भजन 17:1-15
दाविद की प्रार्थना।
17 हे यहोवा, न्याय के लिए मेरी दुहाई सुन,मेरी मदद की पुकार पर ध्यान दे,मैं बिना कपट के प्रार्थना कर रहा हूँ, मेरी सुन ले।+
2 तू सही फैसला सुनाकर मुझे इंसाफ दिलाए,+तेरी आँखें देखें कि सही क्या है।
3 तूने मेरा दिल जाँचा, रात के वक्त मुझे परखा,+तूने मुझे शुद्ध किया है,+तू पाएगा कि मैंने कोई साज़िश नहीं की,न ही अपने मुँह से कोई पाप किया।
4 जहाँ तक इंसान के कामों की बात है,मैं तेरे मुँह से निकले वचन मानकर लुटेरों के रास्तों से दूर रहता हूँ।+
5 मेरे कदमों को तेरी राहों पर बने रहने देताकि मेरे पाँव ठोकर न खाएँ।+
6 हे परमेश्वर, मैं तुझे पुकारता हूँ क्योंकि तू मेरी सुनेगा।+
तू मेरी तरफ कान लगा।* मेरी बिनती सुन।+
7 हे परमेश्वर, तू उनका बचानेवाला है,जो बागियों से भागकर तेरे दाएँ हाथ के नीचे पनाह लेते हैं,तू लाजवाब तरीके से अपने अटल प्यार का सबूत दे।+
8 अपनी आँख की पुतली की तरह मुझे सँभाले रख,+अपने पंखों की छाँव तले मुझे छिपा ले।+
9 दुष्टों से मेरी रक्षा कर जो मुझ पर हमला करते हैं,उन जानी दुश्मनों से जो मुझे घेर लेते हैं।+
10 उन्होंने अपना दिल कठोर कर लिया है,*वे मगरूर होकर बड़ी-बड़ी बातें करते हैं।
11 अब वे हमें घेर लेते हैं,+इस ताक में रहते हैं कि कब मौका मिले और हमें नीचे गिरा दें।*
12 वह एक शेर की तरह है जो शिकार को फाड़ खाने के लिए बेताब है,जवान शेर की तरह जो घात लगाए बैठा है।
13 हे यहोवा, उठ! उसका मुकाबला कर+ और उसे चित कर दे,अपनी तलवार लेकर मुझे उस दुष्ट से छुड़ा ले।
14 हे यहोवा, अपना हाथ बढ़ाकर मुझे छुड़ा ले,इस ज़माने* के लोगों से मुझे छुड़ा ले, जो सिर्फ आज के लिए जीते हैं,+जिन्हें तू अपने भंडार से अच्छी चीज़ें बहुतायत में देता है,+जो अपने बहुत-से बेटों के लिए विरासत छोड़ जाते हैं।
15 मगर मैं तो नेक बना रहूँगा ताकि तेरा मुख देखूँ,मेरी खुशी इसी में है कि उठकर तेरे सामने खड़ा रह पाऊँ।*+
कई फुटनोट
^ या “झुककर मेरी सुन।”
^ या “वे अपनी ही चरबी से घिरे हैं।”
^ या “हमें ज़मीन पर पटक दें।”
^ या “दुनिया की व्यवस्था।”
^ या “तेरा रूप देखूँ।”