यशायाह 57:1-21

57  नेक जन मिट गया है,पर किसी को इसकी परवाह नहीं। वफादार लोग छीन लिए गए हैं,*+पर कोई नहीं सोचता कि नेक जन को मुसीबतों ने* छीन लिया है।   अब उसे चैन मिला है। जितने भी सीधाई से चलते हैं, उन्हें अपने बिस्तर पर* आराम मिला है।   “हे टोना-टोटका करनेवाली के बेटो,हे व्यभिचार करनेवाले की औलादो,हे वेश्‍या की संतानो, इधर आओ!   तुम किसकी हँसी उड़ा रहे हो? मुँह फाड़कर किसे जीभ दिखा रहे हो? क्या तुम पापियों के बच्चे नहीं?झूठे लोगों की संतान नहीं?+   क्या तुम बड़े-बड़े पेड़ों+ के नीचे,हर घने पेड़ के नीचे+ काम-इच्छा से मचल नहीं उठते?क्या तुम घाटियों में, खड़ी चट्टान की दरारों में,अपने बच्चों की बलि नहीं चढ़ाते?+   तूने* घाटी के चिकने-चिकने पत्थरों को चुन लिया है,+वही तेरा हिस्सा हैं। उन्हीं को तू अर्घ चढ़ाती और भेंट के चढ़ावे देती है।+ क्या यह सब देखकर मैं खुश होऊँगा?*   तूने एक बड़े और ऊँचे पहाड़ पर अपना बिस्तर सजाया+और वहाँ तू बलि चढ़ाने के लिए गयी।+   दरवाज़े के पीछे और चौखट पर तूने अपने देवताओं की निशानी बनायी,तूने मुझे छोड़ दिया, अपने कपड़े उतारेऔर ऊपर जाकर अपना बिस्तर चौड़ा किया। तूने उनके साथ करार किया,उनके साथ सोना तुझे अच्छा लगा+और तूने पुरुष-लिंग देखे।*   तू तेल और ढेर सारा इत्र लेकर मेलेक* के पास गयी। तूने अपने दूतों को दूर-दूर भेजा। इस तरह तू नीचे कब्र में उतर गयी। 10  तू अलग-अलग राहों पर चलते-चलते थक गयी है,फिर भी तू नहीं कहती, ‘ये सब बेकार है।’ तुझमें नया जोश भर आया है,इसलिए तू रुकने का नाम नहीं ले रही।* 11  तू किसका डर मानकर झूठ बोलने लगी?+ तूने मुझे याद नहीं रखा,+मेरी किसी बात पर ध्यान नहीं दिया।+ मैं चुप रहा, तेरी करतूतों को बरदाश्‍त करता रहा,+इसलिए तूने मेरा डर मानना छोड़ दिया है। 12  तेरी नेकी+ और तेरे कामों का+ तुझे कोई फायदा नहीं होगा,+क्योंकि मैं इनका परदाफाश कर दूँगा। 13  जब तू मदद के लिए पुकारेगी,तब जिन मूरतों को तूने जमा किया है, वे तुझे बचा न सकेंगी।+ हवा उन सबको उड़ा ले जाएगी,एक फूँक में ही वे उड़ जाएँगी। लेकिन जो मुझमें पनाह लेता है वही देश में बसेगाऔर मेरे पवित्र पहाड़ को अपने अधिकार में कर लेगा।+ 14  तब यह कहा जाएगा, ‘सड़क बनाओ! रास्ता तैयार करो!+ मेरे लोगों की राह से हर रुकावट दूर करो।’” 15  क्योंकि जो सबसे महान है, जो सदा तक जीवित रहता है+और जिसका नाम पवित्र है,+ वह कहता है, “भले ही मैं ऊँची और पवित्र जगह में रहता हूँ,+मगर मैं उनके संग भी रहता हूँ जो कुचले हुए और मन से दीन हैंताकि दीन जनों की हिम्मत बँधाऊँऔर कुचले हुओं में नयी जान डाल दूँ।+ 16  मैं सदा तक उनका विरोध नहीं करूँगा,न मेरा गुस्सा हमेशा तक बना रहेगा।+कहीं ऐसा न हो कि मेरी वजह से इंसान* कमज़ोर हो जाए,+हाँ, साँस लेनेवाला हर जीव जिसे मैंने बनाया है, कमज़ोर न पड़ जाए। 17  इसराएल को पाप करते देख,बेईमानी की कमाई बटोरते देख मैं भड़क उठा,+इसलिए मैंने उसे मारा और गुस्से में अपना मुँह फेर लिया। फिर भी वह बागी बनकर+ अपनी मनमानी करता रहा। 18  मैं उसकी चाल देखता आया हूँ,फिर भी मैं उसे चंगा करूँगा+ और उसकी अगुवाई करूँगा,+उसे और मातम मनानेवाले उसके लोगों को दिलासा दूँगा।”+ 19  यहोवा कहता है, “मैं ही होंठों के फल का रचनेवाला हूँ, मैं लोगों को शांति देता रहूँगा फिर चाहे वे दूर हों या पास+और उन्हें चंगा करूँगा।” 20  “मगर दुष्ट लोग अशांत समुंदर जैसे हैं, जिसकी लहरें थमने का नाम नहीं लेतींऔर जिसका पानी काई और कीचड़ उछालता रहता है। 21  दुष्टों को कभी शांति नहीं मिलती।”+ यह बात मेरे परमेश्‍वर ने कही है।

कई फुटनोट

या शायद, “मुसीबतों से बचाने के लिए।”
यानी मौत ने छीन लिया है।
यानी कब्र में।
या “खुद को दिलासा दूँगा?”
सिय्योन या यरूशलेम नगरी की बात की गयी है।
शायद मूर्तिपूजा की बात की गयी है।
या शायद, “राजा।”
शा., “तू नहीं थकी।”
शा., “इंसान का मन।”

अध्ययन नोट

तसवीर और ऑडियो-वीडियो