दूसरा इतिहास 3:1-17
3 फिर सुलैमान ने यरूशलेम में मोरिया पहाड़+ पर यहोवा के लिए भवन बनाने का काम शुरू किया,+ जहाँ यहोवा उसके पिता दाविद के सामने प्रकट हुआ था।+ यह जगह यबूसी ओरनान के खलिहान में थी जो दाविद ने तैयार की थी।+
2 सुलैमान ने अपने राज के चौथे साल के दूसरे महीने के दूसरे दिन भवन बनाने का काम शुरू किया।
3 उसने सच्चे परमेश्वर के भवन के लिए जो बुनियाद डाली वह पुराने ज़माने की नाप* के मुताबिक 60 हाथ लंबी और 20 हाथ चौड़ी थी।+
4 भवन का सामनेवाला बरामदा 20 हाथ लंबा था यानी भवन की चौड़ाई के बराबर। उसकी ऊँचाई 20 हाथ* थी। उसने बरामदे के अंदर का पूरा हिस्सा शुद्ध सोने से मढ़ा।+
5 उसने भवन के बड़े कमरे पर सनोवर के तख्ते लगाए और उन पर बढ़िया सोना मढ़ा।+ फिर उसे खजूर के पेड़ों की नक्काशी+ और ज़ंजीरों से सजाया।+
6 इसके अलावा, उसने भवन पर सुंदर, कीमती रत्न जड़े।+ उसने जो सोना+ इस्तेमाल किया वह पर्वेम से लाया गया था।
7 उसने भवन और उसके शहतीरों, दहलीज़ों, दीवारों और दरवाज़ों पर सोना मढ़ा+ और दीवारों पर करूबों की नक्काशी की।+
8 इसके बाद उसने परम-पवित्र भाग* बनाया।+ उसकी लंबाई भवन की चौड़ाई के बराबर यानी 20 हाथ थी। उसकी चौड़ाई 20 हाथ थी। उसने परम-पवित्र भाग पर 600 तोड़े* बढ़िया सोना मढ़ा।+
9 कीलों के लिए 50 शेकेल* सोना इस्तेमाल किया गया। उसने छत के खानों को सोने से मढ़ा।
10 फिर उसने परम-पवित्र भाग* में दो करूब बनाए और उन पर सोना मढ़ा।+
11 दोनों करूबों के पंखों+ की कुल लंबाई 20 हाथ थी। एक करूब का एक पंख पाँच हाथ लंबा था और भवन की दीवार को छूता था। उसका दूसरा पंख भी पाँच हाथ लंबा था और दूसरे करूब के एक पंख को छूता था।
12 दूसरे करूब का भी एक पंख पाँच हाथ लंबा था और भवन की दीवार को छूता था। उसका दूसरा पंख पाँच हाथ लंबा था और पहले करूब के एक पंख को छूता था।
13 इन करूबों के पंख फैले हुए थे और उनकी कुल लंबाई 20 हाथ थी। वे अपने पैरों पर खड़े थे और अंदर की तरफ मुँह किए हुए थे।*
14 उसने नीले धागे, बैंजनी ऊन, गहरे लाल रंग के धागे और बेहतरीन कपड़े से परदा+ भी बनाया और उस पर करूबों की कढ़ाई की।+
15 फिर उसने भवन के सामने दो खंभे+ बनाए जो 35 हाथ लंबे थे। हर खंभे के ऊपरी सिरे पर एक कंगूरा था जो पाँच हाथ का था।+
16 उसने हार जैसी ज़ंजीरें बनायीं और उन्हें खंभों के ऊपरी सिरे पर लगाया। उसने 100 अनार बनाकर उन्हें ज़ंजीरों पर लगाया।
17 उसने खंभों को मंदिर के सामने खड़ा किया, एक को दायीं* तरफ और एक को बायीं* तरफ। उसने दाएँ खंभे का नाम याकीन* रखा और बाएँ का नाम बोअज़।*
कई फुटनोट
^ मानक नाप के मुताबिक एक हाथ 44.5 सें.मी. (17.5 इंच) के बराबर था, मगर कुछ लोगों का मानना है कि “पुराने ज़माने की नाप” का मतलब लंबा हाथ है जो 51.8 सें.मी. (20.4 इंच) के बराबर था। अति. ख14 देखें।
^ कुछ पुरानी हस्तलिपियों में यहाँ “120” लिखा है, तो दूसरी हस्तलिपियों और कुछ अनुवादों में “20 हाथ” लिखा है।
^ शा., “भवन।”
^ शा., “भवन।”
^ यानी पवित्र भाग की तरफ।
^ या “दक्षिण की।”
^ या “उत्तर की।”
^ मतलब “वह [यानी यहोवा] मज़बूती से कायम करे।”
^ शायद इसका मतलब है, “ताकत के साथ।”