अय्यूब 32:1-22

  • जवान एलीहू चर्चा में शामिल हुआ (1-22)

    • अय्यूब और उसके साथियों से गुस्सा (2, 3)

    • आदर दिखाया और दूसरों को पहले बोलने दिया (6, 7)

    • उम्र ही किसी को बुद्धिमान नहीं बनाती (9)

    • एलीहू बोलने के लिए बेताब (18-20)

32  इन तीनों आदमियों ने जब देखा कि अय्यूब को अपनी नेकी पर पूरा यकीन है,*+ तो उन्होंने उससे और कुछ नहीं कहा।  मगर एलीहू तमतमा उठा। वह बूज+ वंशी बारकेल का बेटा था, जो राम के घराने से था। उसे अय्यूब पर इसलिए गुस्सा आया क्योंकि उसने परमेश्‍वर को नहीं बल्कि खुद को सही साबित करने की कोशिश की।+  उसे अय्यूब के तीन साथियों पर भी बहुत गुस्सा आया क्योंकि वे अय्यूब की बातों का सही-सही जवाब नहीं दे पाए, उलटा उन्होंने परमेश्‍वर को दोषी बताया।+  मगर एलीहू ने उन लोगों को अपनी बात पूरी करने दी क्योंकि वे उम्र में उससे बड़े थे।+ वह अय्यूब से अपनी बात कहने के लिए रुका रहा।  जब उसने देखा कि उन तीनों के पास अय्यूब से कहने के लिए और कुछ नहीं है, तो उसका क्रोध भड़क उठा।  और बूज वंशी बारकेल के बेटे एलीहू ने बोलना शुरू किया, “उम्र में तुम सब मुझसे बड़े हो+और मैं तुमसे छोटा हूँ,इसलिए जब तुम बात कर रहे थे, तो मैं बीच में नहीं बोला+और जो बातें मुझे मालूम हैं मैंने नहीं बतायीं।   मैंने सोचा बड़े-बुज़ुर्गों को ही बोलने दूँ,उम्रवालों को ही बुद्धि की बातें कहने दूँ।   मगर लोगों को परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति से ही,सर्वशक्‍तिमान की साँस से ही समझ मिलती है।+   उम्र इंसान को खुद-ब-खुद बुद्धिमान नहीं बना देती,न ही बुढ़ापा अपने आप सही-गलत का फर्क सिखाता है।+ 10  इसलिए सुनो कि मैं क्या कहता हूँ,जो बातें मुझे मालूम हैं मैं तुम्हें बताऊँगा। 11  देखो, मैं तुम्हारी बातें सुनने के लिए ठहरा रहा,जब तुम तर्क कर रहे थे, तो मैं सुनता रहा,+जब तुम सोच रहे थे कि आगे क्या कहें, तब भी मैं रुका रहा।+ 12  मैंने बड़े ध्यान से तुम्हारी बातें सुनी हैं,लेकिन तुममें से कोई भीन अय्यूब को गलत साबित कर पाया,न उसकी दलीलें काट पाया। 13  अब यह मत कहना, ‘हम बहुत बुद्धिमान हैं,अय्यूब को जो फटकार मिली है,वह परमेश्‍वर की तरफ से है, इंसान की तरफ से नहीं।’ 14  जो बातें अय्यूब ने कहीं वे मेरे खिलाफ नहीं कहीं,इसलिए मैं तुम्हारी दलीलों का सहारा लेकर उसे जवाब नहीं दूँगा। 15  ये लोग घबराए हुए हैं, इनके पास कोई जवाब नहीं।कुछ नहीं बचा इनके पास कहने को। 16  मैं इंतज़ार करता रहा कि ये लोग कुछ कहेंगे,मगर ये बुत बने खड़े हैं, इनके मुँह से एक शब्द नहीं निकल रहा। 17  इसलिए अब मैं बोलूँगाऔर बताऊँगा कि मुझे क्या मालूम है। 18  मेरे पास कहने को बहुत कुछ है,पवित्र शक्‍ति मुझे बोलने के लिए मजबूर कर रही है। 19  मेरे मन में इतनी बातें भरी हैं कि अब इन्हें रोकना मुश्‍किल है,मानो दाख-मदिरा के उफनने से नयी मशक फटने पर हो।+ 20  मुझे बोलने दो, तभी मुझे चैन पड़ेगा, मैं मुँह खोलकर जवाब दूँगा। 21  मैं किसी की तरफदारी नहीं करूँगा,+न किसी इंसान की झूठी तारीफ करूँगा,* 22  क्योंकि झूठी तारीफ करना मुझे नहीं आता,अगर मैं ऐसा करूँ, तो मेरा बनानेवाला मुझे फौरन मिटा देगा।

कई फुटनोट

या “अपनी नज़र में निर्दोष है।”
या “को इज़्ज़त देने के लिए उसे खिताब दूँगा।”