यहेजकेल 42:1-20
42 फिर वह मुझे उत्तर के बाहरी आँगन में ले गया।+ वह मुझे भोजन के कमरोंवाली इमारत के पास ले गया, जो खुली जगह के पास,+ सटी हुई इमारत+ के उत्तर में थी।
2 भोजन के कमरोंवाली इमारत का प्रवेश उत्तर की तरफ था और उस तरफ इमारत की पूरी लंबाई 100 हाथ* और चौड़ाई 50 हाथ थी।
3 वह इमारत बाहरी आँगन के फर्श और भीतरी आँगन की उस खुली जगह के बीच थी जो 20 हाथ चौड़ी थी।+ इस इमारत के दो हिस्से थे और दोनों हिस्सों में तीन-तीन मंज़िलें थीं और उनके गलियारे एक-दूसरे के सामने थे।
4 इमारत के दोनों हिस्सों के बीच एक रास्ता था+ जो 100 हाथ लंबा* और 10 हाथ चौड़ा था। भोजन के कमरों* के लिए प्रवेश उत्तर की तरफ थे।
5 इस इमारत के दोनों हिस्सों की ऊपरी मंज़िलों की चौड़ाई बीचवाली और निचली मंज़िलों से कम थी। ऐसा इसलिए था क्योंकि ऊपरी मंज़िलों के गलियारों ने खाने के कमरों की बहुत जगह ले ली थी।
6 भोजन के कमरों की तीन मंज़िलें थीं, मगर इनमें कोई खंभा नहीं था, जैसे आँगनों में थे। इसीलिए निचली और बीचवाली मंज़िलों के मुकाबले ऊपरी मंज़िलें कम जगह में बनायी गयी थीं।
7 भोजन के कमरोंवाली इमारत का जो हिस्सा बाहरी आँगन की तरफ था, उसके पास पत्थर की एक दीवार थी। यह दीवार इमारत के दूसरे हिस्से के सामने थी। इस दीवार की लंबाई 50 हाथ थी,
8 क्योंकि इमारत का जो हिस्सा बाहरी आँगन की तरफ था वह सिर्फ 50 हाथ लंबा था, जबकि पवित्र-स्थान की तरफवाला हिस्सा 100 हाथ लंबा था।
9 भोजन के कमरोंवाली इमारत का प्रवेश पूरब की तरफ था, जो बाहरी आँगन से इमारत में आने के लिए था।
10 पूरब की तरफ आँगन के पत्थर की दीवार की चौड़ाई में, खुली जगह और इमारत के पास भी भोजन के कमरे थे।+
11 इनके सामने भी वैसा ही एक रास्ता था जैसे उत्तर में भोजन के कमरों के सामने था।+ इन कमरों की लंबाई-चौड़ाई उत्तर के कमरों जितनी ही थी और कमरों से बाहर जाने का रास्ता भी वैसा ही था जैसा उत्तर की इमारत में था। उनका पूरा ढाँचा उत्तर के कमरों जैसा था। उनके प्रवेश
12 उन भोजन के कमरों के प्रवेश जैसे थे जो दक्षिण की तरफ थे। रास्ते की शुरूआत में एक प्रवेश था जो पूरब में पत्थर की दीवार के पास था। यह प्रवेश इमारत के अंदर जाने के लिए था।+
13 फिर उस आदमी ने मुझे बताया, “खाली जगह के पास उत्तर और दक्षिणवाले भोजन के कमरे,+ भोजन के पवित्र कमरे हैं। ये कमरे उन याजकों के लिए हैं जो यहोवा के पास आकर उसकी सेवा करते हैं। वे इन कमरों में उस भेंट की चीज़ें खाते हैं जो बहुत पवित्र है।+ यह जगह पवित्र है इसलिए वे इन्हीं कमरों में अनाज के चढ़ावे, पाप-बलि और दोष-बलि के लिए अर्पित की गयी चीज़ें रखते हैं जो बहुत पवित्र हैं।+
14 जब भी याजकों को पवित्र जगह से बाहरी आँगन में जाना हो, तो उन्हें पहले अपनी वह पोशाक बदलनी होगी जिसे पहनकर वे पवित्र जगह में सेवा करते हैं।+ वे अपनी यह पोशाक बदले बगैर बाहरी आँगन में नहीं जा सकते क्योंकि यह पवित्र पोशाक है। जब भी याजक उन जगहों में जाते हैं जहाँ आम लोगों को आने की इजाज़त है, तो उन्हें अपनी पवित्र पोशाक बदलकर दूसरे कपड़े पहनने चाहिए।”
15 जब उसने मंदिर के अंदर का हिस्सा* और उसके आस-पास का सबकुछ नाप लिया, तो वह मुझे बाहरी आँगन के पूरब के दरवाज़े से बाहर ले गया।+ और उसने वह पूरी जगह नापी।
16 उसने माप-छड़* से पूरब का हिस्सा नापा। पूरब में एक कोने से दूसरे कोने तक की लंबाई 500 छड़ थी।
17 उसने माप-छड़ से उत्तर का हिस्सा नापा और उसकी लंबाई 500 छड़ थी।
18 उसने माप-छड़ से दक्षिण का हिस्सा नापा और उसकी लंबाई 500 छड़ थी।
19 उसने माप-छड़ से पश्चिम का हिस्सा नापा और उसकी लंबाई 500 छड़ थी।
20 उसने चारों हिस्से नापे। उसके चारों तरफ एक दीवार थी+ जिसकी लंबाई-चौड़ाई 500 छड़ थी।+ यह दीवार पवित्र जगह को उस जगह से अलग करने के लिए थी जो आम इस्तेमाल के लिए थी।+
कई फुटनोट
^ यूनानी सेप्टुआजेंट के मुताबिक “100 हाथ लंबा।” इब्रानी पाठ में लिखा है, “एक हाथ लंबा रास्ता।” अति. ख14 देखें।
^ या “खानों।”
^ शा., “अंदर का भवन।”