भजन 39:1-13

दाविद का सुरीला गीत। निर्देशक के लिए हिदायत: यदूतून*+ का। 39  मैंने कहा, “मैं बहुत सावधानी बरतूँगाताकि अपनी जीभ से पाप न कर बैठूँ।+ जब तक कोई दुष्ट मेरे सामने रहेगातब तक मैं अपने मुँह पर मुसका* बाँधे रहूँगा।”+   मैं गूँगा हो गया, कुछ नहीं बोला,+अच्छी बातें कहने के लिए भी मैंने मुँह नहीं खोला,मगर मेरा दर्द सहन से बाहर था।*   मेरा दिल सुलगने लगा, मैं गहराई से सोचता रहा* और आग जलती रही। फिर मैं बोल उठा,   “हे यहोवा, मुझे बता कि मेरा अंत कब होगा,मेरे और कितने दिन रह गए हैं+ताकि मैं जानूँ कि मेरी ज़िंदगी कितनी छोटी है।*   वाकई, तूने मुझे पल-भर की ज़िंदगी दी है,*+मेरा जीवनकाल तेरे सामने कुछ भी नहीं।+ सच, हर इंसान बस एक साँस है,फिर चाहे वह कितना ही सुरक्षित क्यों न दिखायी पड़े।+ (सेला )   सच, हर इंसान एक परछाईं जैसा है। वह बेकार में दौड़-धूप* करता है। दौलत का अंबार लगाता है, मगर नहीं जानता कि कौन उसका मज़ा लेगा।+   इसलिए हे यहोवा, मैं किस पर आशा रखूँ? तू ही मेरी आशा है।   मुझे मेरे सब अपराधों से छुड़ा ले।+ मूर्खों को मेरी खिल्ली उड़ाने का मौका न दे।   मैं खामोश ही रहा, मैंने अपना मुँह नहीं खोला+क्योंकि यह तूने किया है।+ 10  तूने मुझ पर जो कहर ढाया, उसे हटा दे। मैं तेरे हाथ की मार सहते-सहते पस्त हो गया हूँ। 11  तू आदमी को उसके किए की सज़ा देकर सुधारता है,+वह जिन चीज़ों को खज़ाने की तरह सँभालकर रखता है,उन्हें तू मिटा देता है जैसे कपड़-कीड़ा कपड़ा चट कर जाता है। सच, हर इंसान बस एक साँस है।+ (सेला ) 12  हे यहोवा, मेरी प्रार्थना सुन,मेरी मदद की पुकार पर ध्यान दे।+ मेरे आँसुओं को अनदेखा न कर। क्योंकि मैं तेरी नज़र में बस एक परदेसी हूँ,+एक मुसाफिर,* जैसे मेरे सभी बाप-दादे थे।+ 13  अपनी क्रोध-भरी नज़रें मुझसे फेर ले ताकि मेरी खुशी लौट आए,इससे पहले कि मैं मरकर मिट जाऊँ।”

कई फुटनोट

शब्दावली देखें।
यानी जानवरों के मुँह पर बाँधी जानेवाली जाली।
या “बढ़ गया।”
या “मैं आहें भरता रहा।”
या “कि मैं पल-भर का हूँ।”
शा., “तूने मेरे दिन बित्ते-भर बनाए हैं।”
शा., “शोर।”
या “एक प्रवासी।”

अध्ययन नोट

तसवीर और ऑडियो-वीडियो