लूका के मुताबिक खुशखबरी 8:1-56

8  इसके कुछ समय बाद यीशु शहर-शहर और गाँव-गाँव गया और लोगों को प्रचार करता और परमेश्‍वर के राज की खुशखबरी सुनाता गया।+ वे 12 चेले उसके साथ थे  और कुछ औरतें भी थीं, जिनमें से दुष्ट स्वर्गदूत निकाले गए थे और उनकी बीमारियाँ दूर की गयी थीं। जैसे, मरियम जो मगदलीनी कहलाती थी+ और जिसमें से सात दुष्ट स्वर्गदूत निकले थे,  योअन्‍ना+ जो हेरोदेस के घर के प्रबंधक खुज़ा की पत्नी थी, सुसन्‍ना और दूसरी कई औरतें। ये सभी अपनी धन-संपत्ति से यीशु और उसके चेलों की सेवा करती थीं।+  अलग-अलग शहरों से आए लोगों के अलावा, जब एक बड़ी भीड़ उसके पास जमा हुई तो उसने उन्हें यह मिसाल दी:+  “एक बीज बोनेवाला बीज बोने निकला। जब वह बो रहा था, तो कुछ बीज रास्ते के किनारे गिरे और वे पैरों तले रौंदे गए और आकाश के पंछी आकर उन्हें खा गए।+  कुछ चट्टानी ज़मीन पर गिरे और अंकुर फूटने के बाद सूख गए क्योंकि उन्हें नमी न मिली।+  कुछ और बीज काँटों में गिरे और उनके साथ-साथ बढ़नेवाले कँटीले पौधों ने उन्हें दबा दिया।+  मगर कुछ और बीज अच्छी मिट्टी पर गिरे और अंकुर फूटने के बाद उनसे 100 गुना फल पैदा हुआ।”+ ये बातें बताने के बाद उसने ऊँची आवाज़ में कहा, “कान लगाकर सुनो कि मैं क्या कह रहा हूँ।”+  मगर उसके चेले उससे पूछने लगे कि इस मिसाल का क्या मतलब है।+ 10  उसने कहा, “परमेश्‍वर के राज के पवित्र रहस्यों की समझ* तुम्हें दी गयी है, मगर बाकियों के लिए ये सिर्फ मिसालें ही हैं+ ताकि वे देखते हुए भी न देख सकें और सुनकर भी इसके मायने न समझ सकें।+ 11  इस मिसाल का मतलब यह है: बीज परमेश्‍वर का वचन है।+ 12  जो बीज रास्ते के किनारे गिरे वे ऐसे लोग हैं जो वचन सुनते हैं, मगर फिर शैतान आता है और उनके दिलों से वचन उठा ले जाता है ताकि वे न तो यकीन करें और न ही उद्धार पाएँ।+ 13  जो बीज चट्टानी ज़मीन पर गिरे, वे ऐसे लोग हैं जो वचन को सुनकर इसे खुशी-खुशी स्वीकार करते हैं, मगर उनमें जड़ नहीं होती। वे थोड़े वक्‍त के लिए यकीन करते हैं, मगर परीक्षा के वक्‍त गिर जाते हैं।+ 14  और जो बीज काँटों में गिरे, वे ऐसे लोग हैं जो वचन सुनते तो हैं, मगर इस ज़िंदगी की चिंताएँ, धन-दौलत+ और ऐशो-आराम उन्हें भटका देता है+ और वे इनसे पूरी तरह दब जाते हैं और अच्छे फल नहीं पैदा करते।+ 15  जो बीज बढ़िया मिट्टी पर गिरे, वे ऐसे लोग हैं जिनका दिल बहुत अच्छा है।+ वे वचन सुनकर इसे संजोए रखते हैं और धीरज धरते हुए फल पैदा करते हैं।+ 16  कोई भी दीपक जलाकर उसे बरतन से नहीं ढकता या पलंग के नीचे नहीं रखता, मगर दीवट पर रखता है ताकि अंदर आनेवालों को रौशनी मिले।+ 17  ऐसा कुछ नहीं जो छिपा है और सामने न लाया जाए, न ही ऐसी कोई चीज़ है जिसे बड़ी सावधानी से छिपाया गया हो और जो कभी जानी न जाए और खुले में न आए।+ 18  इसलिए ध्यान दो कि तुम कैसे सुनते हो। क्योंकि जिसके पास है, उसे और दिया जाएगा।+ लेकिन जिसके पास नहीं है, उससे वह भी ले लिया जाएगा जो उसे लगता है कि उसका अपना है।”+ 19  फिर यीशु की माँ और उसके भाई+ उससे मिलने आए, मगर भीड़ की वजह से वे उस तक पहुँच नहीं पा रहे थे।+ 20  इसलिए उसे यह खबर दी गयी, “तेरी माँ और तेरे भाई बाहर खड़े हैं और तुझसे मिलना चाहते हैं।” 21  तब उसने उनसे कहा, “मेरी माँ और मेरे भाई ये हैं, जो परमेश्‍वर का वचन सुनते और उस पर चलते हैं।”+ 22  एक दिन यीशु और उसके चेले एक नाव पर चढ़े और उसने उनसे कहा, “आओ हम झील के उस पार चलें।” तब वे नाव में रवाना हो गए।+ 23  मगर सफर के दौरान वह सो गया। तब झील में भयंकर तूफान उठा और उनकी नाव में पानी भरने लगा, उनकी जान खतरे में थी।+ 24  चेले उसके पास आकर उसे जगाने लगे, “गुरु, गुरु, हम नाश होनेवाले हैं!” यीशु ने उठकर आँधी और उफनती लहरों को डाँटा और वे शांत हो गए और सन्‍नाटा छा गया।+ 25  फिर उसने चेलों से कहा, “कहाँ गया तुम्हारा विश्‍वास?” मगर उन पर डर छा गया और वे ताज्जुब करने लगे और एक-दूसरे से कहने लगे, “आखिर यह कौन है जो आँधी और पानी तक को हुक्म देता है और वे उसकी मानते हैं?”+ 26  फिर वे किनारे पर गिरासेनियों के इलाके में पहुँचे,+ जो उस पार गलील के सामने है। 27  मगर जब वह उतरकर किनारे पर आया, तो पास के शहर का एक आदमी उससे मिला जिसमें दुष्ट स्वर्गदूत समाए थे। वह बहुत समय से बिना कपड़ों के घूमता था और घर में नहीं बल्कि कब्रों* के बीच रहता था।+ 28  जब उसने यीशु को देखा तो वह ज़ोर-ज़ोर से चीखने लगा और उसके आगे गिरकर चिल्लाने लगा, “हे यीशु, परम-प्रधान परमेश्‍वर के बेटे, मेरा तुझसे क्या लेना-देना? मैं तुझसे बिनती करता हूँ, मुझे मत तड़पा।”+ 29  (क्योंकि यीशु उस दुष्ट स्वर्गदूत को हुक्म दे रहा था कि वह उस आदमी में से निकल जाए। दुष्ट स्वर्गदूत ने कई बार उस आदमी को अपने कब्ज़े में किया था।*+ उस आदमी को बार-बार ज़ंजीरों और बेड़ियों से बाँधा जाता था और उसकी पहरेदारी की जाती थी, मगर वह उन बंधनों को तोड़ देता। दुष्ट स्वर्गदूत उस आदमी को भगाए फिरता था और सुनसान जगहों में ले जाता था।) 30  यीशु ने उससे पूछा, “तेरा नाम क्या है?” उसने कहा, “पलटन,” क्योंकि उसमें बहुत सारे दुष्ट स्वर्गदूत समाए थे। 31  वे उससे बिनती करते रहे कि वह उन्हें अथाह-कुंड में जाने का हुक्म न दे।+ 32  वहीं पहाड़ पर बहुत सारे सूअर+ चर रहे थे। इसलिए दुष्ट स्वर्गदूतों ने यीशु से बिनती की कि वह उन्हें सूअरों में समा जाने दे। और उसने उन्हें जाने दिया।+ 33  तब सारे दुष्ट स्वर्गदूत उस आदमी में से बाहर निकल गए और उन सूअरों में समा गए। तब सूअरों का पूरा झुंड बड़ी तेज़ी से दौड़ा और पहाड़ की कगार से नीचे झील में जा गिरा और सारे सूअर डूबकर मर गए। 34  जब सूअर चरानेवालों ने देखा कि क्या हुआ है, तो वे भाग गए और उन्होंने जाकर शहर और देहात में इसकी खबर दी। 35  जो हुआ था, उसे देखने के लिए लोग आए। जब वे यीशु के पास आए तो उन्होंने देखा कि वह आदमी जिससे दुष्ट स्वर्गदूत निकले थे, कपड़े पहने और बिलकुल ठीक दिमागी हालत में यीशु के पैरों के पास बैठा है।+ यह देखकर लोग बहुत डर गए। 36  जिन्होंने यह सब अपनी आँखों से देखा था, वे लोगों को बताने लगे कि जो आदमी दुष्ट स्वर्गदूतों के कब्ज़े में था, वह किस तरह ठीक हुआ।* 37  तब गिरासेनियों के आस-पास के इलाकों से आयी भीड़ ने यीशु से कहा कि वह उनके यहाँ से चला जाए, क्योंकि उनमें डर बैठ गया था। इसलिए यीशु वहाँ से जाने के लिए नाव पर चढ़ गया। 38  तब जिस आदमी से दुष्ट स्वर्गदूत निकले थे, वह यीशु से बार-बार बिनती करने लगा कि वह उसे अपने साथ आने दे। मगर यीशु ने उस आदमी को यह कहकर भेज दिया,+ 39  “अपने घर लौट जा और परमेश्‍वर ने जो कुछ तेरे लिए किया है, वह सबको बताता रह।” वह आदमी चला गया और पूरे शहर में बताने लगा कि यीशु ने उसके लिए क्या किया है। 40  जब यीशु इस पार आया, तो भीड़ ने बड़े प्यार से उसका स्वागत किया क्योंकि सब उसका इंतज़ार कर रहे थे।+ 41  लेकिन तभी वहाँ याइर नाम का एक आदमी आया, जो सभा-घर में अगुवाई करनेवाला एक अधिकारी था। वह यीशु के पैरों पर गिरकर उससे बिनती करने लगा कि वह उसके घर चले।+ 42  क्योंकि उसकी इकलौती बेटी जो करीब 12 साल की थी मरने पर थी। जब यीशु जा रहा था, तो लोगों की भीड़ उसे घेरे हुए साथ-साथ चलने लगी। 43  वहाँ एक औरत थी जिसे 12 साल से खून बहने की बीमारी थी+ और वह किसी के भी इलाज से ठीक नहीं हो पायी थी।+ 44  उसने पीछे से आकर यीशु के कपड़े की झालर*+ को छुआ और उसी घड़ी उसका खून बहना बंद हो गया। 45  तब यीशु ने कहा, “किसने मुझे छुआ?” जब सब इनकार करने लगे, तो पतरस ने कहा, “गुरु, भीड़ तुझे दबाए जा रही है और तुझ पर गिरे जा रही है।”+ 46  फिर भी यीशु ने कहा, “किसी ने मुझे छुआ है, क्योंकि मैं जानता हूँ* कि मेरे अंदर से शक्‍ति+ निकली है।” 47  जब उस औरत ने देखा कि यीशु को पता चल गया है, तो वह काँपती हुई आयी और उसके आगे गिर पड़ी और उसने सब लोगों के सामने बता दिया कि उसने क्यों उसे छुआ और वह कैसे फौरन ठीक हो गयी। 48  तब यीशु ने उससे कहा, “बेटी, तेरे विश्‍वास ने तुझे ठीक किया है।* जा, अब और चिंता मत करना।”+ 49  जब वह बोल ही रहा था, तो सभा-घर के अधिकारी के घर से एक आदमी आया और कहने लगा, “तेरी बेटी मर चुकी है। अब गुरु को और परेशान मत कर।”+ 50  यह सुनकर यीशु ने उस अधिकारी से कहा, “डर मत, बस विश्‍वास रख और वह बच जाएगी।”+ 51  जब यीशु उस घर में पहुँचा तो उसने पतरस, यूहन्‍ना, याकूब और लड़की के माता-पिता के सिवा किसी और को अपने साथ अंदर नहीं आने दिया। 52  लेकिन सब लोग रो रहे थे और छाती पीटते हुए उस लड़की के लिए मातम मना रहे थे। यीशु ने कहा, “मत रोओ!+ लड़की मरी नहीं बल्कि सो रही है।”+ 53  यह सुनकर वे उसकी खिल्ली उड़ाने लगे क्योंकि वे जानते थे कि वह मर चुकी है। 54  फिर यीशु ने बच्ची का हाथ पकड़कर कहा, “बच्ची, उठ!”+ 55  तब उस लड़की में जान+ आ गयी और वह फौरन उठ बैठी।+ यीशु ने कहा कि लड़की को खाने के लिए कुछ दिया जाए। 56  लड़की को ज़िंदा देखकर उसके माता-पिता खुशी के मारे अपने आपे में न रहे। मगर यीशु ने उनसे कहा कि जो हुआ है, वह किसी को न बताएँ।+

कई फुटनोट

या “पवित्र रहस्यों को समझने की इजाज़त।”
या “स्मारक कब्रों।”
या शायद, “लंबे अरसे से उसने उस आदमी को अपने कब्ज़े में कर रखा था।”
या “उसे किस तरह बचाया गया।”
या “के छोर; किनारे।”
या “मुझे एहसास हुआ।”
या “तुझे बचा लिया है।”

अध्ययन नोट

प्रचार करता: मत 3:1 का अध्ययन नोट देखें।

मरियम जो मगदलीनी कहलाती थी: जिस औरत को अकसर मरियम मगदलीनी कहा जाता था, उसका पहली बार ज़िक्र यीशु की प्रचार सेवा के दूसरे साल के इस ब्यौरे में हुआ है। इसकी पहचान बताने के लिए इसका उपनाम मगदलीनी (मतलब “मगदला की रहनेवाली”) शायद मगदला से निकला है, जो गलील झील के पश्‍चिमी तट पर बसा एक नगर था। यह नगर कफरनहूम और तिबिरियास के लगभग बीच में था। माना जाता है कि मरियम, मगदला में पैदा हुई थी या उसका घर वहाँ था। मरियम मगदलीनी का ज़िक्र खासकर तब किया गया है जब यीशु की मौत हुई और उसे दोबारा ज़िंदा किया गया।​—मत 27:55, 56, 61; मर 15:40; लूक 24:10; यूह 19:25.

खुज़ा: हेरोदेस अन्तिपास के घर का प्रबंधक।

की सेवा करती थीं: या “की मदद करती (या ज़रूरत की चीज़ें मुहैया कराती) थीं।” यूनानी शब्द दीआकोनीयो का मतलब हो सकता है, दूसरों की खाने-पीने की ज़रूरतें पूरी करने के लिए काम करना, जैसे खाने-पीने की चीज़ें लाना, खाना पकाना और परोसना वगैरह। यही मतलब देने के लिए दीआकोनीयो शब्द का इस्तेमाल इन आयतों में हुआ है: लूक 10:40 (“सारा काम” करना), लूक 12:37 (“सेवा करेगा”), लूक 17:8 (“सेवा कर”) और प्रेष 6:2 (“खाना बाँटने”)। यहाँ बताया गया है कि आयत 2 और 3 में ज़िक्र की गयी औरतों ने किस तरह यीशु और उसके चेलों की मदद की ताकि वे परमेश्‍वर से मिला काम पूरा करने पर ध्यान दे सकें। ऐसा करके वे औरतें परमेश्‍वर की महिमा करती थीं और परमेश्‍वर ने भी उनके लिए कदरदानी दिखायी। उसने उनकी दरियादिली के काम बाइबल में दर्ज़ करवाए ताकि आनेवाली सभी पीढ़ियाँ उन्हें पढ़ सकें। (नीत 19:17; इब्र 6:10) यूनानी शब्द दीआकोनीयो मत 27:55; मर 15:41 में बतायी औरतों के सिलसिले में भी इस्तेमाल हुआ है।​—लूक 22:26 का अध्ययन नोट देखें, जहाँ इससे संबंधित संज्ञा दीआकोनोस के बारे में बताया गया है।

गिरासेनियों: मर 5:1 का अध्ययन नोट देखें।

गिरासेनियों के इलाके: गलील झील के उस पार यानी पूर्वी तट का इलाका। यह इलाका कहाँ तक फैला था, इसकी कोई जानकारी नहीं है। हालाँकि कई लोग इस जगह की पहचान बताते हैं, लेकिन इसका कोई पक्का सबूत नहीं है। कुछ लोग कहते हैं कि आज कुरसी नाम की जगह के आस-पास जो इलाका है, वही ‘गिरासेनियों का इलाका’ था। (कुरसी, गलील झील के पूर्वी तट पर खड़ी ढलान के पास है।) दूसरे कहते हैं कि ‘गिरासेनियों का इलाका’ एक बड़ा ज़िला था जो गेरासा (जराश) शहर के चारों तरफ फैला हुआ था। गेरासा गलील झील से 55 कि.मी. (34 मील) दूर दक्षिण-पूरब में था। मत 8:28 में इसे ‘गदरेनियों का इलाका’ कहा गया है। (इसी आयत में गिरासेनियों पर अध्ययन नोट और मत 8:28 का अध्ययन नोट देखें।) हालाँकि अलग-अलग नाम इस्तेमाल हुए हैं, मगर एक ही इलाके की बात की गयी है जो गलील झील के पूर्वी तट पर था। शायद कुछ जगह ऐसी थीं जो दोनों इलाकों में पड़ती थीं। इसलिए कहा जा सकता है कि तीनों ब्यौरों में दी जानकारी अलग-अलग नहीं है।​—अति. क7, नक्शा 3ख, “गलील झील के पास” और अति. ख10 भी देखें।

एक आदमी . . . जिसमें दुष्ट स्वर्गदूत समाए थे: मत्ती (8:28) में दो आदमियों का ज़िक्र है, जबकि मरकुस (5:2) और लूका में सिर्फ एक आदमी का। ज़ाहिर है कि मरकुस और लूका ने सिर्फ एक आदमी का ज़िक्र इसलिए किया क्योंकि यीशु ने उससे बात की और उसकी हालत अनोखी थी। वह शायद ज़्यादा खूँखार था या लंबे समय से दुष्ट स्वर्गदूत के कब्ज़े में था। यह भी हो सकता है कि जब यीशु ने दोनों आदमियों को ठीक किया तो उनमें से सिर्फ एक ने यीशु के साथ चलने की इच्छा ज़ाहिर की।​—लूका 8:37-39.

मेरा तुझसे क्या लेना-देना?: मर 5:7 का अध्ययन नोट देखें।

मुझे . . . तड़पा: इनसे जुड़ा यूनानी शब्द मत 18:34 में “जेलरों” के लिए इस्तेमाल हुआ है। इससे पता चलता है कि यहाँ शब्द ‘तड़पाने’ का मतलब बाँधना या फिर “अथाह-कुंड” में कैद करना हो सकता है, जैसा कि लूक 8:31 में बताया गया है।

पलटन: मर 5:9 का अध्ययन नोट देखें।

अथाह-कुंड: या “गहराई।” इसके यूनानी शब्द एबिसोस का मतलब है, “बहुत गहरा” या “जिसकी कोई थाह या सीमा नहीं।” यह शब्द कैद होने की हालत या ऐसी जगह के लिए इस्तेमाल हुआ है जहाँ किसी को कैद किया जाता है। यह शब्द मसीही यूनानी शास्त्र में नौ बार आया है: इस आयत में, रोम 10:7 में और सात बार प्रकाशितवाक्य की किताब में। प्रक 20:1-3 में लिखा है कि भविष्य में शैतान को एक हज़ार साल के लिए अथाह-कुंड में डाल दिया जाएगा। शायद इसी बात को ध्यान में रखकर स्वर्गदूतों की पलटन ने यीशु से बिनती की कि वह उन्हें “अथाह-कुंड में” न भेजे। जैसे आयत 28 में लिखा है, इनमें से एक स्वर्गदूत ने यीशु से कहा कि वह उसे न ‘तड़पाए।’ इसके मिलते-जुलते ब्यौरे मत 8:29 में स्वर्गदूतों ने यीशु से कहा, “क्या तू तय किए गए वक्‍त से पहले हमें तड़पाने आया है?” इसका मतलब, जब दुष्ट स्वर्गदूतों ने ‘तड़पाने’ की बात की तो वे शायद “अथाह-कुंड” में कैद किए जाने से डर रहे थे।​—शब्दावली और मत 8:29 का अध्ययन नोट देखें।

परमेश्‍वर ने जो कुछ तेरे लिए किया है, वह सबको बताता रह: आम तौर पर यीशु यह हिदायत देता था कि उसके चमत्कारों के बारे में किसी को न बताया जाए (मर 1:44; 3:12; 7:36; लूक 5:14), मगर यहाँ उसने इस आदमी से कहा कि वह जाकर अपने रिश्‍तेदारों को बताए कि उसके साथ क्या हुआ है। यीशु ने शायद ऐसा इसलिए कहा क्योंकि उसे उस इलाके से चले जाने को कहा गया था और इस वजह से उसे लोगों को गवाही देने का मौका नहीं मिलता। साथ ही, उस आदमी के ऐसा करने से सूअरों के नाश होने की खबर सुनकर लोगों में खलबली नहीं मचती।

पूरे शहर: इसके मिलते-जुलते ब्यौरे मर 5:20 में लिखा है, “दिकापुलिस में।” तो फिर यहाँ जिस शहर की बात की गयी है, वह शायद दिकापुलिस के इलाके का एक शहर था।​—शब्दावली में “दिकापुलिस” देखें।

इकलौती: यूनानी शब्द मोनोजीनेस का अनुवाद आम तौर पर “इकलौता” किया गया है और इसका मतलब है, “उसके जैसा और कोई नहीं; एक अकेला; किसी वर्ग या जाति का एकमात्र या अकेला सदस्य; अनोखा।” यह शब्द बेटे या बेटी का माता-पिता के साथ रिश्‍ता समझाने के लिए इस्तेमाल होता है। इस संदर्भ में इस शब्द का मतलब है, इकलौता बच्चा। यही यूनानी शब्द नाईन की विधवा के बेटे के लिए इस्तेमाल हुआ जो उसका “अकेला बेटा” था। (लूक 7:12) यह शब्द उस लड़के के लिए भी इस्तेमाल हुआ जिसके बारे में कहा गया है कि वह अपने पिता का “एक ही” बेटा था और जिसमें से यीशु ने दुष्ट स्वर्गदूत को निकाला था। (लूक 9:38) यूनानी सेप्टुआजेंट में शब्द मोनोजीनेस यिप्तह की बेटी के लिए इस्तेमाल हुआ है, जिसके बारे में लिखा है, “वह उसकी इकलौती औलाद थी, उसके सिवा यिप्तह के न तो कोई बेटा था न बेटी।” (न्या 11:34) प्रेषित यूहन्‍ना की किताबों में मोनोजीनेस पाँच बार यीशु के लिए इस्तेमाल हुआ है।​—यीशु के सिलसिले में इस शब्द का मतलब जानने के लिए यूह 1:14; 3:16 के अध्ययन नोट देखें।

बेटी: मर 5:34 का अध्ययन नोट देखें।

जान: या “जीवन-शक्‍ति; साँस।” यहाँ यूनानी शब्द नफ्मा का शायद मतलब है, इंसानों और जानवरों की जीवन-शक्‍ति या साँस।​—मत 27:50 का अध्ययन नोट देखें।

तसवीर और ऑडियो-वीडियो

दीवट
दीवट

इफिसुस और इटली में पहली सदी की कुछ चीज़ों के अवशेष मिले हैं जिनके आधार पर कलाकार ने दीवट का यह चित्र (1) बनाया है। मुमकिन है कि इस तरह की दीवट अमीर लोगों के घरों में इस्तेमाल की जाती थी। गरीबों के घरों में दीपक छत से लटका दिया जाता था या दीवार में बने आले में (2) या फिर मिट्टी या लकड़ी की बनी दीवट पर रखा जाता था।

पहली सदी की नाव
पहली सदी की नाव

यह तसवीर दो सबूतों के आधार पर बनायी गयी है। पहला सबूत है, गलील झील के किनारे दलदल में पाया गया एक नाव का अवशेष, जो पहली सदी में मछलियाँ पकड़ने के लिए इस्तेमाल की जाती थी। दूसरा, समुद्र किनारे बसे मिगदल नगर में पहली सदी के एक घर में मिली पच्चीकारी। इस तरह की नाव में शायद एक मस्तूल और पाल लगे होते थे और पाँच लोगों की एक टोली होती थी, चार चप्पू चलानेवाले और एक पतवार चलानेवाला। पतवार चलानेवाला नाव के पिछले हिस्से में बनी छोटी-सी मचान पर खड़ा होता था। यह नाव करीब 26.5 फुट (8 मी.) लंबी होती थी। बीच में इसकी चौड़ाई करीब 8 फुट (2.5 मी.) और गहराई करीब 4 फुट (1.25 मी.) होती थी। ऐसा मालूम होता है कि इसमें 13 या उससे ज़्यादा लोग आ सकते थे।

गलील झील में मछली पकड़ने की नाव के अवशेष
गलील झील में मछली पकड़ने की नाव के अवशेष

सन्‌ 1985-1986 में सूखा पड़ने की वजह से गलील झील में पानी काफी कम हो गया था। इससे उसमें प्राचीन समय की एक नाव का पेटा (मुख्य भाग) दिखायी देने लगा। यह नाव दलदल में धँस गयी थी। इसका जो अवशेष मिला है उसकी लंबाई 27 फुट (8.2 मी.), चौड़ाई 7.5 फुट (2.3 मी.) और गहराई लगभग 4.3 फुट (1.3 मी.) है। पुरातत्ववेत्ताओं का कहना है कि यह नाव ईसा पूर्व पहली सदी और ईसवी सन्‌ पहली सदी के बीच की है। यह पेटा फिलहाल इसराएल के एक संग्रहालय में रखा है। इस वीडियो में दिखाया गया है कि करीब 2,000 साल पहले यह नाव कैसी दिखती होगी।

गलील झील के पूरब में खड़ी चट्टानें
गलील झील के पूरब में खड़ी चट्टानें

गलील झील के पूर्वी किनारे पर ही यीशु ने दो आदमियों में से दुष्ट स्वर्गदूतों को निकाला और उन स्वर्गदूतों को सूअरों के झुंड में भेज दिया था।