यशायाह 48:1-22
48 हे याकूब के घराने के लोगो, सुनो!तुम जो खुद को इसराएल कहते हो+और यहूदा के सोतों से* निकले हो।तुम जो यहोवा के नाम से शपथ खाते हो+और इसराएल के परमेश्वर को पुकारते हो,पर यह सब तुम सच्चाई और नेकी से नहीं करते।+
2 ये लोग खुद को पवित्र शहर के निवासी बताते हैं+और इसराएल के परमेश्वर का सहारा लेते हैं,+जिसका नाम सेनाओं का परमेश्वर यहोवा है।
3 वह तुमसे कहता है,
“पिछली बातों के बारे में मैंने बहुत पहले ही बता दिया था,वे मेरे ही मुँह से निकली थीं और मैंने ही वे बातें बतायी थीं।+
मैंने तुरंत कदम उठाया और वे पूरी हुईं।+
4 मैं जानता था कि तुम बहुत ढीठ हो,तुम्हारी गरदन लोहे की तरह और तुम्हारा माथा ताँबे की तरह कड़ा है।+
5 इसलिए मैंने बहुत पहले ही वे बातें बता दी थीं,
उनके पूरा होने से पहले ही तुम्हें बता दिया थाताकि तुम यह न कह सको, ‘यह हमारे देवता* का काम है,हमारी तराशी हुई और ढली हुई मूरत की आज्ञा पर यह हुआ है।’
6 तुमने ये सारी बातें सुनी और देखी हैं,क्या इन्हें सरेआम नहीं बताओगे?+
अब मैं नयी बातों का ऐलान कर रहा हूँ,+छिपे हुए राज़ खोल रहा हूँ।
7 एक नयी रचना करने जा रहा हूँ जो मैंने पहले कभी नहीं की थी,जिसके बारे में आज से पहले तुमने कभी नहीं सुना थाताकि तुम यह न कह सको, ‘अरे! यह तो हम पहले से जानते हैं।’
8 पर तुम तो सुनना ही नहीं चाहते,+ न जानना चाहते हो,तुमने पहले से ही अपने कान बंद कर लिए हैं,
मुझे पता है तुम दगाबाज़ हो+और जन्म से बागी हो।+
9 मगर मैं अपने नाम की खातिर अपना क्रोध रोके रहूँगा,+अपनी महिमा की खातिर खुद को रोके रहूँगा,मैं तेरा नामो-निशान नहीं मिटाऊँगा।+
10 देख, मैंने तुझे शुद्ध किया है मगर चाँदी की तरह नहीं।+
मैंने तुझे दुख की भट्ठी में तपाकर परख* लिया है।+
11 मैं अपनी खातिर, हाँ, अपने नाम की खातिर ऐसा करूँगा।+
भला मैं अपने नाम को अपवित्र कैसे होने दूँ?+
मैं अपनी महिमा किसी और को न दूँगा।*
12 हे याकूब, मेरी सुन! हे इसराएल, मेरी सुन! तुझे मैंने बुलाया है,
मैं वही हूँ, मैं बदला नहीं।+ मैं ही पहला और मैं ही आखिरी हूँ।+
13 मैंने अपने हाथों से पृथ्वी की नींव डाली,+अपने दाएँ हाथ से आकाश को ताना।+
मेरे बुलाने पर वे एक-साथ मेरे सामने हाज़िर हो जाते हैं।
14 तुम सब इकट्ठा हो और सुनो,तुम्हारे देवताओं में से* ऐसा कौन है जिसने इन बातों का ऐलान किया है?
जिस शख्स से यहोवा प्यार करता है,+वह बैबिलोन के खिलाफ उसकी मरज़ी पूरी करेगा,+और उसका हाथ कसदियों पर उठेगा।+
15 मैंने खुद यह कहा है, मैंने ही उसे बुलाया है+
और मैं ही उसको लाया हूँ। उसका हर काम सफल होगा।+
16 मेरे पास आओ और सुनो!
शुरू से ही मैंने यह बात खुलकर बतायी,+जब यह पूरी होने लगी तो मैं वहीं था।”
अब सारे जहान के मालिक यहोवा ने मुझे भेजा है और अपनी पवित्र शक्ति भी दी है।*
17 यहोवा, जो तेरा छुड़ानेवाला और इसराएल का पवित्र परमेश्वर है, वह कहता है,+
“मैं ही तेरा परमेश्वर यहोवा हूँ,जो तुझे तेरे भले के लिए सिखाता हूँ+और जिस राह पर तुझे चलना चाहिए उसी पर ले चलता हूँ।+
18 मेरी आज्ञाओं को ध्यान से सुन, उन्हें मान!+
तब तेरी शांति नदी के समान+और तेरी नेकी समुंदर की लहरों के समान होगी।+
19 तेरा वंश बालू के समान अनगिनत होगाऔर तेरे वंशज बालू के किनकों की तरह बेहिसाब होंगे।+
तेरा नाम मेरे सामने से न कभी मिटाया जाएगा, न कभी खाक में मिलाया जाएगा।”
20 बैबिलोन से निकल जाओ!+
कसदियों से दूर भाग जाओ!
खुशी के मारे ऐलान करो, ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाओ,+धरती के कोने-कोने तक यह खबर सुनाओ,+“यहोवा ने अपने सेवक याकूब को छुड़ा लिया है।+
21 उजाड़ जगहों से लाते वक्त उसने उन्हें प्यासा नहीं मरने दिया,+
उसने उनके लिए चट्टान से पानी निकाला,चट्टान को चीर दिया और पानी बह निकला।”+
22 यहोवा कहता है, “दुष्टों को कभी शांति नहीं मिलती।”+
कई फुटनोट
^ या शायद, “यहूदा से।”
^ या “हमारी मूरत।”
^ या शायद, “चुन।”
^ या “किसी और के साथ न बाँटूँगा।”
^ शा., “उनमें से।”
^ या “मुझे अपनी पवित्र शक्ति देकर भेजा है।”