मत्ती के मुताबिक खुशखबरी 5:1-48
कई फुटनोट
अध्ययन नोट
पहाड़ पर: ज़ाहिर है कि यह पहाड़ कफरनहूम और गलील झील के पास था। यीशु पहाड़ की किसी ऊँची जगह पर गया होगा और वहाँ से भीड़ को सिखाने लगा जो सामने समतल जगह पर बैठी थी।—लूक 6:17, 20.
वह . . . बैठ गया: यहूदी धर्म के शिक्षकों का दस्तूर। वे ऐसा खासकर तब करते थे जब वे सभा-घरों में सिखाते थे।
उसके चेले: “चेले” के लिए इस्तेमाल हुई यूनानी संज्ञा मथतेस यहाँ पहली बार आयी है। इसका मतलब है, सीखनेवाला या जिसे सिखाया जाता है। इस शब्द से यह भी पता चलता है कि गुरु-चेले के बीच गहरा लगाव है, इतना गहरा कि गुरु की शिक्षाओं का चेले की पूरी ज़िंदगी पर असर होता है। हालाँकि यीशु की बातें सुनने के लिए एक बड़ी भीड़ इकट्ठा थी, फिर भी ऐसा लगता है कि यीशु ने खासकर अपने चेलों से बात की जो उसके करीब बैठे थे।—मत 7:28, 29; लूक 6:20.
वह उन्हें ये बातें सिखाने लगा: शा., “वह अपना मुँह खोलकर उन्हें सिखाने लगा।” ‘उसने अपना मुँह खोला,’ एक इब्रानी मुहावरा है जिसका मतलब है कि वह बोलने लगा। इनके यूनानी शब्दों का अनुवाद प्रेष 8:35 और 10:34 में इस तरह भी किया गया है: “बोलना शुरू किया।”
सुखी: यूनानी शब्द माकारियोस। इसका मतलब सिर्फ खुश होना नहीं है, जैसे कोई मौज-मस्ती करते वक्त महसूस करता है। इसके बजाय जब एक इंसान को सुखी कहा गया है, तो उसका मतलब है कि उस पर परमेश्वर की आशीष और मंज़ूरी है। यही यूनानी शब्द परमेश्वर के बारे में और स्वर्ग में महिमा पाए यीशु के बारे में बताने के लिए भी इस्तेमाल हुआ है।—1ती 1:11; 6:15.
जिनमें परमेश्वर से मार्गदर्शन पाने की भूख है: जिस यूनानी शब्द का अनुवाद ‘जिनमें भूख है’ किया गया है उसका शाब्दिक मतलब है, “जो गरीब (ज़रूरतमंद; कंगाल; भिखारी) हैं।” इस आयत में यह यूनानी शब्द उन लोगों के लिए इस्तेमाल हुआ है जिन्हें किसी चीज़ की ज़रूरत है और उन्हें इस बात का पूरा एहसास है। लूक 16:20, 22 में यही शब्द लाज़र नाम के “भिखारी” के लिए इस्तेमाल हुआ है। “जिनमें परमेश्वर से मार्गदर्शन पाने की भूख है,” इस वाक्य के लिए इस्तेमाल हुए यूनानी शब्दों को कुछ अनुवादों में “जो मन के दीन हैं” लिखा गया है। लेकिन इन यूनानी शब्दों का मतलब है, ऐसे लोग जिन्हें इस बात का ज़बरदस्त एहसास है कि उनका परमेश्वर के साथ कोई रिश्ता नहीं है और उनमें परमेश्वर से मार्गदर्शन पाने की भूख है।
उन्हीं का: यहाँ यीशु के चेलों की बात की गयी है क्योंकि वह खासकर उन्हीं से बात कर रहा था।—मत 5:1, 2.
कोमल स्वभाव: ऐसा स्वभाव उन लोगों का होता है जो परमेश्वर की मरज़ी पूरी करने और उसके मार्गदर्शन पर चलने के लिए तैयार रहते हैं और दूसरों पर धौंस जमाने की कोशिश नहीं करते। इसका मतलब यह नहीं कि वे बुज़दिल या कमज़ोर हैं। सेप्टुआजेंट में ये शब्द उस इब्रानी शब्द के लिए इस्तेमाल हुए हैं जिसका अनुवाद “दीन” या “नम्र” किया गया है। यह शब्द मूसा (गि 12:3) और मसीहा के लिए (जक 9:9; मत 21:5), साथ ही उन लोगों के लिए इस्तेमाल हुआ है जो सीखने के लिए तैयार रहते हैं (भज 25:9) और जो धरती के वारिस होंगे (भज 37:11)। यीशु ने खुद के बारे में कहा कि वह कोमल स्वभाव का या दीन है।—मत 11:29.
धरती के वारिस: ज़ाहिर है कि यीशु भज 37:11 की बात कर रहा था, जहाँ लिखा है कि “दीन लोग धरती के वारिस होंगे।” “धरती” के लिए इब्रानी शब्द ईरेट्स और यूनानी शब्द गे, दोनों का मतलब पूरी पृथ्वी या इसका कोई एक इलाका हो सकता है, जैसे वादा किया गया देश। बाइबल बताती है कि कोमल स्वभाव का सबसे बढ़िया उदाहरण यीशु मसीह है। (मत 11:29) इसलिए वह धरती का वारिस होगा। कैसे? बाइबल की कई आयतें दिखाती हैं कि राजा होने के नाते उसका अधिकार पूरी धरती पर होगा, न कि एक हिस्से पर। (भज 2:8; प्रक 11:15) यीशु के अभिषिक्त चेले उसकी विरासत में हिस्सेदार होंगे। (प्रक 5:10) इसके अलावा, कोमल स्वभाववाले उसके जो चेले राज की प्रजा बनेंगे, वे भी धरती के वारिस होंगे। उन्हें धरती पर अधिकार नहीं दिया जाएगा बल्कि वे इस पर फिरदौस में खुशी से जीएँगे।—मत 25:34 का अध्ययन नोट देखें।
जो नेकी के भूखे-प्यासे हैं: यानी वे लोग जो ऐसी दुनिया देखने के लिए तरस रहे हैं जहाँ भ्रष्टाचार और अन्याय नहीं होगा बल्कि सही-गलत के मामले में परमेश्वर के स्तर लागू होंगे। साथ ही, वे आज उन स्तरों के मुताबिक जीने की कोशिश कर रहे हैं।
दयालु: बाइबल में शब्द “दयालु” और “दया” का मतलब सिर्फ किसी को माफ करना या सज़ा कम करना नहीं है। इनमें अकसर करुणा की भावना और तरस खाना भी शामिल होता है। ये गुण एक इंसान को ज़रूरतमंद लोगों की मदद करने के लिए उभारते हैं।
जिनका दिल शुद्ध है: जिनका मन साफ है। यानी जो नैतिकता और उपासना के मामले में शुद्ध हैं और जिनका प्यार, ख्वाहिशें और इरादे भी सही हैं।
परमेश्वर को देखेंगे: ज़रूरी नहीं कि यहाँ सचमुच में परमेश्वर को देखने की बात की गयी हो “क्योंकि कोई भी इंसान [परमेश्वर को] देखकर ज़िंदा नहीं रह सकता।” (निर्ग 33:20) यहाँ ‘देखने’ के लिए जो यूनानी शब्द इस्तेमाल हुआ है उसका मतलब यह भी हो सकता है, “मन की आँखों से देखना, समझना या जानना।” इसलिए धरती पर यहोवा के उपासक जब उसके गुणों के बारे में सीखते हैं और उस पर अपना विश्वास बढ़ाते हैं तो एक तरह से वे उसे देख रहे होते हैं। इसके लिए वे उसके वचन का गहराई से अध्ययन करते हैं और यह समझने की कोशिश करते हैं कि उसने उनकी खातिर क्या-क्या किया है। (इफ 4:18; इब्र 11:27) अभिषिक्त मसीहियों को जब स्वर्ग में जीवन दिया जाता है तब वे यहोवा को वैसा ही देखते हैं “जैसा वह है।”—1यूह 3:2.
जो शांति कायम करते हैं: ऐसे लोग न सिर्फ शांति बनाए रखते हैं बल्कि जहाँ शांति नहीं है वहाँ शांति कायम करने की कोशिश भी करते हैं।
नमक: एक ऐसा खनिज जो खाने का स्वाद बढ़ाता है। यह खाने की चीज़ों को खराब होने से भी बचाता है। यहाँ यीशु शायद इसी खासियत की बात कर रहा था। वह कह रहा था कि नमक की तरह उसके चेले दूसरों की मदद कर सकते हैं ताकि परमेश्वर और उनका रिश्ता खराब न हो और उनकी ज़िंदगी नैतिक तौर पर बरबाद न हो।
अपना स्वाद खो दे: यीशु के दिनों में आम तौर पर नमक मृत सागर से निकाला जाता था और इसमें दूसरे खनिज भी मिले होते थे। नमक को साफ करते वक्त इन खनिजों को अलग किया जाता था। इनमें कोई स्वाद नहीं होता था और ये किसी काम के नहीं रह जाते थे।
जो शहर पहाड़ पर बसा हो: यीशु किसी एक शहर की बात नहीं कर रहा था क्योंकि उसके दिनों में कई शहर पहाड़ों पर बसे थे। पहाड़ों पर शहर अकसर इसलिए बसाए जाते थे ताकि दुश्मन हमला न कर सकें। इनके चारों तरफ ऊँची शहरपनाह होती थी जिस वजह से ये मीलों दूर से दिखायी देते थे, ये लोगों की नज़रों से छिप नहीं सकते थे। यही बात छोटे-छोटे गाँवों के बारे में भी सच थी जिनके घरों की दीवारों पर सफेदी की हुई होती थी।
दीपक: बाइबल के ज़माने में आम तौर पर घरों में मिट्टी के दीपक होते थे जिनमें जैतून का तेल डाला जाता था।
टोकरी: यह अनाज जैसी सूखी चीज़ें मापने के लिए इस्तेमाल की जाती थी। यहाँ जिस तरह की “टोकरी” (यूनानी में मोडियोस) की बात की गयी है, उसका आयतन (volume) करीब 9 ली. था।
पिता: खुशखबरी की किताबों में यीशु ने परमेश्वर यहोवा को 160 से भी ज़्यादा बार “पिता” कहा। यहाँ यह शब्द पहली बार इस्तेमाल हुआ है। यीशु ने इस शब्द का जिस तरह इस्तेमाल किया वह दिखाता है कि उसके सुननेवाले पहले से जानते थे कि परमेश्वर को पिता कहने का क्या मतलब है। इब्रानी शास्त्र में भी कई बार यहोवा को पिता कहा गया है। (व्य 32:6; भज 89:26; यश 63:16) प्राचीन समय के यहोवा के सेवकों ने उसके लिए कई बड़ी-बड़ी उपाधियाँ इस्तेमाल कीं, जैसे “सर्वशक्तिमान,” “परम-प्रधान” और “महान सृष्टिकर्ता।” लेकिन यीशु ने अकसर एक आम उपाधि “पिता” इस्तेमाल की, जिससे पता चलता है कि परमेश्वर और उसके सेवकों के बीच कितना करीबी रिश्ता है।—उत 28:3; व्य 32:8; सभ 12:1.
कानून . . . भविष्यवक्ताओं: “कानून” का मतलब है, बाइबल में उत्पत्ति से लेकर व्यवस्थाविवरण तक की किताबें। “भविष्यवक्ताओं” का मतलब है, इब्रानी शास्त्र में भविष्यवक्ताओं की लिखी किताबें। लेकिन जब इन दोनों का ज़िक्र साथ में आता है तो इसका मतलब पूरा इब्रानी शास्त्र हो सकता है।—मत 7:12; 22:40; लूक 16:16.
सच: यूनानी शब्द आमीन, इब्रानी शब्द आमेन से लिया गया है जिसका मतलब है, “ऐसा ही हो” या “ज़रूर।” यीशु अकसर कोई बात, वादा या भविष्यवाणी करने से पहले इस शब्द का इस्तेमाल करता था ताकि वह जो कह रहा है उस पर लोगों को भरोसा हो। यीशु ने जिस तरह “सच” यानी आमीन शब्द का इस्तेमाल किया, वैसा दूसरी धार्मिक किताबों में नहीं हुआ है। जहाँ यह शब्द साथ-साथ आया है (आमीन-आमीन), वहाँ उस शब्द का अनुवाद “सच-सच” किया गया है, जैसे हम यूहन्ना की खुशखबरी की किताब में कई बार देख सकते हैं।—यूह 1:51.
आकाश और पृथ्वी कभी नहीं मिटेंगे: शा., “जब तक आकाश और पृथ्वी टल न जाएँ।” यह एक अतिशयोक्ति अलंकार है जिसका मतलब है आकाश और पृथ्वी “कभी नहीं” मिटेंगे। बाइबल भी दिखाती है कि सचमुच के आकाश और पृथ्वी हमेशा रहेंगे।—भज 78:69; 119:90.
छोटे-से-छोटा अक्षर: उस वक्त इब्रानी वर्णमाला में सबसे छोटा अक्षर योध (י) था।
बिंदु: कुछ इब्रानी अक्षरों में बिंदु लगाए जाते थे ताकि एक अक्षर दूसरे से अलग दिखे। इस आयत में यीशु ने अतिशयोक्ति अलंकार का इस्तेमाल करके इस बात पर ज़ोर दिया कि परमेश्वर के वचन की छोटी-से-छोटी बात भी पूरी होगी।
तुम सुन चुके हो कि . . . कहा गया था: इसका मतलब इब्रानी शास्त्र में लिखी बातें और यहूदी परंपरा के मुताबिक सिखायी जानेवाली शिक्षाएँ भी हो सकता है।—मत 5:27, 33, 38, 43.
अदालत के सामने जवाब देना पड़ेगा: पूरे इसराएल में छोटी-छोटी अदालतें थीं जहाँ मुकदमों की सुनवाई होती थी। (मत 10:17; मर 13:9) इन अदालतों के न्यायधीशों को खून के मामलों पर फैसला सुनाने का अधिकार था।—व्य 16:18; 19:12; 21:1, 2.
गुस्से की आग सुलगती रहती है: यीशु के कहने का मतलब था कि ऐसा रवैया रखना नफरत करने के बराबर है, जिसका अंजाम हो सकता है कि एक इंसान किसी की हत्या कर दे। (1यूह 3:15) आखिरकार गुस्सा करनेवाले ऐसे व्यक्ति को परमेश्वर हत्यारा करार दे सकता है।
अपमान करने के लिए ऐसे शब्द कहता है जिन्हें ज़बान पर भी नहीं लाना चाहिए: इन शब्दों के लिए यूनानी शब्द है, राखा (यह शायद इब्रानी या अरामी शब्द से निकला है) जिसका मतलब है “मूर्ख” या “बुद्धिहीन।” जो इंसान अपने संगी-साथी से ऐसे अपमान-भरे शब्द कहता है, वह असल में दिल में पल रही नफरत को अपनी बातों से ज़ाहिर कर रहा होता है।
सबसे बड़ी अदालत: यानी यरूशलेम की महासभा। यह महासभा, महायाजक और 70 दूसरे सदस्यों से बनी होती थी जिनमें मुखिया और शास्त्री होते थे। महासभा जो फैसला सुनाती थी उसे यहूदी लोग आखिरी फैसला मानते थे।—शब्दावली में “महासभा” देखें।
अरे चरित्रहीन मूर्ख: इनके लिए जो यूनानी शब्द है वह उस इब्रानी शब्द के जैसा है जिसका मतलब है, “बगावत करनेवाला” या “विद्रोही।” यह यूनानी शब्द उस व्यक्ति के लिए इस्तेमाल होता था जो नैतिक उसूलों पर नहीं चलता और परमेश्वर से बगावत करता था। इसलिए अगर कोई अपने संगी-साथी को “चरित्रहीन मूर्ख” बुलाता, तो एक तरह से वह कह रहा होता कि उसे वही सज़ा मिले जो परमेश्वर से बगावत करनेवाले को मिलती है, यानी हमेशा का विनाश।
गेहन्ना: यह इब्रानी शब्दों गेह हिन्नोम से निकला है जिनका मतलब है, “हिन्नोम घाटी।” यह घाटी प्राचीन यरूशलेम के पश्चिम और दक्षिण में थी। (अति. ख12, “यरूशलेम और उसके आस-पास का इलाका” नक्शा देखें।) यीशु के दिनों तक यह घाटी कूड़ा-करकट जलाने की जगह बन गयी थी। इसलिए हमेशा का विनाश बताने के लिए “गेहन्ना” शब्द एकदम सही था।—शब्दावली देखें।
वेदी के पास अपनी भेंट: यीशु किसी एक भेंट या अपराध की बात नहीं कर रहा था। भेंट का मतलब था कोई भी बलिदान जो मूसा के कानून के मुताबिक यहोवा के मंदिर में चढ़ाया जाता था। वेदी का मतलब था होम-बलि की वेदी जो मंदिर में याजकों के आँगन में हुआ करती थी। इस आँगन में आम इसराएलियों को जाने की इजाज़त नहीं थी। इसके बजाय वे अपनी भेंट द्वार पर ही याजक को दे देते थे।
अपनी भेंट . . . छोड़ दे और जाकर: यीशु ने बताया कि एक उपासक अपनी भेंट याजक को देने ही वाला है कि तभी उसे एहसास होता है कि उसके और उसके भाई के बीच कुछ अनबन है। अगर वह चाहता है कि परमेश्वर उसकी भेंट स्वीकार करे तो पहले उसे अपने भाई के साथ सुलह करनी होगी। इसके लिए उसे जाकर शायद उन हज़ारों लोगों में से अपने भाई को ढूँढ़ना होगा जो त्योहार मनाने यरूशलेम आए हैं। आम तौर पर ऐसे मौकों पर ही लोग अपनी भेंट मंदिर में चढ़ाने के लिए लाते थे।—व्य 16:16.
सुलह कर: इनके यूनानी शब्द का मतलब है, “दुश्मनी को दोस्ती में बदलना; मेल-मिलाप करना; पहले की तरह अच्छा रिश्ता बनाना या एक होना।” तो फिर सुलह करने का लक्ष्य है, एक बदलाव लाना यानी हो सके तो उस इंसान के दिल से नाराज़गी दूर करना जिसे चोट पहुँची है। (रोम 12:18) यीशु के कहने का मतलब था कि परमेश्वर के साथ हमारा रिश्ता तभी अच्छा हो सकता है जब दूसरों के साथ हमारा रिश्ता अच्छा हो।
एक-एक पाई: शा., “आखिरी कौद्रान,” यानी दीनार का 1/64वाँ हिस्सा। एक दीनार एक दिन की मज़दूरी होती थी।—अति. ख14 देखें।
तुम सुन चुके हो कि कहा गया था: मत 5:21 का अध्ययन नोट देखें।
व्यभिचार . . . करना: यहाँ निर्ग 20:14 और व्य 5:18 की बात लिखी है। उन आयतों में इब्रानी क्रिया नाआफ इस्तेमाल हुई है। इस क्रिया के लिए यहाँ यूनानी क्रिया मोइखीयो इस्तेमाल हुई है। बाइबल में व्यभिचार का मतलब है एक शादीशुदा व्यक्ति का अपने साथी को छोड़ किसी और के साथ अपनी इच्छा से “नाजायज़ यौन-संबंध” रखना। (मत 5:32 के अध्ययन नोट से तुलना करें, जहाँ शब्द “नाजायज़ यौन-संबंध” [यूनानी में पोर्निया] के बारे में समझाया गया है।) जब मूसा का कानून लागू था तब अगर कोई अपनी इच्छा से किसी आदमी की पत्नी या मँगेतर के साथ यौन-संबंध रखता था तो उसे व्यभिचार माना जाता था।
गेहन्ना: मत 5:22 का अध्ययन नोट और शब्दावली देखें।
तलाकनामा: मूसा का कानून तलाक का बढ़ावा नहीं देता था। अगर कोई अपने जीवन-साथी से अलग होना चाहता था तो कानून के मुताबिक उसे तलाकनामा लिखकर देना होता था। (व्य 24:1) यह नियम इसराएलियों को जल्दबाज़ी में तलाक लेने से रोकता था और औरतों के हक की हिफाज़त करता था। अगर एक पति तलाकनामा लिखना चाहता था तो मुमकिन है कि उसे उन अधिकारियों से बात करनी होती थी जिन्हें इस काम के लिए ठहराया गया था। वे अधिकारी शायद पति-पत्नी को आपस में सुलह करने की सलाह दें।
नाजायज़ यौन-संबंध: यूनानी शब्द पोर्निया का मतलब है, हर तरह का यौन-संबंध जो परमेश्वर के नियम के खिलाफ है। जैसे व्यभिचार, वेश्या के काम, दो कुँवारे लोगों के बीच यौन-संबंध जिनकी एक-दूसरे से शादी नहीं हुई, समलैंगिकता और जानवरों के साथ यौन-संबंध।—शब्दावली देखें।
तुमने यह भी सुना है कि . . . कहा गया था: मत 5:21 का अध्ययन नोट देखें।
यहोवा: हालाँकि यहाँ इब्रानी शास्त्र की किसी एक आयत की बात नहीं लिखी है, मगर ऐसा मालूम होता है कि यीशु ने जिन दो आज्ञाओं की बात की वे लैव 19:12, गि 30:2 और व्य 23:21 जैसी आयतों से ली गयी हैं। इन आयतों में परमेश्वर का नाम यहोवा दिया है। मूल इब्रानी पाठ में इन आयतों में परमेश्वर के नाम के लिए चार इब्रानी व्यंजन (हिंदी में य-ह-व-ह) इस्तेमाल हुए हैं।—अति. ग देखें।
कभी कसम न खाना: यीशु हर तरह की शपथ खाने से मना नहीं कर रहा था, क्योंकि अब भी परमेश्वर का कानून लागू था जिसके मुताबिक कुछ गंभीर मामलों में शपथ लेने या मन्नत मानने की इजाज़त थी। (गि 30:2; गल 4:4) इसके बजाय वह बिना सोचे-समझे और बात-बात पर कसम खाने की मनाही कर रहा था जो गलत था।
न स्वर्ग की: अपनी बात पर यकीन दिलाने के लिए लोग “स्वर्ग की,” “पृथ्वी की,” “यरूशलेम की,” यहाँ तक कि दूसरे के “सिर की” यानी उसके जीवन की कसम खाते थे। (मत 5:35, 36) लेकिन यहूदियों में यह मतभेद था कि परमेश्वर के नाम के बजाय उसकी सृष्टि की कसम खाना किस हद तक सही है। सबूत दिखाते हैं कि कुछ यहूदियों को लगता था कि वे इस तरह की कसम तोड़ सकते हैं और इसके लिए उन्हें कोई सज़ा नहीं मिलेगी।
महाराजा: यानी यहोवा परमेश्वर।—मला 1:14.
इससे बढ़कर जो कुछ कहा जाता है वह शैतान से होता है: अगर एक व्यक्ति सीधे-सीधे “हाँ” या “न” कहने के बजाय अपनी बात पर यकीन दिलाने के लिए बार-बार कसम खाता है तो इससे पता चलता है कि वह भरोसे के लायक नहीं है। ऐसे लोग शैतान की फितरत ज़ाहिर करते हैं जो “झूठ का पिता” है।—यूह 8:44.
तुम सुन चुके हो कि कहा गया था: मत 5:21 का अध्ययन नोट देखें।
आँख के बदले आँख और दाँत के बदले दाँत: यीशु के दिनों में कानून के इस नियम (निर्ग 21:24; लैव 24:20) का गलत मतलब निकालकर लोग बदला लेने को जायज़ ठहराते थे। लेकिन यह नियम सही तरह से तभी लागू होता जब किसी मामले की पहले सुनवाई होती और ठहराए गए न्यायी तय करते कि गुनहगार को कौन-सी सज़ा दी जाए।—व्य 19:15-21.
तुम्हारे दाएँ गाल पर थप्पड़ मारे: यहाँ यूनानी क्रिया रापाइज़ो का अनुवाद “थप्पड़ मारे” किया गया है। यह थप्पड़ शायद किसी को चोट पहुँचाने के लिए नहीं बल्कि उसका गुस्सा भड़काने या अपमान करने के लिए मारा जाता था। इसलिए यीशु अपने चेलों को सलाह दे रहा था कि जब कोई उनका अपमान करे तो वे उसे बरदाश्त कर लें और बदला न लें।
उसे अपना ओढ़ना भी दे देना: यहूदी आदमी अकसर दो कपड़े पहनते थे, एक कुरता (यूनानी में खीटॉन, जो घुटनों या टखनों तक लंबा होता था और जिसके बाज़ू या तो लंबे होते थे या आधे) और दूसरा ओढ़ना (यूनानी में ईमाटियोन, एक ढीला-ढाला चोगा या एक आयताकार कपड़ा)। एक यहूदी उधार लेने के लिए अपने कपड़े गिरवी रख सकता था। (अय 22:6) यीशु कह रहा था कि उसके चेलों को शांति बनाए रखने के लिए न सिर्फ अपना कुरता बल्कि अपना कीमती ओढ़ना भी दे देना चाहिए।
तुमसे कहे कि मेरा बोझ उठाकर . . . चल: यहाँ जबरन सेवा की बात की गयी है जो रोमी अधिकारी किसी भी नागरिक से करवा सकते थे। जैसे, कोई सरकारी काम जल्दी पूरा करवाने के लिए वे लोगों या जानवरों को ज़बरदस्ती उस काम में लगा सकते थे या लोगों की कोई भी चीज़ ले सकते थे। कुरेने के रहनेवाले शमौन के साथ ऐसा ही हुआ। रोमी सैनिकों ने उसे “जबरन सेवा के लिए पकड़ा” कि वह यीशु का यातना का काठ उठाकर ले चले।—मत 27:32.
मील: मुमकिन है कि यहाँ रोमी मील की बात की गयी है जो 1,479.5 मी. (4,854 फुट) के बराबर था।—शब्दावली और अति. ख14 देखें।
उधार माँगे: यानी बिना ब्याज के उधार। कानून में कहा गया था कि जब इसराएली अपने किसी साथी यहूदी को उधार दें तो उन्हें ब्याज नहीं लेना चाहिए। (निर्ग 22:25) इसमें यह भी बढ़ावा दिया गया था कि वे ज़रूरतमंदों को दिल खोलकर उधार दें।—व्य 15:7, 8.
तुम सुन चुके हो कि कहा गया था: मत 5:21 का अध्ययन नोट देखें।
तुम अपने पड़ोसी से प्यार करना: मूसा के कानून में इसराएलियों को हिदायत दी गयी थी कि वे अपने पड़ोसी से प्यार करें। (लैव 19:18) हालाँकि शब्द “पड़ोसी” का मतलब संगी-साथी है, लेकिन कुछ यहूदियों ने कहा कि पड़ोसी का मतलब सिर्फ यहूदी साथी हैं, खासकर वे जो ज़बानी तौर पर सिखायी गयी परंपराएँ मानते हैं। वे बाकी लोगों को दुश्मन मानते थे।
दुश्मन से नफरत: मूसा के कानून में ऐसा कोई नियम नहीं था। कुछ यहूदी रब्बी मानते थे कि अपने पड़ोसी से प्यार करने का मतलब है, दुश्मनों से नफरत करना।
अपने दुश्मनों से प्यार करते रहो: यीशु की यह सलाह इब्रानी शास्त्र में दिए सिद्धांतों से मेल खाती है।—निर्ग 23:4, 5; अय 31:29; नीत 24:17, 18; 25:21.
कर-वसूलनेवाले: कई यहूदी, रोमी अधिकारियों के लिए कर वसूलते थे। इन यहूदियों से नफरत की जाती थी क्योंकि वे ऐसी विदेशी सरकार का साथ दे रहे थे जिसे लोग पसंद नहीं करते थे। इसके अलावा, ये यहूदी कर के लिए तय की गयी रकम से ज़्यादा वसूल करते थे। यहूदी लोग कर-वसूलनेवालों को पापी और वेश्याओं के जैसा तुच्छ मानते थे और उनसे दूर ही रहते थे।—मत 11:19; 21:32.
भाइयों: यानी इसराएल राष्ट्र के लोग। वे इस मायने में भाई थे कि वे सब याकूब के वंशज थे और एक ही परमेश्वर यहोवा की उपासना करते थे।—निर्ग 2:11; भज 133:1.
नमस्कार करो: दूसरों को नमस्कार करने में उनकी खैरियत और खुशहाली की कामना करना शामिल था।
गैर-यहूदी: इनका यहोवा परमेश्वर से कोई रिश्ता नहीं था। यहूदी मानते थे कि ये भक्तिहीन और अशुद्ध हैं जिनसे दूर रहना चाहिए।
परिपूर्ण: इसके यूनानी शब्द का मतलब “पूरा” या “प्रौढ़” या किसी अधिकारी के ठहराए स्तरों के मुताबिक “बेदाग” हो सकता है। सिर्फ यहोवा हर मायने में परिपूर्ण है। इसलिए जब यह शब्द इंसानों के लिए इस्तेमाल होता है तो इसका मतलब है कि वे कुछ मायनों में परिपूर्ण हैं। इस आयत में “परिपूर्ण” होने का मतलब है कि एक मसीही को यहोवा और इंसानों से पूरे दिल से प्यार करना चाहिए। एक पापी इंसान भी ऐसा कर सकता है।
तसवीर और ऑडियो-वीडियो
1. गन्नेसरत का मैदान। यह इलाका तिकोना था और इसकी एक तरफ की लंबाई करीब 5 कि.मी. (3 मील) थी और दूसरी तरफ की 2.5 कि.मी. (1.5 मील)। यह काफी उपजाऊ इलाका था। इसी इलाके में, झील के किनारे चलते-चलते यीशु ने चार मछुवारों यानी पतरस, अन्द्रियास, याकूब और यूहन्ना को उसके साथ प्रचार करने के लिए बुलाया।—मत 4:18-22.
2. यहूदियों की मान्यता है कि यहीं पर यीशु ने पहाड़ी उपदेश दिया था।—मत 5:1; लूक 6:17, 20.
3. कफरनहूम। यीशु इसी शहर में रहता था और यहीं या इसी के आस-पास वह मत्ती से मिला था।—मत 4:13; 9:1, 9.
आज दुनिया के दूसरे सागरों के मुकाबले मृत सागर (लवण सागर) का पानी नौ गुना ज़्यादा खारा है। (उत 14:3) मृत सागर का पानी जब भाप बनकर उड़ जाता था तो काफी तादाद में नमक रह जाता था। इसराएली यही नमक खाते थे। यह नमक ज़्यादा अच्छा नहीं माना जाता था क्योंकि इसमें दूसरे खनिज मिले होते थे। इसराएली, फीनीके के लोगों से भी नमक खरीदते होंगे जिनके बारे में कहा जाता है कि उन्हें भूमध्य सागर से नमक मिलता था। बाइबल बताती है कि नमक खाने का स्वाद बढ़ाता है। (अय 6:6) यीशु रोज़मर्रा के कामों में इस्तेमाल होनेवाली चीज़ों की मिसाल देने में कुशल था, इसलिए उसने कुछ ज़रूरी सीख देने के लिए नमक की मिसाल दी। जैसे, पहाड़ी उपदेश में उसने चेलों से कहा, “तुम पृथ्वी के नमक हो।” ऐसा कहकर वह उन्हें समझा रहा था कि वे दूसरों की मदद कर सकते हैं ताकि परमेश्वर के साथ उनका रिश्ता खराब न हो और उनकी ज़िंदगी नैतिक तौर पर बरबाद न हो।
आम तौर पर घरों और दूसरी इमारतों में मिट्टी के दीपक जलाए जाते थे और इनमें जैतून का तेल डाला जाता था। दीपक अकसर मिट्टी, लकड़ी या धातु से बने दीवट पर रखे जाते थे ताकि पूरे घर में उजाला हो। इन्हें दीवार में बने आले में या ताक पर भी रखा जाता था या फिर डोरी के सहारे छत में लटका दिया जाता था।
इफिसुस और इटली में पहली सदी की कुछ चीज़ों के अवशेष मिले हैं जिनके आधार पर कलाकार ने दीवट का यह चित्र (1) बनाया है। मुमकिन है कि इस तरह की दीवट अमीर लोगों के घरों में इस्तेमाल की जाती थी। गरीबों के घरों में दीपक छत से लटका दिया जाता था या दीवार में बने आले में (2) या फिर मिट्टी या लकड़ी की बनी दीवट पर रखा जाता था।
हिन्नोम घाटी को यूनानी में गेहन्ना कहा जाता था। यह प्राचीन यरूशलेम के दक्षिण-पश्चिम में एक तंग घाटी है। यीशु के दिनों में यह घाटी कूड़ा-करकट जलाने की जगह थी। इसलिए हमेशा का विनाश बताने के लिए “गेहन्ना” शब्द एकदम सही था।
हिन्नोम घाटी (1) को मसीही यूनानी शास्त्र में गेहन्ना कहा गया है। यहाँ वह पहाड़ भी दिखाया गया है (2) जहाँ पहली सदी में यहूदियों का मंदिर था। मगर आज वहाँ एक जानी-मानी इमारत है, मुसलमानों का मकबरा जिसे ‘डोम ऑफ द रॉक’ कहा जाता है।—अतिरिक्त लेख ख-12 में नक्शा देखें।
अरामी भाषा में लिखा यह तलाकनामा ईसवी सन् 71 या 72 का है। यह तलाकनामा यहूदिया के रेगिस्तान की एक सूखी नदी यानी वादी मुरब्बात के उत्तर में पाया गया था। इस तलाकनामे में लिखा है कि यहूदियों के विद्रोह के छठे साल में मसाडा के रहनेवाले यूसुफ ने, जो नाकसान का बेटा था, अपनी पत्नी मिरियम को तलाक दे दिया था जो योनातान की बेटी थी।