यूहन्ना के मुताबिक खुशखबरी 2:1-25
2 फिर तीसरे दिन गलील में काना नाम की जगह एक शादी की दावत थी और यीशु की माँ भी वहाँ थी।
2 यीशु और उसके चेलों को भी शादी में बुलाया गया था।
3 जब वहाँ दाख-मदिरा कम पड़ गयी, तो यीशु की माँ ने उससे कहा, “उनकी दाख-मदिरा खत्म हो गयी है।”
4 मगर यीशु ने उससे कहा, “हम क्यों इसकी चिंता करें?* मेरा वक्त अब तक नहीं आया है।”
5 उसकी माँ ने सेवा करनेवालों से कहा, “वह तुमसे जो कहे, वही करना।”
6 वहाँ पत्थर के छ: मटके रखे थे, जैसा यहूदियों के शुद्ध करने के नियमों के मुताबिक ज़रूरी था।+ हर मटके में 44 से 66 लीटर* पानी समा सकता था।
7 यीशु ने उनसे कहा, “मटकों को पानी से भर दो।” तब उन्होंने मटके मुँह तक लबालब भर दिए।
8 फिर उसने कहा, “अब इसमें से थोड़ा लेकर दावत की देखरेख करनेवाले के पास ले जाओ।” तब वे ले गए।
9 दावत की देखरेख करनेवाले ने वह पानी चखा जो अब दाख-मदिरा में बदल चुका था। मगर वह नहीं जानता था कि यह मदिरा कहाँ से आयी (जबकि सेवा करनेवाले जानते थे जिन्होंने मटके से पानी निकाला था)। तब उसने दूल्हे को बुलाया
10 और उससे कहा, “हर कोई बढ़िया दाख-मदिरा पहले निकालता है और जब लोग पीकर धुत्त हो जाते हैं, तो हलकी दाख-मदिरा देता है। मगर तूने अब तक इस बेहतरीन दाख-मदिरा को अलग रखा हुआ है।”
11 इस तरह यीशु ने गलील के काना में पहला चमत्कार किया और अपनी शक्ति दिखायी+ और उसके चेलों ने उस पर विश्वास किया।
12 इसके बाद यीशु, उसकी माँ, उसके भाई+ और चेले कफरनहूम गए,+ मगर वहाँ ज़्यादा दिन नहीं ठहरे।
13 यहूदियों का फसह का त्योहार+ पास था और यीशु यरूशलेम गया।
14 उसने वहाँ मंदिर में मवेशी, भेड़ और कबूतर+ बेचनेवालों को और पैसे बदलनेवाले सौदागरों को अपनी-अपनी गद्दियों पर बैठा देखा।
15 तब उसने रस्सियों का एक कोड़ा बनाया और उन सभी को उनकी भेड़ों और उनके मवेशियों के साथ मंदिर से बाहर खदेड़ दिया। उसने सौदागरों के सिक्के बिखरा दिए और उनकी मेज़ें पलट दीं।+
16 उसने कबूतर बेचनेवालों से कहा, “यह सब लेकर यहाँ से निकल जाओ! मेरे पिता के घर को बाज़ार* मत बनाओ!”+
17 तब उसके चेलों को याद आया कि यह लिखा है, “तेरे भवन के लिए जोश की आग मुझे भस्म कर देगी।”+
18 यह देखकर यहूदियों ने उससे कहा, “तू हमें कौन-सा चमत्कार दिखा सकता है+ जिससे हम जानें कि तुझे यह सब करने का अधिकार मिला है?”
19 यीशु ने उन्हें जवाब दिया, “इस मंदिर को गिरा दो और मैं तीन दिन के अंदर इसे खड़ा कर दूँगा।”+
20 तब यहूदी कहने लगे, “यह मंदिर बनाने में 46 साल लगे थे और तू इसे तीन दिन में खड़ा कर देगा?”
21 मगर मंदिर से उसका मतलब था, उसका अपना शरीर।+
22 जब उसे मरे हुओं में से ज़िंदा किया गया, तो उसके चेलों को याद आया कि वह यह बात कहा करता था।+ और उन्होंने शास्त्र का और यीशु की बात का यकीन किया।
23 जब वह फसह के त्योहार के वक्त यरूशलेम में था, तो बहुत-से लोगों ने उसके चमत्कार देखकर उसके नाम पर विश्वास किया।
24 मगर यीशु ने खुद को उनके भरोसे नहीं छोड़ा क्योंकि वह सबको जानता था।
25 और लोगों के बारे में जानने के लिए उसे किसी इंसान की ज़रूरत नहीं थी क्योंकि वह जानता था कि इंसान के दिल में क्या है।+
कई फुटनोट
^ शा., “हे औरत, मुझे क्या और तुझे क्या?” किसी की बात पर एतराज़ करने के लिए यह मुहावरा कहा जाता था। “औरत” कहना बेइज़्ज़ती करना नहीं था।
^ या “व्यापार की जगह।”