यशायाह 50:1-11
50 यहोवा कहता है,
“जब मैंने तुम्हारी माँ को दूर भेजा, तो क्या उसे कोई तलाकनामा दिया?+
क्या मैंने अपना कोई कर्ज़ चुकाने के लिए तुम्हें बेचा?
नहीं! तुम्हें तो अपने गुनाहों+ के कारण बेचा गया,तुम्हारे अपराधों के कारण तुम्हारी माँ को दूर भेजा गया।+
2 जब मैं यहाँ आया तो क्यों मुझे कोई नहीं मिला?
क्यों मेरे बुलाने पर किसी ने जवाब नहीं दिया?+
क्या मेरा हाथ इतना छोटा है कि वह छुड़ा न सके?
क्या मुझमें ताकत नहीं कि तुम्हें बचा सकूँ?+
देखो, मेरी फटकार सुनकर समुंदर सूख जाता है।+
मैं नदियों को रेगिस्तान बना देता हूँ,+उनकी मछलियाँ बिन पानी के प्यासी मर जाती हैं और बदबू मारने लगती हैं।
3 मैं आसमान को काली चादर से ढक देता हूँ+और उसे टाट का कपड़ा पहनाता हूँ।”
4 सारे जहान के मालिक यहोवा ने मुझे सिखाया और ऐसी ज़बान* दी+कि मैं सही बात कहकर थके-माँदों को जवाब दे सकूँ।*+
वह मुझे हर सुबह उठाता है, मेरे कान खोलता हैताकि मैं सीखनेवालों की तरह ध्यान से उसकी सुनूँ।+
5 सारे जहान के मालिक यहोवा ने मुझे समझ की बातें सिखायीं,*
मैं बागी नहीं था,+ मैंने उससे मुँह नहीं फेरा।+
6 मैंने कोड़े मारनेवालों को अपनी पीठ दी,दाढ़ी नोचनेवालों की ओर अपने गाल कर दिए।
अपमान सहने और थूके जाने पर मैंने मुँह नहीं छिपाया।+
7 सारे जहान का मालिक यहोवा मेरी मदद करेगा,+इसलिए मैं बेइज़्ज़त महसूस नहीं करूँगा।
मैंने अपना चेहरा चकमक पत्थर की तरह कड़ा कर लिया है+और मुझे यकीन है कि मुझे शर्मिंदा नहीं होना पड़ेगा।
8 जो मुझे नेक करार देता है, वह मेरे करीब है।
कौन मुझ पर इलज़ाम लगाएगा?+
वह सामने आकर बात करे।
कौन मुझसे मुकदमा लड़ेगा?
वह आगे आए।
9 देखो! सारे जहान का मालिक यहोवा मेरी मदद करेगा।
कौन मुझे दोषी ठहरा सकता है?
देखो! वे उस पुराने कपड़े की तरह हो जाएँगे,जिसे कपड़-कीड़ा खा गया हो।
10 तुम्हारे बीच ऐसा कौन है जो यहोवा का डर मानता हैऔर उसके सेवक की बात सुनता है?+
कौन है जो बिन रौशनी के घुप अँधेरे में चलता है?
वह यहोवा के नाम पर भरोसा करे और परमेश्वर को अपना सहारा बनाए।*
11 “तुम सब जो आग सुलगाते हो, जिससे चिंगारियाँ उठती हैं,अपनी सुलगायी आग की रौशनी में चलो,उससे उठनेवाली चिंगारियों में होकर चलो।
पर मेरी तरफ से तुम्हें यह सज़ा मिलेगी:
तुम दर्द से बेहाल पड़े रहोगे।
कई फुटनोट
^ या शायद, “की हिम्मत बँधा सकूँ।”
^ या “तालीम पायी हुई ज़बान।”
^ शा., “मेरा कान खोला।”
^ या “पर आस लगाए।”