दूसरा राजा 17:1-41

17  जब यहूदा में आहाज के राज का 12वाँ साल चल रहा था, तब इसराएल में एलाह का बेटा होशेआ+ राजा बना। उसने सामरिया से इसराएल पर नौ साल राज किया।  वह यहोवा की नज़र में बुरे काम करता रहा, मगर उस हद तक नहीं जिस हद तक उससे पहले के इसराएल के राजाओं ने किए थे।  अश्‍शूर के राजा शलमन-एसेर ने होशेआ पर हमला कर दिया+ और होशेआ उसके अधीन हो गया और उसे कर देने लगा।+  कुछ समय बाद अश्‍शूर के राजा को पता चला कि होशेआ उसके खिलाफ साज़िश कर रहा है क्योंकि होशेआ ने मिस्र के राजा सो के पास अपने दूत भेजे थे+ और उसने अश्‍शूर के राजा को कर लाकर नहीं दिया, जैसे वह बीते सालों में दिया करता था। इसलिए अश्‍शूर के राजा ने होशेआ को पकड़ लिया और कैद में डाल दिया।  इसके बाद अश्‍शूर के राजा ने आकर पूरे इसराएल देश पर हमला कर दिया और सामरिया की घेराबंदी की और तीन साल तक उसे घेरे रहा।  उसने होशेआ के राज के नौवें साल में सामरिया पर कब्ज़ा कर लिया।+ फिर वह इसराएल के लोगों को बंदी+ बनाकर अश्‍शूर ले गया और उन्हें हलह में, गोजान नदी+ के पास हाबोर में और मादियों के शहरों में बसा दिया।+  यह सब इसलिए हुआ क्योंकि इसराएल के लोगों ने अपने परमेश्‍वर यहोवा के खिलाफ पाप किया था, जो उन्हें मिस्र के राजा फिरौन के चंगुल से छुड़ाकर वहाँ से निकाल लाया था।+ इसराएल के लोग दूसरे देवताओं को पूजते थे।*+  उन्होंने उन राष्ट्रों के रीति-रिवाज़ अपना लिए जिन्हें यहोवा ने उनके सामने से खदेड़ दिया था, साथ ही वे इसराएल के राजाओं के बनाए रीति-रिवाज़ भी मानते थे।  इसराएली ऐसे कामों में लग गए जो उनके परमेश्‍वर यहोवा के मुताबिक सही नहीं थे। वे अपने सभी शहरों में ऊँची जगह बनाते गए, उन्होंने पहरे की मीनार से लेकर किलेबंद शहरों तक का कोना-कोना ऊँची जगहों से भर दिया।*+ 10  वे हर ऊँची पहाड़ी पर और हर घने पेड़ के नीचे+ अपने लिए पूजा-स्तंभ और पूजा-लाठ* बनाते गए।+ 11  वे उन सभी ऊँची जगहों पर बलिदान चढ़ाते थे ताकि उनका धुआँ उठे। वे उन राष्ट्रों की देखा-देखी ऐसा करने लगे जिन्हें यहोवा ने उनके सामने से खदेड़ दिया था।+ वे लगातार दुष्ट काम करके यहोवा का क्रोध भड़काते रहे। 12  वे उन घिनौनी मूरतों* की पूजा करते रहे+ जिनके बारे में यहोवा ने उनसे कहा था, “तुम ऐसा मत करना!”+ 13  यहोवा अपने सब भविष्यवक्‍ताओं और दर्शियों को भेजकर इसराएल और यहूदा को चेतावनी देता और समझाता रहा,+ “तुम लोग ये दुष्ट काम करना छोड़ दो और पलटकर मेरे पास लौट आओ!+ और उस कानून में लिखी आज्ञाएँ और विधियाँ मानो जो मैंने तुम्हारे पुरखों को दिया था और अपने सेवक भविष्यवक्‍ताओं के ज़रिए तुम्हें दिया था।” 14  मगर उन्होंने उसकी बात नहीं मानी और वे अपने पुरखों की तरह ढीठ बने रहे जिन्होंने अपने परमेश्‍वर यहोवा पर विश्‍वास नहीं किया था।+ 15  वे उसके नियमों को ठुकराते रहे और उन्होंने वह करार तोड़ दिया+ जो परमेश्‍वर ने उनके पुरखों के साथ किया था। परमेश्‍वर उन्हें याद दिलाकर चेतावनी देता रहा मगर वे अनसुनी करते रहे।+ वे निकम्मी मूरतों की पूजा करते रहे+ और खुद निकम्मे बन गए।+ इस तरह उन्होंने अपने आस-पास के राष्ट्रों के तौर-तरीके अपना लिए, जबकि यहोवा ने उन्हें आज्ञा दी थी कि तुम उनके तौर-तरीके मत अपनाना।+ 16  वे अपने परमेश्‍वर यहोवा की सारी आज्ञाएँ तोड़ते रहे। उन्होंने धातु के दो बछड़े तैयार किए *+ और एक पूजा-लाठ+ बनायी और वे आकाश की सारी सेना के आगे झुककर दंडवत करने लगे+ और बाल देवता को पूजने लगे।+ 17  इतना ही नहीं, उन्होंने अपने बेटे-बेटियों को आग में होम कर दिया,+ ज्योतिषी के काम करने लगे,+ शकुन विचारने लगे और ऐसे कामों में डूब गए* जो यहोवा की नज़र में बुरे थे और उन्होंने ऐसा करके उसका क्रोध भड़काया। 18  इसलिए यहोवा इसराएल पर बहुत क्रोधित हुआ और उसने उन्हें अपनी नज़रों से दूर कर दिया।+ उसने यहूदा गोत्र के सिवा किसी और को न छोड़ा। 19  यहूदा के लोगों ने भी अपने परमेश्‍वर यहोवा की आज्ञाएँ नहीं मानीं।+ उन्होंने भी वही रीति-रिवाज़ अपना लिए जो इसराएल के लोगों ने अपनाए थे।+ 20  यहोवा ने इसराएल के सभी वंशजों को ठुकरा दिया, उन्हें नीचा दिखाया और लुटेरों के हाथ में कर दिया। वह ऐसा तब तक करता रहा जब तक उसने उन्हें अपने सामने से हटा न दिया। 21  उसने दाविद के घराने से इसराएल को छीन लिया। फिर नबात के बेटे यारोबाम को राजा बनाया गया।+ मगर यारोबाम इसराएलियों को यहोवा की उपासना से दूर ले गया और उनसे एक बहुत बड़ा पाप करवाया। 22  वे उन सभी पापों में डूबे रहे जो यारोबाम ने किए थे।+ उन्होंने वे पाप करने नहीं छोड़े। 23  आखिरकार यहोवा ने इसराएल को अपनी नज़रों से दूर कर दिया, ठीक जैसे उसने अपने सब सेवकों यानी भविष्यवक्‍ताओं से कहलवाया था।+ इसलिए इसराएल के लोगों को बंदी बनाकर अश्‍शूर ले जाया गया+ और वे आज तक वहीं हैं। 24  फिर अश्‍शूर का राजा बैबिलोन, कूता, अव्वा, हमात और सपरवैम+ शहर से लोगों को ले आया और उसने उन सबको सामरिया के शहरों में बसा दिया जहाँ इसराएली रहते थे। उन लोगों ने सामरिया को अपने अधिकार में कर लिया और वे उसके शहरों में बस गए। 25  जब वे लोग वहाँ बसे तो शुरू में वे यहोवा का डर नहीं मानते थे।* इसलिए यहोवा ने उनके यहाँ शेरों को भेजा+ जिन्होंने उनमें से कुछ लोगों को मार डाला। 26  अश्‍शूर के राजा को यह खबर दी गयी: “तूने जिन राष्ट्रों के लोगों को बंदी बनाकर सामरिया के शहरों में बसाया है, वे उस देश के परमेश्‍वर की उपासना करने का तरीका* नहीं जानते। इसलिए वह परमेश्‍वर उनके बीच शेरों को भेज रहा है जो लोगों को मार डालते हैं। ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि उनमें से कोई भी उस देश के परमेश्‍वर की उपासना करने का तरीका नहीं जानता।” 27  यह खबर सुनकर अश्‍शूर के राजा ने हुक्म दिया, “तुम जिन लोगों को सामरिया से बंदी बनाकर लाए हो उनमें से एक याजक को वापस वहाँ भेज दो। वह वहाँ रहकर लोगों को उस देश के परमेश्‍वर की उपासना करने का तरीका सिखाएगा।” 28  तब सामरिया से बंदी बनाए गए याजकों में से एक याजक वापस बेतेल+ आया और वहाँ रहकर वह लोगों को सिखाने लगा कि उन्हें कैसे यहोवा का डर मानना* चाहिए।+ 29  फिर भी हर राष्ट्र के लोगों ने अपने-अपने देवता की मूरत बनायी* और उन मूरतों को ऊँची जगहों पर बने पूजा-घरों में रखा। ये सभी ऊँची जगह सामरी लोगों ने बनायी थीं। हर राष्ट्र से आए लोगों ने उन शहरों में ऐसा किया था जहाँ वे बस गए थे। 30  बैबिलोन के लोगों ने सुक्कोत-बनोत की मूरत बनायी, कूत के लोगों ने नेरगल की, हमात के लोगों+ ने अशीमा की 31  और अव्वा के लोगों ने निभज और तरताक की मूरतें बनायीं। सपरवैम के लोग अपने यहाँ के देवता अद्र-मेलेक और अन-मेलेक के लिए अपने बेटों को आग में होम करते थे।+ 32  हालाँकि लोग यहोवा का डर मानते थे मगर उन्होंने आम लोगों में से कुछ आदमियों को चुनकर उन्हें ऊँची जगहों के पुजारी बना दिया और ये पुजारी ऊँची जगहों पर बने पूजा-घरों में सेवा करते थे।+ 33  इस तरह लोग यहोवा का डर तो मानते थे लेकिन पूजा अपने देवताओं की ही करते थे और उन राष्ट्रों के धर्मों* को मानते थे जहाँ से उन्हें बंदी बनाकर यहाँ लाया गया था।+ 34  आज तक ये लोग अपने पुराने धर्मों* को ही मानते हैं। उनमें से कोई भी यहोवा की उपासना नहीं करता,* न ही यहोवा की विधियों, उसके न्याय-सिद्धांतों, कानून और उसकी आज्ञाओं को मानता है जो उसने याकूब के बेटों को दी थीं, जिसका नाम बदलकर उसने इसराएल रखा था।+ 35  यहोवा ने उसके बेटों के साथ एक करार किया था+ और उन्हें यह आज्ञा दी थी, “तुम दूसरे देवताओं का डर मत मानना और उनके आगे दंडवत मत करना, न उनकी सेवा करना और न ही उनके लिए बलिदान चढ़ाना।+ 36  तुम सिर्फ यहोवा का डर मानना+ जो अपना हाथ बढ़ाकर अपनी महाशक्‍ति से तुम्हें मिस्र से निकाल लाया था।+ तुम उसी के आगे दंडवत करना और उसी के लिए बलिदान चढ़ाना। 37  उसने तुम्हारे लिए जो नियम, न्याय-सिद्धांत, कानून और आज्ञाएँ लिखवायी थीं,+ तुम उनका सख्ती से पालन करना और दूसरे देवताओं का डर मत मानना। 38  तुम वह करार कभी मत भूलना जो मैंने तुम्हारे साथ किया था+ और दूसरे देवताओं का डर मत मानना। 39  मगर तुम सिर्फ अपने परमेश्‍वर यहोवा का डर मानना क्योंकि वही तुम्हें सभी दुश्‍मनों के हाथ से छुड़ाएगा।” 40  मगर उन्होंने उसकी आज्ञा नहीं मानी और वे अपने पुराने धर्म* को ही मानते रहे।+ 41  वे यहोवा का डर मानने लगे,+ पर साथ ही अपनी गढ़ी हुई मूरतों की सेवा करते थे। उनके बेटे और पोते भी उन्हीं की लीक पर चले और आज तक वे ऐसा ही करते हैं।

कई फुटनोट

शा., “का डर मानते थे।”
यानी हर जगह पर, फिर चाहे वहाँ थोड़े लोग बसे हों या घनी आबादी हो।
शब्दावली देखें।
इनका इब्रानी शब्द शायद “मल” के लिए इस्तेमाल होनेवाले शब्द से संबंध रखता है और यह बताने के लिए इस्तेमाल होता है कि किसी चीज़ से कितनी घिन की जा रही है।
या “दो बछड़ों की मूरतें ढालकर बनायीं।”
शा., “के लिए खुद को बेच दिया।”
या “की उपासना नहीं करते थे।”
या “के धार्मिक रिवाज़।”
या “की उपासना करनी।”
या “देवताओं की मूरतें बनायीं।”
या “धार्मिक रिवाज़ों।”
या “धार्मिक रिवाज़ों।”
शा., “का डर नहीं मानता।”
या “धार्मिक रिवाज़ों।”

अध्ययन नोट

तसवीर और ऑडियो-वीडियो