लूका के मुताबिक खुशखबरी 4:1-44
अध्ययन नोट
पवित्र शक्ति उसे . . . ले गयी: यूनानी शब्द नफ्मा का यहाँ मतलब है, परमेश्वर की पवित्र शक्ति। यह शक्ति एक इंसान को परमेश्वर की मरज़ी के मुताबिक काम करने के लिए प्रेरित कर सकती है, उभार सकती है या बढ़ावा दे सकती है।—मर 1:12; शब्दावली में “रुआख; नफ्मा” देखें।
शैतान: मत 4:1 का अध्ययन नोट देखें।
इंसान को सिर्फ रोटी से ज़िंदा नहीं रहना है: यीशु ने इब्रानी शास्त्र से व्य 8:3 की जो बात कही, उसे दर्ज़ करते वक्त लूका ने आधी बात लिखी, जबकि मत्ती ने पूरी बात लिखी। लेकिन कुछ प्राचीन यूनानी हस्तलिपियों और अनुवादों में लूक 4:4 में पूरी बात लिखी है: “इंसान को सिर्फ रोटी से नहीं बल्कि परमेश्वर के हर वचन से ज़िंदा रहना है।” इस तरह उन हस्तलिपियों और अनुवादों में लूक 4:4 और मत 4:4 मिलते-जुलते हैं। मगर लूका के ब्यौरे में जो आधी बात लिखी है, उसका आधार शुरू की हस्तलिपियों में पाया जाता है। गौर करनेवाली बात यह है कि मसीही यूनानी शास्त्र के जिन कई इब्रानी अनुवादों में (जिन्हें अति. ग में J7, 8, 10, 13-15, 17 कहा गया है) लूका 4:4 में पूरी बात लिखी है, उनमें परमेश्वर के नाम के लिए चार इब्रानी अक्षर इस्तेमाल हुए हैं। उन अनुवादों में लिखा है, “बल्कि यहोवा के मुँह से जो कुछ निकलता है उससे ज़िंदा रहना है।”
यहोवा: यहाँ व्य 6:13; 10:20 की बातें लिखी हैं। मूल इब्रानी पाठ में इन आयतों में परमेश्वर के नाम के लिए चार इब्रानी व्यंजन (हिंदी में य-ह-व-ह) इस्तेमाल हुए हैं।—अति. ग देखें।
मंदिर की छत की मुँडेर: मत 4:5 का अध्ययन नोट देखें।
यहोवा: यहाँ व्य 6:16 की बात लिखी है। मूल इब्रानी पाठ में इस आयत में परमेश्वर के नाम के लिए चार इब्रानी व्यंजन (हिंदी में य-ह-व-ह) इस्तेमाल हुए हैं।—अति. ग देखें।
सभा-घरों: शब्दावली में “सभा-घर” देखें।
अपने दस्तूर के मुताबिक वह सब्त के दिन: इस बात का कोई सबूत नहीं कि यहूदी, बैबिलोन की बँधुआई में जाने से पहले सब्त मनाने के लिए सभा-घरों में इकट्ठा होते थे। लेकिन मुमकिन है कि एज्रा और नहेमायाह के दिनों से यह दस्तूर शुरू हुआ था। यह दस्तूर उपासना के मामले में फायदेमंद था, इसलिए यीशु भी इसे मानता था। यीशु जब छोटा था तब उसका परिवार नासरत के सभा-घर में जाया करता था। इसी तरह बाद में जब मसीही मंडली की शुरूआत हुई तो मसीही, उपासना के लिए इकट्ठा होते थे।
पढ़ने के लिए खड़ा हुआ: विद्वानों ने गौर किया है कि सभा-घर में धार्मिक सभाएँ कैसे होती थीं, उसके बारे में सबसे पहली जानकारी इस आयत में दी गयी है। यहूदियों की मान्यता है कि आम तौर पर धार्मिक सभा की शुरूआत निजी प्रार्थनाओं से होती थी। जैसे-जैसे लोग आते थे वे मन-ही-मन प्रार्थना करते थे। फिर व्य 6:4-9 और 11:13-21 के शब्द मुँह-ज़ुबानी दोहराए जाते थे। उसके बाद सबकी तरफ से प्रार्थना की जाती थी और फिर पंचग्रंथ से वह हिस्सा पढ़ा जाता था जो उस दिन के लिए तय होता था। प्रेष 15:21 में लिखा है कि पहली सदी में इस तरह की पढ़ाई “हर सब्त के दिन” होती थी। पंचग्रंथ की पढ़ाई के बाद, भविष्यवाणियों की किताबों से कोई भाग पढ़ा जाता था और उससे कोई सीख दी जाती थी। ऐसा लगता है कि इस आयत में धार्मिक सभा के इसी पहलू की बात की गयी है। आम तौर पर यह पढ़ाई खड़े होकर की जाती थी और पढ़नेवाले को शायद यह छूट थी कि वह भविष्यवाणियों की किताबों से कोई भी हिस्सा पढ़ सकता है।
भविष्यवक्ता यशायाह का खर्रा: मृत सागर के पास मिला यशायाह का खर्रा चर्मपत्र की 17 पट्टियों को जोड़कर बनाया गया था। इसलिए इस पूरे खर्रे की लंबाई 7.3 मी. (24 फुट) है और इसमें 54 खाने हैं। नासरत के सभा-घर में जिस खर्रे से पढ़ा जाता था वह इतना ही लंबा रहा होगा। इसके अलावा, पहली सदी तक बाइबल की किताबें अध्यायों और आयतों में नहीं बाँटी गयी थीं। इसलिए यीशु जो भाग पढ़ना चाहता था वह उसे ढूँढ़ना पड़ा होगा। आयत कहती है कि उसने वह जगह ढूँढ़कर निकाली जहाँ भविष्यवाणी के वे शब्द लिखे थे जिन्हें वह पढ़ना चाहता था। इससे पता चलता है कि वह परमेश्वर के वचन से अच्छी तरह वाकिफ था।
यहोवा: यहाँ यश 61:1 की बात लिखी है। मूल इब्रानी पाठ में इस आयत में परमेश्वर के नाम के लिए चार इब्रानी व्यंजन (हिंदी में य-ह-व-ह) इस्तेमाल हुए हैं।—अति. ग देखें।
उसने . . . अभिषेक किया है: लूका ने यहाँ सेप्टुआजेंट से यशायाह की भविष्यवाणी दर्ज़ की, जिसमें लिखा है: “उसने . . . अभिषेक किया है।” मगर यीशु ने इब्रानी शास्त्र से यशायाह की भविष्यवाणी (61:1, 2) पढ़ी होगी, जहाँ ‘अभिषेक करने’ की क्रिया के साथ-साथ परमेश्वर के नाम के लिए चार इब्रानी व्यंजन (हिंदी में य-ह-व-ह) इस्तेमाल हुए हैं। मसीही यूनानी शास्त्र के कई इब्रानी अनुवादों में (जिन्हें अति. ग में J7, 8, 10, 13-15 कहा गया है) यहाँ परमेश्वर का नाम आया है और उनमें लिखा है, “यहोवा ने . . . अभिषेक किया है।”
ताकि मैं बंदियों को रिहाई का . . . संदेश दूँ: यहाँ यीशु ने यशायाह की भविष्यवाणी पढ़ी, जिसे कुछ यहूदियों ने शायद शब्द-ब-शब्द ले लिया। (यश 61:1) मगर यीशु ने अपनी सेवा के दौरान इस बात पर ध्यान दिया कि वह लोगों को झूठी शिक्षाओं से आज़ाद करे। इसका मतलब, यीशु लाक्षणिक रिहाई का संदेश सुना रहा था। इस भविष्यवाणी से और यीशु ने इसे जिस तरह अपनी सेवा से जोड़ा, उससे शायद छुटकारे के साल का इशारा मिलता है। इसे हर 50वें साल मनाया जाना था। छुटकारे के साल पूरे देश में छुटकारे का ऐलान किया जाना था।—लैव 25:8-12.
यहोवा: यहाँ यश 61:2 की बात लिखी है। मूल इब्रानी पाठ में इस आयत में परमेश्वर के नाम के लिए चार इब्रानी व्यंजन (हिंदी में य-ह-व-ह) इस्तेमाल हुए हैं।—अति. ग देखें।
यहोवा की मंज़ूरी पाने के साल: यहाँ यीशु ने यश 61:1, 2 की बातें कहीं और खुद पर यह भविष्यवाणी लागू की। इस तरह उसने ज़ाहिर किया कि उद्धार दिलानेवाली उसकी सेवा से वह “साल” शुरू हुआ जिस दौरान परमेश्वर उन लोगों को मंज़ूरी देता जो उद्धार के लिए उसके पास आते। यीशु ने आगे लिखे यशायाह के शब्द नहीं पढ़े जिसमें परमेश्वर के “बदला लेने के दिन” के बारे में बताया गया था जिसकी अवधि कम होती। उसने शायद ऐसा इसलिए किया ताकि वह “मंज़ूरी पाने के साल” पर ज़्यादा ध्यान दे सके जो लंबे समय तक चलता।—लूक 19:9, 10; यूह 12:47.
और बैठ गया: यह इस बात का इशारा था कि यीशु अब कुछ बोलने जा रहा है। सभा-घर में यह दस्तूर था कि जो लोगों के सामने पढ़ता था वह वापस अपनी जगह नहीं बल्कि ऐसी जगह पर बैठकर सिखाता था जहाँ ‘सभा-घर में सब लोग’ उसे देख सकें।—मत 5:1 के अध्ययन नोट से तुलना करें।
कहावत: या “नीतिवचन; नीति-कथा; मिसाल।” यूनानी शब्द पैराबोले का शाब्दिक मतलब है, “के पास (या साथ-साथ) रखना।” इस शब्द का मतलब एक नीति-कथा, नीतिवचन या मिसाल भी हो सकता है।—मत 13:3 का अध्ययन नोट देखें।
साढ़े तीन साल तक: 1रा 18:1 के मुताबिक, एलियाह ने “तीसरे साल” में सूखा खत्म होने का ऐलान किया। इसलिए कुछ लोगों का दावा है कि यीशु की कही बात, 1 राजा में लिखी बात से अलग है। लेकिन इब्रानी शास्त्र के इस ब्यौरे से यह नहीं पता चलता कि सूखा तीन साल से कम समय तक रहा था। ज़ाहिर है कि शब्द “तीसरे साल” का मतलब है, वह समय जिसकी शुरूआत तब हुई थी जब एलियाह ने अहाब के सामने सूखा पड़ने का ऐलान किया था। (1रा 17:1) मुमकिन है कि एलियाह ने यह ऐलान तब किया जब गरमी का मौसम शुरू हुए काफी समय हो चुका था। आम तौर पर यह मौसम छ: महीने तक रहता था, लेकिन इस बार यह ज़्यादा समय तक रहा होगा। इसके अलावा, जब एलियाह फिर से “तीसरे साल” अहाब के सामने गया और सूखे के अंत का ऐलान किया तो सूखा उसी वक्त खत्म नहीं हुआ। इसके बजाय, पहले करमेल पहाड़ पर आग की परीक्षा हुई और उसके बाद जाकर सूखा खत्म हुआ। (1रा 18:18-45) इसलिए यीशु ने लूक 4:25 में जो कहा, साथ ही उसके भाई ने याकू 5:17 में जो मिलते-जुलते शब्द दर्ज़ किए, वे 1रा 18:1 में लिखी घटना के समय से मेल खाते हैं।
सारपत नगर: फीनीके का यह नगर भूमध्य सागर के तट पर सीदोन और सोर शहरों के बीच था, यानी यह नगर इसराएलियों के इलाके में नहीं था। इसका यूनानी नाम सारेप्ता था। इसका इब्रानी नाम 1रा 17:9, 10 और ओब 20 में आता है। यह नाम आज लबानोन के सराफंड नाम की जगह में पाया जाता है। यह जगह सीदोन से करीब 13 कि.मी. (8 मील) दूर दक्षिण-पश्चिम में है। लेकिन प्राचीन सारपत भूमध्य सागर के तट पर सीदोन से शायद थोड़ी ही दूरी पर रहा हो।—अति. ख10 देखें।
शुद्ध किया गया: या “चंगा किया गया।” यहाँ नामान का कोढ़ ठीक करने की बात की गयी है। (2रा 5:3-10, 14) मूसा के कानून के मुताबिक यह बीमारी होने पर एक व्यक्ति को अशुद्ध माना जाता था। (लैव 13:1-59) इसलिए “शुद्ध किया गया” का यूनानी शब्द अकसर कोढ़ियों को ठीक करने के सिलसिले में इस्तेमाल हुआ है।—मत 8:3; 10:8; मर 1:40, 41.
उसे नीचे धकेल दें: एक यहूदी परंपरा के मुताबिक, जिसे बाद में तलमूद में दर्ज़ किया गया, एक दोषी आदमी को कभी-कभी पहाड़ से नीचे फेंक दिया जाता था और फिर उस पर पत्थर फेंके जाते थे ताकि वह किसी भी हाल में ज़िंदा न बचे। नासरत की भीड़ यीशु के साथ यही करना चाहती थी या नहीं, यह पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता। लेकिन एक बात तय है कि वे यीशु को मार डालना चाहते थे।
कफरनहूम: यह एक इब्रानी नाम से निकला है जिसका मतलब है, “नहूम का गाँव” या “दिलासे का गाँव।” (नहू 1:1, फु.) धरती पर यीशु की प्रचार सेवा से इस शहर का खास संबंध रहा। यह गलील झील के उत्तर-पश्चिमी तट पर था और मत 9:1 में इसे उसका ‘अपना शहर’ कहा गया। कफरनहूम समुद्र-तल से करीब 650 फुट (200 मी.) नीचे था और नासरत समुद्र-तल से करीब 1,200 फुट (360 मी.) ऊपर था। इसलिए मूल यूनानी पाठ में यहाँ यह लिखना कि यीशु “नीचे कफरनहूम गया,” सही है।
एक दुष्ट स्वर्गदूत: या “एक अशुद्ध दुष्ट स्वर्गदूत।”—शब्दावली में “रुआख; नफ्मा” देखें।
हमें तुझसे क्या लेना-देना?: मत 8:29 का अध्ययन नोट देखें।
शमौन की सास: यानी पतरस (जिसे कैफा भी कहा जाता था) की सास। (यूह 1:42) यह बात 1कुर 9:5 में दर्ज़ पौलुस के शब्दों से मेल खाती है जहाँ बताया गया है कि कैफा शादीशुदा था। ज़ाहिर है कि पतरस के घर में उसकी सास और उसका भाई अन्द्रियास भी रहता था।—मर 1:29-31; मत 10:2 का अध्ययन नोट देखें, जहाँ इस प्रेषित के अलग-अलग नामों के बारे में बताया गया है।
तेज़ बुखार से तप रही थी: मत्ती और मरकुस ने बताया कि पतरस की सास ‘बीमार है और बुखार में पड़ी है।’ (मत 8:14; मर 1:30) सिर्फ लूका ने बताया कि उसकी हालत कितनी गंभीर थी। उसने कहा कि उसे “तेज़ बुखार” था। ज़ाहिर है कि एक वैद्य होने के नाते उसने वह बात लिखी।—“लूका की किताब पर एक नज़र” देखें।
तसवीर और ऑडियो-वीडियो
इसी बंजर इलाके में यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले ने प्रचार करना शुरू किया था और यहीं शैतान ने यीशु को फुसलाया था।
बाइबल में जिन मूल शब्दों (इब्रानी में मिधबार और यूनानी में ईरेमोस ) का अनुवाद ‘वीराना’ या ‘वीरान इलाका’ किया गया है, उनका आम तौर पर मतलब होता है ऐसा इलाका जहाँ कहीं-कहीं घर होते हैं और खेती नहीं होती। लेकिन अकसर इन शब्दों का मतलब होता है, ऐसे मैदान जहाँ घास-फूस और झाड़ियाँ उगती हैं और जानवर चराए जाते हैं। इन शब्दों का मतलब रेगिस्तान भी हो सकता है जहाँ पानी नहीं होता। खुशखबरी की किताबों में जब वीराने की बात की गयी है तो आम तौर पर उसका मतलब है यहूदिया का वीराना। इसी वीराने में यूहन्ना रहता था और प्रचार करता था और यहीं शैतान ने यीशु को फुसलाया था।—मर 1:12.
हो सकता है कि शैतान ने सच में यीशु को “मंदिर की छत की मुँडेर [या “सबसे ऊँची जगह”] पर” खड़ा किया हो और वहाँ से नीचे छलाँग लगाने को कहा हो। लेकिन यह पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता कि यीशु मंदिर की ठीक किस जगह पर खड़ा था। यहाँ “मंदिर” के लिए जो शब्द इस्तेमाल हुआ है उसका मतलब पूरा मंदिर परिसर हो सकता है, इसलिए यीशु शायद मंदिर के दक्षिण-पूर्वी कोने (1) पर खड़ा हो। या फिर हो सकता है कि वह मंदिर परिसर के किसी भी कोने पर खड़ा हो। इनमें से किसी भी कोने पर से अगर यीशु गिरता और यहोवा उसे न बचाता तो उसकी मौत पक्की थी।
तसवीर में यशायाह के खर्रे (1QIsa) का एक हिस्सा दिखाया गया है जो 1947 में मृत सागर के पास कुमरान की एक गुफा में मिला था। माना जाता है कि यह खर्रा ईसा पूर्व 125 से 100 का है। यहाँ जो हिस्सा उभारकर दिखाया गया है, वह यशायाह 61:1, 2 की आयत है और यीशु ने नासरत की एक सभा-घर में यही अध्याय पढ़कर सुनाया था। यह खर्रा चर्मपत्र की 17 पट्टियों को जोड़कर बनाया गया है और हर पट्टी को सन के धागे से सिला गया है। हर पट्टी की औसत ऊँचाई 10.3 इंच (26.4 सें.मी.) है। इसकी लंबाई करीब 10 इंच (करीब 25.2 सें.मी.) से लेकर करीब 25 इंच (करीब 62.8 सें.मी.) तक है। अब जो खर्रा उपलब्ध है, उसकी कुल लंबाई 24 फुट (7.3 मी.) है। यीशु ने शायद ऐसा ही एक खर्रा खोलकर वह ‘जगह ढूँढ़ निकाली’ होगी जहाँ मसीहा के बारे में भविष्यवाणी की गयी थी। (लूक 4:17) इस हिस्से में उन तीन जगहों पर घेरे बनाए गए हैं जहाँ परमेश्वर का नाम इब्रानी के चार अक्षरों में लिखा है।
यहाँ तसवीर में दिखायी सफेद चूना-पत्थर की दीवार उस सभा-घर का हिस्सा है, जिसे दूसरी सदी के आखिर से पाँचवीं सदी की शुरूआत के बीच बनाया गया था। दीवार का निचला हिस्सा काले असिताश्म (बेसाल्ट) पत्थरों से बना है और माना जाता है कि यह पहली सदी के सभा-घर का हिस्सा है। अगर यह सच है, तो मुमकिन है कि यह उन जगहों में से एक है जहाँ यीशु सिखाया करता था और जहाँ यीशु ने ऐसे आदमी को ठीक किया था जिसमें दुष्ट स्वर्गदूत समाया था। इस घटना का ज़िक्र मर 1:23-27 और लूक 4:33-36 में किया गया है।