लूका के मुताबिक खुशखबरी 14:1-35
कई फुटनोट
अध्ययन नोट
जलोदर: शरीर में हद-से-ज़्यादा पानी की वजह से होनेवाली सूजन। प्राचीन समय के वैद्य “जलोदर” का यूनानी शब्द हिप्पोक्रेटिस (जो ईसा पूर्व चौथी और पाँचवीं सदी का एक यूनानी वैद्य था) के ज़माने से इस्तेमाल कर रहे थे। जलोदर शायद इस बात का एक लक्षण था कि शरीर के ज़रूरी अंग बहुत खराब हो चुके हैं। लोग इस बीमारी से डरते थे, क्योंकि अकसर यह इस बात की निशानी होती थी कि रोगी की अचानक मौत हो जाएगी। कुछ लोगों का मानना है कि उस आदमी को सब्त के दिन यीशु के पास लाया जाना फरीसियों की एक चाल थी, क्योंकि आयत 1 बताती है, “वे उस पर नज़रें जमाए हुए थे।” यीशु के करीब छ: चमत्कारों के बारे में सिर्फ लूका ने लिखा और यह उनमें से एक था।
खास-खास जगह: यीशु के दिनों में दावतों में मेहमान उन दीवानों पर बैठते थे जो मेज़ के तीन तरफ लगाए जाते थे। चौथी तरफ से सेवक खाना परोसते थे। एक मेज़ के साथ कितने दीवान लगाए जाते थे, यह इस बात पर निर्भर था कि मेज़ कितनी बड़ी है। एक दीवान पर चार या पाँच लोग बैठ सकते थे, मगर आम तौर पर तीन ही बैठते थे। हर व्यक्ति दीवान पर इस तरह बैठता था कि उसका मुँह मेज़ की तरफ होता था, वह अपने बाएँ हाथ की कोहनी से तकिए पर टेक लगाता था और दाएँ हाथ से खाना खाता था। परंपरा के मुताबिक दीवान पर बैठने की तीनों जगह अलग दर्जे की मानी जाती थीं, एक जगह की अहमियत सबसे ज़्यादा होती थी, बीचवाली की उससे कम और तीसरी की सबसे कम।
भोजन करेगा: या “दावत खाएगा।” शा., “रोटी खाएगा।” बाइबल के ज़माने में खाने में रोटी ज़रूर होती थी। इसलिए इब्रानी और यूनानी भाषाओं में “रोटी खाने” का मतलब है, “खाना खाना।” “रोटी खाने” के इब्रानी शब्दों का अनुवाद अकसर ‘खाना खाना’ किया गया है। (उत 37:25; 2रा 4:8; 2शम 9:7; सभ 9:7) उसी तरह लूक 14:1 में जिस शब्द का अनुवाद “खाने पर गया” किया गया है, उसका शाब्दिक अनुवाद है, “रोटी खाने गया।”
नफरत: बाइबल में शब्द “नफरत” के कई मतलब हैं। एक मतलब है, दुश्मनी जिस वजह से एक इंसान दूसरे का नुकसान करने की सोचता है। दूसरा मतलब है, किसी व्यक्ति या चीज़ को ज़रा भी पसंद न करना या इतनी घृणा करना कि उससे पूरी तरह दूर रहना। या फिर “नफरत” का मतलब किसी को कम प्यार करना भी हो सकता है। उदाहरण के लिए, जब याकूब के बारे में कहा गया कि वह राहेल से प्यार करता है और लिआ से “नफरत,” तो उसका मतलब था कि वह लिआ से ज़्यादा राहेल से प्यार करता है। (उत 29:31, फु.; व्य 21:15, फु.) प्राचीन यहूदी लेखों में भी यह मतलब देने के लिए “नफरत” शब्द इस्तेमाल हुआ है। इसलिए यीशु के कहने का मतलब यह नहीं था कि उसके चेलों को अपने परिवारवालों से और खुद से नफरत करनी चाहिए। ऐसा करना तो बाइबल की दूसरी आयतों में दिए सिद्धांतों के खिलाफ होता। (मर 12:29-31; इफ 5:28, 29, 33 से तुलना करें।) इसलिए इस संदर्भ में शब्द “नफरत नहीं करता” का अनुवाद “कम प्यार नहीं करता” भी किया जा सकता है।
जान: यूनानी शब्द साइखी का मतलब संदर्भ के मुताबिक अलग-अलग होता है। यहाँ इसका मतलब है, एक इंसान का जीवन। इसलिए यीशु के कहने का मतलब था कि एक सच्चे चेले को अपने जीवन से ज़्यादा यीशु से प्यार करना चाहिए, इतना कि उसे अपनी जान तक देने के लिए तैयार होना चाहिए।—शब्दावली में “जीवन” देखें।
यातना का काठ: या “मौत का काठ।” प्राचीन यूनानी भाषा में शब्द स्टौरोस का खास तौर से मतलब है, सीधा काठ या खंभा। यह शब्द बाइबल में लाक्षणिक तौर पर इस्तेमाल हुआ है और उसका अकसर मतलब है, यीशु का चेला होने की वजह से यातना, दुख-तकलीफें, शर्मिंदगी, यहाँ तक कि मौत सहना। यीशु ने तीन मौकों पर यह कहा कि उसके चेलों को अपना यातना का काठ उठाना होगा। यह तीसरा मौका था, पहले दो मौकों के बारे में इन आयतों में लिखा है: (1) मत 10:38; (2) मत 16:24; मर 8:34; लूक 9:23.—शब्दावली देखें।
नमक: एक ऐसा खनिज जो खाने का स्वाद बढ़ाता है। यह खाने की चीज़ों को खराब होने से भी बचाता है।—मत 5:13 का अध्ययन नोट देखें।
अपना स्वाद खो दे: मत 5:13 का अध्ययन नोट देखें।
तसवीर और ऑडियो-वीडियो
पहली सदी में आम तौर पर लोग मेज़ से टेक लगाकर खाना खाते थे। हर व्यक्ति अपने बाएँ हाथ की कोहनी से तकिए पर टेक लगाता था और दाएँ हाथ से खाना खाता था। यूनानी और रोमी लोगों के दस्तूर के मुताबिक, आम तौर पर खाना खाने के कमरे में कम ऊँचाईवाली एक मेज़ होती थी और उसके तीन तरफ दीवान लगाए जाते थे। रोमी लोग इस तरह के कमरे को ट्रिक्लिनियम (लातीनी शब्द जो एक यूनानी शब्द से निकला है जिसका मतलब है, “तीन दीवानोंवाला कमरा”) कहते थे। इस तरह के इंतज़ाम में नौ लोग एक-साथ खाना खाते थे, यानी हर दीवान पर तीन लोग बैठते थे। मगर बाद में बड़े-बड़े दीवान रखे जाने लगे ताकि एक-साथ ज़्यादा लोग खाना खा सकें। परंपरा के हिसाब से बैठने की हर जगह का अलग दर्जा होता था। (क) एक दीवान सबसे कम सम्मानवाला माना जाता था, (ख) दूसरा उससे ज़्यादा और (ग) तीसरा सबसे ज़्यादा सम्मानवाला। यहाँ तक कि दीवान पर भी बैठने की हर जगह अलग-अलग दर्जे की मानी जाती थी। तीनों में से बायीं तरफ बैठनेवाले की अहमियत सबसे ज़्यादा होती थी, बीचवाले की उससे कम और दायीं तरफवाले की सबसे कम। दावतों में आम तौर पर मेज़बान सबसे कम सम्मानवाले दीवान पर पहली जगह (1) पर बैठता था। बीचवाले दीवान पर तीसरी जगह (2) सबसे आदर की जगह मानी जाती थी। इस बात का कोई साफ सबूत नहीं है कि यहूदियों ने किस हद तक यह दस्तूर अपनाया था। लेकिन जब यीशु अपने चेलों को नम्रता की सीख दे रहा था, तब उसने शायद इसी दस्तूर की तरफ इशारा किया।
आज दुनिया के दूसरे सागरों के मुकाबले मृत सागर (लवण सागर) का पानी नौ गुना ज़्यादा खारा है। (उत 14:3) मृत सागर का पानी जब भाप बनकर उड़ जाता था तो काफी तादाद में नमक रह जाता था। इसराएली यही नमक खाते थे। यह नमक ज़्यादा अच्छा नहीं माना जाता था क्योंकि इसमें दूसरे खनिज मिले होते थे। इसराएली, फीनीके के लोगों से भी नमक खरीदते होंगे जिनके बारे में कहा जाता है कि उन्हें भूमध्य सागर से नमक मिलता था। बाइबल बताती है कि नमक खाने का स्वाद बढ़ाता है। (अय 6:6) यीशु रोज़मर्रा के कामों में इस्तेमाल होनेवाली चीज़ों की मिसाल देने में कुशल था, इसलिए उसने कुछ ज़रूरी सीख देने के लिए नमक की मिसाल दी। जैसे, पहाड़ी उपदेश में उसने चेलों से कहा, “तुम पृथ्वी के नमक हो।” ऐसा कहकर वह उन्हें समझा रहा था कि वे दूसरों की मदद कर सकते हैं ताकि परमेश्वर के साथ उनका रिश्ता खराब न हो और उनकी ज़िंदगी नैतिक तौर पर बरबाद न हो।