भजन 65:1-13
दाविद का सुरीला गीत। निर्देशक के लिए हिदायत।
65 हे परमेश्वर, सिय्योन में तारीफ के बोल तेरी राह तकते हैं,+तुझसे मानी मन्नतें हम पूरी करेंगे।+
2 हे प्रार्थना के सुननेवाले, सब किस्म के लोग तेरे पास आएँगे।+
3 मैं अपने गुनाहों का दोष सह नहीं पा रहा हूँ,+मगर तू हमारे अपराधों को ढाँप देता है।+
4 सुखी है वह जिसे तू चुनता और अपने पास लाता हैकि वह तेरे आँगनों में निवास करे।+
हम तेरे भवन की,+ तेरे पवित्र मंदिर* की अच्छी चीज़ों से संतुष्ट होंगे।+
5 हे परमेश्वर, हमारे उद्धारकर्ता,तू हमारी प्रार्थनाओं का जवाब देगा और नेकी की खातिर विस्मयकारी काम करेगा,+तू धरती के कोने-कोने तक बसनेवालों का,सागर के पार दूर-दूर तक रहनेवालों का भरोसा है।+
6 तूने अपनी शक्ति से पहाड़ों को मज़बूती से कायम किया है,तूने महाशक्ति धारण की है।+
7 तूफानी समुंदर को, साहिल से टकराती लहरों को तू शांत कर देता है,+होहल्ला मचाते राष्ट्रों को खामोश कर देता है।+
8 दूर-दराज़ इलाकों के लोग तेरे चिन्ह देखकर दंग रह जाएँगे,+उदयाचल से अस्ताचल तक रहनेवालों को तू ऐसी खुशी देगा कि वे जयजयकार करेंगे।
9 तू धरती की देखभाल करता है,उसे बहुत उपजाऊ बनाता और भरपूर फसल उगाता है।+
तेरी नदी उमड़ती रहती है,तूने धरती को इस तरह तैयार किया हैकि तू लोगों को अनाज दे सके।+
10 तू इसके कूँड़ों में पानी भरता है, जुती हुई ज़मीन* समतल करता है,तू पानी बरसाकर मिट्टी नरम करता है और उसकी पैदावार पर आशीष देता है।+
11 तू पूरे साल को आशीषों का ताज पहनाता है,तेरी हर डगर पर खुशहाली-ही-खुशहाली है।*+
12 वीराने के चरागाहों में खूब हरियाली है,+पहाड़ियों ने खुशी का ओढ़ना ओढ़ा है।+
13 चरागाहों में भेड़-बकरियों के झुंड-के-झुंड फैले हैं,वादियों में लहलहाती फसलों का कालीन बिछा है।+
वे जीत का जश्न मनाते हैं, हाँ, गीत गाते हैं।+