भजन 64:1-10
दाविद का सुरीला गीत। निर्देशक के लिए हिदायत।
64 हे परमेश्वर, जब मैं मिन्नत करूँ तो मेरी सुन।+
दुश्मन के खतरनाक हमलों से मेरी जान बचा।
2 दुष्टों की खुफिया तरकीबों से,+बुराई करनेवालों की भीड़ से मेरी रक्षा कर।
3 वे अपनी जीभ तलवार की तरह तेज़ करते हैं,कड़वे शब्दों के तीरों से निशाना साधते हैं
4 ताकि छिपकर निर्दोष पर वार करें।वे बेधड़क होकर उस पर अचानक तीर चलाते हैं।
5 वे अपने बुरे इरादे पर अड़े रहते हैं,*आपस में चर्चा करते हैं कि अपने फंदे कैसे छिपाएँ।
वे कहते हैं, “इन फंदों पर किसकी नज़र जाएगी?”+
6 वे गुनाह करने के नए-नए तरीके खोजते हैं,बड़ी चालाकी से जाल बिछाने की तरकीबें बुनते हैं,+उनके दिल के विचार समझना नामुमकिन है।
7 मगर परमेश्वर उन पर तीर चलाएगा,+वे अचानक घायल हो जाएँगे।
8 उनकी जीभ ही उनके गिरने की वजह बनेगी+देखनेवाले सभी हैरत से सिर हिलाएँगे।
9 तब सभी आदमी घबरा जाएँगे,परमेश्वर ने जो किया है उसका ऐलान करेंगे,वे उसके कामों की अंदरूनी समझ हासिल करेंगे।+
10 नेक जन यहोवा के कारण आनंद मनाएगा और उसकी पनाह लेगा,+सीधे-सच्चे मनवाले सब मगन होंगे।*