भजन 78:1-72
आसाप की रचना।+ मश्कील।*
78 मेरे लोगो, मेरा कानून* सुनो,मैं जो कहता हूँ उस पर कान लगाओ।
2 मैं तुम्हें नीतिवचन सुनाऊँगा,
पुराने ज़माने की पहेलियाँ बताऊँगा।+
3 जो बातें हमने सुनी और जानी हैं,हमारे पुरखों ने हमें बतायी हैं,+
4 वे हम उनके वंशजों से नहीं छिपाएँगे।हम आनेवाली पीढ़ी कोयहोवा के लाजवाब कामों और उसकी ताकत के,उसके आश्चर्य के कामों के किस्से सुनाएँगे।+
5 उसने याकूब को याद दिलाने के लिए हिदायत दी,इसराएल में एक कानून ठहराया,हमारे पुरखों को आज्ञा दीकि ये बातें अपने बच्चों को बताएँ+
6 ताकि अगली पीढ़ी,आनेवाली नसल इन बातों को जाने।+
फिर वे भी अपने बच्चों को ये सब बताएँगे।+
7 तब अगली पीढ़ी के लोग परमेश्वर पर भरोसा करेंगे।
वे परमेश्वर के काम नहीं भूलेंगे+बल्कि उसकी आज्ञाएँ मानेंगे।+
8 वे अपने पुरखों की तरह नहीं बनेंगे,जिनकी पीढ़ी हठीली और बगावती थी,+उनका मन डाँवाँडोल रहता था,*+वे परमेश्वर के विश्वासयोग्य नहीं रहे।
9 एप्रैमी लोग तीर-कमान से लैस थे,मगर युद्ध के दिन पीठ दिखाकर भाग गए।
10 उन्होंने परमेश्वर का करार नहीं माना,+उसके कानून पर चलने से इनकार कर दिया।+
11 वे यह भी भूल गए कि उसने क्या-क्या काम किए थे,+उन्हें कैसे-कैसे आश्चर्य के काम दिखाए थे।+
12 उसने मिस्र देश में, सोअन के इलाके में,+उनके पुरखों की आँखों के सामने लाजवाब काम किए थे।+
13 उसने समुंदर को चीर दिया था कि वे पार कर सकेंपानी को ऐसे खड़ा कर दिया जैसे बाँध बाँधा गया हो।*+
14 वह उन्हें दिन में बादल सेऔर सारी रात आग की रौशनी से रास्ता दिखाता।+
15 वह वीराने में चट्टानों को चीर देता,उन्हें समुंदर जितना भरपूर पानी देताताकि वे जी-भरकर पी सकें।+
16 उसने बड़ी चट्टान से पानी की धाराएँ निकालीं,वे नदियों की तरह बहने लगीं।+
17 फिर भी, वे वीराने में परम-प्रधान परमेश्वर से बगावत करते रहे,ऐसा करके वे उसके खिलाफ पाप करते रहे।+
18 उन्होंने उस खाने की माँग की जिसकी वे ज़बरदस्त लालसा कर रहे थे,ऐसा करके उन्होंने अपने दिल में परमेश्वर को चुनौती दी।*+
19 वे परमेश्वर के खिलाफ कुड़कुड़ाने लगे,“क्या इस वीराने में परमेश्वर हमारे लिए मेज़ लगा सकता है?”+
20 परमेश्वर ने ही चट्टान को मारा थाजिससे पानी की धाराएँ फूट निकलीं और नदियाँ उमड़ने लगीं!+
फिर भी वे कहने लगे, “क्या वह हमें रोटी भी दे सकता है?
अपने लोगों को गोश्त खिला सकता है?”+
21 जब यहोवा ने यह सुना तो वह क्रोध से भर गया,+उसने याकूब पर आग बरसायी,+वह इसराएल पर भड़क उठा+
22 क्योंकि उन्होंने परमेश्वर पर विश्वास नहीं किया,+यह भरोसा नहीं किया कि वह उनका उद्धार करने के काबिल है।
23 इसलिए परमेश्वर ने बादलों से घिरे आसमान को हुक्म दिया,आकाश के द्वार खोल दिए।
24 वह उनके खाने के लिए मन्ना बरसाता रहा,उसने उन्हें स्वर्ग का अनाज दिया।+
25 इंसानों ने शूरवीरों*+ की रोटी खायी,उसने इतना दिया कि वे जी-भरकर खा सकें।+
26 उसने आकाश में पूरब की हवा चलायी,अपनी शक्ति से दक्षिण की तेज़ हवा बहायी।+
27 उसने उन पर गोश्त की ऐसी बौछार की जैसे ढेर सारी धूल हो,बेशुमार पक्षी भेजे मानो समुंदर किनारे की बालू हो।
28 उसने पक्षियों को अपनी छावनी के बीचों-बीच गिराया,अपने तंबुओं के चारों ओर गिराया।
29 लोगों ने गोश्त खाया, ठूँस-ठूँसकर खाया,उन्होंने जो चाहा था उसने उन्हें दिया।+
30 मगर उनका मन और ललचाने लगाऔर खाना उनके मुँह में ही था
31 कि परमेश्वर का क्रोध उन पर भड़क उठा।+
उसने उनके ताकतवर आदमियों को मार डाला,+इसराएल के जवानों को ढेर कर दिया।
32 फिर भी वे और ज़्यादा पाप करते रहे,+उन्होंने उसके आश्चर्य के कामों पर विश्वास नहीं किया।+
33 उसने उनकी ज़िंदगी के दिन ऐसे खत्म कर दिए मानो साँस हों,+अचानक खौफ फैलाकर उनके साल मिटा दिए।
34 मगर जब भी वह उनका घात करता वे उसकी खोज करने लगते,+वे फिरकर परमेश्वर को ढूँढ़ने लगते,
35 यह याद करके कि परमेश्वर उनकी चट्टान था,+परम-प्रधान परमेश्वर उनका छुड़ानेवाला* था।+
36 मगर उन्होंने मुँह से उसे धोखा देने की कोशिश की,अपनी जीभ से उससे झूठ बोला।
37 उनका दिल उसकी तरफ अटल नहीं बना रहा,+वे उसका करार मानने में विश्वासयोग्य नहीं रहे।+
38 मगर परमेश्वर दयालु था,+वह उनके गुनाह माफ कर* देता था, उन्हें नाश नहीं करता था।+
वह अकसर अपना गुस्सा रोक लेता था,+उन पर सारा क्रोध नहीं प्रकट करता था।
39 क्योंकि उसे ध्यान था कि वे अदना इंसान हैं,+हवा का एक झोंका हैं जो एक बार बह जाए तो लौटता नहीं।*
40 कितनी ही बार उन्होंने वीराने में उससे बगावत की,+रेगिस्तान में उसे दुख पहुँचाया!+
41 उन्होंने बार-बार परमेश्वर की परीक्षा ली,+इसराएल के पवित्र परमेश्वर का दिल दुखाया।
42 वे उसकी शक्ति* भूल गए,वह दिन भूल गए जब उसने उन्हें दुश्मन से छुड़ाया था,+
43 कैसे उसने मिस्र में चिन्ह दिखाए थे,+सोअन प्रदेश में करिश्मे किए थे,
44 कैसे उसने नील नदी की नहरों का पानी खून में बदल दिया था+और वे अपनी नदियों से पी न सके थे।
45 उसने खून चूसनेवाली मक्खियाँ भेजीं ताकि उन्हें काट खाएँ+और मेंढक भेजे ताकि उन्हें बरबाद कर दें।+
46 उसने उनकी फसलें भूखी टिड्डियों के हवाले कर दी थीं,उनकी मेहनत का फल दलवाली टिड्डियों को दे दिया।+
47 उसने ओले बरसाकर उनके अंगूरों के बाग नाश कर दिए,+गूलर के पेड़ तहस-नहस कर डाले।
48 उसने उनके बोझ ढोनेवाले जानवरों को ओलों से नाश कर दिया,+बिजली गिराकर* उनके मवेशियों को खत्म कर दिया।
49 उसने उन पर गुस्से की आग भड़कायीक्रोध, जलजलाहट और संकट ले आया,कहर ढाने के लिए स्वर्गदूतों के दल भेजे।
50 उसने अपने गुस्से के लिए रास्ता बनाया,
उन्हें मौत से बचायाऔर उन्हें महामारी के हवाले कर दिया।
51 आखिर में उसने मिस्र के सभी पहलौठों को मार डाला,+हाम के तंबुओं में उनकी शक्ति* की पहली निशानी मिटा दी।
52 फिर वह अपने लोगों को भेड़ों की तरह निकाल लाया,+वीराने में उन्हें रास्ता दिखाता गया जैसे चरवाहा झुंड को रास्ता दिखाता है।
53 वह उन्हें हर खतरे से बचाता हुआ ले चला,इसलिए उन्हें कोई डर नहीं था,+समुंदर उनके दुश्मनों को निगल गया।+
54 वह उन्हें अपने पवित्र देश ले आया,+इस पहाड़ी इलाके में, जो उसके दाएँ हाथ ने हासिल किया था।+
55 उसने उनके सामने से जातियों को खदेड़ दिया,+नापने की डोरी से विरासत की ज़मीन उनमें बाँट दी,+इसराएल के गोत्रों को रहने के लिए घर दिया।+
56 मगर वे परम-प्रधान परमेश्वर को चुनौती देने* से बाज़ नहीं आए,उससे बगावत करते रहे,+उसके याद दिलाने पर भी कोई ध्यान नहीं दिया।+
57 वे भी परमेश्वर से फिर गए और अपने पुरखों की तरह गद्दार निकले,+
ढीली कमान की तरह भरोसे के लायक नहीं थे।+
58 वे कई ऊँची जगह बनाकर उसे गुस्सा दिलाते रहे,+अपनी गढ़ी हुई मूरतों से उसे भड़काते रहे।+
59 यह सब देखकर परमेश्वर क्रोध से भर गया,+उसने इसराएल को पूरी तरह ठुकरा दिया।
60 आखिरकार उसने शीलो का पवित्र डेरा+ छोड़ दिया,वह तंबू छोड़ दिया जिसमें वास करके वह इंसानों के बीच रहता था।+
61 उसने अपनी ताकत की निशानी को बँधुआई में जाने दिया,अपना वैभव बैरी के हाथ में जाने दिया।+
62 उसने अपने लोगों को तलवार के हवाले कर दिया,+वह अपनी विरासत के खिलाफ गुस्से से भर गया।
63 उसके जवानों को आग ने भस्म कर दिया,उसकी कुँवारियों के लिए शादी के गीत नहीं गाए गए।
64 उसके याजक तलवार से मारे गए,+उनकी विधवाएँ नहीं रोयीं।+
65 तब यहोवा ऐसे उठा जैसे नींद से जागा हो,+जैसे कोई सूरमा+ दाख-मदिरा के नशे से होश में आया हो।
66 उसने अपने दुश्मनों को वापस खदेड़ दिया,+उन्हें हमेशा के लिए शर्मिंदा कर दिया।
67 उसने यूसुफ का तंबू ठुकरा दिया,एप्रैम गोत्र को नहीं चुना।
68 मगर उसने यहूदा गोत्र को चुना,+सिय्योन पहाड़ को चुना जो उसे बहुत प्यारा है।+
69 उसने अपने पवित्र-स्थान को आसमान की तरह हमेशा के लिए कायम किया,+धरती की तरह सदा के लिए मज़बूती से कायम किया।+
70 उसने अपने सेवक दाविद को चुना,+उसे भेड़ों के बाड़े से ले आया।+
71 जो दूध पिलाती भेड़ों की देखभाल करता था,उसे याकूब का, अपने लोगों का चरवाहा ठहराया,+अपनी विरासत इसराएल का चरवाहा ठहराया।+
72 दाविद ने निर्दोष मन से उनकी चरवाही की,+अपने काबिल हाथों से उनकी अगुवाई की।+
कई फुटनोट
^ या “मेरी हिदायत।”
^ शा., “तैयार नहीं था।”
^ या “जैसे दीवार खड़ी की गयी हो।”
^ शा., “की परीक्षा ली।”
^ या “स्वर्गदूतों।”
^ या “उनकी तरफ से बदला लेनेवाला।”
^ शा., “ढाँप।”
^ या शायद, “जीवन-शक्ति चली जाती है और वापस नहीं आती।”
^ शा., “उसका हाथ।”
^ या शायद, “तपते बुखार से।”
^ या “संतान पैदा करने की शक्ति।”
^ शा., “की परीक्षा लेने।”