अय्यूब 35:1-16

  • एलीहू बताता है, अय्यूब की सोच गलत है (1-16)

    • अय्यूब ने कहा, वह परमेश्‍वर से ज़्यादा नेक है (2)

    • पाप से परमेश्‍वर का कुछ नहीं बिगड़ेगा (5, 6)

    • अय्यूब फैसले का इंतज़ार करे (14)

35  फिर एलीहू ने यह कहा,   “क्या तुझे अपने सही होने पर इतना यकीन हैकि तू कहता है, ‘मैं परमेश्‍वर से भी ज़्यादा नेक हूँ।’+   तू कहता है, ‘मेरे निर्दोष बने रहने से तुझे* क्या फर्क पड़ता है? पाप न करके भला मुझे क्या फायदा हुआ?’+   मैं तुझे इसका जवाब देता हूँ,न सिर्फ तुझे बल्कि तेरे इन साथियों+ को भी।   ज़रा ऊपर आसमान की तरफ देख,ऊँचे-ऊँचे बादलों पर गौर कर।+   अगर तू पाप करे, तो परमेश्‍वर का क्या बिगड़ेगा?+ अगर तेरे अपराध बढ़ जाएँ, तो उसे क्या नुकसान होगा?+   अगर तू अच्छे काम करे, तो उसका क्या भला होगा?तेरे कामों से उसे क्या मिलेगा?+   तेरी दुष्टता से सिर्फ लोगों को नुकसान पहुँचेगाऔर तेरी अच्छाई से सिर्फ इंसानों को फायदा होगा।   ज़ुल्म के बढ़ने पर इंसान फरियाद करता है,ताकतवरों की तानाशाही* से राहत पाने के लिए वह गिड़गिड़ाता है,+ 10  मगर कोई यह नहीं पूछता, ‘मेरा महान रचनाकार+ कहाँ है?परमेश्‍वर कहाँ है, जो रात में गाने के लिए प्रेरित करता है?’+ 11  वह धरती के जानवरों+ से ज़्यादा हमें सिखाता है+और आकाश के पंछियों से ज़्यादा हमें बुद्धिमान बनाता है। 12  लोग उससे फरियाद करते हैं,मगर वह दुष्टों की नहीं सुनता+ क्योंकि वे घमंडी हैं।+ 13  वह उनकी खोखली पुकार* पर ध्यान नहीं देता,+सर्वशक्‍तिमान उनकी बिनती नहीं सुनता। 14  तेरी तो वह और भी नहीं सुनेगा क्योंकि तेरी शिकायत है कि वह तुझे अनदेखा कर रहा है।+ तेरा मुकदमा उसके सामने पेश कर दिया गया है,अब तू उसके फैसले का इंतज़ार कर।+ 15  उसने गुस्से में आकर तुझे सज़ा नहीं दीऔर तूने बिना सोचे-समझे जो कहा, उसका हिसाब नहीं लिया।+ 16  इसलिए अय्यूब बेकार में अपना मुँह खोलता हैऔर बहुत-सी बातें करता है, जिसके बारे में उसे कुछ नहीं पता।”+

कई फुटनोट

शायद परमेश्‍वर की बात की गयी है।
शा., “के बाज़ू।”
या “उनके झूठ।”