अय्यूब 36:1-33

  • एलीहू ने परमेश्‍वर की महानता की तारीफ की (1-33)

    • आज्ञाकारी फलते-फूलते हैं; भक्‍तिहीन ठुकराए जाते हैं (11-13)

    • “सिखाने में उसके जैसा कोई नहीं” (22)

    • अय्यूब उसकी बड़ाई करे (24)

    • “परमेश्‍वर की महानता हमारी समझ से परे” (26)

    • बारिश और बिजली उसके काबू में (27-33)

36  एलीहू ने यह भी कहा,   “थोड़ा और सब्र रखो और मेरी सुनो!परमेश्‍वर के पक्ष में मुझे कुछ और भी कहना है।   मैंने जो जानकारी हासिल की है, वह सब बताऊँगा,खुलेआम बताऊँगा कि मेरा बनानेवाला कितना नेक है।+   यकीन मानो, मेरी बातें झूठी नहीं,यह सब मैंने उससे जाना है जिसके पास पूरा ज्ञान है।+   हाँ, परमेश्‍वर से, जो ताकतवर है+ और किसी को नहीं ठुकराता,वह गहरी समझ रखनेवाला परमेश्‍वर है।   वह दुष्टों को ज़िंदा नहीं छोड़ता,+मगर सताए हुओं को न्याय दिलाता है।+   वह नेक लोगों से अपनी नज़र नहीं हटाता,+उन्हें राजाओं की तरह* राजगद्दी पर बिठाता है+और उन्हें सदा के लिए ऊँचा करता है।   लेकिन अगर उन्हें बेड़ियों में जकड़ दिया जाता हैऔर दुख की रस्सियों से बाँध दिया जाता है,   तो वह उन्हें बताता है कि उनका कसूर क्या है,घमंड में आकर उन्होंने क्या अपराध किया है। 10  सुधारने के लिए वह उन्हें शिक्षा देता हैऔर कहता है कि बुरे रास्ते से पलटकर लौट आओ।+ 11  अगर वे उसकी बात मानकर उसकी सेवा करें,तो उनके दिन खुशहाली में बीतेंगे,उनकी ज़िंदगी के साल सुख से कटेंगे।+ 12  लेकिन अगर वे नहीं मानेंगे तो तलवार* से मारे जाएँगे,+अज्ञानता की हालत में मर जाएँगे। 13  जो मन से भक्‍तिहीन हैं, वे नाराज़गी पालते हैं, परमेश्‍वर उन्हें बाँध देता है, फिर भी वे उससे मदद नहीं मागँते। 14  वे नीच आदमियों*+ के साथ ज़िंदगी बिताते हैं*और जवानी में ही मर जाते हैं।+ 15  मगर परमेश्‍वर* मुसीबत के मारों को छुड़ाता है,सताए हुओं को अपनी हिदायतें देता है। 16  वह तुझे संकट के मुँह से खींचकर+एक खुली जगह ले आएगा, जहाँ कोई बंदिश न होगी,+तेरी मेज़ पर चिकना-चिकना भोजन सजाकर तुझे दिलासा देगा।+ 17  तुझे यह भी देखकर चैन मिलेगा कि दुष्टों को सज़ा सुनायी गयी,+उन्हें सज़ा दी गयी और इंसाफ किया गया। 18  मगर ध्यान रख कि गुस्से में तू उनका कुछ बुरा न कर बैठे*+और मोटी रिश्‍वत तुझे बहका न दे। 19  तू मदद के लिए चाहे कितनी ही फरियाद कर ले,कितने ही हाथ-पैर मार ले, मगर क्या तू मुसीबत से बच पाएगा?+ 20  तू रात के लिए मत तरस,जब लोग अपनी-अपनी जगह से गायब हो जाते हैं। 21  खबरदार रह कि तेरे कदम बुराई की तरफ न बढ़ें,दुख सहने के बजाय तू बुराई न करने लगे।+ 22  देख! परमेश्‍वर बड़ा शक्‍तिशाली है,सिखाने में उसके जैसा कोई नहीं। 23  भला कौन उसे बता सकता है कि किस राह पर चलना है?*+या उससे कह सकता है, ‘तूने जो किया, गलत किया।’+ 24  उसके कामों की बड़ाई करना मत भूल,+जिनकी तारीफ में लोग गीत गाते हैं।+ 25  उसके ये काम सब लोगों ने देखे हैं,नश्‍वर इंसान दूर से उन्हें निहारता है। 26  परमेश्‍वर की महानता हमारी समझ से परे है,+उसकी उम्र का कोई हिसाब नहीं लगाया जा सकता।+ 27  वह पानी को भाप बनाकर ऊपर उठा ले जाता है,+कोहरा फिर पानी की बूँदें बन जाता है 28  और बादल इन्हें नीचे उँडेलते हैं,+इंसान की बस्तियों पर जमकर पानी बरसाते हैं। 29  क्या कोई आसमान में फैले बादलों को समझ सकता है?उसके डेरे में होनेवाली गड़गड़ाहट को जान सकता है?+ 30  देख, वह कैसे बादलों में से बिजली* चमकाता है+और समुंदर की गहराइयों को ढकता है। 31  इन्हीं से वह लोगों की ज़िंदगी कायम रखता है,*उन्हें बहुतायत में खाना देता है।+ 32  वह बिजली को अपनी हथेली से ढक लेता है,जहाँ निशाना साधता है, वहीं उसे गिराता है।+ 33  बादलों का गरजन उसके आने की खबर देता है,यहाँ तक कि मवेशी भी बताते हैं कि कौन* आ रहा है।

कई फुटनोट

या शायद, “वह राजाओं को।”
या “भाले।”
शा., “मंदिरों में दूसरे आदमियों के साथ संभोग करनेवाले आदमी।”
या शायद, “ज़िंदगी खत्म कर देते हैं।”
शा., “वह।”
या “तू ताली बजा-बजाकर उनका मज़ाक न उड़ाए।”
या शायद, “कौन उसकी राह में मीनमेख निकाल सकता है; लेखा ले सकता है?”
शा., “उजियाला।”
या शायद, “लोगों की पैरवी करता है।”
या शायद, “क्या।”