यहेजकेल 40:1-49

40  हमारी बँधुआई के 25वें साल,+ यानी शहर* पर कब्ज़ा किए जाने के 14वें साल के पहले महीने के दसवें दिन,+ यहोवा का हाथ मुझ पर आया और वह मुझे शहर ले गया।+  परमेश्‍वर की तरफ से मुझे दर्शन मिले जिनमें वह मुझे इसराएल देश ले गया और उसने मुझे एक बहुत ऊँचे पहाड़ पर खड़ा किया।+ उस पहाड़ पर दक्षिण की तरफ मुझे शहर जैसा कुछ दिखायी दिया।  जब वह मुझे वहाँ ले गया तो मैंने वहाँ एक आदमी को देखा जिसका रूप ताँबे जैसा था।+ उसके हाथ में अलसी की एक डोरी और एक माप-छड़* था+ और वह दरवाज़े पर खड़ा था।  उस आदमी ने मुझसे कहा, “इंसान के बेटे, मैं तुझे जो कुछ दिखाऊँगा वह सब तू गौर से देखना और मेरी हर बात ध्यान से सुनना। मैं तुझे जो भी दिखाऊँगा उस पर पूरा ध्यान देना क्योंकि तुझे यहाँ इसीलिए लाया गया है। तू जो भी देखेगा वह सब इसराएल के घराने को बताना।”+  मैंने उस मंदिर* के बाहर चारों तरफ एक दीवार देखी। उस आदमी के हाथ में जो माप-छड़ था वह छ: हाथ लंबा था। (हर हाथ के माप में चार अंगुल जोड़ा गया था।)* वह माप-छड़ से दीवार नापने लगा। दीवार की मोटाई और ऊँचाई एक-एक छड़ थी।  फिर वह उस दरवाज़े* पर गया जिसका मुँह पूरब की तरफ था+ और उसकी सीढ़ियाँ चढ़ा। उसने दरवाज़े की दहलीज़ नापी। उसकी चौड़ाई एक छड़ थी और दरवाज़े के दूसरी तरफ की दहलीज़ की चौड़ाई भी एक छड़ थी।  दरवाज़े के अंदर पहरेदारों के खाने बने थे। हर खाने की लंबाई और चौड़ाई एक-एक छड़ थी। और एक खाने से दूसरे खाने के बीच पाँच-पाँच हाथ की दूरी थी।+ दरवाज़े की जो दहलीज़ बरामदे के पास और अंदर की तरफ थी, उसकी चौड़ाई भी एक छड़ थी।  फिर उसने वह बरामदा नापा जो अंदर की तरफ था और वह एक छड़ था।  फिर उसने दरवाज़े का बरामदा नापा और उसकी नाप आठ हाथ थी। उसने बरामदे के दोनों तरफ के खंभे नापे और उनकी नाप दो-दो हाथ थी। दरवाज़े का यह बरामदा अंदर की तरफ था। 10  पूरब के दरवाज़े में दोनों तरफ पहरेदारों के तीन-तीन खाने थे। तीनों खाने एक ही नाप के थे और दोनों तरफ के खंभे भी एक ही नाप के थे। 11  फिर उसने दरवाज़े के प्रवेश की चौड़ाई नापी और वह 10 हाथ थी और दरवाज़े की लंबाई 13 हाथ थी। 12  पहरेदारों के खानों के सामने बाड़े से बँधी हुई जो खुली जगह थी, वह दोनों तरफ एक-एक हाथ थी। दोनों तरफ पहरेदारों के खाने छ:-छ: हाथ थे। 13  फिर उसने एक तरफवाले खाने की छत* से दूसरी तरफवाले खाने की छत तक दरवाज़े की चौड़ाई नापी। यह 25 हाथ थी। खानों के प्रवेश एक-दूसरे के आमने-सामने थे।+ 14  फिर उसने दोनों तरफ के खंभों की ऊँचाई नापी। यह 60 हाथ थी। आँगन के चारों तरफ के दरवाज़ों के दोनों तरफ के खंभों की ऊँचाई भी 60 हाथ थी। 15  दरवाज़े के बाहरी हिस्से से लेकर उसके बरामदे के सामनेवाले हिस्से तक की लंबाई 50 हाथ थी। 16  पहरेदारों के खानों के लिए और दोनों तरफ उनके खंभों के लिए ऐसी खिड़कियाँ थीं जो अंदर की ओर चौड़ी और बाहर की ओर सँकरी थीं।*+ दरवाज़ों के बरामदों के लिए भी हर तरफ खिड़कियाँ थीं और दोनों तरफ के खंभों पर खजूर के पेड़ों की नक्काशी थी।+ 17  फिर वह मुझे बाहरी आँगन में ले आया। आँगन के चारों तरफ एक फर्श बना हुआ था। मैंने वहाँ भोजन के कमरे देखे।*+ कुल मिलाकर 30 कमरे थे। 18  दरवाज़ों के दोनों तरफ के उस फर्श की चौड़ाई दरवाज़े की लंबाई जितनी थी। यह फर्श निचला फर्श था। 19  फिर उसने निचले दरवाज़े और भीतरी आँगन में जानेवाले दरवाज़े के बीच की दूरी नापी। यह दूरी 100 हाथ थी। पूरब और उत्तर के दरवाज़ों से भी इतनी ही दूरी थी। 20  बाहरी आँगन में उत्तर की तरफ भी एक दरवाज़ा था। उस आदमी ने उस दरवाज़े की लंबाई-चौड़ाई नापी। 21  उस दरवाज़े में भी दोनों तरफ पहरेदारों के तीन-तीन खाने थे। उसके दोनों तरफ के खंभों और बरामदे की नाप, पहले दरवाज़े के खंभों और बरामदे की नाप जितनी ही थी। उत्तर का दरवाज़ा भी 50 हाथ लंबा और 25 हाथ चौड़ा था। 22  उसकी खिड़कियों, उसके बरामदे और उस पर बनी खजूर के पेड़ों की नक्काशी+ की नाप पूरब के दरवाज़े जितनी ही थी। उस दरवाज़े तक पहुँचने के लिए लोगों को सात सीढ़ियाँ चढ़नी होती थीं और उसका बरामदा उनके सामने था। 23  उत्तर के दरवाज़े और पूरब के दरवाज़े के सामने भीतरी आँगन में एक-एक दरवाज़ा था। उसने एक दरवाज़े से दूसरे दरवाज़े के बीच की दूरी नापी। यह दूरी 100 हाथ थी। 24  इसके बाद वह मुझे दक्षिण की तरफ ले आया और मैंने दक्षिण में भी एक दरवाज़ा देखा।+ उसने उसके दोनों तरफ के खंभों और बरामदे को नापा। उनकी नाप भी बाकी दरवाज़ों के खंभों और बरामदे जितनी ही थी। 25  उस दरवाज़े में दोनों तरफ और बरामदे में भी वैसी ही खिड़कियाँ थीं जैसी दूसरे दरवाज़ों में थीं। दक्षिण का दरवाज़ा 50 हाथ लंबा और 25 हाथ चौड़ा था। 26  उस दरवाज़े तक पहुँचने के लिए सात सीढ़ियाँ थीं+ और उसका बरामदा उनके सामने था। बरामदे के दोनों तरफ एक-एक खंभा था और खंभों पर खजूर के पेड़ों की नक्काशी थी। 27  भीतरी आँगन में भी दक्षिण की तरफ एक दरवाज़ा था। उस आदमी ने दक्षिण की तरफवाले दोनों दरवाज़ों के बीच की दूरी नापी। यह दूरी 100 हाथ थी। 28  इसके बाद वह मुझे भीतरी आँगन के दक्षिणी दरवाज़े से भीतरी आँगन में ले आया। जब उसने यह दक्षिणी दरवाज़ा नापा तो उसकी नाप भी दूसरे दरवाज़ों जितनी ही थी। 29  उसके पहरेदारों के खानों, उसके दोनों तरफ के खंभों और उसके बरामदे की नाप दूसरे दरवाज़ों के खानों, खंभों और बरामदे जितनी थी। उस दरवाज़े के दोनों तरफ और उसके बरामदे में खिड़कियाँ थीं। वह दरवाज़ा 50 हाथ लंबा और 25 हाथ चौड़ा था।+ 30  भीतरी आँगन के सभी दरवाज़ों में बरामदे थे और उन बरामदों की लंबाई 25 हाथ और चौड़ाई 5 हाथ थी। 31  दक्षिणी दरवाज़े का बरामदा बाहरी आँगन की तरफ था और उसके दोनों तरफ के खंभों पर खजूर के पेड़ों की नक्काशी थी+ और उस दरवाज़े तक पहुँचने के लिए आठ सीढ़ियाँ थीं।+ 32  जब वह मुझे पूरब से भीतरी आँगन में ले आया तो उसने वहाँ का दरवाज़ा नापा। उसकी नाप दूसरे दरवाज़ों जितनी ही थी। 33  उसके पहरेदारों के खानों, उसके दोनों तरफ के खंभों और उसके बरामदे की नाप दूसरे दरवाज़ों के खानों, खंभों और बरामदे जितनी थी। उस दरवाज़े के दोनों तरफ और उसके बरामदे में खिड़कियाँ थीं। वह दरवाज़ा 50 हाथ लंबा और 25 हाथ चौड़ा था। 34  उसका बरामदा बाहरी आँगन की तरफ था और उसके दोनों तरफ के खंभों पर खजूर के पेड़ों की नक्काशी थी और उस दरवाज़े तक पहुँचने के लिए आठ सीढ़ियाँ थीं। 35  फिर वह मुझे उत्तरी दरवाज़े* पर ले आया+ और उसे नापा। उसकी नाप भी दूसरे दरवाज़ों जितनी थी। 36  उसके पहरेदारों के खानों, दोनों तरफ के खंभों और उसके बरामदे की नाप दूसरे दरवाज़ों के खानों, खंभों और बरामदे जितनी थी। उसके दोनों तरफ खिड़कियाँ थीं। वह दरवाज़ा 50 हाथ लंबा और 25 हाथ चौड़ा था। 37  उसके दोनों तरफ के खंभे बाहरी आँगन की तरफ थे और उन खंभों पर खजूर के पेड़ों की नक्काशी थी। उस दरवाज़े तक पहुँचने के लिए आठ सीढ़ियाँ थीं। 38  भीतरी आँगन के दरवाज़ों के खंभों के पास भोजन का कमरा था जिसका एक प्रवेश था। इस कमरे में पूरी होम-बलि के जानवरों का माँस धोया जाता था।+ 39  उत्तरी दरवाज़े के बरामदे के दोनों तरफ दो-दो मेज़ें थीं। उन पर पूरी होम-बलि,+ पाप-बलि+ और दोष-बलि के जानवर हलाल किए जाते थे।+ 40  उत्तरी दरवाज़े की तरफ जानेवाले रास्ते पर बाहर दोनों तरफ दो-दो मेज़ें थीं और दरवाज़े के बरामदे के दूसरी तरफ भी दो-दो मेज़ें थीं। 41  दरवाज़े के दोनों तरफ चार-चार मेज़ें थीं। कुल मिलाकर आठ मेज़ें थीं जिन पर बलिदान के जानवर हलाल किए जाते थे। 42  पूरी होम-बलि की चारों मेज़ें गढ़े हुए पत्थरों की बनी थीं। उन मेज़ों की लंबाई डेढ़ हाथ, चौड़ाई डेढ़ हाथ और ऊँचाई एक हाथ थी। उन मेज़ों पर वे औज़ार रखे जाते थे जिनसे होम-बलि और दूसरे बलिदानों के जानवर हलाल किए जाते थे। 43  भीतरी दीवारों के चारों तरफ ताक बनी हुई थीं जो चार अंगुल चौड़ी थीं। उन मेज़ों पर भेंट के चढ़ावे का माँस रखा जाता था। 44  भीतरी आँगन के दरवाज़े के बाहर गायकों के लिए भोजन के कमरे थे।+ ये कमरे भीतरी आँगन में उत्तरी दरवाज़े के पास थे और उनका प्रवेश दक्षिण की तरफ था। एक और भोजन का कमरा पूरब के दरवाज़े के पास था जिसका प्रवेश उत्तर की तरफ था। 45  उस आदमी ने मुझे बताया, “भोजन का यह कमरा, जिसका प्रवेश दक्षिण की तरफ है, उन याजकों के लिए है जिन्हें मंदिर में सेवा की ज़िम्मेदारी दी गयी है।+ 46  और भोजन का वह कमरा, जिसका प्रवेश उत्तर की तरफ है, उन याजकों के लिए है जिन्हें वेदी के पास सेवा करने की ज़िम्मेदारी दी गयी है।+ वे याजक सादोक के वंशज हैं।+ लेवियों में से उन्हीं याजकों को यहोवा के पास आकर उसकी सेवा करने के लिए ठहराया गया है।”+ 47  इसके बाद उसने भीतरी आँगन नापा। यह आँगन चौकोर था, 100 हाथ लंबा, 100 हाथ चौड़ा। मंदिर के सामने वेदी थी। 48  फिर वह मुझे मंदिर के बरामदे में ले आया+ और उसने बरामदे के दोनों खंभे नापे जो उसके प्रवेश में दायीं और बायीं तरफ थे। हर खंभा पाँच हाथ लंबा और तीन हाथ चौड़ा था। 49  बरामदा 20 हाथ लंबा और 11* हाथ चौड़ा था। उस तक पहुँचने के लिए लोगों को कुछ सीढ़ियाँ चढ़नी होती थीं। बरामदे के दोनों तरफ के खंभों के पास दो और खंभे थे। हर खंभे के पास एक खंभा था।+

कई फुटनोट

यानी यरूशलेम।
अति. ख14 देखें।
शा., “भवन।” अध्याय 40-48 में जहाँ-जहाँ “भवन” का मतलब मंदिर या मंदिर और उसके आस-पास की इमारतें हैं वहाँ “मंदिर” लिखा है।
यह लंबे हाथ का माप है। अति. ख14 देखें।
यह दरवाज़ा एक बड़ी इमारत था जिसमें कई खाने थे।
शायद यह पहरेदार के खाने की दीवार का ऊपरी हिस्सा है।
या “खंभों के लिए ढलाननुमा खिड़कियाँ थीं।”
या “वहाँ खाने देखे।”
यानी भीतरी आँगन का उत्तरी दरवाज़ा।
या शायद, “12.”

अध्ययन नोट

तसवीर और ऑडियो-वीडियो