यहोशू 17:1-18
17 फिर मनश्शे+ गोत्र को चिट्ठियाँ डालकर ज़मीन दी गयी+ क्योंकि मनश्शे, यूसुफ का पहलौठा था।+ माकीर,+ मनश्शे का पहलौठा बेटा और गिलाद का पिता था। वह एक वीर योद्धा था इसलिए उसे गिलाद और बाशान का इलाका मिला।+
2 मनश्शे के बाकी वंशजों के अलग-अलग घरानों को भी चिट्ठियाँ डालकर ज़मीन दी गयी। ये वंशज थे: अबीएजेर के बेटे,+ हेलेक के बेटे, असरीएल के बेटे, शेकेम के बेटे, हेपेर के बेटे और शमीदा के बेटे। ये यूसुफ के बेटे मनश्शे के वंश से आए अलग-अलग घराने के आदमी थे।+
3 मनश्शे का बेटा माकीर था, माकीर का गिलाद, गिलाद का हेपेर और हेपेर का बेटा सलोफाद+ था। सलोफाद के कोई बेटा नहीं था सिर्फ बेटियाँ थीं, जिनके नाम थे महला, नोआ, होग्ला, मिलका और तिरसा।
4 इसलिए उन्होंने याजक एलिआज़र, नून के बेटे यहोशू और प्रधानों के पास आकर कहा,+ “यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी थी कि हमारे पिता के भाइयों के साथ हमें भी विरासत की ज़मीन दी जाए।”+ यहोवा के आदेश पर सलोफाद की बेटियों को अपने पिता के भाइयों के साथ विरासत की ज़मीन दी गयी।+
5 यरदन के पूरब में गिलाद और बाशान+ के अलावा, मनश्शे गोत्र को यरदन के इस पार* भी ज़मीन के दस हिस्से मिले।
6 इसलिए मनश्शे गोत्र में बेटों के साथ-साथ बेटियों को भी विरासत मिली। मनश्शे के बाकी वंशजों को गिलाद का इलाका दिया गया।
7 मनश्शे गोत्र की सरहद आशेर से लेकर मिकमतात तक थी+ जो शेकेम+ के सामने पड़ता था। फिर यह सरहद दक्षिण की तरफ एन-तप्पूह के लोगों के इलाके तक जाती थी।
8 तप्पूह+ का इलाका मनश्शे को मिला मगर तप्पूह शहर जो मनश्शे की सरहद पर था, एप्रैम के वंशजों के हिस्से में आया।
9 फिर मनश्शे की सरहद नीचे कानाह घाटी के दक्षिण की तरफ जाती थी और उसके उत्तर से होते हुए सागर पर खत्म होती थी।+ मनश्शे के इलाके में एप्रैम के भी शहर थे।+
10 सरहद का दक्षिणी इलाका एप्रैम का था और उत्तरी इलाका मनश्शे का। मनश्शे के इलाके की एक सरहद सागर थी।+ उनकी* उत्तरी सरहद आशेर के इलाके तक और पूर्वी सरहद इस्साकार के इलाके तक थी।
11 इस्साकार और आशेर के इलाकों में मनश्शे को ये शहर और उनके लोग दिए गए: बेत-शआन, यिबलाम,+ दोर,+ एन्दोर,+ तानाक+ और मगिद्दो। इन शहरों के साथ-साथ उनके आस-पास के नगर भी उन्हें दिए गए। इनमें से तीन शहर पहाड़ी इलाके में बसे थे।
12 लेकिन मनश्शे के वंशज इन शहरों पर कब्ज़ा नहीं कर पाए क्योंकि कनानी लोग इस इलाके को नहीं छोड़ रहे थे।+
13 फिर जब इसराएली ताकतवर हो गए, तो वे कनानियों से जबरन मज़दूरी करवाने लगे।+ मगर उन्होंने कनानियों को पूरी तरह नहीं खदेड़ा।+
14 यूसुफ के वंशजों ने यहोशू से कहा, “हम गिनती में बहुत हैं क्योंकि यहोवा की आशीष हम पर रही है।+ इतना बड़ा गोत्र होने पर भी हमें* एक ही हिस्सा* क्यों मिला?”+
15 यहोशू ने उनसे कहा, “अगर तुम गिनती में इतने ज़्यादा हो कि एप्रैम का पहाड़ी प्रदेश+ तुम्हारे लिए कम पड़ रहा है, तो जाओ, परिज्जी+ और रपाई लोगों+ के जंगलों को काटकर वहाँ का इलाका ले लो।”
16 तब यूसुफ के वंशजों ने कहा, “तूने सच कहा, यह पहाड़ी प्रदेश हमारे लिए काफी नहीं। मगर घाटी में रहनेवाले कनानी जो बेत-शआन+ और उसके आस-पास के नगरों में और यिजरेल घाटी+ में रहते हैं, उन सबके पास ऐसे युद्ध-रथ+ हैं जिनके पहियों में तलवारें लगी हुई हैं।”*
17 तब यहोशू ने यूसुफ के घराने, एप्रैम और मनश्शे से कहा, “तुम गिनती में बहुत हो और तुम शक्तिशाली भी हो। तुम्हें ज़मीन का सिर्फ एक हिस्सा नहीं मिलेगा+
18 बल्कि पूरा पहाड़ी प्रदेश तुम्हारा हो जाएगा।+ हालाँकि यह इलाका जंगल है मगर तुम इसे काटकर रहने की जगह बनाओगे और यह इलाका तुम्हारी सरहद ठहरेगा। तुम यहाँ से कनानियों को ज़रूर खदेड़ दोगे, फिर चाहे वे कितने ही ताकतवर क्यों न हों और उनके पास ऐसे युद्ध-रथ क्यों न हों जिनके पहियों में तलवारें लगी हुई हैं।”*+
कई फुटनोट
^ यानी पश्चिम में।
^ यानी मनश्शे के लोगों या उनके इलाके की।
^ शा., “मुझे।”
^ शा., “चिट्ठी डालकर और नापकर देश का एक ही हिस्सा।”
^ शा., “लोहे के रथ हैं।”
^ शा., “लोहे के रथ क्यों न हों।”