अय्यूब 24:1-25

  • अय्यूब की बात जारी (1-25)

    • ‘परमेश्‍वर ने एक समय क्यों नहीं ठहराया?’ (1)

    • कहा, परमेश्‍वर बुराई होने देता है (12)

    • पापियों को अंधकार पसंद (13-17)

24  सर्वशक्‍तिमान ने एक समय क्यों नहीं ठहराया?+ परमेश्‍वर को जाननेवाले उसका दिन* क्यों नहीं देख पाते?   दुष्ट अपने पड़ोसी की ज़मीन का सीमा-चिन्ह खिसकाते हैं,+दूसरों की भेड़ें हाँककर अपने चरागाह में ले जाते हैं।   वे अनाथ का गधा छीन ले जाते हैं,विधवा का बैल ज़बरदस्ती गिरवी रख लेते हैं।+   गरीब को रास्ता छोड़ने के लिए मजबूर करते हैं,वह बेबस इंसान उनसे छिपता फिरता है।+   वह वीराने के जंगली गधे+ की तरह खाना ढूँढ़ता फिरता है,अपने बच्चों का पेट भरने के लिए रेगिस्तान छान मारता है।   उसे दूसरों के खेत में जाकर फसल काटनी पड़ती है,*दुष्टों के बाग से बचे हुए अंगूर बीनने पड़ते हैं।   उसके पास कपड़े नहीं हैं, वह सारी रात नंगा पड़ा रहता है,+ठंड में भी उसके पास ओढ़ने के लिए कुछ नहीं होता।   वह पहाड़ों पर होनेवाली बारिश में भीग जाता है,छिपने की जगह न मिलने पर चट्टानों से लिपट जाता है।   अनाथ को उसकी माँ के सीने से छीन लिया जाता है,+गरीब के कपड़े तक गिरवी रख लिए जाते हैं,+ 10  वह नंगा लौटने के लिए मजबूर हो जाता है,अनाज के गट्ठर उठाता है मगर खुद भूख से कुलबुलाता है। 11  वह खेतों* में मुँडेरों के बीच कड़ी धूप में मज़दूरी करता है,*अंगूर रौंदकर रस निकालता है, मगर खुद एक बूँद के लिए तरस जाता है।+ 12  मरनेवालों का कराहना पूरे शहर में गूँज रहा है,बुरी तरह घायल लोग मदद के लिए पुकार रहे हैं,+मगर परमेश्‍वर को कोई फर्क नहीं पड़ता।* 13  ऐसे भी लोग हैं जिन्हें उजाले से नफरत है,+वे उसकी राह को नकारते हैंऔर उस पर चलना नहीं चाहते। 14  पौ फटते ही कातिल निकल पड़ता है,गरीब-मोहताजों का खून बहाता है+और रात के अँधेरे में वह चोरी करता है। 15  व्यभिचार करनेवाला शाम ढलने का इंतज़ार करता है।+ कहता है, ‘मुझे कोई नहीं देखेगा’+ और अपना चेहरा ढक लेता है। 16  अँधेरा होते ही चोर घरों में सेंध लगाता हैऔर सूरज उगते ही वह छिप जाता है। वह उजाले को जानता ही नहीं।+ 17  सुबह की रौशनी दुष्ट को घोर अंधकार जान पड़ती है,उसकी यारी उस अँधेरे से है जिससे दूसरे खौफ खाते हैं। 18  मगर तेज़ पानी उसे बहा ले जाएगा,* उसकी ज़मीन पर शाप पड़ेगा,+ वह अपने अंगूरों के बाग में कभी नहीं लौट पाएगा। 19  जैसे तपती गरमी और बंजर ज़मीन बर्फीले पानी को सुखा देती है,वैसे ही कब्र पापी को निगल जाती है।+ 20  उसकी माँ* उसे भूल जाएगी, वह कीड़ों की दावत बन जाएगा,सबकी यादों से मिट जाएगा,+दुष्ट इंसान पेड़ की तरह टूटकर गिर जाएगा। 21  वह बाँझ औरतों को अपना शिकार बनाता है,विधवाओं के साथ बदसलूकी करता है। 22  ऐसे ज़ालिमों को परमेश्‍वर* अपनी ताकत से खत्म कर देगा,चाहे वे कितने ही ऊँचे उठें, उन्हें अपनी ज़िंदगी का भरोसा नहीं होगा। 23  दुष्टों को परमेश्‍वर* बेखौफ, बेफिक्र जीने देता है,+मगर उसकी आँखें उनके हर काम* पर लगी रहती हैं।+ 24  कुछ समय के लिए वे फलते-फूलते हैं, फिर मुरझा जाते हैं,+ बाकी लोगों की तरह खत्म हो जाते हैं,+अनाज की बालों की तरह काट दिए जाते हैं। 25  अब बताओ, कौन मुझे झूठा साबित कर सकता है?कौन मेरी बातों को काट सकता है?”

कई फुटनोट

यानी उसके न्याय का दिन।
या शायद, “उसे खेत में चारा काटना पड़ता है।”
या “सीढ़ीदार खेतों।”
या शायद, “के बीच तेल पेरकर निकालता है।”
या शायद, “परमेश्‍वर किसी को दोषी नहीं ठहराता।”
शा., “वह पानी की सतह पर फुर्तीला है।”
शा., “गर्भ।”
शा., “वह।”
शा., “वह।”
शा., “उनकी राहों।”