अय्यूब 39:1-30

  • जानवरों की सृष्टि दिखाती है कि इंसान कितना कम जानता है (1-30)

    • पहाड़ी बकरी और हिरनी (1-4)

    • जंगली गधा (5-8)

    • जंगली साँड़ (9-12)

    • शुतुरमुर्ग (13-18)

    • घोड़ा (19-25)

    • बाज़ और उकाब (26-30)

39  क्या तू जानता है पहाड़ी बकरी कब जन्म देती है?+ क्या तूने कभी हिरनी को बच्चा जनते देखा है?+   क्या तू गिन सकता है, वे कितने महीने गाभिन रहती हैं? या ठीक किस वक्‍त बच्चा देती हैं?   बच्चा देते वक्‍त वे झुक जाती हैंऔर बच्चा हो जाने पर उन्हें प्रसव-पीड़ा से राहत मिलती है।   उनके बच्चे खुले मैदानों में बढ़ते और तगड़े होते जाते हैं,फिर वे चले जाते हैं और लौटकर नहीं आते।   किसने जंगली गधे* को खुला घूमने दिया?+किसने उसकी रस्सियों को खोल दिया?   मैंने बंजर इलाके को उसका घर बनाया,नमकवाली ज़मीन उसके बसेरे के लिए रखी।   शहर की चहल-पहल से उसे कोई मतलब नहीं,हाँकनेवाले की आवाज़ को वह अनसुना कर देता है।   ज़रा-सी घास की तलाश में,वह पहाड़ों को छान मारता है।   बता, क्या जंगली साँड़ तेरे लिए काम करेगा?+ क्या वह तेरे तबेले* में रात बिताएगा? 10  क्या तू उसे रस्सी से बाँधकर जुताई करवा सकता है?क्या वह घाटी में खेत जोतने* के लिए तेरे पीछे-पीछे आएगा? 11  क्या तू उसकी ज़बरदस्त ताकत पर भरोसा रख सकता है?उससे अपने भारी काम करवा सकता है? 12  क्या वह तेरे लिए फसल ढोएगा?उसे उठाकर खलिहान तक लाएगा? 13  मादा शुतुरमुर्ग खुशी के मारे पंख फड़फड़ाती है,मगर क्या उसके पंख और डैने, लगलग पक्षी+ की तरह होते हैं? 14  वह अंडे देकर उन्हें ज़मीन में ही रहने देती हैऔर वहीं धूल में उन्हें सेती है। 15  वह भूल जाती है कि कोई अंडों को कुचल सकता है,या जंगली जानवर उन्हें रौंद सकता है। 16  वह अपने बच्चों के साथ कठोरता करती है, मानो वे उसके हैं ही नहीं।+उसे कोई चिंता नहीं कि उन्हें पालने-पोसने की उसकी मेहनत बेकार जाएगी। 17  परमेश्‍वर ने उसे बुद्धि नहीं दी,न ही उसमें समझ डाली। 18  मगर जब वह अपने पंख फड़फड़ाकर दौड़ती है,तब घोड़े और उसके सवार पर हँसती है। 19  क्या घोड़े में ताकत तूने भरी है?+ उसकी गरदन पर लहराता अयाल क्या तूने दिया है? 20  क्या उसे टिड्डी की तरह छलाँग लगाना तूने सिखाया है? उसकी फुफकार से कँपकँपी छूट जाती है।+ 21  घाटी में वह टाप मारता है और ज़ोर लगाकर उछलता है,+युद्ध के मैदान की तरफ* सरपट दौड़ पड़ता है।+ 22  खौफ को सामने देख वह हँसता है,किसी से नहीं डरता,+ तलवार देखकर पीछे नहीं हटता। 23  जब तरकश उससे लगकर खड़खड़ाता है,जब सवार के भाले-बरछी चमचमाते हैं, 24  तो वह उमंग से भर जाता है, हवा से बातें करने लगता है,*नरसिंगा फूँके जाने पर उसे रोकना मुश्‍किल है,* 25  उसकी आवाज़ सुनकर वह ज़ोर से हिनहिनाता है, दूर से ही उसे युद्ध की खुशबू आ जाती है,सेनापतियों का चिल्लाना और युद्ध की ललकार सुनायी पड़ती है।+ 26  क्या बाज़ को आसमान में उड़ने की समझ तूने दी है,जो वह दक्षिण की तरफ अपने पंख फैलाता है? 27  या क्या तेरे हुक्म पर उकाब उड़ान भरता है,+अपना घोंसला ऊँची जगहों पर बनाता है,+ 28  खड़ी चट्टान पर रात गुज़ारता हैऔर चट्टान की चोटी पर अपना गढ़ बनाता है? 29  वहाँ से वह खाने की तलाश में,+दूर-दूर तक अपनी नज़र दौड़ाता है। 30  उसके चूज़े खून पीते हैं,जहाँ लाश होती है वहीं वह पहुँच जाता है।”+

कई फुटनोट

या “गोरखर।”
या “चरनी।”
या “हेंगा खींचने।”
शा., “हथियारों का सामना करने।”
शा., “ज़मीन को निगल जाता है।”
या शायद, “उसे यकीन नहीं होता।”