यिर्मयाह 5:1-31

5  यरूशलेम की गली-गली घूमकर देखो। चारों तरफ नज़र दौड़ाओ, ध्यान से देखो। उसके हर चौक में ढूँढ़ो,अगर एक भी ऐसा इंसान मिले जो न्याय से काम करता है,+विश्‍वासयोग्य बने रहने की कोशिश करता है,तो मैं उस नगरी को माफ कर दूँगा।   वे कहते तो हैं, “यहोवा के जीवन की शपथ!” मगर उनकी शपथ झूठी होती है।+   हे यहोवा, क्या तेरी आँखें ऐसे लोगों को नहीं ढूँढ़तीं जो तेरे विश्‍वासयोग्य हैं?+ तूने उन्हें मारा, मगर उन पर कोई असर नहीं हुआ।* तूने उन्हें कुचल दिया, फिर भी उन्होंने सबक नहीं सीखा।+ उन्होंने अपना चेहरा चट्टान से भी ज़्यादा सख्त बना लिया है,+उन्होंने पलटकर लौटने से इनकार कर दिया है।+   मैंने सोचा, “ये छोटे लोग होंगे। ये मूर्खता से पेश आते हैं क्योंकि ये यहोवा की राह नहीं जानते,अपने परमेश्‍वर का फैसला नहीं जानते।   मैं बड़े लोगों के पास जाऊँगा और उनसे बात करूँगा,उन्होंने ज़रूर यहोवा की राह पर ध्यान दिया होगा,अपने परमेश्‍वर के फैसले पर ध्यान दिया होगा।+ मगर उन सबने अपना जुआ तोड़ दिया,अपने बंधन काट डाले।”   इसलिए जंगल का एक शेर उन पर हमला करता है,वीराने का एक भेड़िया उन्हें फाड़ खाता है,एक चीता उनके शहरों के पास घात लगाए बैठता है। वहाँ से बाहर आनेवाले हर किसी की बोटी-बोटी कर दी जाती है। क्योंकि उन्होंने बहुत-से अपराध किए हैं,बार-बार विश्‍वासघात किया है।+   मैं तेरा यह गुनाह कैसे माफ कर सकता हूँ? तेरे बेटों ने मुझे छोड़ दिया है,वे उसकी शपथ खाते हैं जो परमेश्‍वर नहीं।+ मैंने उनकी ज़रूरतें पूरी कीं,मगर वे बदचलनी करते रहे,टोली बनाकर वेश्‍या के घर जाते रहे।   वे हवस में डूबे बेकाबू घोड़ों की तरह हैं,हर कोई दूसरे की पत्नी के पीछे जाता है।+   यहोवा ऐलान करता है, “क्या मैं इन करतूतों के लिए उनसे हिसाब न माँगूँ? क्या मैं ऐसे राष्ट्र से अपना बदला न लूँ?”+ 10  “आओ, उसके अंगूर के सीढ़ीदार बागों पर हमला करो, उन्हें बरबाद कर दो,मगर उन्हें पूरी तरह नाश मत करना।+ उसकी फैलती डालियाँ तोड़कर ले जाओ,क्योंकि वे यहोवा की नहीं हैं। 11  इसराएल के घराने और यहूदा के घराने नेमुझे दगा देने में हद कर दी है।” यहोवा का यह ऐलान है।+ 12  “उन्होंने यहोवा का इनकार किया है,वे बार-बार कहते हैं, ‘वह कुछ नहीं करेगा।*+ हम पर कोई आफत नहीं आनेवाली। हम पर न तलवार चलेगी, न अकाल पड़ेगा।’+ 13  भविष्यवक्‍ताओं की बातें खोखली हैं,उनमें वचन* नहीं है। उनके साथ ऐसा ही हो!” 14  इसलिए सेनाओं का परमेश्‍वर यहोवा कहता है, “ये लोग ऐसा कहते हैं,इसलिए मैं तेरे मुँह में अपने वचनों को आग बना दूँगा,+इन लोगों को लकड़ी बना दूँगाऔर वह आग इन्हें भस्म कर देगी।”+ 15  यहोवा ऐलान करता है, “हे इसराएल के घराने, मैं दूर के एक देश से तुझ पर हमला करानेवाला हूँ।+ वह ऐसा राष्ट्र है जो मुद्दतों से वजूद में है,जो पुराने ज़माने से है,जिसकी भाषा तू नहीं जानता,जिसकी बोली तू नहीं समझ सकता।+ 16  उनका तरकश खुली कब्र जैसा है,वे सब-के-सब सूरमा हैं। 17  वे तेरी फसल और तेरी रोटी खा जाएँगे,+तेरे बेटे-बेटियों को खा जाएँगे,तेरी भेड़-बकरियों और तेरे मवेशियों को खा जाएँगे,तेरी अंगूर की बेलों और तेरे अंजीर के पेड़ों को खा जाएँगे। वे तलवार से तेरे किलेबंद शहरों को नाश कर देंगे, जिन पर तुझे भरोसा है।” 18  यहोवा ऐलान करता है, “मगर उन दिनों में भी मैं तुम्हें पूरी तरह नाश नहीं करूँगा।+ 19  जब वे तुझसे पूछेंगे, ‘हमारे परमेश्‍वर यहोवा ने हमारे साथ ये सब क्यों किया?’ तो तू उनसे कहना, ‘जिस तरह तुम लोगों ने मुझे छोड़कर अपने देश में एक पराए देवता की सेवा की, उसी तरह तुम एक ऐसे देश में, जो तुम्हारा नहीं है, पराए लोगों की सेवा करोगे।’”+ 20  याकूब के घराने में यह ऐलान करो,यहूदा में यह संदेश सुनाओ, 21  “मूर्खो और नासमझ लोगो, सुनो:+ उनकी आँखें तो हैं मगर वे देख नहीं सकते,+उनके कान तो हैं मगर वे सुन नहीं सकते।+ 22  यहोवा ऐलान करता है, ‘क्या तुम्हें मेरा डर नहीं है? क्या तुम्हें मेरे सामने थर-थर नहीं काँपना चाहिए? मैंने ही समुंदर के लिए रेत की हद बाँधी थी,उसके लिए एक सदा का नियम ठहराया था ताकि वह अपनी हद पार न करे। समुंदर की लहरें कितना भी उछलें मगर वे जीत नहीं सकतीं,कितना भी गरजें मगर किनारा लाँघ नहीं सकतीं।+ 23  लेकिन इन लोगों का मन हठीला और बागी है,ये मुझे छोड़कर अपने रास्ते चलने लगे।+ 24  ये कभी अपने मन में नहीं कहते, “आओ, हम अपने परमेश्‍वर यहोवा का डर मानें,जो वक्‍त पर हमें बारिश देता है,पतझड़ और वसंत की बारिश देता है,जो हमारे लिए कटाई के तय हफ्तों की हिफाज़त करता है।”+ 25  तुम्हारे अपने ही गुनाहों ने इन्हें आने से रोक दिया है,तुम्हारे अपने ही पापों ने तुम्हें अच्छी चीज़ों से दूर कर दिया है।+ 26  मेरे लोगों के बीच दुष्ट लोग पाए जाते हैं। जैसे बहेलिए झुककर घात लगाते हैं, वैसे ही वे भी ताक में रहते हैं। वे खतरनाक फंदे बिछाते हैं। वे इंसानों को पकड़ते हैं। 27  पंछियों से भरे एक पिंजरे की तरहउनके घर छल की कमाई से भरे रहते हैं।+ इसीलिए वे ताकतवर और मालामाल हो गए हैं। 28  वे मोटे और चिकने हो गए हैं,बुराई उनमें उमड़ती रहती है। वे अनाथों* के मुकदमे की पैरवी नहीं करते+ताकि उनका अपना काम बन सके,वे गरीबों को इंसाफ दिलाने से इनकार करते हैं।’”+ 29  यहोवा ऐलान करता है, “क्या मैं इन करतूतों के लिए उनसे हिसाब न माँगूँ? क्या मैं ऐसे राष्ट्र से अपना बदला न लूँ? 30  देश में जो हुआ है वह भयानक और बहुत घिनौना है: 31  भविष्यवक्‍ता झूठी भविष्यवाणी करते हैं,+याजक अपने अधिकार का गलत इस्तेमाल करके दूसरों को दबाते हैं। मेरे अपने लोगों को यह सब बहुत पसंद है।+ मगर जब अंत आएगा तो तुम क्या करोगे?”

कई फुटनोट

शा., “वे कमज़ोर नहीं हुए।”
या शायद, “वह वजूद में नहीं है।”
यानी परमेश्‍वर का वचन।
या “जिनके पिता की मौत हो गयी है।”

अध्ययन नोट

तसवीर और ऑडियो-वीडियो