अय्यूब 1:1-22

  • निर्दोष अय्यूब; उसकी दौलत (1-5)

  • शैतान ने उसकी नीयत पर सवाल उठाया (6-12)

  • अय्यूब संपत्ति और बच्चे खो बैठा (13-19)

  • परमेश्‍वर को दोष नहीं दिया (20-22)

1  ऊज़ नाम के देश में एक आदमी रहता था। उसका नाम अय्यूब* था।+ वह एक सीधा-सच्चा इंसान था जिसमें कोई दोष नहीं था।+ वह परमेश्‍वर का डर मानता और बुराई से दूर रहता था।+  उसके सात बेटे और तीन बेटियाँ थीं।  उसके पास 7,000 भेड़ें, 3,000 ऊँट, 1,000* गाय-बैल और 500 गधियाँ थीं। उसके ढेर सारे नौकर-चाकर भी थे। वह पूरब के रहनेवालों में सबसे बड़ा आदमी था।  अय्यूब के सभी बेटे तय दिनों पर अपने-अपने घर दावत रखते थे* और अपनी तीनों बहनों को भी बुलाते थे।  जब दावतों का सिलसिला खत्म हो जाता तब अय्यूब अपने बच्चों को बुलाता ताकि उन्हें शुद्ध कर सके। फिर वह सुबह-सुबह उठकर अपने हर बच्चे के लिए होम-बलि चढ़ाता।+ उसका कहना था, “हो सकता है मेरे बच्चों ने कोई पाप किया हो और अपने मन में परमेश्‍वर के बारे में कुछ बुरा कहा हो।” अय्यूब हर बार ऐसा ही करता था।+  अब वह दिन आया जब सच्चे परमेश्‍वर के बेटे*+ उसके सामने इकट्ठा हुए।+ शैतान*+ भी उनके बीच यहोवा के सामने आया।+  यहोवा ने शैतान से पूछा, “तू कहाँ से आ रहा है?” शैतान ने यहोवा से कहा, “धरती पर यहाँ-वहाँ घूमते हुए आ रहा हूँ।”+  तब यहोवा ने शैतान से कहा, “क्या तूने मेरे सेवक अय्यूब पर ध्यान दिया? उसके जैसा धरती पर कोई नहीं। वह एक सीधा-सच्चा इंसान है जिसमें कोई दोष नहीं।+ वह परमेश्‍वर का डर मानता और बुराई से दूर रहता है।”  शैतान ने यहोवा से कहा, “क्या अय्यूब यूँ ही तेरा डर मानता है?+ 10  क्या तूने उसकी, उसके घर की और उसकी सब चीज़ों की हिफाज़त के लिए चारों तरफ बाड़ा नहीं बाँधा?+ तूने उसके सब कामों पर आशीष दी है+ और उसके जानवरों की तादाद इतनी बढ़ा दी है कि वे देश-भर में फैल गए हैं। 11  लेकिन अब अपना हाथ बढ़ा और उसका सबकुछ छीन ले। फिर देख, वह कैसे तेरे मुँह पर तेरी निंदा करता है!” 12  यहोवा ने शैतान से कहा, “तो ठीक है, अय्यूब का जो कुछ है वह मैं तेरे हाथ में देता हूँ। तुझे जो करना है कर। मगर अय्यूब को कुछ मत करना।” तब शैतान यहोवा के सामने से चला गया।+ 13  फिर जिस दिन अय्यूब के बेटे-बेटियाँ अपने सबसे बड़े भाई के घर खाना खा रहे थे और दाख-मदिरा पी रहे थे,+ 14  उस दिन एक आदमी ने आकर अय्यूब को खबर दी, “बैल खेत जोत रहे थे और गधियाँ पास में चर रही थीं 15  कि अचानक सबाई लोगों ने हमला बोल दिया और सारे जानवरों को लूटकर ले गए। उन्होंने तेरे सेवकों को तलवार से मार डाला। सिर्फ मैं बच निकला और तुझे यह खबर देने आया हूँ।” 16  उसकी बात अभी पूरी भी नहीं हुई थी कि एक दूसरा आदमी आया और कहने लगा, “आसमान से परमेश्‍वर की आग* गिरी और उसने तेरी भेड़ों और तेरे सेवकों को जलाकर भस्म कर दिया। सिर्फ मैं बच निकला और तुझे यह खबर देने आया हूँ।” 17  उसकी बात अभी पूरी भी नहीं हुई थी कि एक और आदमी आया और कहने लगा, “कसदी लोग+ तीन दल बनाकर आए और तेरे ऊँटों पर टूट पड़े और उन्हें ले गए। उन्होंने तेरे सेवकों को तलवार से मार डाला, सिर्फ मैं बच निकला और तुझे यह खबर देने आया हूँ।” 18  उसकी बात अभी पूरी भी नहीं हुई थी कि एक और आदमी आया और कहने लगा, “तेरे बेटे-बेटियाँ अपने सबसे बड़े भाई के घर खाना खा रहे थे और दाख-मदिरा पी रहे थे। 19  तभी अचानक वीराने से ज़ोरदार आँधी चली और घर के चारों कोनों से ऐसी टकरायी कि पूरा घर तेरे बच्चों पर गिर पड़ा और वे मर गए। सिर्फ मैं बच निकला और तुझे यह खबर देने आया हूँ।” 20  यह सुनते ही अय्यूब ने दुख के मारे अपने कपड़े फाड़े और अपना सिर मुँड़वाया। उसने ज़मीन पर गिरकर 21  कहा, “मैं अपनी माँ के पेट से नंगा आयाऔर नंगा ही लौट जाऊँगा।+ यहोवा ने दिया था+ और यहोवा ने ले लिया। यहोवा के नाम की बड़ाई होती रहे।” 22  इतना सब होने पर भी अय्यूब ने कोई पाप नहीं किया, न ही उसके साथ जो बुरा हुआ उसके लिए परमेश्‍वर को दोष दिया।

कई फुटनोट

शायद इसका मतलब है, “दुश्‍मनी का शिकार।”
शा., “500 जोड़ी।”
या “अय्यूब का हर बेटा बारी-बारी से अपने घर दावत रखता था।”
परमेश्‍वर के स्वर्गदूतों के लिए इस्तेमाल होनेवाला इब्रानी मुहावरा।
शब्दावली देखें।
या शायद, “बिजली।”