाश को तंबू की तरह ताना है।+
3 वह ऊपर के पानी में* शहतीरों से ऊपरी कोठरियाँ बनाता है,+बादलों को अपना रथ बनाता है,+पवन के पंखों पर सवारी करता है।+
4 वह अपने स्वर्गदूतों को ताकतवर बनाता है,अपने सेवकों को भस्म करनेवाली आग बनाता है।+
5 उसने धरती को उसकी बुनियाद पर कायम किया है,+यह अपनी जगह से कभी हिलायी नहीं जाएगी,* सदा तक बनी रहेगी।+
6 तूने धरती को गहरे पानी से ऐसे ढाँप दिया मानो चादर हो।+
पानी ने पहाड़ों को ढक लिया।
7 तेरी डाँट सुनते ही वह भाग गया,+तेरे गरजन से वह घबराकर भाग गया,
8 उस जगह चला गया जो तूने उसके लिए तय की।पहाड़ उभरकर आए+ और घाटियाँ नीचे धँस गयीं।
9 तूने पानी के लिए एक हद बाँध दी ताकि वह उसे पार न करे+और फिर कभी धरती को न ढके।
10 वह सोतों का पानी घाटियों में भेजता है,पानी पहाड़ों के बीच बहता है।
11 उससे मैदान के सभी जंगली जानवरों को पानी मिलता है,जंगली गधे अपनी प्यास बुझाते हैं।
12 पानी के पास आकाश के पंछी बसेरा करते हैं,घनी डालियों पर बैठे गीत गाते हैं।
13 वह अपनी ऊपरी कोठरियों से पहाड़ों को सींचता है।+
तेरी मेहनत के फल से धरती भर गयी है।+
14 वह मवेशियों के लिए घासऔर इंसानों के इस्तेमाल के लिए पेड़-पौधे उगाता है+ताकि ज़मीन से खाने की चीज़ें उपजें,
15 दाख-मदिरा मिले जिससे इंसान का दिल मगन होता है,+तेल मिले जिससे उसका चेहरा चमक उठता है,रोटी मिले जिससे नश्वर इंसान का दिल मज़बूत बना रहता है।+
16 यहोवा के पेड़ों को,उसके लगाए लबानोन के देवदारों को भरपूर पानी मिलता है
17 जिन पर पंछी घोंसला बनाते हैं।
लगलग+ का बसेरा सनोवर के पेड़ों पर है।
18 ऊँचे-ऊँचे पहाड़, पहाड़ी बकरियों के लिए हैं,+बड़ी-बड़ी चट्टानें, चट्टानी बिज्जुओं के लिए पनाह हैं।+
19 उसने चाँद को समय ठहराने के लिए बनाया,सूरज अपने ढलने का वक्त बखूबी जानता है।+
20 तू अँधेरा लाता है और रात हो जाती है,+तब जंगल के सारे जानवर घूमते-फिरते हैं।
21 जवान शेर शिकार के लिए दहाड़ते हैं+और परमेश्वर से खाना माँगते हैं।+
22 जब सूरज उगता हैतो वे माँद में लौट जाते हैं और लेट जाते हैं।
23 इंसान काम पर जाता हैऔर शाम तक मशक्कत करता है।
24 हे यहोवा, तेरे काम अनगिनत हैं!+
तूने ये सब अपनी बुद्धि से बनाया है,+धरती तेरी बनायी चीज़ों से भरपूर है।
25 समुंदर विशाल है, दूर-दूर तक फैला है,छोटे-बड़े अनगिनत जीव-जंतुओं के झुंडों से भरा है।+
26 उसमें जहाज़ आते-जाते हैंऔर तेरा बनाया लिव्यातान*+ खेलता है।
27 ये सब तेरी ओर ताकते हैंकि तू उन्हें वक्त पर खाना दे।+
28 तू उन्हें जो देता है, उसे वे बटोरते हैं।+
जब तू मुट्ठी खोलकर देता है तो वे अच्छी चीज़ों से संतुष्ट होते हैं।+
29 जब तू उनसे अपना मुँह फेर लेता है तो वे बेचैन हो जाते हैं।
जब तू उनकी साँस* ले लेता है तो वे मर जाते हैं, मिट्टी में लौट जाते हैं।+
30 जब तू अपनी पवित्र शक्ति भेजता है तो उनकी सृष्टि होती है,+तू धरती को नया-सा कर देता है।
31 यहोवा की महिमा सदा बनी रहेगी।
यहोवा अपने कामों से खुश होगा।+
32 वह धरती पर नज़र डालता है और वह काँप उठती है,वह पहाड़ों को छूता है और उनसे धुआँ निकलता है।+
33 मैं सारी ज़िंदगी यहोवा के लिए गीत गाऊँगा,+जब तक मैं ज़िंदा रहूँगा, अपने परमेश्वर की तारीफ में गीत गाऊँगा।*+
34 मेरे विचार उसे भाएँ।*
मैं यहोवा के कारण मगन होऊँगा।
35 पापी धरती से गायब हो जाएँगे,फिर कभी दुष्ट नहीं रहेंगे।+
मेरा मन यहोवा की तारीफ करे। याह की तारीफ करो!*
कई फुटनोट
^ या “गरिमा।”
^ शा., “वह पानी में।”
^ या “नहीं डगमगाएगी।”
^ या “संगीत बजाऊँगा।”
^ या शायद, “मैं उसके बारे में जो मनन करता हूँ वह मनभावना हो।”
^ या “हल्लिलूयाह!” “याह” यहोवा नाम का छोटा रूप है।