पहला राजा 5:1-18
5 जब सोर+ के राजा हीराम ने सुना कि सुलैमान का अभिषेक करके उसे उसके पिता की जगह राजा बनाया गया है, तो उसने सुलैमान के पास अपने सेवक भेजे। हीराम हमेशा से दाविद का अच्छा दोस्त रहा था।*+
2 फिर सुलैमान ने हीराम के पास यह संदेश भेजा:+
3 “तू अच्छी तरह जानता है कि मेरा पिता दाविद अपने परमेश्वर यहोवा के नाम की महिमा के लिए एक भवन नहीं बना पाया, क्योंकि उसे अपने चारों तरफ के दुश्मनों से युद्ध करने पड़े। आखिरकार, यहोवा ने उसके सभी दुश्मनों को उसके पैरों तले कर दिया।+
4 मगर अब मेरे परमेश्वर यहोवा ने मुझे चारों तरफ के दुश्मनों से राहत दी है।+ अब न मेरे खिलाफ कोई सिर उठानेवाला है और न मेरे राज्य में कोई मुसीबत है।+
5 इसलिए मैं अपने परमेश्वर यहोवा के नाम की महिमा के लिए एक भवन बनाना चाहता हूँ, ठीक जैसे यहोवा ने मेरे पिता दाविद से यह वादा किया था, ‘तेरा बेटा जिसे मैं तेरी जगह राजगद्दी पर बिठाऊँगा, वही मेरे नाम की महिमा के लिए एक भवन बनाएगा।’+
6 इसलिए अब तू अपने लोगों को हुक्म दे कि वे मुझे लबानोन के देवदार काटकर दें।+ मेरे सेवक तेरे सेवकों के साथ मिलकर काम करेंगे। और तू अपने सेवकों के लिए जितनी मज़दूरी तय करेगा मैं उन्हें उतनी मज़दूरी दूँगा। तू अच्छी तरह जानता है कि सीदोनियों की तरह पेड़ काटनेवाला हमारे यहाँ कोई नहीं है।”+
7 हीराम ने जब सुलैमान का संदेश सुना, तो वह बहुत खुश हुआ और उसने कहा, “आज यहोवा की बड़ाई हो क्योंकि उसने दाविद को एक बुद्धिमान बेटा दिया है ताकि वह इतनी बड़ी प्रजा पर राज करे!”+
8 फिर हीराम ने सुलैमान को यह संदेश भेजा: “मुझे तेरा संदेश मिला है। तू जैसा चाहता है मैं वैसा ही करूँगा। मैं तेरे यहाँ देवदार और सनोवर की लकड़ी+ भेजूँगा।
9 मेरे सेवक लबानोन से पेड़ काटकर समुंदर किनारे ले आएँगे। मैं उनकी शहतीरों के बेड़े बनवाकर समुंदर के रास्ते उस जगह पहुँचा दूँगा जो तू मुझे बताएगा। फिर मैं वहाँ अपने आदमियों से उन्हें खुलवा दूँगा और तू उन्हें वहाँ से उठाकर ले जा सकता है। मेरी इस सेवा के बदले तू मेरे घराने के लिए खाने की वे चीज़ें दिया करना जिनकी मैं गुज़ारिश करता हूँ।”+
10 तब हीराम ने सुलैमान को देवदार और सनोवर की उतनी लकड़ी दी, जितनी सुलैमान ने माँगी थी।
11 और सुलैमान ने हीराम के घराने के लिए 20,000 कोर* गेहूँ और 20 कोर बढ़िया जैतून तेल* दिया। सुलैमान हर साल हीराम को ये चीज़ें दिया करता था।+
12 यहोवा ने सुलैमान को बुद्धि दी, ठीक जैसे उसने वादा किया था।+ सुलैमान और हीराम के बीच शांति का रिश्ता था और उन्होंने आपस में एक संधि की।*
13 राजा सुलैमान ने भवन बनाने के काम के लिए पूरे इसराएल से 30,000 जबरन मज़दूरी करनेवालों को लगाया।+
14 वह उनमें से दस-दस हज़ार आदमियों को हर महीने बारी-बारी से भेजता था। वे एक महीना लबानोन में काम करते और दो महीने अपने घर पर रहते थे। अदोनीराम+ इन सभी मज़दूरों का अधिकारी था।
15 सुलैमान के यहाँ 70,000 आम मज़दूर* थे और पहाड़ों पर पत्थर काटनेवाले 80,000 मज़दूर थे।+
16 इनके अलावा, सुलैमान ने 3,300 आदमियों को मज़दूरों की निगरानी का काम सौंपा।+
17 राजा के हुक्म पर मज़दूरों ने भवन की बुनियाद+ के लिए खदानों पर बड़े-बड़े पत्थर काटे।+ ये पत्थर बहुत कीमती थे।+
18 इस तरह सुलैमान के राजगीरों, हीराम के राजगीरों और गबाली लोगों+ ने मिलकर पत्थर और लकड़ी काटने का काम किया ताकि उनसे भवन बनाया जा सके।
कई फुटनोट
^ या “दाविद को हमेशा प्यार करता था।”
^ शा., “कूटकर निकाला गया तेल।”
^ या “करार किया।”
^ या “बोझ ढोनेवाले।”