रोमियों के नाम चिट्ठी 10:1-21
10 भाइयो, मैं दिल से यही चाहता हूँ और इसराएलियों के लिए परमेश्वर से मेरी यही प्रार्थना है कि वे उद्धार पाएँ।+
2 इसलिए कि मैं उनके बारे में गवाही देता हूँ कि उनमें परमेश्वर की सेवा के लिए जोश तो है,+ मगर सही ज्ञान के मुताबिक नहीं।
3 वे नहीं जानते थे कि परमेश्वर की नज़र में नेक ठहरने के लिए क्या ज़रूरी है।+ इसलिए वे अपने तरीके से खुद को नेक ठहराने की कोशिश करते रहे+ और परमेश्वर के नेक स्तरों पर नहीं चले।+
4 मसीह की मौत से कानून का अंत हो गया+ ताकि हर कोई जो मसीह पर विश्वास करे वह नेक ठहरे।+
5 मूसा ने कानून के ज़रिए नेक ठहरने के बारे में लिखा, “जो इंसान ये काम करता है वह ज़िंदा रहेगा।”+
6 मगर विश्वास से नेक ठहरने के बारे में लिखा है, “अपने दिल में यह न कहो,+ ‘कौन ऊपर स्वर्ग जाएगा?’+ यानी मसीह को नीचे लाने के लिए कौन स्वर्ग जाएगा।
7 या, ‘कौन अथाह-कुंड में उतरेगा?’+ यानी मसीह को मरे हुओं में से ऊपर लाने के लिए कौन अथाह-कुंड में उतरेगा।”
8 मगर शास्त्र क्या कहता है? यह कहता है, “यह संदेश तेरे पास, तेरे ही मुँह में और तेरे ही दिल में है,”+ यानी विश्वास का “संदेश” जिसका हम प्रचार करते हैं।
9 अगर तू मुँह से सब लोगों के सामने ऐलान करे कि यीशु ही प्रभु है+ और अपने दिल में यह विश्वास रखे कि परमेश्वर ने उसे मरे हुओं में से ज़िंदा किया है, तो तू उद्धार पाएगा।
10 इसलिए कि एक इंसान नेक ठहराए जाने के लिए दिल से विश्वास करता है, मगर उद्धार पाने के लिए सब लोगों के सामने मुँह से अपने विश्वास का ऐलान करता है।+
11 क्योंकि शास्त्र कहता है, “जो कोई उस पर विश्वास करता है वह निराश नहीं होगा।”+
12 इसलिए कि यहूदी और यूनानी के बीच कोई फर्क नहीं+ क्योंकि सबके ऊपर एक ही प्रभु है, जो अपने सब पुकारनेवालों को ढेरों आशीषें देता है।*
13 इसलिए कि “जो कोई यहोवा* का नाम पुकारता है वह उद्धार पाएगा।”+
14 मगर वे उसका नाम कैसे पुकारेंगे जब उन्होंने उस पर विश्वास ही नहीं किया? और वे उस पर कैसे विश्वास करेंगे जिसके बारे में उन्होंने सुना ही नहीं? और वे उसके बारे में कैसे सुनेंगे जब कोई प्रचार करनेवाला ही न हो?
15 और प्रचार करनेवाले कैसे प्रचार करेंगे जब तक उन्हें भेजा न जाए?+ ठीक जैसा लिखा है, “उनके पाँव कितने सुंदर हैं जो अच्छी बातों की खुशखबरी सुनाते हैं!”+
16 फिर भी उनमें से सब खुशखबरी के मुताबिक नहीं चले। यशायाह कहता है, “हे यहोवा,* किसने हमारे संदेश पर विश्वास किया है?”+
17 तो संदेश सुनने के बाद ही विश्वास किया जाता है।+ और संदेश तब सुना जाता है जब कोई मसीह के बारे में प्रचार करता है।
18 मगर मैं पूछता हूँ, क्या उन्होंने संदेश नहीं सुना? बेशक सुना क्योंकि लिखा है, “संदेश सुनानेवालों की आवाज़ सारी धरती पर गूँज उठी और उनका संदेश धरती के कोने-कोने तक पहुँचा।”+
19 मगर मैं पूछता हूँ, क्या इसराएली समझ नहीं पाए?+ पहले मूसा कहता है, “मैं उसके ज़रिए तुम्हें जलन दिलाऊँगा जो एक जाति नहीं है। मैं एक मूर्ख जाति के ज़रिए तुम्हारे अंदर गुस्से की आग भड़काऊँगा।”+
20 फिर यशायाह बेधड़क होकर कहता है, “जिन्होंने मुझे नहीं ढूँढ़ा, उन्होंने मुझे पा लिया+ और जिन्होंने मेरे बारे में नहीं पूछा उन पर मैं ज़ाहिर हुआ।”+
21 लेकिन इसराएलियों के बारे में वह कहता है, “मैं ऐसे लोगों के सामने दिन-भर हाथ फैलाए रहा जो मेरी आज्ञा नहीं मानते और ढीठ हैं।”+