मरकुस के मुताबिक खुशखबरी 12:1-44

12  फिर वह ये मिसालें देकर उनसे बात करने लगा: “किसी आदमी ने अंगूरों का बाग लगाया+ और उसके चारों तरफ एक बाड़ा बाँधा। उसने अंगूर रौंदने का हौद खोदा और एक मीनार खड़ी की।+ फिर उसे बागबानों को ठेके पर देकर परदेस चला गया।+  कटाई का मौसम आने पर उसने एक दास को बागबानों के पास भेजा ताकि वह अंगूरों की फसल में से उसका हिस्सा ले आए।  मगर बागबानों ने उस दास को पकड़ लिया, उसे पीटा और खाली हाथ भेज दिया।  फिर बाग के मालिक ने उनके पास एक और दास को भेजा। बागबानों ने उसका सिर फोड़ दिया और उसे बेइज़्ज़त किया।+  फिर मालिक ने एक और दास को भेजा और उन्होंने उसे मार डाला। मालिक ने और भी बहुतों को भेजा, मगर कुछ को उन्होंने पीटा तो कुछ को मार डाला।  अब मालिक के पास एक ही रह गया, उसका प्यारा बेटा।+ उसने आखिर में यह सोचकर उसे बागबानों के पास भेजा, ‘वे मेरे बेटे की ज़रूर इज़्ज़त करेंगे।’  मगर बागबान आपस में कहने लगे, ‘यह तो वारिस है।+ चलो इसे मार डालें, तब इसकी विरासत हमारी हो जाएगी।’  उन्होंने उसे पकड़ लिया और मार डाला और बाग के बाहर फेंक दिया।+  अब बाग का मालिक क्या करेगा? वह आकर उन बागबानों को मार डालेगा और अंगूरों का बाग दूसरों को ठेके पर दे देगा।+ 10  क्या तुमने शास्त्र में यह बात कभी नहीं पढ़ी, ‘जिस पत्थर को राजमिस्त्रियों ने ठुकरा दिया, वही कोने का मुख्य पत्थर बन गया है’?+ 11  क्या तुमने यह भी नहीं पढ़ा, ‘यह यहोवा की तरफ से हुआ है और हमारी नज़र में लाजवाब है’?”+ 12  यह सुनकर उसके दुश्‍मनों ने उसे पकड़ना* चाहा क्योंकि वे समझ गए कि उसने यह मिसाल उन्हीं को ध्यान में रखकर दी है। लेकिन वे भीड़ से डरते थे, इसलिए वे उसे छोड़कर चले गए।+ 13  इसके बाद उन्होंने कुछ फरीसियों और हेरोदेस के गुट के लोगों को यीशु के पास भेजा ताकि वे उसकी बातों में उसे पकड़ सकें।+ 14  वे उसके पास आए और कहने लगे, “गुरु, हम जानते हैं कि तू सच्चा है और इंसानों को खुश करने की कोशिश नहीं करता, क्योंकि तू किसी की सूरत देखकर बात नहीं करता बल्कि सच्चाई के मुताबिक परमेश्‍वर की राह सिखाता है। हमें बता कि सम्राट को कर देना सही* है या नहीं? 15  हमें कर देना चाहिए या नहीं?” यीशु उनका कपट भाँप गया और उसने कहा, “तुम मेरी परीक्षा क्यों लेते हो? एक दीनार लाकर मुझे दिखाओ।” 16  वे एक दीनार लाए। उसने कहा, “इस पर किसकी सूरत और किसके नाम की छाप है?” उन्होंने कहा, “सम्राट की।”+ 17  तब यीशु ने कहा, “जो सम्राट का है वह सम्राट को चुकाओ,+ मगर जो परमेश्‍वर का है वह परमेश्‍वर को।”+ वे उसका जवाब सुनकर दंग रह गए। 18  अब सदूकी उसके पास आए, जो कहते हैं कि मरे हुओं के फिर से ज़िंदा होने की शिक्षा सच नहीं है।+ उन्होंने उससे पूछा,+ 19  “गुरु, मूसा ने हमारे लिए लिखा है कि अगर कोई आदमी बेऔलाद मर जाए और अपनी पत्नी छोड़ जाए, तो उसके भाई को चाहिए कि वह अपने मरे हुए भाई की पत्नी से शादी कर ले और अपने भाई के लिए औलाद पैदा करे।+ 20  सात भाई थे। पहले ने शादी की मगर बेऔलाद मर गया। 21  तब दूसरे भाई ने उसकी पत्नी से शादी कर ली, मगर वह भी बेऔलाद मर गया। तीसरे के साथ भी ऐसा ही हुआ। 22  सातों भाई बेऔलाद मर गए। आखिर में वह औरत भी मर गयी। 23  अब बता, जब मरे हुए ज़िंदा किए जाएँगे, तब वह उन सातों में से किसकी पत्नी होगी? क्योंकि सातों उसे अपनी पत्नी बना चुके थे।” 24  यीशु ने उनसे कहा, “तुम बड़ी गलतफहमी में हो, क्योंकि तुम न तो शास्त्र को जानते हो, न ही परमेश्‍वर की शक्‍ति को।+ 25  क्योंकि जब मरे हुए ज़िंदा किए जाएँगे तो उनमें से न तो कोई आदमी शादी करेगा न कोई औरत, मगर वे स्वर्गदूतों की तरह होंगे।+ 26  मरे हुओं के ज़िंदा होने के बारे में, क्या तुमने मूसा की किताब में नहीं पढ़ा कि परमेश्‍वर ने झाड़ी के पास क्या कहा था, ‘मैं अब्राहम का परमेश्‍वर, इसहाक का परमेश्‍वर और याकूब का परमेश्‍वर हूँ’?+ 27  वह मरे हुओं का नहीं बल्कि जीवितों का परमेश्‍वर है। तुम बड़ी गलतफहमी में हो।”+ 28  वहाँ आए शास्त्रियों में से एक उनकी बहस सुन रहा था। उसने यह देखकर कि यीशु ने उन्हें क्या ही बेहतरीन ढंग से जवाब दिया है, उससे पूछा, “सब आज्ञाओं में सबसे पहली* आज्ञा कौन-सी है?”+ 29  यीशु ने जवाब दिया, “सबसे पहली यह है: ‘हे इसराएल सुन, हमारा परमेश्‍वर यहोवा एक ही यहोवा है। 30  और तू अपने परमेश्‍वर यहोवा से अपने पूरे दिल, अपनी पूरी जान, अपने पूरे दिमाग और अपनी पूरी ताकत से प्यार करना।’+ 31  और दूसरी यह है: ‘तू अपने पड़ोसी से वैसे ही प्यार करना जैसे तू खुद से करता है।’+ और कोई आज्ञा इनसे बढ़कर नहीं।” 32  तब उस शास्त्री ने उससे कहा, “गुरु, तूने बिलकुल सही कहा। तेरी बात सच्चाई के मुताबिक है, ‘परमेश्‍वर एक ही है, उसके सिवा और कोई परमेश्‍वर नहीं।’+ 33  और इंसान को अपने पूरे दिल से, पूरी समझ के साथ और पूरी ताकत से उससे प्यार करना चाहिए और अपने पड़ोसी से वैसे ही प्यार करना चाहिए जैसे वह खुद से करता है। यह सारी होम-बलियों और बलिदानों से कहीं बढ़कर है।”+ 34  यीशु ने यह जानकर कि उस शास्त्री ने बड़ी अक्लमंदी से जवाब दिया है, उससे कहा, “तू परमेश्‍वर के राज से ज़्यादा दूर नहीं।” इसके बाद किसी ने यीशु से और सवाल पूछने की हिम्मत नहीं की।+ 35  लेकिन मंदिर में सिखाते वक्‍त यीशु ने उनसे कहा, “शास्त्री क्यों कहते हैं कि मसीह, दाविद का सिर्फ एक वंशज है?+ 36  दाविद ने पवित्र शक्‍ति से उभारे जाने पर+ खुद कहा था, ‘यहोवा ने मेरे प्रभु से कहा, “तू तब तक मेरे दाएँ हाथ बैठ, जब तक कि मैं तेरे दुश्‍मनों को तेरे पैरों तले न कर दूँ।”’+ 37  जब दाविद खुद मसीह को प्रभु कहता है, तो फिर मसीह, दाविद का वंशज कैसे हो सकता है?”+ लोगों की भीड़ खुशी से उसकी सुन रही थी। 38  फिर उसने लोगों को यह सिखाया, “शास्त्रियों से खबरदार रहो, जिन्हें लंबे-लंबे चोगे पहनकर घूमना और बाज़ारों में लोगों से नमस्कार सुनना अच्छा लगता है।+ 39  उन्हें सभा-घरों में सबसे आगे की जगहों पर बैठना और शाम की दावतों में सबसे खास जगह लेना पसंद है।+ 40  वे विधवाओं के घर* हड़प जाते हैं और दिखावे के लिए लंबी-लंबी प्रार्थनाएँ करते हैं। इन्हें दूसरों के मुकाबले और भी कड़ी सज़ा मिलेगी।”* 41  फिर यीशु दान-पात्रों के सामने बैठ गया+ और देखने लगा कि लोगों की भीड़ कैसे दान-पात्रों में पैसे डाल रही है। वहाँ बहुत-से अमीर लोग ढेरों सिक्के डाल रहे थे।+ 42  फिर एक गरीब विधवा आयी और उसने दो पैसे डाले, जिनकी कीमत न के बराबर थी।+ 43  तब यीशु ने अपने चेलों को पास बुलाया और कहा, “मैं तुमसे सच कहता हूँ, यहाँ जितने लोग दान-पात्रों में पैसे डाल रहे हैं, उनमें से इस गरीब विधवा ने सबसे ज़्यादा डाला है,+ 44  क्योंकि वे सब अपनी बहुतायत में से डाल रहे हैं, मगर इसने अपनी तंगी में से* डाला है, अपने गुज़ारे के लिए जो कुछ उसके पास था उसने सब दे दिया।”+

कई फुटनोट

या “गिरफ्तार करना।”
या “कानून के मुताबिक।”
या “सबसे बड़ी।”
या “की जायदाद।”
या “भारी दंड मिलेगा।”
या “गरीब होने के बावजूद।”

अध्ययन नोट

मिसालें: मत 13:3 का अध्ययन नोट देखें।

मीनार: मत 21:33 का अध्ययन नोट देखें।

ठेके पर देकर: मत 21:33 का अध्ययन नोट देखें।

शास्त्र में यह बात: यहाँ इस्तेमाल हुआ यूनानी शब्द ग्राफी एकवचन में है। इसका मतलब है, शास्त्र का एक भाग यानी भज 118:22, 23.

कोने का मुख्य पत्थर: मत 21:42 का अध्ययन नोट देखें।

यहोवा: यहाँ भज 118:22, 23 की बातें लिखी हैं। मूल इब्रानी पाठ में इन आयतों में परमेश्‍वर के नाम के लिए चार इब्रानी व्यंजन (हिंदी में य-ह-व-ह) इस्तेमाल हुए हैं।​—अति. ग देखें।

हेरोदेस के गुट के लोगों: शब्दावली में “हेरोदेस के गुट के लोग” देखें।

सम्राट: मत 22:17 का अध्ययन नोट देखें।

कर: मत 22:17 का अध्ययन नोट देखें।

दीनार: चाँदी का यही रोमी सिक्का, जिसके एक तरफ कैसर का नाम होता था, यहूदियों से सालाना “कर” के तौर पर लिया जाता था। (मर 12:14) यीशु के दिनों में खेतों में काम करनेवाले मज़दूरों को आम तौर पर एक दिन 12 घंटे काम करने के लिए एक दीनार दिया जाता था। मसीही यूनानी शास्त्र में अकसर चीज़ों की कीमत बताने के लिए दीनार इस्तेमाल किया गया है। (मत 20:2; मर 6:37; 14:5; प्रक 6:6) इसराएल में कई तरह के ताँबे और चाँदी के सिक्के होते थे। चाँदी के ऐसे सिक्के भी होते थे जो सोर में ढाले गए थे और मंदिर के कर के लिए दिए जाते थे। मगर ज़ाहिर है कि लोग रोम को कर के तौर पर चाँदी का वह दीनार देते थे जिस पर कैसर की सूरत बनी होती थी।​—शब्दावली और अति. ख14 देखें।

सूरत और . . . नाम की छाप: मत 22:20 का अध्ययन नोट देखें।

जो सम्राट का है वह सम्राट को: यही एक ब्यौरा है (मत 22:21; मर 12:17; लूक 20:25) जिसमें यीशु ने रोमी सम्राट का ज़िक्र किया। ‘जो सम्राट का है उसे चुकाने’ का मतलब है, सरकार के ज़रिए दी गयी सेवाओं की कीमत चुकाना, सरकारी अधिकारियों का आदर करना और सिर्फ ऐसे मामलों में उनके अधीन रहना जिनमें उनकी आज्ञा यहोवा की आज्ञा के खिलाफ न हो।​—रोम 13:1-7.

जो परमेश्‍वर का है वह परमेश्‍वर को: मत 22:21 का अध्ययन नोट देखें।

सदूकी: मरकुस की खुशखबरी की किताब में सिर्फ इस आयत में सदूकियों का ज़िक्र आता है। (शब्दावली देखें।) मुमकिन है कि यह नाम (यूनानी में सद्दाउकायोस) सादोक (सेप्टुआजेंट में अकसर सद्दाउक लिखा गया है) से जुड़ा है, जिसे सुलैमान के दिनों में महायाजक बनाया गया था। (1रा 2:35) सबूतों से पता चलता है कि उसके वंशजों ने कई सदियों तक याजक के तौर पर सेवा की।

मरे हुओं के फिर से ज़िंदा होने की शिक्षा: यूनानी शब्द आनास्तासिस का शाब्दिक मतलब है, “उठाना; खड़े होना।” यह शब्द मसीही यूनानी शास्त्र में मरे हुओं के फिर से ज़िंदा होने के सिलसिले में करीब 40 बार इस्तेमाल हुआ है। (मत 22:23, 31; प्रेष 4:2; 24:15; 1कुर 15:12, 13) यश 26:19 में जिस इब्रानी क्रिया का मतलब है “जीवित होना,” उसके लिए सेप्टुआजेंट में आनास्तासिस की यूनानी क्रिया इस्तेमाल हुई है। (यश 26:19 में लिखा है, “तेरे मरे हुए लोग जीवित होंगे,” हिंदी​—ओ.वी.)​—शब्दावली में “मरे हुओं में से ज़िंदा करना” देखें।

दूसरे भाई ने उसकी पत्नी से शादी कर ली: प्राचीन समय के इब्री लोगों में यह रिवाज़ था कि अगर एक आदमी के कोई बेटा न हो और उसकी मौत हो जाए, तो उसका भाई उसकी विधवा से शादी करके उसका वंश चलाए। (उत 38:8) यह रिवाज़ बाद में मूसा के कानून में शामिल किया गया और इसे देवर-भाभी विवाह कहा गया। (व्य 25:5, 6) यहाँ लिखी सदूकियों की बातों से पता चलता है कि यीशु के दिनों में भी देवर-भाभी विवाह का रिवाज़ था। हालाँकि कानून में इस बात की इजाज़त थी कि कोई रिश्‍तेदार देवर-भाभी विवाह का रिवाज़ मानने से इनकार कर सकता है, लेकिन उसमें यह भी कहा गया था कि जो “अपने भाई का वंश चलाने” से इनकार करता है वह खुद का अपमान करता है।​—व्य 25:7-10; रूत 4:7, 8.

शास्त्र: मत 22:29 का अध्ययन नोट देखें।

मूसा की किताब: सदूकी मानते थे कि सिर्फ मूसा की किताबें परमेश्‍वर की प्रेरणा से लिखी हुई हैं। उन्होंने दोबारा ज़िंदा किए जाने के बारे में यीशु की शिक्षा ठुकरा दी, क्योंकि शायद उन्हें लगा कि पंचग्रंथ (यानी बाइबल की पहली पाँच किताबों) में इस शिक्षा का कोई आधार नहीं है। यीशु चाहता तो अपनी बात साबित करने के लिए कई आयतें बता सकता था, जैसे यश 26:19, दान 12:13 और हो 13:14. लेकिन वह जानता था कि सदूकी किन किताबों को मानते हैं, इसलिए उसने वे शब्द दोहराए जो यहोवा ने मूसा से कहे थे।​—निर्ग 3:2, 6.

कि परमेश्‍वर ने . . . क्या कहा था: यीशु यहाँ उस बातचीत के बारे में बता रहा था जो मूसा और यहोवा के बीच करीब ईसा पूर्व 1514 में हुई थी। (निर्ग 3:2, 6) उस समय अब्राहम को मरे 329 साल, इसहाक को 224 साल और याकूब को मरे हुए 197 साल हो चुके थे। फिर भी यहोवा ने यह नहीं कहा कि ‘मैं उनका परमेश्‍वर था’ बल्कि यह कहा कि ‘मैं उनका परमेश्‍वर हूँ।’​—मर 12:27 का अध्ययन नोट देखें।

बल्कि जीवितों का: इसके मिलते-जुलते ब्यौरे लूक 20:38 में यीशु ने यह भी कहा: “इसलिए कि वे सब उसकी नज़र में ज़िंदा हैं।” बाइबल बताती है कि जो लोग परमेश्‍वर से दूर हैं वे उसकी नज़र में मरे हुए हैं। (इफ 2:1; 1ती 5:6) उसी तरह, यह कहा जा सकता है कि यहोवा की मंज़ूरी पानेवाले सेवकों की भले ही मौत हो जाए, मगर उसकी नज़र में वे ज़िंदा रहते हैं। ऐसा इसलिए कहा जा सकता है क्योंकि उन्हें दोबारा ज़िंदा करने का परमेश्‍वर का मकसद ज़रूर पूरा होगा।​—रोम 4:16, 17.

यहोवा . . . यहोवा: यहाँ व्य 6:4 की बात लिखी है। मूल इब्रानी पाठ में इस आयत में परमेश्‍वर के नाम के लिए चार इब्रानी व्यंजन (हिंदी में य-ह-व-ह) दो बार इस्तेमाल हुए हैं।​—अति. ग देखें।

यहोवा: यहाँ व्य 6:5 की बात लिखी है। मूल इब्रानी पाठ में इस आयत में परमेश्‍वर के नाम के लिए चार इब्रानी व्यंजन (हिंदी में य-ह-व-ह) इस्तेमाल हुए हैं।​—अति. ग देखें।

दिल: लाक्षणिक भाषा में “दिल” आम तौर पर अंदरूनी इंसान को दर्शाता है, जिसमें उसकी भावनाएँ, उसका रवैया, उसके इरादे और उसके दिमाग की सोच भी शामिल है। लेकिन जब इसका ज़िक्र “जान” और “दिमाग” के साथ होता है तो ज़ाहिर है कि इसका एक खास मतलब होता है और वह है, एक इंसान की भावनाएँ और इच्छाएँ। यहाँ इस्तेमाल हुए चार शब्दों (दिल, जान, दिमाग और ताकत) के मतलब पूरी तरह अलग नहीं हैं बल्कि उनके कुछ मतलब मिलते-जुलते हैं। इन चारों शब्दों का एक-साथ इस्तेमाल करके इस बात पर ज़ोर दिया गया है कि एक इंसान को दिलो-जान से, पूरी तरह परमेश्‍वर से प्यार करना चाहिए।​—इसी आयत में दिमाग और ताकत पर अध्ययन नोट देखें।

जान: मत 22:37 का अध्ययन नोट देखें।

दिमाग: अगर एक इंसान परमेश्‍वर को जानना और उसके लिए अपना प्यार बढ़ाना चाहता है तो उसे अपनी दिमागी काबिलीयतें इस्तेमाल करनी चाहिए जिनमें उसकी सोच भी शामिल है। (यूह 17:3, फु.; रोम 12:1) यहाँ व्य 6:5 की बात लिखी है और मूल इब्रानी पाठ में इस आयत में तीन शब्द इस्तेमाल हुए हैं, ‘दिल, जान और ताकत।’ लेकिन जब मरकुस ने यूनानी में अपना ब्यौरा लिखा, तो उसने चार पहलू बताए: दिल, जान, दिमाग और ताकत। ऐसा करने की कई वजह हो सकती हैं। जब इब्रानी में ‘दिल, जान और ताकत’ शब्द एक-साथ इस्तेमाल किए जाते हैं तो उनके मतलब का दायरा काफी बड़ा होता है। इस पूरे दायरे को समझाने के लिए शायद इस आयत में “दिमाग” का यूनानी शब्द जोड़ा गया है। प्राचीन इब्रानी भाषा में “दिमाग” के लिए अलग-से कोई शब्द नहीं था, लेकिन इसका भाव अकसर “दिल” (या “मन”) के इब्रानी शब्द में शामिल होता था। “दिल” के इब्रानी शब्द का लाक्षणिक मतलब है, अंदरूनी इंसान जिसमें उसकी भावनाएँ, उसका रवैया, उसके इरादे, यहाँ तक कि उसके दिमाग की सोच भी शामिल है। (व्य 29:4; भज 26:2; 64:6; इसी आयत में दिल पर अध्ययन नोट देखें।) इसलिए कई जगहों पर इब्रानी पाठ में जहाँ शब्द “दिल” और “मन” का मतलब दिमागी काबिलीयत है, वहाँ यूनानी सेप्टुआजेंट में “दिमाग” या “सोच” का यूनानी शब्द इस्तेमाल हुआ है। (उत 8:21; 17:17; नीत 2:10; यश 14:13) मरकुस ने दिमाग का यूनानी शब्द इस्तेमाल किया, इससे यह भी पता चलता है कि शायद “ताकत” के इब्रानी शब्द और “दिमाग” के यूनानी शब्द के कुछ मतलब मिलते-जुलते हैं। (मत 22:37 से तुलना करें, जहाँ “ताकत” के बजाय “दिमाग” शब्द लिखा है।) शायद इसी वजह से शास्त्री ने भी यीशु का जवाब सुनकर जो कहा उसमें उसने “समझ” शब्द इस्तेमाल किया। (मर 12:33) और शायद यही वजह थी कि खुशखबरी की किताबों के लेखकों ने व्य 6:5 की बात लिखते वक्‍त एक-जैसे शब्द इस्तेमाल नहीं किए।​—इसी आयत में ताकत पर अध्ययन नोट और मत 22:37; लूक 10:27 के अध्ययन नोट देखें।

ताकत: जैसे दिमाग पर अध्ययन नोट में बताया गया है, यहाँ व्य 6:5 की बात लिखी है और मूल इब्रानी पाठ में इस आयत में तीन शब्द इस्तेमाल हुए हैं: ‘दिल, जान और ताकत।’ जिस इब्रानी शब्द का अनुवाद “ताकत [या “दमखम,” फु.]” किया गया है, उसमें शारीरिक और दिमागी ताकत दोनों शामिल हो सकती हैं। यह शायद एक और वजह है कि मसीही यूनानी शास्त्र में जब व्य 6:5 की बात लिखी गयी, तो क्यों “दिमाग” शब्द शामिल किया गया। और शायद इसी वजह से इसके मिलते-जुलते ब्यौरे मत 22:37 में “दिमाग” शब्द इस्तेमाल हुआ है, “ताकत” नहीं। वजह चाहे जो भी हो, (यूनानी में लिखे लूका के ब्यौरे [10:27] के मुताबिक) जब एक शास्त्री ने इब्रानी शास्त्र की यही आयत बतायी तो उसने चार पहलू बताए: दिल, जान, ताकत और दिमाग। ज़ाहिर है कि यीशु के दिनों में माना जाता था कि व्य 6:5 के तीन इब्रानी शब्दों में यूनानी में बताए चारों पहलू शामिल हैं।

पड़ोसी: मत 22:39 का अध्ययन नोट देखें।

सारी होम-बलियों: यूनानी शब्द होलोकाउतोमा मसीही यूनानी शास्त्र में सिर्फ तीन बार आया है, यहाँ और इब्र 10:6, 8 में। (होलोकाउतोमा दो शब्दों से निकला है, होलोस जिसका मतलब है, “सारी” और कायो जिसका मतलब है, “होम करना।”) सेप्टुआजेंट में यह शब्द ऐसे बलिदान के इब्रानी शब्द के लिए इस्तेमाल हुआ है, जिसे आग में पूरी तरह जला दिया जाता था। इस तरह पूरा-का-पूरा जानवर परमेश्‍वर को अर्पित किया जाता था, उसका कोई भी हिस्सा बलि देनेवाले को खाने के लिए नहीं दिया जाता था। सेप्टुआजेंट में यही यूनानी शब्द 1शम 15:22 और हो 6:6 में आया है और शायद इन्हीं आयतों को ध्यान में रखकर शास्त्री ने यीशु से बात की थी। (मर 12:32) यीशु इस मायने में “होम-बलि” था कि उसने अपने आपको पूरी तरह अर्पित कर दिया।

यहोवा: यहाँ भज 110:1 की बात लिखी है। मूल इब्रानी पाठ में इस आयत में परमेश्‍वर के नाम के लिए चार इब्रानी व्यंजन (हिंदी में य-ह-व-ह) इस्तेमाल हुए हैं।​—अति. ग देखें।

बाज़ारों: मत 23:7 का अध्ययन नोट देखें।

सबसे आगे की जगहों: मत 23:6 का अध्ययन नोट देखें।

दान-पात्रों: प्राचीन यहूदी लेखों में बताया गया है कि इन दान-पात्रों का आकार तुरही या नरसिंगे जैसा था। ज़ाहिर है कि इनका मुँह ऊपर की तरफ होता था और छोटा होता था। लोग इनमें तरह-तरह के चढ़ावों के लिए दान डालते थे। दान-पात्रों के लिए यहाँ इस्तेमाल हुआ यूनानी शब्द यूह 8:20 में भी आया है, जहाँ दान-पात्रों की जगह के बारे में बताया गया है। मुमकिन है कि यह जगह ‘औरतों के आँगन’ में थी। (मत 27:6 का अध्ययन नोट और अति. ख11 देखें।) रब्बियों के लेखों के मुताबिक उस आँगन में दीवारों के पास 13 दान-पात्र रखे रहते थे। माना जाता है कि मंदिर में खज़ाने का गोदाम भी था जिसमें इन दान-पात्रों का पैसा लाकर रखा जाता था।

पैसे: शा., “ताँबा” यानी ताँबे के पैसे या सिक्के। इसके यूनानी शब्द का इस्तेमाल आम तौर पर हर तरह के पैसों के लिए भी हुआ है।​—अति. ख14 देखें।

दो पैसे: शा., “दो लेप्टा।” शब्द लेप्टा यूनानी शब्द लेप्टौन का बहुवचन है, जिसका मतलब है एक छोटी और पतली चीज़। लेप्टौन एक ऐसा सिक्का था जो एक दीनार का 1/128वाँ हिस्सा होता था। ज़ाहिर है कि इसराएल में यह ताँबे या काँसे का सबसे छोटा सिक्का होता था।​—शब्दावली में “लेप्टौन” और अति. ख14 देखें।

जिनकी कीमत न के बराबर थी: शा., “जो एक कौद्रान के बराबर थे।” यूनानी शब्द कोद्रानटेस (लातीनी शब्द कौद्रान्स से निकला) का मतलब है, ताँबे या काँसे का रोमी सिक्का जो एक दीनार का 1/64वाँ हिस्सा होता था। यहूदी जो सिक्के इस्तेमाल करते थे, उनकी कीमत बताने के लिए मरकुस ने यहाँ रोमी मुद्रा का ज़िक्र किया।​—अति. ख14 देखें।

तसवीर और ऑडियो-वीडियो

अंगूर रौंदने का हौद
अंगूर रौंदने का हौद

इसराएल में अगस्त और सितंबर में अंगूर की फसल काटी जाती थी। लेकिन कटाई कब की जाती थी यह इस बात पर निर्भर करता था कि किस किस्म के अंगूर हैं और इलाके का मौसम कैसा है। अंगूरों को आम तौर पर चूने-पत्थर से बने कुंड या चट्टानी ज़मीन में बनाए हौद में रखा जाता था। आम तौर पर आदमी नंगे पैरों से अंगूर रौंदते थे और ऐसा करते वक्‍त वे गीत भी गाते थे।​—यश 16:10; यिर्म 25:30; 48:33.

1. ताज़े अंगूर

2. अंगूर रौंदने का हौद

3. नाली

4. रस जमा करने की हौदी

5. दाख-मदिरा रखनेवाले मिट्टी के घड़े

सम्राट तिबिरियुस
सम्राट तिबिरियुस

तिबिरियुस का जन्म ईसा पूर्व 42 में हुआ था। ईसवी सन्‌ 14 में वह रोम का दूसरा सम्राट बना और ईसवी सन्‌ 37 के मार्च तक जीया। धरती पर यीशु की सेवा के दौरान वही सम्राट था। इसलिए जब यीशु ने कर का सिक्का दिखाकर कहा, “जो सम्राट का है वह सम्राट को चुकाओ,” तो उस वक्‍त तिबिरियुस राज कर रहा था।​—मर 12:14-17; मत 22:17-21; लूक 20:22-25.

बाज़ार
बाज़ार

कुछ बाज़ार सड़क पर लगते थे, जैसे यहाँ चित्र में दिखाया गया है। दुकानदार इतना सामान लगा देते थे कि रास्ता जाम हो जाता था। आस-पास के लोग बाज़ार से घरेलू सामान, मिट्टी के बरतन, काँच की महँगी चीज़ें और ताज़ी साग-सब्ज़ियाँ भी खरीदते थे। उस ज़माने में फ्रिज नहीं होते थे, इसलिए लोगों को खाने-पीने की चीज़ें खरीदने हर दिन बाज़ार जाना होता था। बाज़ार में लोगों को व्यापारियों या दूसरी जगहों से आए लोगों से खबरें भी मिल जाती थीं, यहाँ बच्चे खेलते थे और बेरोज़गार लोग इंतज़ार करते थे कि कोई उन्हें काम दे। बाज़ार में यीशु ने बीमारों को ठीक किया और पौलुस ने लोगों को प्रचार किया। (प्रेष 17:17) लेकिन घमंडी शास्त्रियों और फरीसियों को ऐसी सार्वजनिक जगहों पर लोगों की नज़रों में छाना और उनसे नमस्कार सुनना अच्छा लगता था।

शाम की दावतों में सबसे खास जगह
शाम की दावतों में सबसे खास जगह

पहली सदी में आम तौर पर लोग मेज़ से टेक लगाकर खाना खाते थे। हर व्यक्‍ति अपने बाएँ हाथ की कोहनी से तकिए पर टेक लगाता था और दाएँ हाथ से खाना खाता था। यूनानी और रोमी लोगों के दस्तूर के मुताबिक, आम तौर पर खाना खाने के कमरे में कम ऊँचाईवाली एक मेज़ होती थी और उसके तीन तरफ दीवान लगाए जाते थे। रोमी लोग इस तरह के कमरे को ट्रिक्लिनियम (लातीनी शब्द जो एक यूनानी शब्द से निकला है जिसका मतलब है, “तीन दीवानोंवाला कमरा”) कहते थे। इस तरह के इंतज़ाम में नौ लोग एक-साथ खाना खाते थे, यानी हर दीवान पर तीन लोग बैठते थे। मगर बाद में बड़े-बड़े दीवान रखे जाने लगे ताकि एक-साथ ज़्यादा लोग खाना खा सकें। परंपरा के हिसाब से बैठने की हर जगह का अलग दर्जा होता था। (क) एक दीवान सबसे कम सम्मानवाला माना जाता था, (ख) दूसरा उससे ज़्यादा और (ग) तीसरा सबसे ज़्यादा सम्मानवाला। यहाँ तक कि दीवान पर भी बैठने की हर जगह अलग-अलग दर्जे की मानी जाती थी। तीनों में से बायीं तरफ बैठनेवाले की अहमियत सबसे ज़्यादा होती थी, बीचवाले की उससे कम और दायीं तरफवाले की सबसे कम। दावतों में आम तौर पर मेज़बान सबसे कम सम्मानवाले दीवान पर पहली जगह (1) पर बैठता था। बीचवाले दीवान पर तीसरी जगह (2) सबसे आदर की जगह मानी जाती थी। इस बात का कोई साफ सबूत नहीं है कि यहूदियों ने किस हद तक यह दस्तूर अपनाया था। लेकिन जब यीशु अपने चेलों को नम्रता की सीख दे रहा था, तब उसने शायद इसी दस्तूर की तरफ इशारा किया।

सभा-घर में सबसे आगे की जगह
सभा-घर में सबसे आगे की जगह

इस वीडियो का एक आधार है: गलील झील से करीब 10 कि.मी. (6 मील) दूर उत्तर-पूरब में गामला शहर में पाए गए पहली सदी के सभा-घर के खंडहर। पहली सदी का कोई भी सभा-घर सही-सलामत नहीं पाया गया है, इसलिए यह पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता कि सभा-घर ठीक कैसा दिखता होगा। मुमकिन है कि इस वीडियो में दिखायी कुछ चीज़ें उस ज़माने के ज़्यादातर सभा-घरों में रही होंगी।

1. सबसे आगे की या बढ़िया जगह, जो शायद मंच पर या उसके पास होती थीं।

2. मंच, जिस पर से एक शिक्षक कानून पढ़कर सुनाता था। हर सभा-घर में मंच शायद अलग जगह होता था।

3. दीवार से लगी बैठने की जगह, जहाँ शायद समाज के रुतबेदार लोग बैठते थे। दूसरे लोग शायद ज़मीन पर बिछी चटाई पर बैठते थे। गामला के सभा-घर में शायद बैठने की जगहों की चार पंक्‍तियाँ थीं।

4. पवित्र खर्रे रखने की जगह, जो शायद पीछे की दीवार के पास होती थी।

सभा-घर में बैठने के इंतज़ाम से हाज़िर लोगों को हमेशा यह याद आता था कि कुछ लोगों का दर्जा दूसरों से ऊँचा है। यीशु के चेले भी इस बात को लेकर बहस करते रहते थे कि उनमें कौन बड़ा है।​—मत 18:1-4; 20:20, 21; मर 9:33, 34; लूक 9:46-48.

दान-पात्र और विधवा
दान-पात्र और विधवा

रब्बियों के लेखों के मुताबिक, हेरोदेस ने जो मंदिर बनवाया था उसमें 13 दान-पात्र थे। इन्हें शोफार पेटियाँ कहा जाता था। इब्रानी शब्द शोहफार का मतलब है, “मेढ़े का सींग।” इससे पता चलता है कि दान-पात्र का कुछ भाग नरसिंगे या तुरही के आकार का था। एक बार यीशु ने उन लोगों को फटकारा जो दान देते वक्‍त लाक्षणिक तौर पर तुरही बजवाते थे। यीशु की यह बात सुनकर दूसरे लोगों को तुरही के आकार के दान-पात्रों में डाले जानेवाले सिक्कों की खनखनाहट याद आ गयी होगी। (मत 6:2) जब विधवा ने दो छोटे-छोटे सिक्के डाले तो शायद ही वे खनके होंगे। फिर भी यीशु ने समझाया कि यहोवा के लिए वह विधवा और उसका दान अनमोल है।