यिर्मयाह 11:1-23
11 यहोवा का यह संदेश यिर्मयाह के पास पहुँचा:
2 “लोगो, इस करार की बातें सुनो!
ये* बातें यहूदा के लोगों और यरूशलेम के निवासियों को बता
3 और उनसे कह, ‘इसराएल का परमेश्वर यहोवा कहता है, “ऐसे हर इंसान पर शाप पड़े, जो इस करार की बातें नहीं मानता,+
4 जिनकी आज्ञा मैंने तुम्हारे पुरखों को दी थी। जिस दिन मैंने उन्हें मिस्र से, लोहा पिघलानेवाले भट्ठे से निकाला था,+ उस दिन मैंने उनसे कहा था, ‘तुम मेरी बात मानना और वे सारे काम करना जिनकी मैं तुम्हें आज्ञा देता हूँ, तब तुम मेरे लोग होगे और मैं तुम्हारा परमेश्वर होऊँगा।+
5 और मैं वह वादा पूरा करूँगा जो मैंने तुम्हारे पुरखों से शपथ खाकर किया था कि मैं उन्हें वह देश दूँगा, जहाँ दूध और शहद की धाराएँ बहती हैं।+ और आज तक तुम इस देश में रह रहे हो।’”’”
तब मैंने जवाब में कहा, “हे यहोवा, आमीन।”*
6 फिर यहोवा ने मुझसे कहा, “यहूदा के शहरों और यरूशलेम की गलियों में इन सारी बातों का ऐलान कर, ‘इस करार की बातें सुनो और इनका पालन करो।
7 क्योंकि जिस दिन मैंने तुम्हारे पुरखों को मिस्र से निकाला था उस दिन मैंने उन्हें समझाकर कहा, “तुम मेरी आज्ञा मानना,” ठीक जैसे आज मैं तुम्हें समझा रहा हूँ। मैंने उन्हें बार-बार समझाया,*+
8 मगर उन्होंने मेरी नहीं सुनी, मेरी तरफ कान नहीं लगाया। इसके बजाय, हर कोई ढीठ होकर अपने दुष्ट मन की सुनता रहा।+ इसलिए मैंने उन्हें करार में लिखी सज़ा दी, क्योंकि मैंने उन्हें जो आज्ञा दी थी उसे उन्होंने नहीं माना।’”
9 फिर यहोवा ने मुझसे कहा, “यहूदा के लोगों और यरूशलेम के निवासियों ने मुझसे बगावत करने की साज़िश की है।
10 ये वही गुनाह करते हैं जो इनके पुरखे शुरू से करते आए थे, जिन्होंने आज्ञाएँ मानने से इनकार कर दिया था।+ ये लोग भी दूसरे देवताओं के पीछे जाते हैं और उनकी सेवा करते हैं।+ इसराएल के घराने और यहूदा के घराने ने मेरा वह करार तोड़ दिया है जो मैंने उनके पुरखों से किया था।+
11 इसलिए यहोवा कहता है, ‘अब मैं उन पर ऐसी विपत्ति लानेवाला हूँ+ जिससे वे बच नहीं सकेंगे। जब वे मदद के लिए मुझे पुकारेंगे, तो मैं उनकी नहीं सुनूँगा।+
12 तब यहूदा के शहरों के लोग और यरूशलेम के निवासी उन देवताओं के पास जाएँगे जिनके लिए वे बलिदान चढ़ाते हैं और उन्हें मदद के लिए पुकारेंगे,+ मगर वे देवता विपत्ति के समय उन्हें किसी भी हाल में नहीं बचा सकेंगे।
13 हे यहूदा, तेरे पास इतने देवता हो गए हैं जितने कि तेरे शहर हैं और तूने उस शर्मनाक चीज़* के लिए इतनी वेदियाँ खड़ी की हैं जितनी कि यरूशलेम में गलियाँ हैं ताकि तू बाल के लिए बलिदान चढ़ा सके।’+
14 तू* इन लोगों की खातिर प्रार्थना मत करना। इनकी खातिर दुहाई मत देना, न ही प्रार्थना करना,+ क्योंकि जब वे विपत्ति के समय मुझे पुकारेंगे तब मैं नहीं सुनूँगा।
15 मेरे प्यारे लोगों को मेरे भवन में रहने का क्या हक है,जब उनमें से इतने सारे लोग अपनी साज़िशों को अंजाम देते हैं?
क्या पवित्र गोश्त* से वे आनेवाली विपत्ति को टाल पाएँगे?
क्या तुम उस वक्त जश्न मनाओगे?
16 एक वक्त था जब यहोवा ने तुझे फलता-फूलता जैतून का पेड़ कहा था,बढ़िया फलों से लदा खूबसूरत पेड़ कहा था।
मगर एक बड़ी गड़गड़ाहट हुई और उसने पेड़ में आग लगा दी,उन्होंने उसकी डालियाँ तोड़ डालीं।
17 तुझे लगानेवाले, सेनाओं के परमेश्वर यहोवा+ ने ऐलान किया है कि तुझ पर एक विपत्ति टूट पड़ेगी क्योंकि इसराएल के घराने और यहूदा के घराने ने बुरे काम किए हैं और बाल के लिए बलिदान चढ़ाकर मुझे क्रोध दिलाया है।”+
18 यहोवा ने मुझे खबर दी ताकि मैं जान सकूँ,उस वक्त तूने मुझे दिखाया कि वे क्या कर रहे थे।
19 मैं एक शांत मेम्ने की तरह था जिसे हलाल करने के लिए लाया जा रहा था।
मुझे मालूम नहीं था कि वे मेरे खिलाफ यह साज़िश कर रहे हैं:+
“चलो हम इस पेड़ को फलों के साथ नाश कर दें,इसे काटकर दुनिया से मिटा देंताकि फिर कभी इसका नाम याद न किया जाए।”
20 मगर सेनाओं का परमेश्वर यहोवा नेकी से न्याय करता है,वह दिलों को और गहराई में छिपे विचारों* को जाँचता है।+
हे परमेश्वर, मुझे यह देखने का मौका दे कि तू उनसे कैसे बदला लेगा,क्योंकि मैंने अपना मुकदमा तेरे हाथ में छोड़ दिया है।
21 इसलिए अनातोत+ के जो लोग तेरी जान के पीछे पड़े हैं और तुझसे कहते हैं, “यहोवा के नाम से भविष्यवाणी मत कर,+ वरना तू हमारे हाथों मारा जाएगा,” उनके बारे में यहोवा कहता है,
22 सेनाओं का परमेश्वर यहोवा कहता है, “मैं उन लोगों से हिसाब लेनेवाला हूँ। उनके जवान तलवार से मार डाले जाएँगे+ और उनके बेटे-बेटियाँ अकाल से मर जाएँगे।+
23 उनमें से एक भी नहीं बचेगा, क्योंकि जिस साल मैं अनातोत+ के लोगों से हिसाब लूँगा, उस साल मैं उन पर विपत्ति लाऊँगा।”
कई फुटनोट
^ ज़ाहिर है कि यह बात यिर्मयाह से कही गयी है।
^ या “ऐसा ही हो।”
^ शा., “मैं तड़के उठकर उन्हें समझाता रहा।”
^ या “शर्मनाक देवता।”
^ यानी यिर्मयाह।
^ यानी मंदिर में दिए बलिदानों।
^ या “गहरी भावनाओं।” शा., “गुरदों।”