अय्यूब 11:1-20

  • सोपर का पहला भाषण (1-20)

    • दोष लगाया कि अय्यूब बेकार की बातें करता है (2, 3)

    • अय्यूब से बुरे काम छोड़ने को कहा (14)

11  तब नामाती सोपर+ ने कहा,   “तू क्या सोचता है, तू बकबक करेगा और कोई कुछ न कहेगा?तेरे बहुत बोलने* से तू सही साबित हो जाएगा?   क्या तेरी बेकार की बातें लोगों का मुँह बंद कर सकती हैं? दूसरों का मज़ाक उड़ाकर+ क्या तू अपमान से बच सकता है?   तू कहता है, ‘मैं जो सिखाता हूँ वह सही है,+मैं परमेश्‍वर की नज़र में बेदाग हूँ।’+   काश! परमेश्‍वर अपना मुँह खोलेऔर बोलना शुरू करे,+   तो वह तेरे सामने बुद्धि के गहरे रहस्य खोलेगा,क्योंकि जब बुद्धि से काम लिया जाता है, तो उसके कई फायदे होते हैं। और तब तुझे पता चलेगा कि तेरे कई पाप उसने भुला दिए हैं!   क्या तू परमेश्‍वर की गहरी बातों का पता लगा सकता है?क्या तू सर्वशक्‍तिमान के बारे में सबकुछ जान सकता है?   बुद्धि आसमान से भी ऊँची है, क्या तू वहाँ पहुँच सकता है? वह कब्र से भी गहरी है, क्या तू वहाँ उतर सकता है?   वह तो धरती से भी विशाल हैऔर समुंदर से भी चौड़ी है। 10  अगर परमेश्‍वर किसी राह चलते को पकड़कर अदालत ले आए,तो भला कौन उसे रोक सकता है? 11  क्योंकि वह मक्कार आदमी को देखते ही पहचान लेता है, वह उसके बुरे कामों को अनदेखा नहीं करता। 12  एक जंगली गधा कभी इंसान को जन्म नहीं दे सकता,*उसी तरह मूर्ख कभी समझदार नहीं बन सकता। 13  अगर तू अपने दिल को शुद्ध* करे,परमेश्‍वर के आगे हाथ फैलाकर गिड़गिड़ाए, 14  अगर तू गलत काम करना छोड़ देऔर तेरे डेरे में बुरे काम न हों, 15  तो तू निर्दोष ठहरेगा और उसको अपना मुँह दिखा सकेगा,तू उसके सामने थरथराएगा नहीं, सीधा खड़ा रहेगा। 16  तू अपनी दुख-तकलीफें भूल जाएगा,वे तेरे ज़हन से ऐसे उतर जाएँगी, जैसे पानी बह जाता है। 17  तेरी ज़िंदगी के दिन, भरी दोपहरी से ज़्यादा रौशन होंगेऔर रातें, सुबह की तरह जगमगाएँगी। 18  तेरे पास आशा होगी और तू किसी बात से न डरेगा,जो कुछ तेरा है, तू उस पर नज़र दौड़ाएगा और आराम फरमाएगा। 19  तू इत्मीनान से लेटेगा, कोई तुझे नहीं डराएगा।तेरी मेहरबानी पाने के लिए लोगों का ताँता लग जाएगा। 20  मगर दुष्ट की आँखें धुँधली हो जाएँगी,उसे बचने का कोई रास्ता नहीं दिखेगा।मरने के सिवा उसके पास कोई आशा नहीं होगी।”+

कई फुटनोट

या “डींगें हाँकने।”
या “इंसान बनकर पैदा नहीं हो सकता।”
या “तैयार।”