मरकुस के मुताबिक खुशखबरी 7:1-37
अध्ययन नोट
दूषित हाथों से यानी बिना हाथ धोए: मरकुस ने यहाँ और आयत 3 और 4 में जिस तरह शब्दों को समझाया, उससे उन लोगों को काफी मदद मिलती जो “दूषित हाथों” यानी हाथ धोने के यहूदी रिवाज़ से अनजान थे। (“मरकुस की किताब पर एक नज़र” देखें।) यह रिवाज़ साफ-सफाई को ध्यान में रखकर नहीं बल्कि बस परंपरा पर चलने के खयाल से माना जाता था। बाद में बैबिलोनी तलमूद (सोताह 4ख) में बताया गया कि बिना हाथ धोए खाना, वेश्या के साथ संबंध रखने जैसा है। तलमूद यह भी कहता है कि जो लोग हाथ धोने की बात को गंभीरता से नहीं लेते उन्हें “दुनिया से मिटा” दिया जाएगा।
हाथ . . . धो लें: मूसा के कानून के मुताबिक, याजकों को वेदी के पास सेवा करने या भेंट के तंबू के अंदर जाने से पहले हाथ-पैर धोने होते थे। (निर्ग 30:18-21) लेकिन जैसे मर 7:2 के अध्ययन नोट में बताया गया है, यीशु के दिनों के फरीसी और दूसरे यहूदी बस परंपरा मानने के खयाल से खुद को शुद्ध करते थे। खुशखबरी की चार किताबों में से सिर्फ मरकुस की किताब में बताया गया है कि हाथ धोने के रिवाज़ में कोहनी तक हाथ धोए जाते थे।
खुद को शुद्ध . . . कर लें: कई प्राचीन हस्तलिपियों में इस आयत में यूनानी शब्द बपटाइज़ो (गोता लगाना; डुबकी लगाना) लिखा है, जो अकसर मसीही बपतिस्मे के लिए इस्तेमाल हुआ है। लेकिन लूक 11:38 में इस शब्द का मतलब है, यहूदी परंपरा के मुताबिक शुद्धिकरण के अलग-अलग रिवाज़ जो बार-बार माने जाते थे। दूसरी प्राचीन हस्तलिपियों में इस आयत (मर 7:4) में यूनानी शब्द रैनटाइज़ो इस्तेमाल हुआ है जिसका मतलब है, “छिड़कना; छिड़ककर शुद्ध करना।” (इब्र 9:13, 19, 21, 22) भले ही हस्तलिपियों में दो अलग शब्द इस्तेमाल हुए हैं, मगर मोटे तौर पर उनका मतलब एक ही है। वह यह कि यहूदी हर बार खाना खाने से पहले परंपरा के मुताबिक किसी-न-किसी तरह खुद को शुद्ध करते थे। यरूशलेम में पुरातत्ववेत्ताओं को ऐसे स्नान-कुंड मिले हैं जिनमें यहूदी लोग परंपरा के मुताबिक खुद को शुद्ध करते थे। इससे पता चलता है कि इस आयत में क्रिया बपटाइज़ो ज़्यादा सही है जिसका मतलब है, “डुबकी लगवाना।”
पानी में डुबकी दिलाना: शा., “बपतिस्मा देना।” यहाँ यूनानी शब्द बपटिस्मॉस यह बताने के लिए इस्तेमाल हुआ है कि यीशु के दिनों में कुछ कट्टर यहूदी शुद्धिकरण के कौन-से रिवाज़ मानते थे। वे खाने से पहले प्यालों, सुराहियों और ताँबे के बरतनों को बपतिस्मा देते थे यानी उन्हें पानी में डुबोते थे।
कुरबान: यूनानी शब्द कोरबान इब्रानी शब्द कुरबान से लिया गया है जिसका मतलब है, “एक चढ़ावा।” यह इब्रानी शब्द लैव्यव्यवस्था और गिनती की किताबों में बहुत बार आया है। यह शब्द दो तरह के चढ़ावों के लिए इस्तेमाल हुआ है, एक जिसमें खून शामिल था (जैसे जानवरों की बलि) और दूसरा जिसमें खून शामिल नहीं था (जैसे अनाज, रोटी वगैरह)। (लैव 1:2, 3; 2:1; गि 5:15; 6:14, 21) इसी से जुड़ा शब्द कोरबानस मत 27:6 में आया है जिसका अनुवाद ‘मंदिर का खज़ाना’ किया गया है।—मत 27:6 का अध्ययन नोट देखें।
परमेश्वर के लिए रखी गयी भेंट: शास्त्री और फरीसी सिखाते थे कि एक व्यक्ति जब पैसा, ज़मीन-जायदाद या कोई और चीज़ परमेश्वर को अर्पित कर देता है तो वह मंदिर की हो जाती है। फिर भी इस परंपरा के मुताबिक, वह उन चीज़ों को खुद के लिए इस्तेमाल कर सकता था, मगर माँ-बाप की देखभाल के लिए नहीं। इसलिए ज़ाहिर है कि कुछ लोग अपने माँ-बाप की देखभाल करने की ज़िम्मेदारी से बचने के लिए अपनी संपत्ति परमेश्वर को भेंट कर देते थे।—मर 7:12.
कुछ हस्तलिपियों में यहाँ लिखा है: “अगर किसी के सुनने के कान हों तो सुने।” लेकिन ये शब्द प्राचीन और अहम हस्तलिपियों में नहीं पाए जाते। इसलिए ज़ाहिर है कि ये शब्द मरकुस के मूल पाठ का हिस्सा नहीं हैं। लेकिन इनसे मिलते-जुलते शब्द मर 4:9, 23 में दर्ज़ हैं जो परमेश्वर की प्रेरणा से लिखे शास्त्र का हिस्सा हैं। कुछ विद्वानों का मानना है कि किसी नकल-नवीस ने मर 4:9, 23 से मेल खाते शब्द इस आयत में लिख दिए, क्योंकि उसे लगा कि आयत 14 को ध्यान में रखते हुए ये शब्द यहाँ आने चाहिए।—अति. क3 देखें।
इस तरह उसने खाने की सभी चीज़ों को शुद्ध ठहराया: मूल यूनानी पाठ में ये शब्द जिस तरह लिखे हैं उससे यह भी समझा जा सकता है कि ये शब्द यीशु ने कहे थे। लेकिन आम तौर पर माना जाता है कि ये शब्द मरकुस ने लिखे थे। उसने यह समझाने के लिए ये शब्द लिखे कि यीशु ने इससे पहले जो कहा उसका क्या मतलब है। यीशु के कहने का यह मतलब नहीं था कि अब यहूदी ऐसी चीज़ें खा सकते हैं जिन्हें मूसा के कानून में अशुद्ध कहा गया है। वह कानून यीशु की मौत तक लागू रहा। इसी संदर्भ को ध्यान में रखकर हमें मरकुस के शब्दों को समझना चाहिए। (लैव, अध्या. 11; प्रेष 10:9-16; कुल 2:13, 14) परंपराओं पर ज़ोर देनेवाले धर्म गुरुओं को लगता था कि अगर एक इंसान शुद्धिकरण के लंबे-चौड़े रिवाज़ न माने तो खाने की “शुद्ध” चीज़ों से भी वह अशुद्ध हो सकता था। इससे ज़ाहिर होता है कि मरकुस, यीशु की कही बात को इस तरह समझा रहा था कि एक यहूदी महज़ इस बात से अशुद्ध नहीं हो जाता कि उसने इंसानी परंपराओं के मुताबिक हाथ धोए बिना “शुद्ध” चीज़ें खा ली हैं। इसके अलावा, कुछ लोगों का मानना है कि मरकुस बता रहा था कि आगे चलकर यीशु की बात मसीहियों पर लागू होगी। जब मरकुस ने खुशखबरी की किताब लिखी तब तक पतरस वह दर्शन देख चुका था जिसमें इस आयत के मिलते-जुलते शब्द उससे कहे गए थे। पतरस से कहा गया कि “परमेश्वर ने” खाने-पीने की उन चीज़ों को “शुद्ध किया है,” जो मूसा के कानून के मुताबिक एक वक्त पर अशुद्ध मानी जाती थीं। (प्रेष 10:13-15) लोग चाहे जो भी मानें, एक बात ज़ाहिर है कि ये शब्द यीशु के नहीं हैं बल्कि मरकुस ने परमेश्वर की प्रेरणा से यह समझाने के लिए लिखे थे कि इससे पहले यीशु ने जो कहा उसका क्या मतलब था।
नाजायज़ यौन-संबंध: मत 15:19 का अध्ययन नोट देखें।
व्यभिचार: यूनानी में यहाँ “व्यभिचार” शब्द का बहुवचन (मोइखीया) इस्तेमाल हुआ है।—शब्दावली देखें।
निर्लज्ज काम: या “शर्मनाक बरताव।” यूनानी शब्द असेलजीआ का मतलब है, ऐसे काम जो परमेश्वर के नियमों के खिलाफ हैं और ऐसा रवैया जिससे निर्लज्जता और घोर अनादर ज़ाहिर होता है।—शब्दावली देखें।
ईर्ष्या से भरी आँखें: जिस यूनानी शब्द का अनुवाद यहाँ “ईर्ष्या” किया गया है उसका शाब्दिक मतलब है, “बुरा; दुष्ट।” शब्द “आँख” यहाँ लाक्षणिक तौर पर इस्तेमाल हुआ है जिसका मतलब है, एक व्यक्ति के इरादे, स्वभाव या भावनाएँ। “ईर्ष्या से भरी आँखें” शब्दों का अनुवाद “ईर्ष्या” भी किया जा सकता है।—मत 6:23; 20:15 के अध्ययन नोट देखें।
यूनानी: मुमकिन है कि यह औरत इसराएली नहीं थी बल्कि यूनानी खानदान से थी।
बच्चों . . . पिल्लों: मूसा के कानून के मुताबिक कुत्तों को अशुद्ध माना जाता था, इसलिए बाइबल में अकसर यह शब्द नैतिक तौर से गिरे हुए लोगों के लिए इस्तेमाल हुआ है। (लैव 11:27; मत 7:6; फिल 3:2, फु.; प्रक 22:15) लेकिन मत्ती (15:26) और मरकुस ने जब यीशु की यह बातचीत लिखी तो उन्होंने कुत्तों के लिए अल्पार्थक संज्ञा इस्तेमाल की जिसका मतलब है, “पिल्ला” या “घर का कुत्ता।” इस तरह तुलना करने से किसी को ठेस नहीं पहुँचती। इससे शायद यह ज़ाहिर होता है कि यीशु ने वही शब्द इस्तेमाल किया जिससे गैर-यहूदी अपने पालतू जानवरों को प्यार से बुलाते थे। यीशु इसराएलियों की तुलना “बच्चों” से और गैर-यहूदियों की तुलना “पिल्लों” से करके शायद यह बताना चाहता था कि पहले किन पर ध्यान दिया जाना चाहिए। जब एक घर में बच्चे और कुत्ते दोनों होते हैं तो पहले बच्चों को खाना खिलाया जाता है।
एक बहरे आदमी को लाए जो ठीक से बोल भी नहीं पाता था: सिर्फ मरकुस ने बताया कि यीशु ने एक ऐसे बहरे आदमी को ठीक किया जो ठीक से बोल नहीं पाता था।—मर 7:31-37.
से दूर अलग ले गया: यीशु जब बीमार लोगों को ठीक करता था तो आम तौर पर वह ऐसा नहीं करता था। मगर इस मौके पर उसने शायद ऐसा इसलिए किया ताकि उस आदमी को शर्मिंदगी महसूस न हो। यीशु उसका लिहाज़ करते हुए सबसे बेहतरीन तरीके से उसकी मदद करना चाहता था।
थूकने: यहूदी और गैर-यहूदी लोगों में से कुछ मानते थे कि थूकना, चंगाई का एक तरीका या निशानी है। इसलिए यीशु ने शायद उस आदमी को यह दिखाने के लिए थूका कि वह उसे ठीक करनेवाला है। बात चाहे जो भी रही हो, यीशु ने अपना थूक लेकर उसे कुदरती तरीके से ठीक नहीं किया।
गहरी आह भरकर: मरकुस ने अकसर यीशु की भावनाओं के बारे में लिखा। इस बारे में शायद उसे पतरस ने बताया होगा जो खुद एक भावुक इंसान था। (“मरकुस की किताब पर एक नज़र” देखें।) यह क्रिया शायद दिखाती है कि प्रार्थना करते हुए जिस तरह यीशु ने आह भरी या वह कराहा, उससे ज़ाहिर होता है कि उस आदमी के लिए उसे कितनी हमदर्दी थी या फिर पूरी मानवजाति की तकलीफ देखकर उसे कितना दर्द महसूस हुआ होगा। इसी से जुड़ी क्रिया रोम 8:22 में यह बताने के लिए इस्तेमाल हुई है कि सारी सृष्टि ‘कराह’ रही है।
एफ्फतह: यह एक यूनानी शब्द है, जिसके बारे में कुछ लोगों का मानना है कि यह एक इब्रानी शब्द से निकला है, जिसका अनुवाद यश 35:5 में “खोले जाएँगे” किया गया है। इस घटना में यीशु के कहे इस शब्द ने एक चश्मदीद गवाह के दिल पर इतनी गहरी छाप छोड़ी कि उसने मरकुस को यह घटना बताते वक्त यही शब्द दोहराया। वह गवाह शायद पतरस था। यह उन कुछेक घटनाओं में से एक है जहाँ यीशु के शब्द हू-ब-हू लिखे गए हैं। ऐसे शब्दों का एक और उदाहरण है, “तलीता कूमी” (मर 5:41)।