यिर्मयाह 14:1-22
14 यहोवा का यह संदेश यिर्मयाह के पास पहुँचा, जो सूखा पड़ने के बारे में है:+
2 यहूदा मातम मना रहा है,+ उसके फाटक ढह गए हैं।
वे हताश होकर ज़मीन पर गिर पड़े हैं,यरूशलेम से चीखना-चिल्लाना सुनायी दे रहा है।
3 वहाँ के मालिक नौकरों* को पानी लाने भेजते हैं।
वे कुंडों* के पास जाते हैं और पाते हैं कि पानी बिलकुल नहीं है।
वे खाली बरतन लिए लौटते हैं।
वे शर्मिंदा और निराश हैं,अपना सिर ढाँप लेते हैं।
4 ज़मीन पर दरारें पड़ गयी हैं,क्योंकि देश में कहीं बारिश नहीं होती,+किसान मायूस हैं, अपना सिर ढाँप लेते हैं।
5 मैदान की हिरनी भी अपने नए जन्मे बच्चे को छोड़कर चली जाती है,क्योंकि कहीं भी घास नहीं है।
6 जंगली गधे सूनी पहाड़ियों पर खड़े,गीदड़ों की तरह एक-एक साँस के लिए हाँफते हैं,
उनकी आँखें धुँधला गयी हैं क्योंकि पेड़-पौधे कहीं नहीं हैं।+
7 माना कि हमारे गुनाह हमारे खिलाफ गवाही देते हैं,फिर भी हे यहोवा, अपने नाम की खातिर कुछ कर,+
हमने कितनी बार तेरे साथ विश्वासघात किया है, उसका कोई हिसाब नहीं,+हमने तेरे ही खिलाफ पाप किया है।
8 हे इसराएल की आशा, संकट के समय उसके उद्धारकर्ता,+तू क्यों ऐसे पेश आ रहा है मानो तू देश में कोई अजनबी हो,कोई मुसाफिर हो जो सिर्फ रात काटने के लिए रुकता है?
9 तू क्यों ऐसे आदमी की तरह पेश आ रहा है जो सकते में है,ऐसे सूरमा की तरह जो बचाने में बेबस है?
क्योंकि हे यहोवा, तू हमारे बीच है+और हम तेरे नाम से जाने जाते हैं।+
हमें न ठुकरा।
10 यहोवा इन लोगों के बारे में कहता है, “उन्हें इधर-उधर भटकना बहुत पसंद है।+ उन्होंने अपने कदमों को नहीं रोका।+ इसलिए यहोवा उनसे खुश नहीं है।+ अब वह उनके गुनाह पर ध्यान देगा और उनसे उनके पापों का हिसाब लेगा।”+
11 फिर यहोवा ने मुझसे कहा, “तू यह प्रार्थना मत करना कि इन लोगों का भला हो।+
12 जब वे उपवास करते हैं, तो मैं उनका गिड़गिड़ाना नहीं सुनता,+ जब वे पूरी होम-बलियाँ और अनाज के चढ़ावे चढ़ाते हैं तो मैं उनसे खुश नहीं होता।+ मैं उन्हें तलवार, अकाल और महामारी* से मिटा दूँगा।”+
13 तब मैंने कहा, “हे सारे जहान के मालिक यहोवा, यह कितने अफसोस की बात है! भविष्यवक्ता लोगों से कह रहे हैं, ‘तुम्हें तलवार का मुँह नहीं देखना पड़ेगा और न ही तुम पर अकाल पड़ेगा, इसके बजाय परमेश्वर इस जगह तुम्हें सच्ची शांति देगा।’”+
14 फिर यहोवा ने मुझसे कहा, “भविष्यवक्ता मेरे नाम से झूठी भविष्यवाणी कर रहे हैं।+ मैंने न तो उन्हें भेजा, न उन्हें आज्ञा दी और न ही उनसे बात की।+ वे तुम लोगों को झूठे दर्शन सुनाते हैं, बेकार की भविष्यवाणी बताते हैं और मन में छल की बातें गढ़कर सुनाते हैं।+
15 इसलिए ये भविष्यवक्ता जो मेरे न भेजने पर भी मेरे नाम से भविष्यवाणी करते हैं और कहते हैं कि देश में न तो तलवार चलेगी न अकाल पड़ेगा, उनके बारे में यहोवा कहता है, ‘ये भविष्यवक्ता तलवार और अकाल से मारे जाएँगे।+
16 और जिन लोगों को वे भविष्यवाणी सुना रहे हैं वे भी अकाल और तलवार से मारे जाएँगे और उनकी लाशें यरूशलेम की सड़कों पर फेंक दी जाएँगी। उन्हें, उनकी पत्नियों और उनके बेटे-बेटियों को दफनानेवाला कोई न होगा+ क्योंकि मैं उन पर ऐसी विपत्ति लाऊँगा जिसके वे लायक हैं।’+
17 तू उनसे कहना,
‘मेरी आँखों से दिन-रात आँसुओं की धारा बहती रहे, उसे थमने न दे,+क्योंकि मेरे लोगों की कुँवारी बेटी को पूरी तरह चूर-चूर कर दिया गया है, तोड़ दिया गया है,+उसे गहरे ज़ख्म दिए गए हैं।
18 अगर मैं मैदान में जाता हूँ,तो मुझे तलवार से मारे गए लोगों की लाशें नज़र आती हैं!+
अगर मैं शहर के अंदर जाता हूँ,तो ऐसे लोग नज़र आते हैं जिन्हें अकाल ने रोगी बना दिया है!+
क्योंकि भविष्यवक्ता और याजक, दोनों ऐसे देश में भटकते-फिरते हैं जिसे वे नहीं जानते।’”+
19 हे परमेश्वर, क्या तूने यहूदा को पूरी तरह ठुकरा दिया है?
क्या तुझे सिय्योन से घिन हो गयी है?+
तूने हमें ऐसा घाव क्यों दिया जिसे भरा नहीं जा सकता?+
हमने शांति की आशा की थी, मगर कुछ भला नहीं हुआ।
ठीक होने की उम्मीद की थी, मगर खौफ छाया रहा!+
20 हे यहोवा, हम अपनी दुष्टताऔर अपने पुरखों का गुनाह कबूल करते हैं,क्योंकि हमने तेरे खिलाफ पाप किया है।+
21 अपने नाम की खातिर हमें न ठुकरा,+अपनी गौरवशाली राजगद्दी को तुच्छ न समझ।
हमारे साथ किया करार याद कर, उसे न तोड़।+
22 क्या राष्ट्रों की एक भी निकम्मी मूरत पानी बरसा सकती है?
क्या आसमान अपने आप बौछार कर सकता है?
हे हमारे परमेश्वर यहोवा, क्या सिर्फ तू ही नहीं जो ऐसा कर सकता है?+
हमने तुझ पर आशा रखी है,क्योंकि सिर्फ तूने ये सारे काम किए हैं।