दूसरा राजा 7:1-20
7 फिर एलीशा ने कहा, “अब यहोवा का संदेश सुनो। यहोवा कहता है, ‘कल इसी समय सामरिया के फाटक* पर एक सआ* मैदा एक शेकेल* में और दो सआ जौ एक शेकेल में मिलेगा।’”+
2 तब सहायक सेना-अधिकारी ने, जो राजा का भरोसेमंद सेवक था, सच्चे परमेश्वर के सेवक से कहा, “अगर यहोवा आकाश के झरोखे खोल दे तो भी यह नहीं हो सकता!”+ तब एलीशा ने कहा, “कल तू खुद अपनी आँखों से यह देखेगा,+ मगर उसमें से कुछ खा नहीं पाएगा।”+
3 सामरिया के फाटक के पास चार कोढ़ी बैठे थे।+ उन्होंने एक-दूसरे से कहा, “हम यहाँ बैठे-बैठे मौत का इंतज़ार क्यों कर रहे हैं?
4 चाहे हम यहाँ बैठे रहें या शहर के अंदर जाएँ, हमारी मौत तय है क्योंकि वहाँ अकाल पड़ा है।+ इसलिए क्यों न हम सीरिया के लोगों की छावनी में चले जाएँ? अगर उन्होंने हमें ज़िंदा छोड़ दिया तो अच्छी बात है। लेकिन अगर उन्होंने हमें मार डाला तो भी कोई बात नहीं, मरना तो है ही।”
5 इसलिए शाम को जब अँधेरा हो गया तो वे कोढ़ी उठकर सीरिया के लोगों की छावनी में गए। जब वे छावनी के किनारे पहुँचे तो उन्होंने देखा कि वहाँ कोई नहीं है।
6 दरअसल यहोवा ने ऐसा किया था कि सीरिया के सैनिकों को युद्ध-रथों, घोड़ों और एक विशाल सेना का शोर सुनायी पड़ा।+ वे एक-दूसरे से कहने लगे, “लगता है इसराएल के राजा ने हमसे लड़ने के लिए हित्तियों के राजाओं और मिस्र के राजाओं को किराए पर बुलाया है!”
7 इसलिए शाम को जब अँधेरा हो गया था, तब वे अपनी जान बचाने के लिए फौरन छावनी छोड़कर भाग गए। उन्होंने अपने तंबू, घोड़े, गधे, यहाँ तक कि पूरी छावनी जैसी की तैसी छोड़ दी थी।
8 जब वे कोढ़ी उनकी छावनी के किनारे पहुँचे तो उनके एक तंबू में गए और खाने-पीने लगे। उन्होंने वहाँ से सोना, चाँदी और कपड़े लिए और जाकर यह सब कहीं छिपा दिया। फिर से वे छावनी में आए और एक दूसरे तंबू में गए और वहाँ से भी कुछ चीज़ें ले जाकर छिपा दीं।
9 कुछ देर बाद वे एक-दूसरे से कहने लगे, “हम जो कर रहे हैं वह सही नहीं है। आज का दिन खुशखबरी सुनाने का दिन है! अगर हमने अभी जाकर यह खबर नहीं सुनायी और सुबह सबको यह बात पता चल गयी तो हम सज़ा के लायक ठहरेंगे। चलो अब हम जाकर राजा के महल तक यह खबर पहुँचाते हैं।”
10 वे वहाँ से चले गए और उन्होंने शहर के फाटक के पहरेदारों को आवाज़ देकर बताया, “हम सीरिया के लोगों की छावनी में गए थे, मगर वहाँ कोई नहीं था। हमें किसी की आवाज़ नहीं सुनायी दी। वहाँ सिर्फ उनके घोड़े और गधे बँधे हुए थे और वे अपने तंबू ऐसे ही छोड़कर चले गए।”
11 यह सुनते ही पहरेदारों ने राजमहल के लोगों को आवाज़ दी और उन्हें यह खबर सुनायी।
12 राजा रात को ही उठा और उसने अपने सेवकों से कहा, “यह ज़रूर सीरिया के लोगों की चाल है। वे जानते हैं कि हम भूख से मर रहे हैं,+ इसलिए वे यह सोचकर कहीं मैदान में छिप गए हैं कि जैसे ही इसराएली शहर से बाहर आएँगे हम उन्हें ज़िंदा पकड़ लेंगे और उनके शहर में घुस जाएँगे।”+
13 तब राजा के एक सेवक ने कहा, “राजा से मेरी गुज़ारिश है कि वह कुछ आदमियों से कहे कि वे शहर में बचे पाँच घोड़े लेकर जाएँ और इस बात का सही-सही पता लगाएँ। अगर वे मारे गए तो भी कोई बात नहीं क्योंकि यहाँ शहर में रहकर भी वे कौन-से ज़िंदा रहनेवाले हैं। हम सब इसराएलियों के साथ वे भी तो मरेंगे ही।”
14 तब उन आदमियों ने घोड़ों के साथ दो रथ लिए और उन्हें राजा ने यह कहकर सीरिया के लोगों की छावनी में भेजा, “जाओ, जाकर देख आओ।”
15 वे सीरिया के लोगों को ढूँढ़ते-ढूँढ़ते दूर यरदन तक पहुँच गए। उन्होंने देखा कि पूरे रास्ते में कपड़े और बरतन फैले पड़े हैं क्योंकि सीरिया के लोग जब डर के मारे भागने लगे तो उन्होंने रास्ते में ये चीज़ें फेंक दी थीं। राजा के दूतों ने वापस आकर उसे खबर दी।
16 फिर इसराएल के लोग शहर से निकलकर सीरिया के लोगों की छावनी में गए और उन्होंने उसे लूट लिया। इसलिए एक सआ मैदा एक शेकेल में और दो सआ जौ एक शेकेल में बिकने लगा, ठीक जैसे यहोवा ने कहा था।+
17 राजा ने अपने सहायक सेना-अधिकारी को, जो उसका भरोसेमंद सेवक था, फाटक का अधिकारी ठहराया था। मगर वह वहाँ लोगों के पैरों के नीचे दबकर मर गया। तब सच्चे परमेश्वर के सेवक की वह बात पूरी हुई जो उसने राजा से उस वक्त कही थी जब राजा उसके पास गया था।
18 सच्चे परमेश्वर के सेवक की यह बात पूरी हुई जो उसने राजा से कही थी, “कल इसी समय सामरिया के फाटक पर दो सआ जौ एक शेकेल में और एक सआ मैदा एक शेकेल में मिलेगा।”+
19 मगर सहायक सेना-अधिकारी ने सच्चे परमेश्वर के सेवक से कहा था, “अगर यहोवा आकाश के झरोखे खोल दे तो भी यह नहीं हो सकता!” तब एलीशा ने कहा था, “कल तू खुद अपनी आँखों से यह देखेगा, मगर उसमें से कुछ खा नहीं पाएगा।”
20 उस अधिकारी के साथ ठीक ऐसा ही हुआ क्योंकि फाटक पर लोगों के रौंदने से उसकी मौत हो गयी।
कई फुटनोट
^ या “बाज़ारों।”