कुरिंथियों के नाम दूसरी चिट्ठी 4:1-18
4 इसलिए जब हम पर ऐसी दया की गयी कि हमें यह सेवा सौंपी गयी है, तो हम हिम्मत नहीं हारते।
2 मगर हमने छल-कपट के काम छोड़ दिए हैं जो शर्मनाक हैं। हम न तो चालाकी करते हैं, न ही परमेश्वर के वचन में मिलावट करते हैं,+ बल्कि सच्चाई बताकर परमेश्वर के सामने हर इंसान के ज़मीर को भानेवाली अच्छी मिसाल रखते हैं।+
3 हम जिस खुशखबरी का ऐलान करते हैं, उस पर अगर वाकई परदा पड़ा हुआ है, तो यह परदा उनके लिए पड़ा है जो विनाश की तरफ जा रहे हैं।
4 उन अविश्वासियों की बुद्धि, इस दुनिया की व्यवस्था* के ईश्वर+ ने अंधी कर दी है+ ताकि मसीह जो परमेश्वर की छवि है,+ उसके बारे में शानदार खुशखबरी की रौशनी उन पर न चमके।+
5 इसलिए कि हम अपने बारे में नहीं, बल्कि यीशु मसीह के बारे में प्रचार कर रहे हैं कि वह प्रभु है और अपने बारे में यह कहते हैं कि हम यीशु की खातिर तुम्हारे दास हैं।
6 इसलिए कि परमेश्वर ने ही कहा था, “अंधकार में से रौशनी चमके।”+ उसी ने हमारे दिलों पर अपनी रौशनी चमकायी है+ ताकि हम उन्हें परमेश्वर के उस शानदार ज्ञान से रौशन करें जो मसीह के चेहरे से झलकता है।
7 लेकिन हमारे पास यह खज़ाना+ मिट्टी के बरतनों* में है+ ताकि यह ज़ाहिर हो सके कि वह ताकत जो आम इंसानों की ताकत से कहीं बढ़कर है, हमें परमेश्वर की तरफ से मिली है, न कि यह हमारी अपनी है।+
8 हम हर तरह से दबाए तो जाते हैं मगर इस हद तक नहीं कि कोई उम्मीद न बचे, उलझन में तो होते हैं मगर इतनी उलझन में नहीं कि कोई रास्ता नज़र न आए।*+
9 हम पर ज़ुल्म तो ढाए जाते हैं मगर हमें त्यागा नहीं जाता।+ हम गिराए तो जाते हैं मगर नाश नहीं किए जाते।+
10 हर वक्त हमारे साथ बदसलूकी की जाती है और हमें मौत के हवाले किया जाता है ठीक जैसे यीशु के साथ हुआ था+ ताकि यीशु का जीवन हमारे शरीर में ज़ाहिर हो।
11 इसलिए कि हम जो ज़िंदा हैं, हर वक्त हमारा आमना-सामना मौत से होता है+ ताकि यीशु का जीवन हमारे नश्वर शरीर में ज़ाहिर हो।
12 इस तरह हममें मौत काम कर रही है मगर तुममें जीवन।
13 हममें विश्वास की वही भावना है जिसके बारे में यह लिखा है, “मैंने विश्वास किया इसलिए मैंने कहा।”+ हम भी विश्वास करते हैं और इसलिए हम बोलते हैं
14 क्योंकि हम जानते हैं कि जिसने यीशु को ज़िंदा किया था वह हमें भी यीशु के साथ ज़िंदा करेगा और हमें तुम्हारे साथ उसके सामने ले जाएगा।+
15 यह सबकुछ तुम्हारी खातिर हुआ है ताकि ज़्यादा-से-ज़्यादा लोगों पर महा-कृपा हो क्योंकि बहुत-से लोग परमेश्वर का धन्यवाद कर रहे हैं जिससे उसकी महिमा हो रही है।+
16 इसलिए हम हार नहीं मानते। भले ही हमारा बाहर का इंसान* मिटता जा रहा है मगर हमारा अंदर का इंसान दिन-ब-दिन नया होता जा रहा है।
17 हालाँकि हमारी दुख-तकलीफें* पल-भर के लिए और हलकी हैं, मगर ये हमें ऐसी महिमा दिलाती हैं जो बेमिसाल* है और हमेशा तक कायम रहती है।+
18 इस दौरान हम अपनी नज़र दिखायी देनेवाली चीज़ों पर नहीं बल्कि अनदेखी चीज़ों पर टिकाए रखते हैं।+ इसलिए कि जो चीज़ें दिखायी देती हैं वे कुछ वक्त के लिए हैं, मगर जो दिखायी नहीं देतीं वे हमेशा कायम रहती हैं।
कई फुटनोट
^ या “घड़ों।”
^ या शायद, “हमें मायूस नहीं छोड़ा जाता।”
^ या “हमारा शरीर।”
^ या “परीक्षाएँ।”
^ शा., “वज़नदार।”