भजन 58:1-11

दाविद की रचना। निर्देशक के लिए हिदायत: “नाश न होने दे” के मुताबिक। मिकताम।* 58  हे आदमियो, इस तरह चुप बैठकर क्या तुम नेकी के बारे में बोल सकोगे?+ क्या तुम सच्चाई से न्याय कर सकोगे?+   तुम तो अपने दिलों में बुराई गढ़ते हो,+देश का कोना-कोना खून-खराबे से भर देते हो।+   दुष्ट लोग जन्म से ही भटके हुए* होते हैं,पैदाइश से ही टेढ़ी चाल चलते हैं, झूठे हैं।   उनकी बातें साँप के ज़हर की तरह हैं,+वे उस नाग की तरह बहरे हो गए हैं जो सुनना नहीं चाहता।   वह अब सपेरों की आवाज़ नहीं सुनेगा,फिर चाहे वे कितनी ही चालाकी से मंत्र फूँकें।   हे परमेश्‍वर, उनके मुँह के सारे दाँत तोड़ दे! हे यहोवा, उन शेरों के जबड़े तोड़ दे!   वे ऐसे गायब हो जाएँ जैसे पानी बहकर गायब हो जाता है। परमेश्‍वर अपनी कमान चढ़ाए और तीर चलाकर उन्हें ढेर कर दे।   वे घोंघे जैसे हो जाएँ जो रेंगते-रेंगते घुलकर नाश हो जाता है,वे उस बच्चे जैसे हो जाएँ जो कोख में ही मर जाता है और कभी सूरज की रौशनी नहीं देख पाता।   इससे पहले कि तुम्हारी हाँडियों को कँटीली लकड़ियों की आँच लगेपरमेश्‍वर उन हरी और जलती लकड़ियों को ऐसे उड़ा ले जाएगा जैसे आँधी उड़ा ले जाती है।+ 10  परमेश्‍वर को बदला लेते देख नेक जन खुशियाँ मनाएगा।+नेक जन के पाँव दुष्टों के खून से लथपथ हो जाएँगे।+ 11  तब लोग कहेंगे, “नेक इंसान को ज़रूर इनाम मिलता है+ दुनिया का न्याय करनेवाला एक परमेश्‍वर ज़रूर है।”+

कई फुटनोट

शब्दावली देखें।
या “भ्रष्ट।”

अध्ययन नोट

तसवीर और ऑडियो-वीडियो