यहोशू 9:1-27

9  यह खबर हित्तियों, एमोरियों, कनानियों, परिज्जियों, हिव्वियों और यबूसियों+ के राजाओं ने सुनी, जो यरदन के पश्‍चिम के पहाड़ी प्रदेशों पर,+ शफेलाह और महासागर*+ के सारे तटवर्ती इलाकों पर और लबानोन के सामनेवाले इलाकों पर राज करते थे।  तब उन सबने यहोशू और इसराएलियों से लड़ने के लिए आपस में संधि की।+  गिबोन के लोगों+ ने भी सुना कि यहोशू ने यरीहो और ऐ का क्या हाल किया है।+  तब गिबोनियों ने होशियारी से काम लिया। उन्होंने फटी-पुरानी बोरियों में खाने की कुछ चीज़ें डालीं और बोरियों को अपने गधों पर लाद दिया। उन्होंने कुछ पुरानी, मरम्मत की हुई मशकें लीं,  घिसी हुई जूतियाँ पहनीं जिन पर पैवंद लगे हुए थे और फटे-पुराने कपड़े पहने। उन्होंने जितनी भी रोटियाँ लीं, वे सब सूखी और भुरभुरी थीं।  फिर वे गिलगाल आए जहाँ इसराएली छावनी डाले हुए थे+ और यहोशू और इसराएली आदमियों से कहने लगे, “हम दूर देश से आए हैं। हम चाहते हैं कि तुम लोग हमारे साथ शांति का करार करो।”  मगर इसराएलियों ने उन हिव्वी लोगों+ से कहा, “हम तुम्हारे साथ करार कैसे कर लें?+ क्या पता तुम यहीं आस-पास से आए हो!”  उन्होंने यहोशू से कहा, “तू हमें अपना दास बना ले।” यहोशू ने उनसे पूछा, “तुम लोग कौन हो और कहाँ से आए हो?”  उन्होंने कहा, “तेरे ये दास एक दूर देश के रहनेवाले हैं।+ हम इसलिए आए हैं क्योंकि हमने तेरे परमेश्‍वर यहोवा के नाम के बारे में सुना है। हमने यह भी सुना है कि वह कितना महान है और उसने मिस्र में कैसे बड़े-बड़े काम किए।+ 10  और यरदन के उस पार* एमोरियों के दोनों राजाओं का क्या हाल किया, कैसे उसने हेशबोन के राजा सीहोन और बाशान के राजा ओग का नाश किया,+ जो अश्‍तारोत में रहता था। 11  इसलिए हमारे मुखियाओं और देश के सभी लोगों ने हमसे कहा, ‘तुम सफर के लिए खाने का सामान बाँधो और जाकर इसराएलियों से मिलो। तुम उनसे कहना, “हम तुम्हारे दास बनने को तैयार हैं।+ मेहरबानी करके हमारे साथ शांति का करार करो।”’+ 12  देख, ये रोटियाँ हमने घर से निकलते वक्‍त ली थीं। तब ये गरम और ताज़ी थीं मगर अब सूखकर भुरभुरी हो गयी हैं।+ 13  ये मशकें नयी थीं जब हमने इन्हें भरा था, लेकिन अब ये फट गयी हैं।+ हमारे कपड़े और जूतियाँ भी फट गयी हैं क्योंकि हम बहुत लंबा सफर करके आए हैं।” 14  तब इसराएली आदमियों ने उनकी खाने-पीने की चीज़ों को गौर से देखा। मगर इस बारे में उन्होंने यहोवा से कुछ नहीं पूछा।+ 15  यहोशू ने उनके साथ शांति का करार किया+ और उनसे वादा किया कि वह उनका नाश नहीं करेगा। इसराएल की मंडली के प्रधानों ने भी यही शपथ खायी।+ 16  तीन दिन बाद इसराएलियों को पता चला कि वे किसी दूर देश से नहीं बल्कि पास के इलाके से हैं। 17  तब इसराएली उनके शहर गिबोन,+ कपीरा, बएरोत और किरयत-यारीम+ के लिए रवाना हुए और तीसरे दिन वहाँ पहुँचे। 18  मगर इसराएलियों ने उन पर हमला नहीं किया क्योंकि उनकी मंडली के प्रधानों ने इसराएल के परमेश्‍वर यहोवा की शपथ खाकर उनसे वादा किया था+ कि वे उनका नाश नहीं करेंगे। तब पूरी मंडली अपने प्रधानों पर कुड़कुड़ाने लगी। 19  इस पर प्रधानों ने इसराएलियों की मंडली से कहा, “हमने इसराएल के परमेश्‍वर यहोवा की शपथ खायी है इसलिए हम उनका नाश नहीं कर सकते। 20  हम उन्हें छोड़ देंगे। अगर हमने अपनी शपथ तोड़ दी, तो परमेश्‍वर का क्रोध हम पर भड़क उठेगा।”+ 21  और जैसा प्रधानों ने गिबोनियों से वादा किया था, उन्होंने यह भी कहा, “हम उन्हें ज़िंदा छोड़ देंगे, मगर अब से वे पूरी मंडली के लिए लकड़ियाँ बीनेंगे और पानी भरेंगे।” 22  यहोशू ने गिबोनियों को बुलाया और उनसे कहा, “तुमने हमारे साथ यह चाल क्यों चली? तुमने क्यों कहा कि हम दूर देश से आए हैं जबकि तुम यहीं पास में रहते हो?+ 23  अब से तुम शापित हो+ और तुम हमेशा के लिए दास बने रहोगे और मेरे परमेश्‍वर के भवन के लिए लकड़ियाँ बीनोगे और पानी भरोगे।” 24  गिबोनियों ने यहोशू से कहा, “मालिक, हमने सुना था कि तेरे परमेश्‍वर यहोवा ने अपने सेवक मूसा को आज्ञा दी थी कि वह यहाँ के सभी निवासियों को मिटाकर पूरा इलाका तुम लोगों को दे दे।+ हमें मालूम था कि तुम हमें भी जान से मार दोगे। हम बहुत डर गए थे+ इसीलिए हमने यह सब किया।+ 25  अब हम तेरे रहमो-करम पर हैं। तुझे जो सही लगे वह कर।” 26  यहोशू ने वैसा ही किया। उसने उन्हें इसराएलियों के हाथ से छुड़ाया और इसराएलियों ने उन्हें नहीं मारा। 27  लेकिन उस दिन यहोशू ने उनसे कहा कि अब से वे इसराएलियों की मंडली के लिए और यहोवा की ठहरायी जगह+ पर उसकी वेदी के लिए लकड़ियाँ बीनेंगे और पानी भरेंगे।+ आज तक वे लोग यही काम करते हैं।+

कई फुटनोट

यानी भूमध्य सागर।
यानी पूरब में।

अध्ययन नोट

तसवीर और ऑडियो-वीडियो