याकूब की चिट्ठी 3:1-18
3 मेरे भाइयो, हममें से बहुत लोग शिक्षक न बनें क्योंकि हम जानते हैं कि हम और भी भारी* सज़ा पाएँगे।+
2 क्योंकि हम सब कई बार गलती करते हैं।*+ अगर कोई इंसान बोलने में गलती नहीं करता, तो वह परिपूर्ण है और अपने पूरे शरीर को भी काबू में रख सकता है।*
3 हम घोड़े के मुँह में लगाम लगाते हैं ताकि वह हमारी बात माने और इससे हम उसके पूरे शरीर को भी काबू में कर पाते हैं।
4 जहाज़ों के बारे में भी सोचो! हालाँकि वे इतने बड़े होते हैं और तेज़ हवाओं से चलाए जाते हैं, फिर भी एक छोटी-सी पतवार से नाविक उन्हें जहाँ चाहे वहाँ ले जा सकता है।
5 उसी तरह, जीभ भी हमारे शरीर का एक छोटा-सा अंग है फिर भी यह बड़ी-बड़ी डींगें मारती है। देखो! पूरे जंगल में आग लगाने के लिए बस एक छोटी-सी चिंगारी काफी होती है।
6 जीभ भी एक आग है।+ यह हमारे शरीर के अंगों में बुराई की एक दुनिया है क्योंकि यह पूरे शरीर को दूषित कर देती है+ और इंसान की पूरी ज़िंदगी में आग लगा देती है और यह गेहन्ना* की आग की तरह भस्म कर देती है।
7 हर तरह के जंगली जानवर, पक्षी, रेंगनेवाले जीव-जंतु और समुद्री जीवों को तो पालतू बनाया जा सकता है और इंसान ने उन्हें काबू में करके पालतू बनाया भी है,
8 मगर जीभ को कोई भी इंसान काबू में नहीं कर सकता। यह ऐसी खतरनाक और बेकाबू चीज़ है जो जानलेवा ज़हर से भरी है।+
9 इसी से हम अपने पिता यहोवा* की तारीफ करते हैं और इसी से इंसानों को बददुआ देते हैं जिन्हें “परमेश्वर के जैसा” बनाया गया है।+
10 एक ही मुँह से तारीफ और बददुआ दोनों निकलते हैं।
भाइयो, ऐसा नहीं होना चाहिए।+
11 क्या ऐसा हो सकता है कि एक ही सोते से मीठा पानी भी निकले और खारा पानी भी?
12 मेरे भाइयो, क्या अंजीर के पेड़ पर जैतून के फल लग सकते हैं या अंगूर की डाली पर अंजीर के फल निकल सकते हैं?+ नहीं। उसी तरह खारे पानी के सोते से मीठा पानी नहीं निकल सकता।
13 तुममें बुद्धिमान और समझदार कौन है? जो है वह इसे अपने बढ़िया चालचलन से दिखाए और बुद्धि से पैदा होनेवाले कोमल स्वभाव के मुताबिक काम करे।
14 लेकिन अगर तुम्हारे दिलों में जलन-कुढ़न+ और झगड़े की भावना* हो,+ तो शेखी न मारो+ और सच्चाई के खिलाफ झूठ मत बोलो।
15 यह बुद्धि वह नहीं जो स्वर्ग से मिलती है बल्कि यह दुनियावी,+ शारीरिक* और शैतानी है।
16 क्योंकि जहाँ जलन और झगड़े होते हैं,* वहाँ गड़बड़ी और हर तरह की बुराई भी होगी।+
17 लेकिन जो बुद्धि स्वर्ग से मिलती है वह सबसे पहले तो पवित्र,+ फिर शांति कायम करनेवाली,+ लिहाज़ करनेवाली,+ आज्ञा मानने के लिए तैयार, दया और अच्छे कामों से भरपूर होती है।+ यह भेदभाव नहीं करती+ और न ही कपटी होती है।+
18 जो शांति कायम करते हैं,+ उनके लिए शांति के हालात में नेकी का फल बोया जाता है।*+
कई फुटनोट
^ या “कड़ी।”
^ शा., “ठोकर खाते हैं।”
^ शा., “लगाम लगा सकता है।”
^ या शायद, “बड़ा बनने का जुनून।”
^ या “जानवरों जैसी।”
^ या शायद, “और बड़ा बनने का जुनून होता है।”
^ या शायद, “वे शांति के हालात में नेकी का फल बोते हैं।”