यहेजकेल 10:1-22

10  फिर मैंने गौर किया कि करूबों के सिर के ऊपर जो फलक था, उसके ऊपर नीलम जैसा कुछ दिखायी दे रहा था। वह दिखने में एक राजगद्दी जैसा था।+  फिर परमेश्‍वर ने मलमल की पोशाक पहने आदमी+ से कहा, “करूबों के नीचे घूमते पहियों+ के बीच जा और करूबों के बीच से जलते अंगारे लेकर अपने दोनों हाथों में भर ले+ और उन्हें शहर पर फेंक दे।”+ तब वह आदमी मेरे देखते उनके बीच गया।  जब वह आदमी पहियों के बीच गया तब करूब भवन के दायीं तरफ खड़े थे और भीतरी आँगन बादल से भर गया था।  फिर यहोवा की महिमा का तेज+ करूबों के पास से उठा और भवन के दरवाज़े की दहलीज़ पर जा ठहरा। भवन धीरे-धीरे बादल से भर गया+ और पूरा आँगन यहोवा की महिमा के तेज से चकाचौंध हो गया।  करूबों के पंखों की आवाज़ इतनी ज़ोरदार थी कि बाहरी आँगन तक सुनायी दे रही थी और सर्वशक्‍तिमान परमेश्‍वर के बोलने जैसी आवाज़ थी।+  फिर परमेश्‍वर ने मलमल की पोशाक पहने आदमी को यह आज्ञा दी: “तू घूमते हुए पहियों और करूबों के बीच से थोड़ी आग ले।” तब वह आदमी वहाँ गया और पहिए के पास खड़ा हो गया।  फिर करूबों में से एक ने अपना हाथ उस आग की तरफ बढ़ाया जो उनके बीच थी+ और थोड़ी आग लेकर मलमल की पोशाक पहने आदमी+ के दोनों हाथों पर रख दी। वह आदमी आग लेकर बाहर निकल गया।  करूबों के पंखों के नीचे इंसान के हाथों जैसा कुछ दिखता था।+  जब मैं देख रहा था तो मुझे करूबों के पास में चार पहिए दिखायी दिए। हर करूब के पास में एक पहिया था और ये पहिए करकेटक की तरह चमक रहे थे।+ 10  चारों पहिए दिखने में एक जैसे लग रहे थे। ऐसा मालूम पड़ रहा था जैसे हर पहिए के अंदर एक और पहिया लगा है। 11  जब पहिए आगे बढ़ते तो वे चार दिशाओं में से किसी भी दिशा में बिना मुड़े जा सकते थे, क्योंकि पहिए बिना मुड़े उसी दिशा में जाते थे जिधर करूबों का सिर होता था। 12  करूबों का पूरा शरीर, उनकी पीठ, उनके हाथ और पंख आँखों से भरे हुए थे। उनके पास जो चार पहिए थे उनके पूरे घेरे में भी आँखें-ही-आँखें थीं।+ 13  फिर मैंने एक आवाज़ सुनी जिसने पहियों को यह कहकर पुकारा: “घूमनेवाले पहियो!” 14  हरेक* के चार चेहरे थे। पहला चेहरा करूब के चेहरे जैसा था, दूसरा आदमी* का चेहरा, तीसरा शेर का और चौथा उकाब का चेहरा था।+ 15  ये करूब वही जीवित प्राणी थे जो मैंने कबार नदी के पास देखे थे।+ करूब जब भी ऊपर उठते 16  और आगे बढ़ते तो उनके साथ-साथ पहिए भी बढ़ते थे। जब करूब अपने पंख उठाकर धरती से ऊपर उठते, तब भी पहिए करूबों से दूर नहीं जाते थे, न ही मुड़ते थे।+ 17  जब वे जीवित प्राणी कहीं रुक जाते तो पहिए भी वहीं रुक जाते और जब वे ऊपर उठते तो साथ में पहिए भी उठते थे, क्योंकि जो पवित्र शक्‍ति जीवित प्राणियों पर काम कर रही थी वही पहियों में भी थी। 18  फिर यहोवा की महिमा का तेज+ भवन के दरवाज़े की दहलीज़ से उठ गया और करूबों पर जा ठहरा।+ 19  मैंने देखा कि फिर करूब अपने पंख उठाकर धरती से ऊपर उठ गए। करूबों के साथ-साथ पहिए भी ऊपर जाने लगे। वे जाकर यहोवा के भवन के पूरबवाले फाटक के प्रवेश पर ठहर गए और इसराएल के परमेश्‍वर की महिमा का तेज उन पर छाया रहा।+ 20  ये वही जीवित प्राणी थे जिन्हें मैंने कबार नदी के पास इसराएल के परमेश्‍वर की राजगद्दी के नीचे देखा था।+ इसलिए मैं जान गया कि वे करूब ही थे। 21  चारों करूबों के चार-चार चेहरे और चार-चार पंख थे और उनके पंखों के नीचे इंसान के हाथों जैसा कुछ दिखता था।+ 22  उनके चेहरे बिलकुल उन प्राणियों के चेहरों जैसे थे जो मैंने कबार नदी के पास देखे थे।+ हर करूब सीधे आगे की तरफ बढ़ता था।+

कई फुटनोट

यानी हर करूब।
या “इंसान।”

अध्ययन नोट

तसवीर और ऑडियो-वीडियो